शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ, परिभाषा, क्षेत्र, प्रकृति तथा उपयोगिता | Educational Psychology in hindi

▶शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ (Meaning of Psychology)

शिक्षा को अंग्रेजी में Education कहते हैं जो लैटिन भाषा के Educatum का रूपान्तर है जिसका अर्थ है to bring up together हिन्दी में शिक्षा का अर्थ 'ज्ञान' से लगाया जाता है। गांधी जी के अनुसार शिक्षा का तात्पर्य "व्यक्ति के शरीर, मन और आत्मा के समुचित विकास से है।" अंग्रेजी का Psychology शब्द दो शब्दों 'Psyche' और 'logus' से मिलकर बना है। 'Psyche' का अर्थ है ‘आत्मा’ और 'logus' का अर्थ है ‘विचार-विमर्श’। अर्थात आत्मा के बारे में विचार-विमर्श या अध्ययन मनोविज्ञान में किया जाता है। शिक्षा मनोविज्ञान से तात्पर्य शिक्षण एवं सीखने की प्रकिया को सुधारने केे लिए मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रयोग करने से है। शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक परिस्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है।

शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ, परिभाषा ,क्षेत्र ,प्रकृति तथा उपयोगिता (Educational Psychology : Meaning, Definitions, Nature and Scope)

▶शिक्षा मनोविज्ञान की परिभाषा (Definition of Educational Psychology)

स्किनर (Skinner 1958) के अनुसार - "शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की वह शाखा है जो शिक्षण एवं अधिगम से सम्बन्धित है।"

क्रो एवं क्रो (Crow and Crow 1973) के अनुसार - "शिक्षा मनोविज्ञान जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक के अधिगम अनुभवों का विवरण एवं व्याख्या देता है।"

इस प्रकार शिक्षा मनोविज्ञान में व्यक्ति के व्यवहार, मानसिक प्रकियाओं एवं अनुभवों का अध्ययन शैक्षिक परिस्थितियों में किया जाता है। शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसका ध्येय शिक्षण की प्रभावशाली तकनीकों को विकसित करना तथा अधिगमकर्ता की योग्यताओं एवं अभिरूचियों का आंकलन करना है। यह व्यवहारिक मनोविज्ञान की शाखा है जो शिक्षण एवं सीखने की प्रकिया को सुधारने में प्रयासरत है।

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▶शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति (Nature of Educational Psychology)

  • शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति वैज्ञानिक (scientific) होती है। क्योंकि शैक्षिक वातावरण में अधिगमकर्ता (Learner) के व्यवहार का वैज्ञानिक विधियों, नियमों तथा सिद्धांतों के माध्यम से अध्ययन किया जाता है।
  • यह विधायक (Constitative) और नियामक (Regulative) दोनों प्रकार का विज्ञान है। विधायक विज्ञान तथ्यों (Facts) पर जबकि नियामक विज्ञान मुल्यांकन (assessment) पर आधारित होता है।
  • शिक्षा का स्वरूप संश्लेषणात्मक (Synthetic) होता है, जबकि शिक्षा मनोविज्ञान का स्वरूप विश्लेषणात्मक (analytic) होता है।
  • शिक्षामनोविज्ञान एक वस्तुपरक विज्ञान (Material science) है।
  • शिक्षा मनोविज्ञान व्यवहार का विज्ञान (Science of behavior) क्योंकि इसमें शैक्षणिक परिस्थिति के अंतर्गत बालक के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।
  • शैक्षणिक परिस्थितियों के अंतर्गत बालक के व्यवहार का अध्ययन करना ही शिक्षा मनोविज्ञान की विषय वस्तु (theme) है।
  • शिक्षा मनोविज्ञान का सीधा संबंध शिक्षण में अधिगम क्रियाकलापों से है।

▶शिक्षा मनोविज्ञान का कार्य क्षेत्र (Scope of Educational Psychology)

शिक्षा की महत्वपूर्ण समस्याओं के समाधान में मनोविज्ञान मदद करता है और यही सब समस्याएं व उनका समाधान शिक्षा मनोविज्ञान का कार्य क्षेत्र बनते है -

(1). शैक्षिक निर्देशन एवं परामर्श― अध्यापक का एक पुनीत कार्य है। विद्यार्थी के विद्यालय तथा व्यक्तिगत जीवन में अनेक अवसर आते हैं जब उन्हें सही मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। बहुत सी ऐसी व्यक्तिगत समस्याएं हैं जिनके संदर्भ में बालक को अध्यापकों की सहायता चाहिए होती है। शैक्षिक और वेबसाइट क्षेत्र में विद्यार्थियों को निर्देशित करना अध्यापकों का दायित्व है।कक्षा में समायोजन विद्यार्थियों को भी निर्देशन और मार्गदर्शन देना पड़ता है। निर्देशन और परामर्श के लिए विद्यार्थियों के वातावरण, अधिगम के स्तर, स्मृति, आदत, योग्यताओं, बुद्धि, व्यक्तिगत भिन्नता, मानसिक स्वास्थ्य आदि का अध्ययन करना आवश्यक है। यह सब मनोविज्ञान का अध्ययन क्षेत्र है।

(2). पाठ्यक्रम निर्माण― सभी छात्रों के लिए एक सा पाठ्यक्रम नहीं बनाया जा सकता। पाठ्यक्रम का निर्माण बालको की रुचियों, अभिरुचियों, आवश्यकताओं, आयु, बुद्धि, क्षमताओं के अनुसार किया जाना चाहिए क्योंकि सभी छात्रों में व्यक्तिगत विभिन्नता होती है।

(3). अध्ययन विधियां― शिक्षा मनोविज्ञान अभी विकास की प्रक्रिया में है। अब तक विद्यमान अनेक पद्धतियां अनेक स्थानों पर अध्ययन के लिए उपयुक्त नहीं बैठती हैं। अध्ययन की विभिन्न विधियों की खोज करना एवं प्रचलित विधियों में अपेक्षित सुधार करना भी इसके अंतर्गत आता है। शिक्षा मनोविज्ञान एक नया विज्ञान है इसके अंतर्गत निरंतर विकास हो रहा है लेकिन इसका विषय क्षेत्र सीमित नहीं है।

(4). सीखना― शिक्षा जगत की यह समस्या रहती है कि शिक्षक यह जाने की बालक कैसे सीखते हैं? उनके सीखने को कैसे प्रभावशाली बनाया जा सकता है? शिक्षा मनोविज्ञान में सीखने से संबंधित निम्नलिखित बातों का अध्ययन किया जाता है- सीखने के नियम, सीखने के सिद्धांत, सीखने को प्रभावित करने वाले तत्व, शिक्षा का स्थानांतरण आदि।

(5). समूह मनोविज्ञान― अब किसी भी देश में बालकों को समूह रूप में पढ़ाया जाता है। शिक्षा मनोविज्ञान में व्यक्ति के अध्ययन के साथ उसके समूह का अध्ययन भी किया जाता है। समूह में व्यक्ति का व्यवहार क्यों बदल जाता है और कैसे बदलता है इस सब का अध्ययन भी किया जाता है।

(6). मापन और मूल्यांकन― शिक्षा मनोविज्ञान में शैक्षिक उपलब्धि एवं विशेष योग्यता का मापन तथा बुद्धि, चरित्र, व्यक्तित्व संबंधी मापन के लिए विभिन्न साधनों विधियों परीक्षणों और सांख्यिकीय कार्यों का प्रयोग किया जाता है। सीखने की प्रक्रिया में अध्यापकों को बालक की बुद्धि, व्यक्तित्व तथा विभिन्न योग्यताओं का ज्ञान आवश्यक है इन सबका मापन शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में आता है।

(7). अभिवृद्धि एवं विकास― शिक्षा मनोविज्ञान में मनुष्य की शारीरिक अभिवृद्धि और शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक विकास का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। इसमें मानव अभिवृद्धि तथा विकास का अध्ययन चार कालो― शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था के क्रम में किया जाता है। इसमें मनुष्य के विकास में उसके वंशानुक्रम और पर्यावरण की भूमिका का अध्ययन भी किया जाता है।

(8). मानसिक स्वास्थ्य एवं समायोजन― मनोविज्ञान ने स्पष्ट किया है कि बच्चों की शिक्षा एवं विकास में बच्चों एवं अध्यापकों के मानसिक स्वास्थ्य तथा उनके समायोजन की क्षमता की अहम भूमिका रहती है। शिक्षा मनोविज्ञान में बालको और अध्यापकों के मानसिक विकास में बाधक एवं दुविधा पहुंचाने वाले तत्वों का अध्ययन किया जाता है। और साथ ही कुसमायोजन के कारणों और विधियों का भी अध्ययन किया जाता है।

▶मनोविज्ञान का शिक्षा में योगदान (Contribution of Psychology to Education)

  1. बालक का महत्व।
  2. बालकों की विभिन्न अवस्थाओं का महत्व। 
  3. बालकों की रूचियों व मूल प्रवृत्तियों का महत्व।
  4. बालकों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं का महत्व। 
  5. पाठ्यक्रम में सुधार।
  6. पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं पर बल। 
  7. सीखने की प्रक्रिया में उन्नति।
  8. मूल्यांकन की नई विधियां।
  9. शिक्षा के उद्देश्य की प्राप्ति व सफलता।
  10. नये ज्ञान का आधारपूर्ण ज्ञान।

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