आदर्शवाद का अर्थ, परिभाषा, सिद्धांत एवं विशेषताएं | Meaning, Definition, Principles and Characteristics of Idealism in hindi

▶आदर्शवाद का अर्थ (Meaning of Idealism)

आदर्शवाद अंग्रेजी भाषा के idealism शब्द का हिंदी रूपांतरण है। idealism शब्द की उत्पत्ति प्लेटो के इस आध्यात्मिक सिद्धांत से हुई है- "अंतिम वास्तविकता में विचार या आदर्शवाद शामिल हैं।" (Ultimate reality consists of Idea as or idealism) हिंदी में इसे आदर्शवाद के अतिरिक्त बहुत से शिक्षाशास्त्री प्रत्ययवाद, बुद्धिवाद, चिदात्मवाद व विचारवाद के नाम से संबोधित करते हैं। आदर्शवाद का विचार मत है कि यह जो भौतिक संसार दृष्टिगोचर होता है वह वास्तविक नहीं है बल्कि वह तो मानसिक जगत या विचार जगत की अभिव्यक्ति का साकार रूप है। आदर्श वादियों का विचार है कि जिस प्रकार भौतिकवाद संसार का आधार, पदार्थ को मानता है उसी प्रकार आदर्शवाद संसार का आधार, मन को मानता है। अतः स्पष्ट है कि आदर्शवाद का तात्पर्य उस दर्शन या विचारधारा से है जो मन व उसकी क्रियाओं जैसे विचार, चेतना, तर्क, प्रत्यय, अनुभव, आदर्श आदि को वास्तविक सत्ता मानती है और तदनुकूल अंतिम शक्ति आध्यात्मिक होती है।

दर्शन में आदर्शवाद (Idealism in Philosophy)

▶आदर्शवाद की परिभाषा (Definition of Idealism)

आदर्शवाद की प्रमुख परिभाषाएं निम्लिखित हैं-

गुड महोदय के अनुसार- ‘‘आदर्शवाद वह विचारधारा है, जिसमें यह माना जाता है, कि पारलौकिक सार्वभौमिक तत्वों, आकाशों या विचारों में वास्विकता निहित है और ये ही सत्य ज्ञान की वस्तुएं है जबकि ब्रह्म रूप मानव के विचारों तथा इन्द्रिय अनुभवों में निहित होते हैं, जो विचारों की प्रतिच्छाया के अनुरूप के समान होते हैं।’’

रोजन के अनुशार- ‘‘आदर्शवादियों का विश्वास है कि ब्रह्माण्ड की अपनी बुद्धि एवं इच्छा और सब भौतिक वस्तुओं को उनके पीछे विद्यमान मन द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।’’

हार्न के अनुसार- ‘‘आदर्शवादियों का सार है ब्रह्माण्ड, बुद्धि एवं इच्छा की अभिव्यक्ति है, विश्व के स्थायी तत्व की प्रकृति-मानसिक है और भौतिकता की बुद्धि द्वारा व्याख्या की जाती है।’’

हैण्डरसन के अनुसार- ‘‘आदर्शवाद मनुष्य के आध्यात्मिक पक्ष पर बल देता है। इसका कारण यह है कि आध्यात्मिक मूल्य मनुष्य और जीवन में सबके महत्वपूर्ण पहलु है।’’ आदर्शवादी यह मानते हैं कि व्यक्ति और संसार- दोनो बुद्धि की अभिव्यक्तियां है। वे कहते हैं कि भौतिक संसार की व्याख्या मन से ही की जा सकती है।

▶आदर्शवादी दर्शन के प्रमुख तत्व (Important Element of Idealism)

तत्व मीमासां में आदर्शवाद- सभी आदर्शवाददियों की मान्यता है कि यह जगत भौतिक नहीं अपितु मानसिक या आध्यात्मिक है। जगत विचारों की एक व्यवस्था, तर्कना का अग्रभाग है। प्रकृति मन की क्रिया या प्रतीति है। भौतिक सृष्टि का आधार मानसिक जगत है, जो उसे समझता है तथा मूल्य प्रदान करता है। मानसिक जगत के अभाव में भौतिक जगत अर्थहीन हो जायेगा। आदर्शवाद के अनुसार यह जगत सोद्देश्य है।

स्व अथवा आत्मा में आदर्शवाद- आदर्शवादी स्व की प्रकृति आध्यात्मिक मानता है तथा तत्व मीमांसा में ‘‘स्व’’ को सर्वोपरि रखता है। यदि अनुभव का जगत ब्रह्म सृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण है, तो अनुभवकर्ता मनुष्य तो और भी अधिक महत्वपूर्ण होना चाहिये। आदर्शवाद के अनुसार ‘‘स्व’’ की प्रकृति स्वतंत्र है उनमें संकल्प शक्ति है, अत: वह भौतिक सृष्टि में परिवर्तन लाने की क्षमता रखता है। क्रम विकास की प्रक्रिया में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ इकाई है।

ज्ञान मीमांसा में आदर्शवाद- आदर्शवादी ज्ञान एव सत्य की विवचेना विवेकपूर्ण विधि से करते हैं। वे ब्रह्माण्ड में उन सामान्य सिद्धान्तों की खोज करने का प्रयास करते है, जिनको सार्वभौमिक सत्य का रूप प्रदान किया जा सके। इस दृष्टिकोण से उनकी धारणा है कि सत्य का अस्तित्व है, परन्तु इसलिये नहीं है कि वह व्यक्ति या समाज द्वारा निर्मित किया गया है। सत्य को खोजा जा सकता है। जब उसकी खोज कर ली जायेगी तब वह निरपेक्ष सत्य होगा आदर्शवादियों की मान्यता है कि ईश्वर या निरपेक्ष मन या आत्मा सत्य है।

मूल्य मीमांसा में आदर्शवाद- शिव क्या है? इसके विषय में आदर्शवादियों का कहना है कि सद्जीवन को ब्रह्माण्ड से सामंजस्य स्थापित करके ही व्यतीत किया जा सकता है। निरपेक्ष सत्ता का अनुकरण करके ही शिव या अच्छाई की प्राप्ति की जा सकती है। आदर्शवादियों का मत है कि जब मनुष्य का आचरण, सावैभौमिक नैतिक नियम के अनुसार होता है तो वह स्वीकार्य होता है. सुन्दर क्या है? आदर्शवादियों के अनुसार यह निरपेक्ष सत्ता सुन्दरम है। इस जगत में जो कुछ भी सुन्दर है, यह केवल उसका अंशमात्र है, अर्थात् उसकी प्रतिछाया है। जब हम कला के किसी कार्य को सौन्दर्यनुभूति करते हैं, तब हम ऐस इसलिये करते हैं, क्येांकि वह निरपेक्ष सत्ता का सच्चा प्रतिनिधि है। आदर्शवादी संगीत को सर्वोत्तम प्रकार की सौन्दर्यात्मक रचना मानते हैं।

▶आदर्शवाद के प्रमुख सिद्धांत (Important Principle of Idealism)

थामस और लैंग ने आदर्शवाद के निम्नलिखित सिद्धान्त बताये हैं-

  1. वास्तविक जगत मानसिक एवं आध्यात्मिक है।
  2. सच्ची वास्तविकता आध्यात्मिकता है।
  3. आदर्शवाद का मनुष्य में विश्वास है क्योंकि वह चिन्तन तर्क एवं बुद्धि के विशेष गुणों से परिपूर्ण है।
  4. जो कुछ मन संसार को देता है, केवल वही वास्तविकता है।
  5. ज्ञान का सर्वोच्च रूप अन्तदृष्टि है एवं आत्मा का ज्ञान सर्वोच्च है।
  6. सत्यं शिवं सुन्दरं के तीनों शाश्वत मूल्य हैं और जीवन में इनकी प्राप्ति करना अत्यान्तावश्यक है। 
  7. इन्द्रियों की सच्ची वास्तविकता को नहीं जाना जा सकता है।
  8. प्रक§ति की दिखायी देने वाली आत्म निर्भरता भ्रमपूर्ण है।
  9. ईश्वर मन से सम्बंध रखता है।
  10. भौतिक और प्राक§तिक संसार- जिसे विज्ञान जानता है, वास्तविकता की अपूर्ण अभिव्यक्ति है।
  11. परम मन में जो कुछ विद्यमान है वही सत्य है और आध्यात्मिक तत्व है। 
  12. विचार, ज्ञान, कला, नैतिकता और धर्म जीवन के महत्वपूर्ण पहलू है। 
  13. हमारा विवेक और मानसिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि ही सत्य ज्ञान प्राप्त करने का सच्चा साधन है। 
  14. मनुष्य का विकास उसकी भौतिक एवं आध्यात्मिक शक्तियों पर निर्भर करता है।

▶आदर्शवादी शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Education and Idealism)

आदर्शवादियों के अनुसार मनुष्य-जीवन का अन्तिम उद्देश्य आत्मा-परमात्मा के चरम स्वरूप को जानना है, इसी को आत्मानुभूति, आदर्श व्यक्तित्व की प्राप्ति, ईश्वर की प्राप्ति तथा परम आनन्द की प्राप्ति कहा जाता है।

आदर्शवादी विचारधारा के अनुसार मानव प्राणी ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट रचना है जिसको उसने असीमित शक्तियाँ प्रदान की हैं। इन्हीं विभिन्न शक्तियों एवं क्षमताओं के योग से व्यक्तित्व का निर्माण होता है। इसीलिए आदर्शवादी विचारक व्यक्तित्व को ऊंचा उठाना अथवा उसमें निहित विभिन्न सर्वोच्च शक्तियों एवं क्षमताओं का प्रकटीकरण एवं अच्छे मार्ग की ओर ले जाना ही शिक्षा का उद्देश्य मानते हैं।

इस भौतिक जगत के नानात्व से मुक्ति ही शिक्षा का लक्ष्य होना चाहिए। कहा भी गया है-

सा विद्या या विमुक्तये

अर्थात् विद्या (ज्ञान) वह है, जो मुक्ति प्रदान करे। इससे स्पष्ट हो जाता है कि ऐसे व्यक्तित्व का चरम विकास ही आदर्शवादी शिक्षा का उद्देश्य है, जिसमें व्यक्ति आत्मानुभूति कर सत्यं, शिवं तथा सुन्दरं की प्राप्ति कर सके।

▶आदर्शवाद एवं शिक्षा (Idealism and Education)

जैसा कि पूर्व में स्पष्ट किया जा चुका है कि आदर्शवाद के अनुसार मनुष्य को केवल प्राकृतिक उपादान न मानकर सृष्टि की सर्वोत्कृष्ट कृति मानता है। आदर्शवादी के लिये प्राकृतिक वातावरण से अधिक सांस्कृतिक वातावरण का महत्व है। क्योंकि वह मनुष्य की अपनी उपलब्धि है। अपनी सांस्कृतिक निधि का आत्मीकरण करके व्यक्ति उसे आगे बढ़ाने में सक्षम बनाता है। इस दृष्टि से शिक्षा की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। प्राकृतिक वातावरण के साथ मनुष्य का अभ्यनुकूलन बिना शिक्षा के भी हो सकता है, परन्तु सांस्कृतिक वातावरण तो ग्रहण करना पड़ता है और उसे आत्मसात करना पड़ता है। इस प्रक्रिया को समाजशास्त्र में संस्कृति संक्रमण अथवा सामाजीकरण की प्रक्रिया कहा जाता है। भारतीय परम्परा में इसे संस्कारी बनाना कहा जाता है। यह कार्य शिक्षा के बिना सम्भव नहीं है। अत: आदर्शवाद में शिक्षा मनुष्य को मनुष्य बनाने के लिये न केवल उपयोगी है अपितु अनिवार्य है।

आदर्शवादियों ने अपने दार्शनिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुये शिक्षा को अपने अनुसार परिभाषित किया है-

  • प्लटो के अनुसार- "शिक्षा का कार्य मनुष्य के शरीर आरै आत्मा को वह पूर्णता प्रदान करना है जिसके कि वे योग्य है।’’
  • महात्मा गाधीं के अनुसार- "शिक्षा से मरेा तात्पयर् बालक आरै मनुष्य के शरीर, मन तथा आत्मा के सर्वांगीण एवं सवोत्तकश्ण्ट विकास से है।’’
  • शकंराचार्य के अनुसार- "स: विद्या या विमकुतये".
  • पेस्टालाजी के अनुसार- "मनुष्य की स्वाभाविक शक्तियो का पा्र कश् ितक, सर्वांगीण और प्रगतिशील विकास ही शिक्षा है।’’
  • एडीसन के अनुसार- "शिक्षा जब किसी श्रेष्ठ पुरूष के मस्तिष्क पर प्रभाव डालती है, तब उसके सभी सुप्त गुणों और पूर्णताओं को बाहर प्रकट कर देती है।’’
  • हरबर्ट के अनुसार- "शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सदगुणों की पा्रप्ति होती है।’’

इस प्रकार हम कह सकते है कि आदर्शवादी शिक्षा का उद्देश्य बालक को संस्कारी बनाना है, और शिक्षा न केवल व्यक्ति का विकास करती है अपितु मानव समाज को बेहतर बनाती है। शिक्षा से व्यक्ति परिपक्व बनता है।

▶शिक्षक तथा आदर्शवाद (Teacher and Idealism)

आदर्शवाद के अनुसार शिक्षक का स्थान शिक्षण प्रक्रिया में सर्वोपरि है। शिक्षण-प्रक्रिया यान्त्रिक नहीं होती। इसमें एक व्यक्तित्व का दूसरे पर प्रभाव पड़ता है। बालक जो अन्ततः व्यक्ति है – न कि शरीर, उसका विकास प्रभावशाली व्यक्तित्व द्वारा ही सम्भव है। इसलिए शिक्षक का व्यक्तित्व प्रभावशाली होना चाहिये। जन्म के समय बालक में अनेक शक्तियाँ सुषुप्त होती हैं। शिक्षक का कार्य इन सुषुप्त शक्तियों को जाग्रत करना है।

भारतीय आदर्शवाद में शिक्षक को सर्वोत्तम स्थान देते हुए उन्हें ‘त्रिदेव’ की संज्ञा देते हुए कहा गया है कि – ‘गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णुः, गुरुर्देवो महेश्वरः’ अर्थात् गुरु (शिक्षक) ही ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वर है। इसी प्रकार अथर्ववेद के ‘ब्रह्मचर्य सूक्त’ में आचार्य (शिक्षक) के सम्बन्ध में कहा गया है कि ‘आचार्यों मृत्युर्वरुणः, सोम ओषधयः-प्रायः।’ अर्थात् गुरू पुराने संस्कारों को नष्ट करके नवीन संस्कार डालता है और बालक को नवीन जीवन प्रदान करता है। इसलिए आदर्शवादी विचारक बालक के आन्तरिक अथवा आध्यात्मिक विकास के लिए शिक्षक की आवश्यकता पर बल देते हैं।

शिक्षा-व्यवस्था में शिक्षक छात्र के जीवन का मार्ग-दर्शक होता है। वह उन्हें उचित मार्ग-दर्शन करके उसकी स्वाभाविक शक्तियों को उचित दिशा में विकसित करने का अवसर प्रदान करता है। शिक्षक शिक्षण-प्रक्रिया की धुरी है। उसके बिना शिक्षण-प्रक्रिया अधूरी रहेगी। आदर्श एवं लक्ष्य तथा जीवन के मूल्य पहले से ही विद्यमान हैं। प्लेटो के अनुसार इनका पहले से ही अस्तित्व है। शिक्षक का यह दायित्व है कि वह बालकों के सर्वोन्मुखी व्यक्तित्व के विकास का प्रयास करे ताकि वे अपने लक्ष्यों को सरलता से प्राप्त कर सकें।

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