प्रयोजनवाद का अर्थ, परिभाषा, सिद्धांत एवं उद्देश्य | Meaning, Definition, Theory and Objectives of Pragmatism in hindi
▶प्रयोजनवाद का अर्थ (Meaning of Pragmatism)
प्रयोजनवाद अंग्रेजी भाषा के (Pragmatism) शब्द का हिंदी रूपांतरण है. अंग्रेजी भाषा के Pragmatism शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के 'Pragma' शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है 'किया गया कार्य', 'व्यवसाय', 'प्रभावपूर्ण कार्य'. कुछ विद्वानों का मत है कि "Pragmatism" शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के एक अन्य शब्द "Pragmatikos" से हुई है जिसका अर्थ है व्यवहारिक या क्रिया. इस प्रकार इन दोनों व्युत्पत्तियों के आधार पर प्रयोजनवाद का अर्थ हुआ व्यवहारिकता. प्रयोजनवाद वह विचारधारा है जो उन्हीं कार्यों अथवा सिद्धांतों को सत्य मानती है जो किसी देश, काल और परिस्थिति में व्यावहारिक अथवा उपयोगी हो. प्रयोजनवाद को प्रयोगवाद, फलवाद, अनुभवाद और व्यवहारवाद भी कहते हैं. प्रयोजन और उपयोगिता पर बल देने से इसे प्रयोजनवाद कहा जाता है.
▶प्रयोजनवाद की परिभाषा (Definition of Pragmatism)
(1). जेम्स (James) के अनुसार- "प्रयोजनवाद एक अनुभववादी मनोवृति है. यह एक प्रकार की विधि है. इस विधि में कोई नवीनता नहीं है. इस विधि के अनुसार व्यवहारिक परिणाम के आधार पर प्रत्येक विचार की व्याख्या करने का प्रयास किया जाता है.'
(2). हेंडरसन (Henderson) के अनुसार- "प्रयोजनवाद में यदि कोई बात अनुभव में कार्य करती है तो वह उसको सत्य मानती है; अर्थात उसकी कार्यप्रणाली उसे सत्य बनाती है. किसी भी सिद्धांत की सत्यता उसकी दक्षता से जानी जाती है, जिसके द्वारा वह कार्य हो अथवा जिससे वह मानव की क्रियाओं को मानवीय उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए निर्देशन का कार्य कर सकें."
(3). रस्क (Rusk) के अनुसार- प्रयोजनवाद प्रकृतिवाद तथा चरम आदर्शवाद दोनों का विरोधी है. प्रयोजनवाद एक नए आदर्शवाद के परिवर्धन की अवस्था है. वह नया आदर्शवाद ऐसा होगा, जो वास्तविकता का पूरा ध्यान रखेगा, क्रियात्मक और आत्मिक मूल्यों का समन्वय करेगा और ऐसी संस्कृति का निर्माण करेगा जो दक्षता की श्रेष्ठ की सूचक होगी, इसके अभाव की नहीं."
(4). रोस (Ros) के अनुसार- "प्रयोजनवाद अनिवार्यतः मिलाप करने वाली मनोवृत्ति है. इसे आदर्शवाद और प्रकृतिवाद का मध्य मार्ग कहा जाता है. प्रयोजनवाद अनिवार्यतः एक मानवतावादी दर्शन है, जो मानता है कि मनुष्य कार्य करने में अपने मूल्यों का निर्माण करता है. सत्य अभी निर्माण की अवस्था में है और भविष्य में उसकी पूर्ति की संभावना होती है.
▶प्रयोजनवाद का दार्शनिक दृष्टिकोण (Philosophical Views of Pragmatism)
(1). तत्व प्रदर्शन में प्रयोजनवाद (Pragmatism in element performance)-
प्रयोजनवादी मन तथा पदार्थ को पृथक और स्वतंत्र तत्वों के रूप मे अस्वीकार करते हैं। वे अपने सत्ता-विज्ञान को अनुभव की धारणा पर आधारित करते हैं। प्रयोजनवादियों के अनुसार प्राकृतिक नियम की धारणा निर्देशात्मक हेाने के बजाय वर्णनात्मक है. ये वास्तविकता को सूक्ष्म वस्तु नहीं मानते है। वे इसको कार्य सम्पादन की प्रक्रिया समझते है जिसमें दो बातें निहित हैं- कार्य करना और कार्य तथा उसके परिणाम से अर्थ निकालना। पियर्स का कथन है- ‘‘प्रयोजनवाद स्वयं में तत्व-दर्शन का सिद्धान्त नहीं और न यह वस्तुओं के सत्य को निर्धारित करने के लिये को प्रयास है। यह केवल कठिन शब्दों और अमूर्त धारणाओं के अर्थ को निश्चित करने की विधि है।’’
(2). ज्ञान शास्त्र में प्रयोजनवाद (Pragmatism in epistemology)-
ज्ञान अनुभव में निहित है। अनुभव तात्कालिक या मध्यस्थ हो सकता है। तात्कालिक अनुभव, अनुभूति की वस्तु है। तात्कालिक अनुभव मनुष्य तथा उसके मन की अपने वातावरण के प्रति की जाने वाली पारस्परिक क्रिया है। इसके लिये बुद्धि के प्रयोग की आवश्यकता है क्योंकि, बुद्धि के द्वारा ही इसकी दिशा का निर्धारण किया जाता है। प्रयोजनवादी प्रयोगात्मक विधि को ज्ञान प्राप्ति के साधन मानते हैं, उन्होनें इस विधि के पांच पद या स्तर निर्धारित किये हैं। क्रिया-परिस्थिति निर्माण, समस्या, सूचना, परिकल्पना या सम्भव समाधान, परीक्षण एवं प्रयोग. ड्यूबी (Dewey) का कथन है- ‘‘जो परिपकल्पना व्यावहारिक रूप में कार्य करती है, वह सत्य है, जिसका प्रयोग उन वास्तविक और पूर्वअनुमानित वांछित तथ्यों के संकलन के लिये किया जाता है, जिनकी अपने परिणामों द्वारा पुष्टि होती है।’’
(3). मूल्य मीमासां में प्रयोजनवाद (Pragmatism in value theory)-
नैतिक मूल्य मानव एवं समाज के मध्य होने वाली आदान-प्रदान की प्रक्रिया का प्रतिफल है। अच्छा वह है जो सर्वोत्तम ढंग से अनिश्चित परिस्थितियों का समाधान करती है। प्रयोजनवादी-समस्याओं के समाधान में बुद्धि के प्रयोग की अच्छा या सद् मानते हैं। सुन्दर क्या है? इस सन्दर्भ में प्रयोजनवादी के अनुसार सुन्दर वहीं है जिसे हम अपने अनुभव से सुन्दर मानते हैं। कला की जो कृति हमें अपनी ओर आकृष्ट कर सकती है और गहन रूप से अनुभूति करने के लिये तत्पर बना सकती है, वही सुन्दर है।
▶प्रयोजनवाद के मूल सिद्धांत (Fundamental Principles of Pragmatism)
(1). सत्य परिवर्तनशील- प्रयोजनवादियों के अनुसार सत्य परिवर्तनशील है. यह देश काल तथा परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित होता रहता है. यदि सत्य को सदैव के लिए निश्चित और अपरिवर्तित मान लिया जाए तो मानव समाज अपना विकास नहीं कर पाएगा तथा संसार की गति रुक जाएगी. इस प्रकार प्रयोजनवादी अन्य विचारधाराओं की तरह चिरंतन सत्ता में विश्वास नहीं रखते.
(2). जीवन के मूल्य एवं लक्ष्य परिवर्तनशील- प्रयोजनवाद के अनुसार जिस प्रकार सत्य परिवर्तनशील है उसी प्रकार जीवन के उद्देश्य एवं लक्ष्य परिवर्तनशील हैं. मनुष्य के लिए कोई पूर्व निर्धारित मूल्य नहीं होते उसे स्वयं मूल्यों का निर्धारण करना पड़ता है. जीवन के प्रयोग व क्रियात्मकता द्वारा वह स्वयं नए मूल्यों और आदर्शों की खोजा एवं प्रतिष्ठा करता है. प्रस्थिति और आवश्यकता के अनुसार उनमें परिवर्तन करना पड़ता है.
(3). विचारों की अपेक्षा क्रिया की प्रधानता- प्रयोजनवाद रूढ़ियों, बंधनों, परंपराओं और अंधविश्वासों में विश्वास नहीं करता. प्रयोजनवाद के अनुसार विचार सदैव क्रिया से ही उत्पन्न होते हैं. इसलिए यह विचारधारा विचारों की अपेक्षा क्रिया को अधिक महत्व देती है. पहले क्रिया होती है फिर विचार पैदा होते हैं. विचार यदि क्रिया की कसौटी पर गलत निकलते हैं तो वह वास्तविक नहीं है. इसके अनुसार क्रिया करने पर ही मनुष्य को ज्ञान की प्राप्ति होती है इसलिए ज्ञान क्रिया की अपेक्षा गौण है.
(4). सामाजिक जीवन पर बल- प्रयोजनवाद सामाजिक जीवन को अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान देता है. मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. अतः समाज में ही उसका जीवन विकसित होता है. समाज में रहकर ही वह अपने जीवन को सफल बनाता है. समाज से बाहर उसका कोई अस्तित्व नहीं है. अतः शिक्षा का मुख्य लक्ष्य सामाजिक भावना पैदा करना होना चाहिए. इस प्रकार प्रयोजनवाद शिक्षा में सामाजिक दक्षता पर विशेष भर देते हैं.
(5). मानवीय शक्ति पर विश्वास- प्रयोजनवाद मानव शक्ति पर विशेष बल देता है वह यह मानता है कि मनुष्य के पास विचार करने की शक्ति है और समस्या को समझने, उसको हल करने के उपयोगों पर विचार करने तथा उसके अनुसार कार्य करने की शक्ति रखता है. अपने इसी शक्ति के कारण वह अपने को वातावरण के और वातावरण को अपने अनुकूल बनाने में समर्थ होता है. प्रयोजनवादी मानव को संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानते हैं.
▶प्रयोजनवाद के रूप (Forms of Pragmatism)
प्रयोजनवाद के मुख्यतः तीन रूप हैं-
(1). मानवीय प्रयोजनवाद (Humanistic Pragmatism)- मानवीय प्रयोजनवाद उसी को सत्य मानता है जो मनुष्य की इच्छाओं और आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायता प्रदान करता है. मानवीय प्रयोजनवादी समष्टिगत नाम पर बल देते हैं. उनका कहना है कि जो बात हमारे लक्ष्यों को पूर्ण करती है हमारी इच्छाओं को संतुष्ट करती है और हमारे जीवन का विकास करती है वही सत्य है.
(2). प्रयोगात्मक प्रयोजनवाद (Experimental Pragmatism)- प्रयोगात्मक प्रयोजनवाद उसी को सत्य मानता है जो प्रयोग अथवा परीक्षण करने के उपरांत सिद्ध होता है. प्रयोगात्मक प्रयोजनवाद प्रयोग पर विशेष बल देते हैं. उनका कहना है किसी वस्तु को तभी स्वीकार किया जाए, जब प्रयोग द्वारा सिद्ध हो जाए कि वह वस्तु लाभदायक है, उपयोगी है.
(3). जीववैज्ञानिक प्रयोजनवाद (Biological Pragmatism)- जीववैज्ञानिक प्रयोजनवाद मनुष्य के वातावरण उपयोगिता शक्ति को अपने अनुकूल बना लेने की शक्ति पर बल देता है. जीववैज्ञानिक प्रयोजनवादियों का कहना है कि मनुष्य मे वह शक्ति है, जिसके द्वारा वह अपने आप को वातावरण के अनुकूल बना लेता है या अपने आवश्यकतानुसार वातावरण को बदल देता है.
▶प्रयोजनवाद और शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Pragmatism and Education)
प्रयोजनवाद की विशेषताओं के आधार पर प्रयोजनवाद शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य निर्धारित किए जा सकते हैं-
- सामाजिक कुशलता का विकास
- नवीन मूल्यों का निर्माण करने की योग्यता का विकास
- छात्र का विकास
- गतिशील निर्देशन
- लोकतंत्र के जीवन की शिक्षा
- सामाजिक वातावरण के साथ अनुकूलन की योग्यता
▶प्रयोजनवाद और शिक्षा (Pragmatism and Education)
प्रयोजनवाद ने रूढ़िवादिता, अंधविश्वास, कूप-मंडूकता एवं सड़ी-गली परंपराओं का अंत करके शिक्षा के क्षेत्र में एक नवीन चेतना प्रवाहित की. प्रयोजनवाद ने शिक्षा के क्षेत्र में परंपरागत तथा अनुदार दृष्टिकोण के विरुद्ध एक क्रांति उत्पन्न की और शिक्षा को एक नवीन दृष्टिकोण से देखा. शिक्षा में प्रयोजनवाद का प्रयोग करने का श्रेय प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री जॉन ड्यूवी (John Dewey) को है. उन्होंने कहा कि- "शिक्षा जीवन की पूरी तैयारी नहीं वरन स्वयं जीवन है." शिक्षा एक सामाजिक कार्य है जो सामूहिक रूप से समाज के लोगों को स्वतंत्र विचारों और चिंतन करके सीखने की चेतना उत्पन्न करता है।प्रयोजनवाद शिक्षा के मुख्य विशेषताएं निम्न प्रकार है-
(1). बालक का वास्तविक जीवन अनुभव- मनुष्य अपने जन्म से सीखने की क्षमता रखता है। तथा सीखने की क्षमता उसको ज्ञानेंद्रियां और अनुभव के आधार पर प्राप्त होती है. बालक स्वयं अपनी क्रियाओं और अनुभव से सीख कर ज्ञान प्राप्त करता है। तथा यह ज्ञान समय के अनुसार पुनर निर्माण की प्रक्रिया में निरंतर प्रगति करता है।
(2). बालक का महत्व- शिक्षा में शिक्षक और बालक का महत्वपूर्ण स्थान होता है। बालक अनुभव के आधार पर शिक्षा ग्रहण करता है। विचारकों का मानना है कि शिक्षा बालक के लिए है ना कि बालक शिक्षा के लिए।
(3). शिक्षा की लोकतांत्रिकता- बालकों को किस स्वभाव से सीखना और कौन सी विचारों को रखना है आदि प्रक्रिया को स्वतंत्र होना चाहिए, जिससे बालकों में सीखने की चेतना में बाधा ना आए। जैसे-जैसे बालक अपने विचारों की स्वतंत्रता के अनुसार चिंतन करेगा उससे बालक के चरित्र और व्यक्तित्व का विकास होगा।
(4). शिक्षा सिद्धांत ही दर्शन है- प्रयोजनवादी मान्यता का विरोध करते हैं कि जिस प्रकार का जीवन दर्शन होता है, उसी प्रकार शिक्षा व्यवस्था भी होती है. वह शिक्षा को दर्शन का गत्यात्मक पक्ष नहीं मानते शिक्षा को दर्शन का व्यवहारिक रूप मानते हैं. उनके अनुसार शिक्षा द्वारा किए जाने वाले प्रयोगों से ही दर्शन का निर्माण होता है.