पुरुषत्व और नारीवाद का अर्थ | Masculinity and Feminism in hindi

पुरुषत्व (Masculinity)

पुरुषत्व (जिसे मर्दानगी भी कहा जाता है) पुरुषों और लड़कों से जुड़ी विशेषताओं, व्यवहारों और भूमिकाओं का एक समूह है। पुरुषत्व को सामाजिक रूप से निर्मिति के रूप में समझा जा सकता है, और इस बात के भी प्रमाण हैं कि पुरुष माने जाने वाले कुछ व्यवहार सांस्कृतिक कारकों और जैविक कारकों दोनों से प्रभावित होते हैं। पुरुषत्व किस हद तक जैविक या सामाजिक रूप से प्रभावित है, यह बहस का विषय है। यह जैविक पुरुष लिंग की परिभाषा से अलग है, क्योंकि नर और मादा दोनों ही मर्दाना लक्षण प्रदर्शित कर सकते हैं। मर्दानगी के मानक विभिन्न संस्कृतियों और ऐतिहासिक अवधियों में भिन्न होते हैं।

Masculinity and Feminism in hindi

पुरुषत्व शब्द दो शब्दों का योग है. यह शब्द स्वयं में पुरुषों में गुणों का द्योतन करता है और प्रायः सभी पुरुष स्वयं को पुरुष की श्रेणी में अग्रणी दिखाने के लिए इन गुणों को धारण करते हैं. पुरुषत्व शब्द का अर्थ इस प्रकार देख सकते हैं- पुरुषत्व = पुरुष + त्व (कत्व प्रत्यय). पुरुष में लगा "त्व" शब्द जाति सूचक शब्द है जो गुण अथवा विशेषण को बताता है.

पुरुषत्व गुणों और भूमिकाओं को लड़कों और पुरुषों के लिए विशिष्ट, उपयुक्त और अपेक्षित माना जाता है। मर्दानगी या मर्दानगी के मानक विभिन्न संस्कृतियों, उपसंस्कृतियों, नस्लों और ऐतिहासिक कालखंडों में भिन्न होते हैं। पश्चिमी समाज में पारंपरिक रूप से पुरुषत्व के रूप में देखे जाने वाले लक्षणों में ताकत, साहस, स्वतंत्रता, नेतृत्व और मुखरता शामिल हैं।

नर और मादा दोनों मर्दाना लक्षण और व्यवहार प्रदर्शित कर सकते हैं। मर्दाना और स्त्री दोनों विशेषताओं को प्रदर्शित करने वालों को उभयलिंगी माना जाता है, और नारीवादी दार्शनिकों ने तर्क दिया है कि लिंग अस्पष्टता लिंग वर्गीकरण को धुंधला कर सकती है।

नारीवाद (Feminism)

नारीवाद शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- नारी + वाद. नारी का अर्थ है स्त्री या महिला और वाद का अर्थ है परम्परा. इस प्रकार नारीवाद से तात्पर्य है नारी के गुणों से संपन्न होना और नारीवाद उसी परंपरा, पथ और मार्ग को द्योतित करने में सहायक है. नारीवादी बालिकाओं में प्रारंभ से ही नारीत्व के गुणों का विकास किया जाता है.

नारीवाद की परिभाषा के अनुसार, "नारीवाद, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक समानता के आधार पर महिलाओं के अधिकारों की वकालत है. दरअसल नारीवाद का उद्देश्य समाज में महिलाओं की विशेष स्थिति के कारणों का पता लगाना और उनकी बेहतरी के लिए वैकल्पिक साधन प्रस्तुत करना है. नारीवादियों का यह तर्क है कि अगर नारी आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होगी तो वह अपना अस्तित्व नहीं बना पाएगी. इसके लिए उसे राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की प्राप्ति के लिए लड़ाई करनी पड़ेगी.

नारीवाद की अवधारणा (Concept of Feminism)

आधुनिक संदर्भों में "नारीवाद" (Feminism) महिला आंदोलन से जुड़ा है. इसने सारे संसार में स्त्रियों की सामाजिक स्थिति को सुधारने के लिए काफी प्रयास किए हैं. 'नारीवाद एक सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक आंदोलन हैं जो मुख्यतः दो अवधारणाओं पर आधारित है- पहला स्त्रियां अपने लिंग के कारण अलाभ की परिस्थितियों में है और दूसरा इस स्थिति को दूर किया जाना चाहिए.

एक सीमा तक सभी नारीवादी सभी समाजों में पुरुषों की सर्वोच्चता तथा स्त्रियों की अधीनता को महत्व प्रदान करते हैं. हालांकि नारीवाद विभिन्न दृष्टिकोणों तथा विचारधाराओं से विभिन्न समयों से संबंधित रहा है. कभी इसका सुधारवादी रवैया रहा है तो कभी क्रांतिकारी. नारीवादी सिद्धांत विभिन्न राजनीतिक मूल्यों से प्रेरित रहे हैं तथा स्त्रियों के आंदोलनों ने महिला मताधिकार, शिक्षा में समानता, नौकरी में समान अवसर व वेतन, गर्भपात के मुद्दे से लेकर स्वयं को ड्रेस कोड जैसे मुद्दों तक विस्तार दिया है.

नारीवाद सिद्धांत (Feminist Theories)

समाज में पुरुषों और स्त्रियों के सापेक्ष स्थिति और "परिवार", कानून और जेंडर के संबंध में अन्य संस्थाएं सामान्यतः तटस्थ रहती हैं या चुप्पी धारण किए रहती हैं. नारीवादी चिंतन के द्वारा इन सभी पर प्रश्न उठता है कि इसके अंतर्गत जेंडर परिपेक्ष्य से सत्ता व अधिकार, प्रभुत्व तथा अधीनता वाले मुद्दों की तरफ ध्यान आकृष्ट करने की चेष्टा की जाती है. सत्ताहीनता (powerlessness) के अनुभवों से भरे स्त्रियों के जीवन को नारीवादी सभी मनुष्यों को प्राप्त आजादी व समानता के नजरिए से देखने का प्रयास करते हैं. नारीवादी सिद्धांत स्त्रियों के जीवन में सत्ता संचालन की प्रवृत्ति को गहराई से देखते हैं तथा इस प्रकार से उनके दोयम दर्जे (Inferior Status) उनकी नामालूम से उपस्थिति, भेदभाव तथा हिंसा की गहराई से पड़ताल करते हैं.

विभिन्न नारीवादी सिद्धांत प्रवृत्ति, अंतर्वस्तु तथा प्रभाव में कुछ भिन्नता रखते हैं. उनके सैद्धांतिक आधार व दार्शनिक परिप्रेक्ष्यों में अंतर है परंतु कुछ बातों में सभी नारीवादियों के समाने सरोकार हैं. वे सभी मानते हैं कि जितनी भी सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन में विषमताएं तथा वंचनाएँ देखने में आती हैं उनकी जड़ में जेंडर संबंध ही होते हैं. कोई भी क्षेत्र चाहे वह परिवार हो, शिक्षा, काम, राजनीति, संस्कृति, फुर्सत का समय यह सभी जेंडर, सत्ता, वर्ग, नस्ल व लैंगिकता के संबंधों के जरिए सामाजिक रूप से संरचनाबद्ध होते हैं. सभी नारीवादी सिद्धांत इन अर्थों में सामाजिक बदलाव के सिद्धांत हैं कि सभी परंपरागत को जेंडर नजरिए से देखते हैं तथा इन्हें चुनौती भी रहते हैं. नारीवादी सिद्धांत सामाजिक बहिष्कार के अन्य रूपों जैसे:- नस्लवाद, जातिवाद तक स्वयं को विस्तारित करते हैं.

नारीवाद के प्रकार (Types of Feminism)

नारीवाद ने जेंडर पहचान के निर्माण में अनेकों विचार दिए तथा स्त्रियों के अधीनिकरण तथा उत्पीड़न की व्यवस्थित सैद्धांतिक व्याख्या करने का प्रयास किया है. हाल के वर्षों में कई नए विचार एवं अवधारणाएं भी सामने आई हैं. इन वर्षों में नारीवाद कई विचारधाराओं में बंटता चला गया है जिनमें से कुछ विचारधाराएं अग्रलिखित हैं-

A. उदारवादी नारीवाद (Liberal Feminism)

नारीवाद के शुरुआती वर्ष, जिन्हें महिला आंदोलनों की "प्रथम लहर" के रूप में देखा गया, उदारवाद के मूल्यों तथा आदर्शों से प्रभावित रहे. यह मुख्य रूप से जेंडर विभाजन के समाज तथा उसके रूपों पर प्रभाव के अध्ययन से संबंधित है. यह नारीवाद मानता है कि स्त्रियों की यह आधुनिकरण की स्थिति समाज निर्मित है. यह नारीवाद जेंडर समानता के कारण, जिनसे स्त्रियों के सामने उपलब्ध विकल्प सीमित हो जाते हैं कि गहनतर संरचनाओं को समझ पाने में विफल रहा है. उदारवादी परंपरा विभिन्न धर्मपंथी समूहों में आज भी कायम है. अमेरिका में नेशनल ऑर्गेनाइजेशंस फॉर वुमन (NOFW) इसी परंपरा का वाहक है और उसकी राजनीतिक स्त्रियों की स्थिति सुधारने के लिए कानूनी सुधारों की लड़ाई तक सीमित है.

B. रेडिकल या उग्र नारीवाद (Radical Feminism)

रेडिकल नारीवाद 1960 व उसके बाद के वर्षों में पनपा नारीवाद है. इसका उदय आंशिक तौर पर उदार नारीवाद के खिलाफ प्रतिक्रिया के तौर पर और अंशतः लिंग वाद के खिलाफ आक्रोश के तौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन में हुआ. स्त्रियों का जीव-विज्ञान विशेषकर उसकी प्रजनन क्षमता पुरुषों और स्त्रियों में चंद अनिवार्य फर्क को जन्म देती है लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं होता कि वह दोयम दर्जे की मानी जाए. द बाबुवार का कहना था कि स्त्रियों और पुरुषों को जेंडर की संरचना बदलने की कोशिश करनी चाहिए ताकि लिंगों के बीच समान संबंध बनाए जा सकें.

सभी रेडिकल नारीवादी इस बात पर सहमत हैं कि लिंग पर आधारित जेंडर के फर्क हमारे जीवन के लगभग हर पहलू पर असर डालते हैं तथा वे इतने सर्वव्यापी हैं कि आमतौर पर उन पर ध्यान नहीं जाता. रेडिकल नारीवाद का उद्देश्य लिंगों के बीच के तमाम विभेदों को उद्घाटित करना है जो कि कानून व रोजगार के क्षेत्रों में ही नहीं, बल्कि हमारे व्यक्तित्व संबंधों में भी व्याप्त हैं. इनका दायरा घर, बिस्तर वह अपने बारे में स्वधारणा को फैला है.

रेडिकल नारीवाद पितृसत्ता अर्थात पुरुषों द्वारा स्त्रियों के ऊपर प्रभुत्व की प्रणाली के प्रति अपने विरोध के मसले पर एकजुट है. जेंडर पर आधारित विभाजन प्रकृति द्वारा नहीं बल्कि पितृसत्तात्मक समाज द्वारा बनाया गया है और वही उसे जारी रखे हुए हैं.

रेडिकल नारीवाद पुरुष संस्कृति के मूल्यों को चुनौती देता है. वह नहीं चाहता कि स्त्रियां पुरुषों का अनुसरण करें. इसके बजाय वह स्त्रियों की पारंपरिक संस्कृति पर आधारित नए मूल्यों का सर्जन चाहता है. आमतौर पर पुरुषों को सकारात्मक, ओजस्वी, आक्रामक, प्रभुत्वशाली, मजबूत तथा स्त्रियों को इसके विपरीत कमजोर, भावुक, गैर-जिम्मेदार, निर्भर व दब्बू समझा जाता है. पितृसत्ता के कारण स्त्रियों ने भी "नारी गुणों" के अवमूल्यन की हकीकत को स्वीकार कर लिया है. रेडिकल नारीवादी "महिला संस्कृति" के मूल्य को स्थापित करने पर जोर देते हैं जिसमें माता व पालन पोषण करने वाली के रूप में स्त्रियों के कार्य को सराहना मिले तथा उसे रेखांकित किया जाए.

C. समाजवादी/मार्क्सवादी नारीवाद (Socialist/Marxist Feminism)

मार्क्सवादी/समाजवादी नारीवाद का उदय 1960 के दशक में पश्चिम में उभरे दूसरे नारीवाद के दूसरे चरण के साथ हुआ. ये नव वामपंथी स्त्रियां समाजवादी थी जहां समाजवाद का मतलब उस विचारधारात्मक परंपरा से था जिसमें काल्पनिक समाजवाद से लेकर मार्क्सवादी सब कुछ शामिल था. वे लंबे समय से निजी संपत्ति पर हमला बोलने वालों में शामिल थी तथा समाज को समझने के लिए "उत्पादन प्रणाली", "वर्ग" व अतिरिक्त मूल्य जैसी शब्दावली का प्रयोग कर रहीं थी. मार्क्स ने हालांकि स्त्रियों के प्रश्न को प्रत्यक्षतः संबोधित करने की कोशिश नहीं की और स्त्रियों के बराबरी से वोट डालने के अधिकार के संघर्ष को महज बुर्जुआ सुधारवादी आंदोलन का रूप कह कर मजाक ही उड़ाया था. हालांकि मार्क्स की "शोषण", "अलगाव" तथा "वर्ग" की धारणाएं स्त्रियों की स्थिति को समझने में काफी उपयोगी सिद्ध हुईं.

समाजवादी नारीवादियों का मानना है कि पूंजीवाद तथा पितृसत्ता एक-दूसरे को मजबूती प्रदान करते हैं, भले ही पुरुष वर्चस्व के रूप में पितृसत्ता पूंजीवाद से पहले से ही उदित होती है परंतु वह पूँजीवाद के संचालन में मददगार साबित होती है और वह पूंजीवाद द्वारा न केवल समर्थन पाती है बल्कि सुदृढ़ भी होती है.

D. आधुनिकतावादी नारीवाद (Modernist Feminism)

नारीवाद के पूर्ववर्ती सिद्धांत स्वयं को जेंडर वर्ग तथा वर्ग-जेंडर के समीकरणों तक केंद्रित रखते आए हैं. हालांकि नारीवाद को केवल उदारवाद, समाजवाद या रेडिकल सिद्धांतों के आधार पर ही नहीं देखा जा सकता. यह इससे कहीं अधिक व्यापक है. उपरोक्त विचारों एवं सिद्धांतों को मिलाकर कई नए प्रकार के नारीवाद ने जन्म लिया है. आधुनिक नारीवाद से निम्नलिखित धारणाएं विकसित हुई हैं.

(i). उत्तर नारीवाद (Post Feminism):- रेडिकल नारीवादियों की दूसरी लहर जब अनियंत्रित रूप धारण करने लगी तो नारीवाद के खिलाफ एक "बैकलैश" की स्थिति आ गई जिसको 1970 व 1980 के संकीर्णवादी ढांचे ने बल दिया. उत्तर नारीवाद के इस युग में कहा गया कि नारीवाद की द्वितीय लहर को केवल श्वेत मध्यवर्गीय मध्य आयु की स्त्रियों तक ही सीमित कर दिया गया है तथा इस प्रकार यह अश्वेतों तथा तीसरी दुनिया की स्त्रियों को नजरअंदाज कर रही थी. इस बैकलेस में या सर्वमान्य तथ्य भी मीडिया द्वारा प्रचलित कर दिया गया कि महिला उत्पीड़न का कोई एक सिद्धांत संभव ही नहीं है. प्रत्येक महिला के पास सुनाने को अपनी ही कहानी होती है.

(ii). अश्वेत नारीवाद (Black Feminism):- तीसरी लहर के उत्तर आधुनिक नारीवाद में अश्वेत औरतों की अहम भूमिका रही है. वे न केवल लिंगभेद बल्कि नस्लवाद तथा रंगभेद का शिकार भी बनाई जाती रही है. 1920 में जब अश्वेत औरतों ने राष्ट्रीय महिला पार्टी से अपने अधिकारों की रक्षा की अपील की तो इस प्रार्थना को यह कहकर अस्वीकार कर दिया गया कि यह नारीवादी की नहीं अपितु नक्सलवाद की समस्या है. दूसरी लहर पर यह आरोप लगाया गया था कि ये केवल श्वेत मध्यवर्गीय मध्य आयु की स्त्रियों तक ही सीमित होकर रह गई है तथा इस प्रकार इसने अश्वेत स्त्रियों तथा तीसरी दुनिया की स्त्रियों को नजरअंदाज किया जबकि तीसरी लहर ने इस गुमसुदा आवाज को सुनना शुरू किया. इस प्रकार स्त्रीवाद दुनिया के अन्य देशों में भी फैलना शुरू हो गया और वैश्विक रूप से से पहचाना भी जाने लगा.

(iii). पर्यावरणीय नारीवाद (Eco-Feminism):- पर्यावरणीय नारीवाद, रेडिकल नारीवाद का विस्तार है इसके अनुसार स्त्री की अधीनता पुरुष द्वारा लैंगिक शोषण के कारण से है. इस प्रवृत्ति ने पुरुष व स्त्री के बीच स्वभाविक जैविक विभिन्नता पर जोर दिया है. यह धारा इस बात पर जोर देती है कि स्त्रियों में कुछ गुण निहित हैं; जैसे- प्रकृति से निकटता, पालन-पोषण करने के गुण, जनवादी और इकट्ठा रहने की भावना व शांति बनाए रखना. इस प्रकृति के अनुसार पुरुष के निहित गुण हिंसा और दूसरों पर हावी होना आदि हैं. नारीवाद ने पृथ्वी पर पितृसत्तात्मक प्रभुत्व के वर्णन द्वारा पर्यावरण के बारे में एक राजनीतिक समझ पैदा की है.

(iv). सत्ता-नारीवाद (Power Feminism):- सत्ता-नारीवाद, उत्तर नारीवाद से विपरीत दिशा में आ जाता है. यह नारी अस्तित्व के "शिकारी रूप" को अस्वीकार करता है. स्त्रियों को अपनी सभी संभावनाओं को विकसित करके सशक्तिकरण करने के लिए प्रोत्साहित करने पर यह जोर देता है. व्यक्तिगत से समुदाय स्तर तक इस सशक्तिकरण की प्रक्रिया को गति प्रदान की जानी चाहिए. दूसरे शब्दों में सकारात्मक चिंतन तथा सकारात्मकता में इस समस्या का हल ढूंढा जा सकता है. ऐसी इस नारीवाद की धारणा है.

अंततः मुख्य नारीवादी सिद्धांतों के अध्ययन से स्पष्ट है कि स्त्रीवाद के सभी सिद्धांतों में आपस में वैचारिक मतभेद रहे हैं जिसके कारण ही उनके विभिन्न समूह प्रकट होते रहे हैं. स्थूल रूप से विवाद "समानता स्त्रीवाद" तथा "विभेदिय स्त्रीवाद" में रहा है. "समानता स्त्रीवाद" में पुरुषों के समान स्थान तथा अधिकार प्राप्त करने की प्रवृत्ति प्रबल थी तो "विभेदीय स्त्रीवाद" स्त्रियों तथा पुरुषों के बीच भेदों को स्वीकार करते हुए दोनों के बीच अलग-अलग भूमिकाओं को स्वीकार करता है.

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