लैंगिक समता और समानता का अर्थ एवं अंतर | Gender Equity and Equality in hindi
भूमिका (Introduction)
समता व समानता इन दोनों शब्दों को अधिकतर एक दूसरे का पर्यायवाची समझा जाता है वैसे तो भारतीय संविधान की स्थापना समानता के आधार पर हुई है. पूर्व राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन के अनुसार जनतंत्र सुनिश्चित करता है कि सभी व्यक्तियों को अपने अंतर्निहित असमान गुणों के विकास का समान अवसर मिले.
डॉक्टर राधाकृष्णन के अनुसार, "लोकतंत्र केवल ये प्रदान करता है कि सभी पुरुषों को अपनी असमान प्रतिभा के विकास के समान अवसर मिलने चाहिए."
समता एवं समानता का अर्थ (Meaning of Equity and Equality)
समता (Equity):- समता का सामान्य अर्थ है- सबको एक समान परिस्थितियां उपलब्ध कराना. इसका अर्थ यह नहीं कि सभी को एक जैसा बना दिया जाए. सभी को एक समान वेतन देना, सभी को एक जैसा घर देना, सभी को एक जैसा सामान देना, आदि समता के उदाहरण हैं. समता के लिए एक शब्द का प्रयोग किया जा सकता है, वह है निष्पक्षता, न्यायपूर्ण, समान एवं सच्चा व्यवहार. समता एक व्यापक शब्द और प्रत्यय है जो न्याय और निष्पक्षता के आधार पर समान परिस्थितियां उत्पन्न करने पर बल देता है.
समानता (Equality):- समानता का अर्थ है समान व्यवहार करना. समानता का वास्तविक अर्थ है सभी को एक जैसी परिस्थितियां देना. हम सभी को बिल्कुल सामान नहीं बना सकते लेकिन सामान परिस्थितियां तो दी जा सकती हैं. जैसे- शिक्षा प्राप्त करने के लिए समाज के सभी लोगों को चाहे वो किसी भी जाति, धर्म या लिंग के हों, सभी को समान अधिकार दिया गया है. कानून भी सबके लिए समान एवं सभी को उपलब्ध है. लोकतांत्रिक परिस्थितियाँ उत्पन्न करना भी समाज के लिए आवश्यक होता है. लोकतंत्र बिना समानता के अधूरा है लेकिन जब समाज में किसी खास वर्ग को विशेष अधिकार मिल जाता है तथा विशेष लाभ मिलने लगता है तब समानता का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है और असमानता की स्थिति पैदा हो जाती है. उदाहरण के लिए- "सभी को एक जैसा काम मिले यह समता है." सभी को काम मिलने की समान परिस्थितियां उपलब्ध हो- यह समानता है.
समता और समानता में अंतर (Difference Between Equity and Equality)
समानता का अर्थ सभी के साथ एक जैसा व्यवहार करना है जिससे कि कोई भी अपनी विशेष परिस्थिति का अवांछित लाभ ना ले सके. सभी को समान अवसर मिलते हैं जिसमें सभी अपनी-अपनी प्रतिभा के आधार पर आगे बढ़ते हैं. समता शब्द का प्रयोग करते समय यह माना जाता है कि सभी एक समान नहीं होते. कुछ ऐसे भी होते हैं जो अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक शोषित या पिछड़े होते हैं. जैसे कि विकलांग व्यक्ति. इन्हें सामान्यजनों के समान अवसर प्रदान करने पर इनके साथ अन्याय होगा. इनके लिए अवसरों की अधिकता होनी चाहिए जिससे वह अन्य के साथ एक ही प्लेटफार्म पर आ सकें.
S.No. | समता | समानता |
1. | इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्तियों में अलग-अलग क्षमताएँ या कमियां पाई जाती हैं. | इस सिद्धांत के अनुसार सभी व्यक्ति आपस में समान हैं. |
2. | सभी को अपनी क्षमता के अनुसार अवसर मिलने चाहिए. | सभी के लिए अवसरों की समानता होनी चाहिए. |
3. | समान क्षमता वालों के साथ समान व्यवहार होना चाहिए. | सभी के साथ समान व्यवहार होना चाहिए. |
समता एवं समानता के पहलू (Aspects of Equity and Equality)
समता एवं समानता के पहलुओं को हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से अध्ययन कर सकते हैं-
- समता के मनोवैज्ञानिक पहलू
- समता के समाजशास्त्री पहलू
- समानता के मनोवैज्ञानिक पहलू
- समानता के समाजशास्त्रीय पहलू
1). समता के मनोवैज्ञानिक पहलू (Psychological Aspects of Equity):- समता को समाज के सदस्यों के मध्य लाभकारी तथा उत्तरदायित्वों को उचित एवं न्यायपूर्ण तरीके से वितरण के आधार पर परिभाषित किया जा सकता है. यदि हम निष्पक्षता को मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखते हैं तो हम पाते हैं कि निष्पक्षता से अभिप्राय है कि जब संसाधनों का समान वितरण होता है एवं व्यक्ति आर्थिक आधार पर लाभान्वित होकर संतुष्टि अनुभव करते हैं एवं प्रसन्नता एवं शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं.
2). समता के समाजशास्त्रीय पहलू (Sociological Aspects of Equity):- समत के समाजशास्त्रीय पहलू का स्पष्टीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है-
i). मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार असंतुष्ट व्यक्ति असामाजिक गतिविधियों में सरलता से लिप्त हो सकता है तथा समाज के साथ सामंजस्य स्थापित करने में हानिकारक सिद्ध हो सकता है. समाज के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए उन्हें समता प्रदान की जानी चाहिए.
ii). संसाधनों का वितरण करते समय व्यक्ति के साथ समान एवं उचित बर्ताव किया जाना चाहिए यदि ऐसा नहीं किया जाता तो उस समाज की कभी उन्नति नहीं होती है क्योंकि उस समाज में रहने वाले अधिकांश व्यक्तियों को समान कार्य के लिए समान अवसर एवं पारितोषिक नहीं प्रदान किया जाता है जिससे वह असंतोष की प्रक्रिया से ग्रसित होने के कारण समाज के विकास में अपना पूर्ण योगदान नहीं देता है.
3). समानता के मनोवैज्ञानिक पहलू (Psychological Aspects of Equality):- जैसा कि हम सभी जानते हैं कि मनोवैज्ञानिक रूप से खुशहाल व्यक्ति ही स्वयं के व्यक्तित्व का उचित प्रकार से निर्माण कर सकता है. इसी प्रकार जो व्यक्ति मनोवैज्ञानिक रूप से स्वस्थ होगा, वह एक समग्रवादी समाज के विकास में योगदान देने में सक्षम होगा. बिना किसी जाति, लिंग, धर्म, वर्ग एवं संप्रदाय के भेदभाव के जीवन के समस्त क्षेत्रों में सभी व्यक्तियों की समान भागीदारी ही समानता है.
4). समानता के समाजशास्त्रीय पहलू (Sociological Aspects of Equality):- समानता के समाजशास्त्र पहलू निम्नलिखित हैं-
i). लोकतंत्र की सफलता के लिए:- लोकतंत्र को भारतीय समाज की आत्मा माना जाता है. अतः इसे सुरक्षित रखने की परम आवश्यकता है. इस प्रजातंत्र को स्वयं एवं अपने आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखने के लिए, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमने अपने संपूर्ण समाज में सामाजिक एकता स्थापित कर ली है.
ii). समतवादी समाज की स्थापना के लिए:- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. अतः इस सामाजिकता को बनाए रखने के लिए समतावादी समाज की स्थापना अत्यंत आवश्यक है. एक समतावादी समाज में सभी व्यक्ति खुशहाल तथा समृद्ध जीवन व्यतीत करते हैं एवं साथ ही साथ संबंधों का निर्माण करते हैं. इस प्रकार समतावादी समाज के बगैर समाज में अव्यवस्था व्याप्त हो जाती है.
अक्षमता के संदर्भ में समता और समानता (Equity and Equality with Respect to Disability)
अक्षमता व्यक्ति के विकास में बहुत बड़ी बाधा होती है. अक्षमता शारीरिक भी हो सकती है, मानसिक भी और समाजिक भी. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अनुमान लगाया है कि किसी भी जनसंख्या का 10% भाग अक्षम हो सकता है. अक्षमता कई प्रकार की होती है-
1). शारीरिक अक्षमता (Physical Disability):- प्रकार के व्यक्तियों के शरीर का कोई अंग सही प्रकार से काम नहीं करता जैसे- हाथ, पैर, आंख, कान आदि. इसकी वजह से व्यक्ति लंगड़ा (Lame), अंधा (Blind), गूंगा (Dumb), बहरा (Deaf), आदि हो सकता है. यह अक्षमता जन्मजात भी हो सकती है और बाद में किसी दुर्घटना के कारण भी हो सकती है.
2). मानसिक अक्षमता (Mental Disability):- इस प्रकार की अक्षमता का पता बुद्धिलब्धि परीक्षण (I.Q.) के आधार पर चलता है. बुद्धिलब्धि निम्न सूत्र से ज्ञात की जाती है-
IQ = (Educational Age)/(Chronological Age) × 100
जिन बच्चों की बुद्धिलब्धि अंक 70 से काम आता है उन्हें मंदबुद्धि के श्रेणी में रखा जाता है. इन बालकों की सीखने की गति मंद होती है जिसकी वजह से शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते. इनमें से कुछ छात्र ऐसे भी होते हैं जो शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते.
3). सामाजिक अक्षमता (Social Disability):- परिवार में कोई कमी होने, गरीबी शारीरिक अक्षमता, किसी भी वजह से कुछ बच्चे हीन भावना का शिकार हो जाते हैं. वह अन्य छात्रों से मेलजोल नहीं कर पाते तथा शिक्षकों से अपनी समस्या भी नहीं पूछ पाते. बच्चा सामाजिक रूप से अपने आप को समायोजित नहीं कर पाता और असंतोष का शिकार हो जाता है.
4). मनोवैज्ञानिक अक्षमता (Psychological Disability):- इन सबके अतिरिक्त कुछ अन्य मनोवैज्ञानिक कारण भी होते हैं जिनके कारण बच्चे पूरी तरह से सामान्य रूप से पढ़ नहीं पाते हैं, जैसे- ध्यान केंद्रित न कर पाना अक्षरों को ना पहचान पाना अपनी बातों को सही प्रकार से संप्रेषित ना कर पाना आदि.
इस प्रकार की समस्याओं को चलते बच्चा अन्य बच्चों की भांति कक्षा में सामान्य रूप से भागीदारी नहीं कर पाता और अन्य बच्चों से पीछे रह जाता है. शिक्षक भी कई बार उनकी समस्या नहीं समझ पाते और इन बच्चों की उपेक्षित कर देते हैं. समस्या कोई भी हो परंतु बालक तो तभी समान हैं. सभी भगवान की सुंदर कृति हैं परंतु अक्षम बच्चे अधिकतर माता-पिता व शिक्षकों द्वारा भेदभाव का शिकार हो जाते हैं.
वर्ग आधारित समता और समानता (Class-Based Equity and Equality)
सामाजिक वर्ग सभ्य समाज में स्तरीकरण है. जाति व्यवस्था सिर्फ भारत में ही पाए जाती है परंतु वर्ग व्यवस्था पूरी दुनिया में व्याप्त है.
आगबार्न तथा निम्कॉफ के अनुसार, "सामाजिक वर्ग एक समाज में समान सामाजिक स्तर के लोगों का समूह है."
सभी प्रकार के समाजों में आर्थिक आधार पर वर्गीकरण है और व्यक्ति अपने आर्थिक स्थिति के आधार पर उच्च, मध्य या निम्न वर्ग में रखे जा सकते हैं पर यह पर वर्ग स्थाई नहीं है. व्यक्ति अपनी क्षमता या मेहनत के अनुसार एक से दूसरे वर्ग में जा सकता है. यह देखा गया है उच्च आर्थिक वर्ग के छात्र हमेशा लाभ की स्थिति में रहते हैं. उनके माता-पिता उन्हें अच्छे स्कूल में पढ़ा सकते हैं, उन्हें बेहतर संसाधन दे सकते हैं, जिससे कि वह छात्र अन्य छात्रों से आगे रहते हैं.
दूसरी तरफ निम्न आर्थिक स्थिति वाले छात्र आर्थिक कमी होने के कारण पीछे रह जाते हैं. इस तरह विभिन्न वर्गों के छात्र प्रतिभा में समान होने पर भी समान नहीं हो पाते. प्रकृति ने प्रतिभा प्रदान करने में वर्ग का भेदभाव नहीं किया है. गरीब हो या अमीर सभी वर्गों में बुद्धि, प्रतिभा, रूप रंग, क्षमताएं बराबरी से पाए जाते हैं परंतु आर्थिक रूप से सशक्त लोग बेहतर संसाधनों के कारण आगे आ जाते हैं.
ऐसी परिस्थितियों में यह सुनिश्चित करने के लिए कमजोर आर्थिक स्थिति वाले लोगों को बराबर मौका मिले इसके लिए कई प्रयास किए जा सकते हैं-
- सभी के लिए निशुल्क शिक्षा
- प्रतिभाशाली गरीब छात्रों के लिए निशुल्क कोचिंग
- प्रतिभावान खिलाड़ियों के लिए कोचिंग, पौष्टिक आहार आदि की व्यवस्था
- आरक्षण का आधार जाति ना होकर वर्ग व्यवस्था
- सरकारी नौकरियों के फॉर्म की फीस नाम मात्र की हो.
- गरीब छात्रों के लिए छात्रावास, भोजन आदि की व्यवस्था हो जिससे कि पढ़ने के लिए उन्हें किसी की सहायता ना लेनी पड़े.
संविधान द्वारा गरीब छात्रों को यह सभी अधिकार प्राप्त हैं परंतु भ्रष्टाचार, राजनीति और जागरूकता के अभाव के कारण सही हकदार को यह सभी सुविधाएं मिल नहीं पाती.
अक्षम के लिए समानता की आवश्यकता (Need of Equality for Disability)
अक्षम लोग भी समाज का विभिन्न अंग हैं. इन्हें भी अन्य व्यक्तियों की भांति भोजन, आवास, शिक्षा, प्यार, सहानुभूति और अपनी पहचान बनाने का अधिकार है.
1). लोकतंत्र की भावना की स्थापना हेतु (To Establish Spriti of Democracy):- भारत एक लोकतांत्रिक देश है. लोकतंत्र में सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं. लोकतंत्र की भावना अर्थात सभी नागरिकों की सहभागिता तब तक सच्चे अर्थ हैं में स्थापित नहीं हो सकती जब तक अक्षम लोगों को भी समान भागीदारी ना मिले.
2). अनिवार्य शिक्षा (Compulsory Education):- शिक्षा का अधिकार धारा 21(A) के तहत जो मूल अधिकार हैं उनके अंतर्गत सभी बालकों का शिक्षा प्राप्त करना जन्मसिद्ध अधिकार है. यह तब तक संभव नहीं है जब तक कि अक्षम बालक भी पर्याप्त शिक्षा प्राप्त ना कर लें.
3). आत्मनिर्भरता हेतु (For Self-Dependence):- अक्षम बालक की शिक्षा प्राप्त करके आत्मनिर्भर हो जाएंगे तो फिर दूसरों पर बोझ बनकर नहीं रहेंगे. शिक्षा व्यवस्था ऐसी हो जो उन्हें उनकी क्षमता आवश्यकता के अनुरूप संलग्न कर सकें.
4). आत्म सम्मान प्राप्ति के लिए (For the Attainment of Self-Respect):- अक्षम बालक यदि आत्मनिर्भर हो जाएं तो वह देश की उन्नति में भाग ले सकते हैं और साथ साथ सम्मान के साथ जीविकोपार्जन कर सकते हैं. इनसे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और आत्मसम्मान के साथ जीने की आदत पड़ेगी.
5). अक्षम को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए (For Joining Disabled into the Mainstream):- अक्षम छात्र यदि शिक्षा प्राप्त करेंगे, नौकरी कर जीविकोपार्जन करेंगे तो उनमें अलग-अलग रहने की प्रवृत्ति खत्म होगी और वे मुख्यधारा में जुड़ेंगे. इससे समाज में अपराधी कम होंगे और समाज की उन्नति होगी.
बाधाएं (Barriers)
अक्षम छात्रों को अन्य छात्रों के सामान रखने में बहुत सी बाधाएं हैं, जैसे-
1). प्रशिक्षित शिक्षकों का अभाव (Deficiency of Trained Teachers):- अक्षम छात्रों को पढ़ाने के लिए बहुत धैर्य और सहानुभूति की आवश्यकता होती है. इसके लिए उचित प्रशिक्षित शिक्षा का होना बहुत आवश्यक है. उचित शिक्षा व प्रशिक्षण के अतिरिक्त शिक्षक को धैर्यवान व सहानुभूतियुक्त भी होना चाहिए परंतु ऐसे शिक्षक कम ही होते हैं जो अक्षम छात्रों को प्यार से सही तकनीक के साथ पढ़ा सकें.
2). हीन भावना (Inferiority Complex):- अक्षम छात्रों में कई बार हीन भावना आ जाती है कि वह अन्य छात्रों के बराबर नहीं हैं क्योंकि समाज, माता-पिता, शिक्षक आदि उन्हें कमतर समझते हैं और मुख्यधारा से अलग ही रखते हैं. इस व्यवहार को सहते-सहते अक्षम छात्र हीन भावना का शिकार होकर सबसे मिलकर नहीं रह पाते और चिड़चिड़े हो जाते हैं. यहाँ तक की सामान्य छात्रों से जलन का शिकार हो जाते हैं.
3). सही तकनीक का अभाव (Deficiency of Right Technique):- अक्षम छात्रों को पढ़ाने के लिए सही प्रकार की शिक्षण सहायक सामग्री- विशिष्ट तकनीक आदि आवश्यक है जैसे- दृष्टांध छात्रों को ऐसे संसाधन द्वारा पढ़ाया जाना चाहिए जिसमें उनके सुनने, स्पर्श करने आदि इंद्रियों का अधिक उपयोग हो. उसी प्रकार बहरे छात्रों के लिए दृश्य सामग्री का प्रयोग किया जा सकता है. इन तकनीकों का स्कूलों में अभाव होता है जिससे शिक्षकों को अक्षम छात्रों को पढ़ाने में परेशानी होती है. डिस्लेक्सिया तथा ऑटिस्म जैसे छात्रों को पढ़ाने के लिए अलग प्रकार की तकनीक की जरूरत होती है.
4). विद्यालयों में सुविधाओं का अभाव (Deficiency of Facilities in School):- विकलांग छात्र जो व्हीलचेयर पर चलते हैं उनके लिए अच्छे हॉस्पिटल व स्कूलों में पट्टीदार रास्ता होता है परन्तु सभी स्कूलों में इस प्रकार की सुविधाएं नहीं होती जिससे की छात्र स्कूल जाने से पहले ही हतोत्साहित हो जाते हैं.
5). राजनीतिक कारण (Political Reasons):- विकलांग या अक्षम बहुत बड़ा वोट बैंक नहीं है क्योंकि या तो ये वोट देने ही नहीं जाते और जाते भी हैं तो परिवारजनों के कहने पर वोट देते हैं. इसलिए राजनीतिक पार्टियां इनके लिए कुछ करने में रुचि नहीं लेती.
अक्षमता की समता व समानता के उपाय (Measures for Equity and Equality for Disabled)
अक्षमता की समता व समानता के उपाय निम्नलिखित हैं-
1). समावेशी विद्यालय (Inclusive School):- अक्षम छात्रों को मुख्यधारा से जोड़ने के सबसे अच्छे उपाय हैं, समावेशी विद्यालय. जहां पर विभिन्न प्रकार की अक्षमताओं वाले छात्रों को सामान्य छात्रों के साथ शिक्षित किया जाए. यह विचारधारा भारत में राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 में प्रस्तावित हुई थी. इसमें अक्षम छात्रों की आवश्यकताओं के अनुरूप विद्यालय परिवेश को ढाला जाता है, अधिगम अनुभव की योजनाएं बनाई जाती हैं और दृश्य श्रव्य सामग्री का प्रयोग किया जाता है.
2). अवसरों की अधिकता (Abundance of Opportunities):- अक्षम छात्रों को सबसे बड़ी समस्या होती है कि उन्हें किसी भी कार्य को करने में सामान्य छात्रों से अधिक समय लगता है. इसलिए समता के अंतर्गत यह उचित है कि उन्हें कार्य के लिए अधिक समय दिया जाए. सामान्य बच्चों में उन्हें अवसर भी अधिक मिले जिससे कि वे अपनी गलती सुधार लें और सामान्य छात्रों की बराबरी कर सकें.
3). संविधान प्रदत्त आरक्षण (Reservation Faciliated by Constitution):- भारतीय संविधान के अनुसार अक्षम लोगों को शिक्षा व नौकरियों में विशेष आरक्षण प्राप्त हैं परंतु आरक्षण केवल शारीरिक अक्षमता तक ही सीमित है. आवश्यक है कि मनोवैज्ञानिक समस्या जैसे- ऑटिस्म, डिस्लेक्सिया और एच. डी. एच. डी. आदि से पीड़ित लोगों की सही पहचान कर उनके लिए भी उनके लिए भी कुछ प्रबंध किया जाए.
4). जागरूकता (Awareness):- टी. वी., समाचार पत्र व अन्य सामाजिक मीडिया की सहायता लेकर जनता को इन समस्याओं के प्रति जागरूक किया जाए और अक्षम लोगों को मुख्यधारा में जोड़ने का उपाय बताए जाएँ.