अभिमन्यु का वध | Abhimanyu Vadh | Mahabharat

अभिमन्यु का वध

चक्रव्यूह की रचना करके द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर पर धावा बोल दिया। सुभद्रा का पुत्र अभिमन्यु अभी किशोर वय का वीर लड़का था। अपनी वीरता और रण-कौशल में वह प्रसिद्ध हो चुका था।

Abhimanyu Vadh | Mahabharat

युधिष्ठिर ने अभिमन्यु को बुलाकर कहा—“पुत्र! द्रोणाचार्य के रचे चक्रव्यूह को तोड़ना केवल अर्जुन जानता है, परंतु इस समय वह संशप्तकों के साथ युद्ध में उलझा हुआ है। उसने एक दिन बताया था कि तुम भी इस चक्रव्यूह को तोड़ सकते हो?"

“तायाश्री! चक्रव्यूह में प्रवेश करना तो मुझे आता है, परंतु इससे बाहर निकलना मुझे नहीं आता।" अभिमन्यु ने उत्साह से भरकर उत्तर दिया ।

तब तय किया गया कि अभिमन्यु चक्रव्यूह को तोड़कर भीतर घुसेगा और भीम तथा धृष्टद्युम्न, सात्यकि, आदि उसके पीछे-पीछे चलेंगे, ताकि अभिमन्यु की सहायता की जा सके।

तत्काल अभिमन्यु ने चक्रव्यूह का प्रवेश द्वारा तोड़ा और सैकड़ों कौरवों को यमलोक पहुंचाता हुआ सेना के बीच में धंसता चला गया। द्रोणाचार्य के देखते-देखते उनका बनाया चक्रव्यूह टूट गया । कौरव वीर एक-एक करके अभिमन्यु का सामना करने आते रहे और मरते रहे।

अभिमन्यु द्वारा किए गए सर्वनाश को देखकर दुर्योधन क्रोधित हो उठा। उसने धर्म-अधर्म के सारे नियमों को ताक पर रख दिया। तब द्रोण, कर्ण, दुःशासन, अश्वत्थामा, शकुनि, कृपाचार्य और दुर्योधन आदि सात महारथियों ने अकेले अभिमन्यु को चक्रव्यूह में घेर लिया और उस अकेले पर सातों ने भयानक आक्रमण कर दिया।

उधर पाण्डवों की सेना अभिमन्यु के पीछे-पीछे जैसे ही चक्रव्यूह में घुसी, वैसे ही सिंधु देश के पराक्रमी राजा जयद्रथ ने, जो धृतराष्ट्र का दामाद और दुर्योधन का बहनोई था, पाण्डव सेना को रोका और उन पर टूट पड़ा। व्यूह के द्वार पर युधिष्ठिर, मीमसेन और जयद्रथ के बीच घमासान युद्ध छिड़ गया। जयद्रथ ने उन्हें आगे बढ़ने नहीं दिया।

चक्रव्यूह के भीतर घिरे अभिमन्यु की सहायता के लिए वे नहीं पहुंच सके, परंतु अभिमन्यु ने अकेले ही सातों महारथियों के छक्के छुड़ा दिए। अभिमन्यु की बाण वर्षा से व्याकुल होकर सभी योद्धा पीछे हटने लगे, तभी दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण ने अभिमन्यु पर भीषण प्रहार किया। अभिमन्यु ने भाले के वार से लक्ष्मण को मार डाला। लक्ष्मण के मरते ही कौरव सेना में हाहाकार मच गया।

दुर्योधन चिल्लाया— “इस पापी अभिमन्यु का इसी क्षण वध करो।"

एकाएक सभी महारथी उस पर एक साथ टूट पड़े। अभिमन्यु रथविहीन हो गया तो वह रथ का पहिया उठाकर उन पर झपटा, तभी दुःशासन के पुत्र ने उसके सिर पर गदा से प्रहार किया। गदा का प्रहार पड़ते ही अभिमन्यु के प्राण पखेरू उड़ गए।

यह दृश्य देखकर धृतराष्ट्र का पुत्र युयुत्सु क्रोधित होकर चिल्लाया– “धिक्कार है तुम्हें। तुम सबने मिलकर एक बालक की हत्या की है और ऊपर से हंस रहे हो। यह जघन्य पाप है।"

युयुत्सु धर्म प्रिय था। उसने अपने हथियार फेंक दिए और वहां से चला गया। अभिमन्यु की मौत से पाण्डव शिविर में मातम छा गया। युधिष्ठिर विलाप करने लगे कि अब वे अर्जुन से क्या कहेंगे। सभी उन्हें सांत्वना दे रहे थे।

उधर संशप्तकों (त्रिगर्तौ) का संहार करके अर्जुन और श्रीकृष्ण मार्ग में लौट रहे थे तो अपशकुन होने लगे। अर्जुन चिंतित हो उठे। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सांत्वना दी।

रात होने पर दोनों शिविर में पहुंचे तो उन्हें अभिमन्यु की मृत्यु का समाचार मिला। उसे किस प्रकार मारा गया, यह पूरा वृत्तान्त सुनकर अर्जुन क्रोधित हो उठा। बोला— “जिस जयद्रथ के कारण मेरे प्रिय पुत्र की मृत्यु हुई है, उस जयद्रथ को मैं कल सूर्यास्त से पहले मार डालूंगा, यह मेरी प्रतिज्ञा है अगर मैं उसे सूर्यास्त से पहले न मार सका तो अग्नि पर बैठकर आत्मदाह करूंगा।”

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सांत्वना देते हुए कहा– “धनंजय! क्षत्रियों को इस तरह विलाप करना शोभा नहीं देता। हम हथियारों के बल पर जीते हैं और हथियारों के बल पर ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं। वीर और निडर शूरों की अचानक मृत्यु ही स्वाभाविक मृत्यु है। अभिमन्यु को आज जो वीरोचित मृत्यु का वरदान मिला है, उसके लिए तो क्षत्रियों की माताएं अपने पुत्रों को जन्म देती हैं, अतः शोक दूर करो और अपने आपको संभालो।”

श्रीकृष्ण की बातें सुनकर अर्जुन शांत हुए। उसके उपरांत सभी आगे के युद्ध की योजना बनाने लगे। यह योजना धृतराष्ट्र के पुत्रों के सर्वनाश की थी।

Read also