आचार्य द्रोण और घटोत्कच का अंत | Acharya Drona and Ghatotkacha ka Ant | Mahabharat
आचार्य द्रोण और घटोत्कच का अंत
महाभारत की कथा में दो ही बालक ऐसे हुए जो वीरता, धीरता, साहस, शक्ति, बल, शील, और यश आदि गुणों से युक्त थे। एक अर्जुन पुत्र अभिमन्यु और दूसरा भीम पुत्र घटोत्कच।
चौदहवें दिन सूर्यास्त के बाद भी युद्ध चलता रहा। घटोत्कच और उसके साथी राक्षसों ने मायावी युद्ध शुरू कर दिया था। कर्ण और घटोत्कच में उस रात बड़ा भयानक युद्ध हुआ। घटोत्कच के प्रहारों से कौरव सेना सामूहिक रूप से मारी जाने लगी। चारों ओर प्रलय-सी मच गई। दुर्योधन यह देखकर कर्ण से बोला- “कर्ण! इस राक्षस का जैसे भी हो वध करो, वर्ना यह भारी तबाही मचा देगा।"
कर्ण ने क्रोध में भरकर इन्द्र की दी हुई शक्ति घटोत्कच पर चला दी। वह नागास्त्र उसने अर्जुन के लिए सुरक्षित रखा हुआ था, परंतु उस समय वह भूल गया। नागास्त्र के प्रयोग से घटोत्कच जमीन पर आ गिरा और मारा गया।
घटोत्कच के मारे जाने का समाचार सुनकर पाण्डवों के दुख की सीमा न रही। इतने पर भी युद्ध बंद नहीं हुआ। द्रोणाचार्य के बाणों की तीव्र बौछार से पाण्डवों के असंख्य वीर गाजर-मूली की तरह कट-कटकर गिरते जा रहे थे। पाण्डव सैनिक भयभीत हो उठे। ऐसे समय श्रीकृष्ण के निर्देश पर भीम ने अश्वत्थामा नाम के हाथी को मार डाला और युधिष्ठिर के मुख से उच्चारित कराया— “अश्वत्थामा मारा गया!" बाद में धीरे से उन्होंने यह भी कहा “मनुष्य नहीं, हाथी।”
किंतु उसी समय भीम और पाण्डवों ने जोर से शंख ध्वनि की, जिससे द्रोणाचार्य, युधिष्ठिर के अंतिम शब्दों को नहीं सुन सके। उन्होंने केवल इतना ही समझा कि उनका पुत्र अश्वत्थामा मारा गया।
सेनानायक द्रोण ने इतना सुनते ही दुखी होकर धनुष बाण रख दिए और रथ में ही समाधि लगाकर बैठ गए। धृष्टद्युम्न तो इसी अवसर की ताक में था। वह तेजी से द्रोणाचार्य की ओर हाथ में नंगी तलवार लेकर बढ़ा।
यह देखकर चारों ओर हाहाकार मच गया, परंतु द्रुपद पुत्र धृष्टद्युम्न रुका नहीं। उसने एक ही वार से आचार्य द्रोण का सिर धड़ से अलग कर दिया।
द्रोणाचार्य के मरते ही कौरव सेना में भगदड़ मच गई। पाण्डव सेना ने भागते हुए कौरव सैनिकों पर बाणों की वर्षा करके असंख्य सैनिक मार डाले। इस प्रकार धर्मयुद्ध, अधर्म युद्ध के रूप में परिवर्तित हो गया।