भीम और हनुमान का मिलन | Bhima aur Hanuman ka Milan | Mahabharat
भीम और हनुमान
अर्जुन को दिव्यास्त्रों की प्राप्ति के लिए हिमालय पर तपस्या करने के लिए भेजकर पाण्डवों के लिए समय काटना भारी पड़ रहा था। वे ऋषि धौम्य के काम्यक वन स्थित आश्रम में रह रहे थे। अर्जुन को दिव्यास्त्रों की प्राप्ति के लिए भेजने का मकसद यही था कि कौरवों से यदि युद्ध हुआ तो उनकी सेना के महायोद्धा पितामह भीष्म, आचार्य द्रोण, कृपाचार्य और महारथी कर्ण जैसे वीरों से बिना दिव्यास्त्रों के जीत पाना कठिन था।
धौम्य ऋषि ने पाण्डवों को अनेक विचित्र वनों और पवित्र तीर्थ स्थलों के विषय में कथा सुनाई थी। सब ने तय किया कि समय बिताने के लिए उन स्थानों के दर्शन ही किए जाएं। यह सोचकर वे ऋषि धौम्य के साथ चल पड़े। अनेक तीर्थों की कथा उन्होंने ऋषि धौम्य से तीर्थों में घूमते हुए सुनी। इस भ्रमण में वे कभी ऊंचे-ऊंचे पर्वतों पर चढ़ते तो कभी वनों में भटकते। जब कभी द्रोपदी थककर चूर हो जाती तो वे कुछ दिन विश्राम करते। भीमसेन का शारीरिक बल सबको साहस बंधाता और उनका श्रम दूर करता।
ऐसे ही एक वन में भीमसेन की भेंट असुर कन्या हिडिंबा से हुई तो भीम ने उससे गंधर्व विवाह कर लिया। उससे उसे घटोत्कच नाम का एक पुत्र प्राप्त हुआ। वह समय-समय पर आकर उनकी सहायता किया करता था। सूर्य ने उन्हें प्रतिदिन भोजन प्राप्त करने के लिए 'अक्षय पात्र' प्रदान किया।
एक बार वे घूमते-घूमते नारायणाश्रम में पहुंचे। वह अत्यन्त रमणीक प्रदेश था उत्तर-पूर्व से मंद-मंद सुगंधित हवा वह रही थी। द्रोपदी आश्रम के बाहर वन के सौंदर्य को निहार रही थी कि कहीं से उड़कर एक सुंदर फूल उसके पास आ गिरा। द्रोपदी ने उसे उठा लिया। उसकी महक से वह मुग्ध हो गई। ऐसे ही कुछ और फूल पाने के लिए उसका मन मचल उठा। उसने भीम से वैसे ही फूल लाने के लिए कहा।
भीम, द्रोपदी की इच्छा पूरी करने के लिए उसी ओर चल दिए जिधर से सुगंध आ रही थी। चलते-चलते भीम एक पर्वत की घाटी में जा पहुंचे। वहां केले के पेड़ों का एक विशाल बगीचा था। उस बगीचे के बीच मार्ग में एक लाल मुंह का बूढ़ा बन्दर लेटा हुआ था। उसे देखकर भीमसेन ने आवाज देकर उसे रास्ते से हट जाने के लिए कहा।
उस बन्दर ने धीरे से अपनी आंखें खोली और बोला- "भाई! मैं बूढ़ा और अशक्त हूं। तुम्हारी भलाई के लिए ही कहता हूं कि इस रास्ते पर आगे मत जाओ। आगे भयानक खतरा है।"
बन्दर की बात सुनकर भीम क्रोध में बोला- "अरे बन्दर! तू मुझे नहीं जानता। मैं पवन पुत्र हनुमान का छोटा भाई, कुरुवंश का वीर, कुंती और वायु का पुत्र भीम हूं। मैं किसी खतरे से नहीं डरता। मेरे रास्ते से हट जाओ और मुझे जाने दें।
बन्दर मुस्कराया और बोला—“देखो भाई! मैं तो बूढ़ा हूँ। तुम या तो मुझे लांघकर चले जाओ या फिर मेरी पूछ हटाकर निकल जाओ। मेरा काम तुम्हें समझाना था। आगे तुम्हारी इच्छा।"
बंदर की बात सुनकर भीम को हंसी आ गई। वह बोला "किसी पशु को लांघना शास्त्रों में अनुचित कहा गया है। मैं तुम्हारी पूंछ हटाए देता हूं।"
यह कहकर भीम, बन्दर की पूंछ हटाने के लिए नीचे झुका, किंतु वह यह देखकर हैरान रह गया कि पूंछ को हटाना तो दूर वह उसे हिला भी नहीं सका। उसने बार-बार जोर लगाया और पसीने-पसीने हो गया। भीम बड़ा लज्जित हुआ। उसने सोचा यह कोई सिद्ध, गंधर्व या देवता है।
भीम ने नम्रता से कहा— 'हे देव! मुझे क्षमा करें। आपने मेरा घमंड चूर-चूर कर दिया। मैं आपकी शरण में हूं। आप अपना परिचय देकर मुझे कृतार्थ करें।"
तब उस बन्दर ने कहा—"हे पाण्डुवीर! मैं संपूर्ण विश्व के प्राणाधार वायुदेव का पुत्र हूं, हनुमान मेरा नाम है। यह रास्ता देवलोक को जाता है। इस पर अनेक विपदाएं हैं। इसीलिए मैंने तुम्हें रोका। तुम जिस सुगंधित पुष्प की तलाश में यहां आए हो, वे उस सामने वाले जलाशय के आस-पास के उपवन में लहलहा रहे हैं। जाओ, जितने चाहो पुष्प ले लो।"
भीम, हनुमान के चरणों में गिरकर बोले- "हे तात! आज मुझसे भारी भूल हो गई, जो मैं आपको नहीं पहचान सका। मेरा अहोभाग्य, जो आपने मुझे दर्शन दिए। मुझे अपने उसी रूप के दर्शन कराएं, जिस आकार से आपने समुद्र को लांघा था।" भीम की बात सुनकर हनुमान ने अपना विशाल आकार बढ़ाकर उसे दिखाया और कहा– “भीम! इससे बड़ा आकार बनाकर तुम्हें दिखाने का समय अभी नहीं है। शत्रुओं के सामने यह आकार और भी बड़ा हो सकता है।"
हनुमान ने अपना आकार छोटा कर लिया और भीम को गले लगाकर उसकी सारी थकान दूर कर दी। फिर वे उसे जलाशय के पास लेकर गए। जहां भीम ने अनेक सुंदर पुष्प तोड़े। विदा करते समय हनुमान ने भीम से कहा—“भीम! समय पड़ने पर मेरा स्मरण करना। जब तुम युद्ध में गर्जना करोगे तो मेरी गर्जना भी साथ सुनाई देगी। मैं युद्ध भूमि में अर्जुन के रथ पर फहराने बाली ध्वजा पर हर पल विद्यमान रहूंगा। मेरी गर्जना से शत्रु के दिल दहल जाएंगे।"
महावीर हनुमान के चरण स्पर्श करके भीम लौट आया। वह बहुत प्रसन्न था।