लिंग सशक्तिकरण | महिला सशक्तिकरण का अर्थ | Gender Empowerment in hindi
सशक्तिकरण (Empowerment)
सशक्तिकरण लोगों में और समुदायों में स्वायत्तता और आत्मनिर्णय के स्तर को बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किए गए उपायों का एक सेट है, ताकि वे अपने स्वयं के अधिकार पर कार्य करने के लिए एक जिम्मेदार और स्व-निर्धारित तरीके से अपने हितों का प्रतिनिधित्व कर सकें। किसी व्यक्ति, समुदाय या संगठन की आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, शैक्षिक, लैंगिक, या आध्यात्मिक शक्ति में सुधार को सशक्तिकरण कहा जाता है।
लिंग सशक्तिकरण (Gender Empowerment)
लिंग सशक्तिकरण किसी भी लिंग के लोगों का सशक्तिकरण है। परंपरागत रूप से, इसके पहलू का उल्लेख महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए किया जाता है, यह अवधारणा एक भूमिका के रूप में जैविक सेक्स और लिंग के बीच अंतर पर जोर देती है, साथ ही एक विशेष राजनीतिक या सामाजिक संदर्भ में अन्य हाशिए पर रहने वाले लिंगों का भी जिक्र करती है।
लैंगिक सशक्तिकरण विकास और अर्थशास्त्र के संबंध में चर्चा का एक महत्वपूर्ण विषय बन गया है। महिला सशक्तिकरण की धारणा को अपनाने वाले कार्यक्रमों और नीतियों के कार्यान्वयन से संपूर्ण राष्ट्र, व्यवसाय, समुदाय और समूह लाभान्वित हो सकते हैं। अधिकारिता मानव अधिकारों और विकास को संबोधित करते समय मुख्य प्रक्रियात्मक चिंताओं में से एक है। मानव विकास और क्षमता दृष्टिकोण, सहस्राब्दी विकास लक्ष्य, और अन्य विश्वसनीय दृष्टिकोण/लक्ष्य सशक्तिकरण और भागीदारी को एक आवश्यक कदम के रूप में इंगित करते हैं।
महिला सशक्तीकरण (Women Empowerment)
किसी भी स्वस्थ एवं विकसित समाज के निर्माण के लिए स्त्री व पुरुष दोनों की सहभागिता आवश्यक है। प्राकृतिक सन्दर्भ में पर्यावरण सन्तुलन तो आवश्यक है ही, परन्तु सामाजिक पर्यावरण की दृष्टि से समाज में महिलाओं का सर्वांगीण विकास भी आवश्यक है।
महिला सशक्तिकरण की अवधारणा:– पी० आर० गोयल के अनुसार, "महिला सशक्तिकरण से तात्पर्य समाज की उस व्यवस्था से है, जिसमें समाज के अस्तित्व का महत्वपूर्ण अंश महिला तन, मन से स्वस्थ, शिक्षित, सुरक्षित समाज, राजनीतिक परिवार व संस्कृति में लिंगीय भेदभाव रहित पूर्ववत अपना वर्चस्व और आत्मगौरव रखते हुए, “मातृदेवो भव" को शक्ति को सार्थक कर सके। महिला सशक्तिकरण से तात्पर्य महिलाओं को पहलवान बनाने से नहीं है।
महिला सशक्तीकरण की आवश्यकता एवं महत्त्व (Need and Importance of Women Empowerment)
महिला सशक्तीकरण की आवश्यकता और इसके महत्त्व का अनुभव प्रत्येक क्षेत्र में किया जा रहा है। महिला सशक्तीकरण की आवश्यकता और महत्त्व का रेखांकन निम्न बिन्दुओं द्वारा समझा जा सकता है-
1. लिंगीय भेदभावों में कमी हेतु:- महिला सशक्तीकरण की आवश्यकता और महत्त्व लिंगीय भेदभावों में कमी लाने हेतु अत्यधिक है। वर्तमान समाज में लिंगभेद चरम पर है, जिसके कारण समाज में तमाम प्रकार की कुप्रवृत्तियाँ और अपराधों का जन्म हो रहा है। घर तथा बाहर चाहे विद्यालय हो, सार्वजनिक स्थल हो या कार्यस्थल, लिंगीय भेदभाव देखने को मिल जाते हैं, क्योंकि स्त्रियों को प्रारम्भ से ही पुरुषों के नियन्त्रण में रखा जाता है, जिससे स्त्रियों में अपनी शक्तियों के प्रति हीनता का भाव आ जाता है। आत्मविश्वास की कमी के कारण स्त्रियाँ सदैव पुरुषों के पीछे ही रहती हैं और पुरुष में श्रेष्ठता का भाव आ जाता है। यह क्रम पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता है और पुरुषों के साथ स्त्रियाँ भी लिंगीय भेदभावों को जन्म देती हैं।
2. सभ्य समाज हेतु:- महिलाओं का सशक्तीकरण सभ्य समाज के निर्माण के लिए अत्यावश्यक है। महिलाओं का सशक्तीकरण उन्हें अधिक कर्त्तव्यनिष्ठ, कुशल तथा जवाबदेह बनाता है। सशक्त महिलाओं के द्वारा घर तथा बाहर की जिम्मेदारियों का निर्वहन सफलतापूर्वक किया जाता है। सशक्त महिलाएँ अपनी सन्तानों का अच्छी प्रकार से पालन-पोषण करती हैं. जिससे स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों में कमी आती है। सुयोग्य संततियों द्वारा स्वस्थ्य लैंगिक दृष्टिकोणों का विकास होता है और जिससे सभ्य समाज का निर्माण होता है।
3. व्यक्तिगत विकास से राष्ट्रीय विकास हेतु:- महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए उनकी शिक्षा पर बल दिया जाता है, जीवन दक्षता का विकास किया जाता है तथा व्यावसायिक कौशल प्रदान किया जाता है। इस प्रकार महिलाएँ सशक्त और स्वावलम्बी बनकर अपनी व्यक्तिगत क्षमताओं और अभिरुचियों का विकास करती हैं, परन्तु यह उन्नति व्यक्तिगत होने के साथ-साथ हमारे समाज और राष्ट्र की उन्नति में भी योगदान देती हैं। मानवीय संसाधन प्रमुख संसाधन हैं, क्योंकि मनुष्य के बुद्धि-बल से ही अन्य संसाधनों का प्रयोग किया जाना सम्भव है और महिला सशक्तीकरण के द्वारा अमूल्य संसाधन के रूप में महिलाओं में कौशल तथा दक्षमता का विकास किया जाता है। शिक्षित और सशक्त स्त्री अपनी देश की उन्नति में इस प्रकार योगदान देती है—
- सामाजिक सुरक्षा और सामाजिक ताने-बाने से अनुकूलन करने वाली संततियों की उत्पत्ति।
- महिला ही माता के रूप में बालक की प्रथम शिक्षिका होती है। अतः सशक्त महिला एक आदर्श शिक्षिका के रूप में भी देश की उन्नति में योगदान देती है।
- अपनी कार्यकुशल द्वारा।
- स्वस्थ एवं प्रजातान्त्रिक दृष्टिकोण द्वारा।
- महिलाएँ विविध क्षेत्रों में आगे बढ़ रही हैं और अपनी सूझ-बूझ तथा प्रबन्धन क्षमता से अच्छा कार्य कर रही हैं जिससे देश की उन्नति हो रही है।
4. सांस्कृतिक संरक्षण हेतु:- पीढ़ी-दर-पीढ़ी सांस्कृतिक संरक्षण में महिलाएं महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती आई हैं। यदि महिलाएँ सशक्त होगी वे अच्छी परम्पराओं और संस्कृति के सकारात्मक तत्त्वों को आने वाली पीढ़ियों के लिए विकसित कर हस्तान्तरित करेगी, जिससे सांस्कृतिक संरक्षण के कार्य द्वारा सांस्कृतिक गौरव में भी वृद्धि होगी।
5. आर्थिक सुदृढ़ता हेतु:- महिलाओं को आधी आबादी के नाम से सम्बोधित किया जाता है, परन्तु इस आधी आबादी की शक्ति का भरपूर उपयोग नहीं हो पा रहा है, जिससे इन्हें अनुत्पादक और बोझस्वरूप माना जाता है। परिवार तथा अर्थव्यवस्था के लिए अब महिलाओं का सशक्तीकरण, उनकी आर्थिक सुदृढ़ता के लिए अत्यावश्यक है। आर्थिक रूप से सशक्त स्त्रियाँ अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन भली प्रकार करती हैं और राष्ट्रीय उन्नति में भी योगदान देती हैं।
6. पारिवारिक सुख शान्ति हेतु:– महिलाओं के सशक्तीकरण के द्वारा पारिवारिक सुख-शान्ति में भी योगदान प्राप्त होता है, क्योंकि जिस परिवार में स्त्री-पुरुष दोनों सक्षम, शिक्षित तथा स्वावलम्बी हैं, वहाँ आपसी सहमति होगी जिससे सुख-शान्ति आएगी। सशक्त महिला पारिवारिक आर्थिक दायित्वों में भी हाथ बँटाएगी, जिससे बच्चों की शिक्षा, पारिवारिक स्वास्थ्य की दशा अच्छी होगी।
7. प्रजातान्त्रिक सफलता हेतु:- प्रजातान्त्रिक सफलता और संवैधानिक मूल्यों की सफलता के लिए महिलाओं का सशक्तीकरण अत्यावश्यक है। प्रजातन्त्र में महिला तथा पुरुष में कोई भेदभाव नहीं है, दोनों को ही समान अधिकार, स्वतन्त्रताएँ और न्याय प्राप्त हैं। अतः महिलाओं को सशक्त बनाकर संवैधानिक और प्रजातान्त्रिक स्वप्न को साकार किया जा सकता हैं।
8. विश्व शान्ति तथा सद्भाव हेतु:- विश्व शान्ति और सद्भाव की स्थापना में महिलाओं का योगदान अविस्मरणीय रहा है। इतिहास गवाह है इस बात का कि महिलाओं ने अपने प्रेम, करुणा, त्याग-भाव और सेवा-भाव से सम्पूर्ण विश्व को शान्ति और सद्भाव का पाठ पढ़ाया, परन्तु इस कार्य के लिए महिलाओं के सशक्तीकरण की आवश्यकता अत्यधिक है।
महिला सशक्तिकरण के लिए प्रयास (Efforts for Women Empowerment)
स्वाधीनता के पश्चात् भारत सरकार ने महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए निम्नलिखित प्रयास किए-
1. महिलाओं में शिक्षा प्रसार:- वैसे तो अंग्रेजों के शासनकाल में ही महिला शिक्षा का प्रसार शुरू हो गया था। महिलाओं के लिए डी० ए० वी० स्कूल खोले गए। दारुउल संस्था ने मुस्लिम महिलाओं के लिए स्कूल खोले। वर्ष 2001 तक महिला साक्षरता 54.16 प्रतिशत तक हो गई थी। महिलाएं उच्च शिक्षा प्राप्त करके अच्छे रोजगार करने लगी थीं। इससे आभास होता है कि महिलाएं सशक्तिकरण की ओर बढ़ रही हैं।
2. संवैधानिक व्यवस्थाएँ:- संविधान के अनुसार भारतीय महिलाओं को पुरुषों के समान माना गया है। संविधान की प्रस्तावना, मौलिक अधिकार एवं नीति निर्देशक तत्वों में उन्हें बराबरी का अधिकार दिया है। उनके विकास के लिए महत्वपूर्ण प्रावधान इस प्रकार रखे हैं-
- अनुच्छेद 14 में कानून के समक्ष सब समान है।
- अनुच्छेद 15 में धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर कोई भेद नहीं किया जाएगा।
- अनुच्छेद 16 में, लोक नियोजन के सम्बन्ध में अवसर की समानता होगी।
- अनुच्छेद 23 में मानव का दुर्व्यवहार और बलात श्रम का प्रतिषेध किया गया है।
- अनुच्छेद 39 के अनुसार, राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति-निर्देशक तत्व दिए गए हैं।
- अनुच्छेद 39 क में, समाज न्याय और विधिक सहायता है।
- अनुच्छेद 42, काम की न्यायसंगत माननोचित दशाओं तथा प्रसूतिक सहायता।
- अनुच्छेद 325 में, धर्म, मूल, वंश, जाति या लिंग में किसी के आधार पर किसी भी व्यक्ति को निर्वाचन में सम्मिलित करने से मना नहीं किया जा सकता।
- महिलाओं को ग्राम पंचायत से लेकर लोकसभा तक के चुनावों में भाग लेने का अधिकार है।
3. राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन:- भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण एवं उनके उत्थान के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग, अधिनियम 1900 के अन्तर्गत "राष्ट्रीय महिला आयोग" का गठन किया गया है। यह आयोग महिलाओं की सुरक्षा एवं प्रगति के बारे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। राज्यों में राज्य स्तर पर भी महिला आयोग गठित है।
4. राष्ट्रीय महिला कोष की स्थापना:- महिलाओं को आर्थिक सहायता देने के लिए 31 करोड़ रुपये की सहायता से 30 मार्च, 1993 को इस कोष की स्थापना की गई है। इस कोष का मुख्य उद्देश्य गरीब महिलाओं, विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्र की निर्धन महिलाओं की ऋण सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा करना है।
5. आर्थिक जीवन में प्रगति:- महिलाओं की शक्ति का मूल अधिकार आर्थिक क्षेत्र में प्रगति है। रूढ़िवादी लोग महिलाओं की आर्थिक स्वतन्त्रता के विरुद्ध हैं, परन्तु स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् महिलाएँ आत्मनिर्भर हुई हैं। पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के कारण महिलाओं की पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता कम हो रही है। आजकल महिलाएँ नौकरी करने लगी हैं तथा श्रमिक का कार्य करती है। शिक्षा व चिकित्सा के क्षेत्रों में महिलाएँ अधिक जा रही हैं। वैसे आजकल महिलाएँ पुलिस तथा सेना में भी कार्य करती हैं। वायुयान पायलट भी बन रही हैं। कार्य की दृष्टि से महिलाओं की स्थिति अच्छी हैं।
6. राजनीतिक जागृति:- राजनीति क्षेत्र में महिलाओं की प्रगति अच्छी है। महिलाएँ मुख्यमन्त्री, प्रधानमन्त्री तथा राष्ट्रपति जैसे महत्वपूर्ण पदों पर पहुँच रही है। आजकल महिलाएँ चुनाव जीत कर लोकसभा तथा राज्यसभा में जा रही हैं। केन्द्र में मन्त्री बन रही हैं। न्यायालय में वकील व जज बन रही है। वर्तमान में अनेक महिलाओं ने राजनीति में उच्च स्थान प्राप्त किया है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि वर्तमान में कुछ रूढ़िवादी परिवारों को छोड़कर सभी समाजो में महिलाएँ आगे बढ़ रही हैं। आदिवासी क्षेत्रों में भी महिलाऐं साक्षरता की ओर बढ़ रही है।