महाभारत का युद्ध | Mahabharat ka Yuddh
महाभारत युद्ध
महाभारत का युद्ध केवल अट्ठारह दिन ही चला था, किंतु इस युद्ध में भयानक विनाश हुआ था। दोनों ओर की सेनाओं ने तुमुल शंखनाद किया और युद्ध प्रारंभ हो गया।
पहले दिन के युद्ध में भीष्म पितामह के नेतृत्व में कौरव सेना ने भयानक मार-काट मचाई। पितामह का रथ जिस ओर भी चला, उधर ही काल का भयानक नृत्य होने लगा। कौरवों की सेना के आगे दुःशासन था तो पाण्डवों की सेना के आगे भीम था। वीरों के गर्जन, शंखों की तुमुल ध्वनि, रणभेरियों का उच्चनाद, घोड़ों का हिनहिनाना, हाथियों की चिंघाड़, रथ के पहियों की गड़गड़ाहट, बाणों की सांय-सांय ने सारा आकाश गुंजा दिया। धरती से उठी धूल और घायलों के रक्त से उठे छींटों ने सर्वत्र अपना अधिकार कर लिया।
अर्जुन पुत्र अभिमन्यु, दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण से जा भिड़ा। विराट पुत्र उत्तर, शल्य से जा टकराया, किंतु शल्य ने अपने शक्तिबाण से उत्तर का कवच तोड़कर उसकी छाती विदीर्ण कर डाली। अपने छोटे भाई को स्वर्ग सिधारते देख विराट के ज्येष्ठ पुत्र श्वेत ने मद्रराज शल्य पर भयानक आक्रमण कर दिया। श्वेत ने शल्य के हाथी की सूंड़ काट डाली, तभी श्वेत को कौरव सेना ने घेर लिया। श्वेत ने ऐसी वीरता दिखाई कि कौरव सेना विस्मित हो उठी। यही नहीं, राजकुमार श्वेत ने भीष्म के रथ की ध्वजा अपने बाणों से काटकर गिरा दी। भीष्म ने श्वेत के घोड़ों और सारथि को मार गिराया, तदुपरांत अपने एक ही बाण से उन्होंने श्वेत को मार गिराया।
पहले दिन की लड़ाई में पाण्डवों की सेना में भारी विनाश हुआ। धर्मराज युधिष्ठिर भयभीत हो उठे। दुर्योधन आनंद से झूमता हुआ अपने डेरे पर लौट गया।
श्रीकृष्ण ने चिंतातुर युधिष्ठिर को धीरज बंधाया- “भरतश्रेष्ठ! चिंता न करें। आपके चारों भाई विख्यात शूरवीर हैं। इसके अतिरिक्त विराटराज, पांचालराज और अन्य योद्धा आपके साथ हैं। विजय आपकी ही होगी। आप निश्चित रहें।"
इस प्रकार श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर और पाण्डवों को धीरज बंधाया।
दूसरे दिन के युद्ध में पाण्डवों ने बड़ी सतर्कता से युद्ध किया। अर्जुन के कहने पर श्रीकृष्ण अर्जुन का रथ लेकर भीष्म पितामह के सामने जा पहुंचे। भीष्म ने अर्जुन का अपने बाणों से वीरोचित स्वागत किया और अर्जुन ने पहले तीन बाण भीष्म के रथ के सामने जमीन पर छोड़कर उनकी चरण वंदना की। दोनों के बीच महासंग्राम छिड़ गया। अर्जुन अपने बाणों से शत्रु सेना को छिन्न-भिन्न करने लगा।
भीष्म के रथ को अर्जुन के बाणों ने पीछे धकेल दिया। अर्जुन के अद्भुत युद्ध को देखकर दुर्योधन का कलेजा कांप उठा।
भीष्म के भयानक बाणों ने अर्जुन के रथ को आगे बढ़ने से रोक दिया। दोनों ओर से असंख्य बाणों की वर्षा हो रही थी। दोनों ही शक्ति संपन्न थे। बड़ी देर तक दोनों के बीच युद्ध होता रहा, किंतु जीत और हार का निर्णय नहीं हो सका।
दूसरी ओर धृष्टद्युम्न और द्रोणाचार्य एक दूसरे से भिड़े हुए थे। द्रोण के बाणों ने धृष्टद्युम्न का शरीर बींध डाला था, परंतु धृष्टद्युम्न तलवार खींचकर द्रोणाचार्य पर झपटा। उसकी सहायता कि लिए भीम भी मार-काट मचाने लगा। भीम ने घायल धृष्टद्युम्न को अपने रथ पर बिठाकर युद्ध क्षेत्र से बाहर निकाल दिया।
भीम के गदा प्रहारों से कौरव सेना हाहाकार कर उठी और प्राण बचाकर भागने लगी। कौरव सेना की हिम्मत टूट गई। दुर्योधन ने आगे आकर भागती सेना रोका और स्वयं भीम से भिड़ गया।
सूर्यास्त होने पर युद्ध रुका तो अर्जुन व पाण्डव सेना विजय बिगुल बजाते हुए वापस शिवरों की ओर लौट पड़े। पहले दिन की लड़ाई के बाद पाण्डवों में जो आतंक छा गया था, वह दूसरे दिन के युद्ध से कम हो गया। दूसरी ओर कौरव सेना के मन में भय समा गया।
तीसरे दिन के युद्ध के लिए भीष्म ने अपनी सेना की गरुड़ के आकार की व्यूह रचना की। उसके अग्रभाग की रक्षा के लिए दुर्योधन को जिम्मेदारी सौंपी।
उधर पाण्डवों ने भी बड़ी सतर्कता के साथ तीर के आकर की व्यूह रचना की। उसके अग्रभाग अर्द्धचंद्र का रूप प्रदान किया गया। उसके एक सिरे पर भीमसेन और दूसरे सिरे पर अर्जुन खड़े हो गए। व्यूह रचना करके दोनों सेनाएं एक-दूसरे पर टूट पड़ीं। भीषण संग्राम छिड़ गया। कौरव सेना टिड्डी दल की भांति अर्जुन पर टूट पड़ी। अर्जुन ने अपने बाणों की बौछार से शत्रु सेना को आगे बढ़ने से रोका।
दूसरी ओर शकुनि ने सात्यकि पर प्रहार करते हुए उसके रथ को तोड़ डाला। सात्यकि ने क्रोध में भरकर शकुनि के रथ को तहस नहस कर डाला।
युधिष्टिर जिस सेना का संचालन कर रहे थे, उस पर भीष्म और द्रोणाचार्य टूट पड़े। नकुल और सहदेव ने युधिष्ठिर की सहायता करके उन्हें रोका। उधर भीम और उसके पुत्र घटोत्कच ने एक साथ दुर्योधन पर आक्रमण कर दिया। भीमसेन के गदा प्रहार से दुर्योधन मूर्छित होकर गिर पड़ा। दुर्योधन के सारथि ने उसे उठाया और रथ में डालकर भाग खड़ा हुआ। सारी कौरव सेना दुर्योधन के मूर्छित हो जाने से भयभीत हो उठी। सैनिकों में भगदड़ मच गई। व्यूह रचना नष्ट हो गई।
क्रोध में आकर भीष्म ने अर्जुन पर भयानक बाण वर्षा कर दी। श्रीकृष्ण ने अर्जुन के रथ को घुमा-फिराकर बड़ी निपुणता से चलाया। फिर भी भीष्म के चलाए कई बाण अर्जुन और श्रीकृष्ण के शरीर में जा धंसे। इस पर श्रीकृष्ण क्रोध में भरकर घोड़ों की रास छोड़कर रथ से कूद पड़े और एक टूटे हुए रथ का पहिया उठाकर भीष्म की ओर दौड़े। भीष्म ने मुस्कराकर धनुष बाण नीचे रख दिए और बोले—“आओ माधव! मेरा अहोभाग्य कि मैं तुम्हारे हाथों मारा जाऊं। आखिर मेरे कारण तुमने युद्ध में शस्त्र न उठाने का अपना वचन तोड़ ही दिया।”
उसी समय अर्जुन भी रथ से कूदकर श्रीकृष्ण को रोकने के लिए उनके चरण पकड़कर बैठ गया— “नहीं माधव! क्रोध छोड़ दो। मैं स्वयं युद्ध करूंगा। मेरी लापरवाही के लिए मुझे क्षमा करें।”
अर्जुन के आग्रह करने पर श्रीकृष्ण का क्रोध शांत हुआ और वे वापस लौट पड़े और अर्जुन का रथ फिर से हांकने लगे। उत्तेजित अर्जुन ने सूर्यास्त होने तक कौरव सेना पर भयानक प्रहार किया। कौरव सेना बुरी तरह हारकर पीछे हट गई।
चौथे दिन युद्ध की भयानकता और भी बढ़ गई। भीम ने दुर्योधन के आठ भाइयों को मार डाला। भीम के मायावी पुत्र घटोत्कच के भीषण प्रहारों के आगे कौरव सेना टिक नहीं सकी।
पांचवें दिन संध्या होते-होते अर्जुन ने हजारों कौरव सैनिकों का सफाया कर दिया। अपनी सेना को भयभीत होते देखकर दुर्योधन ने आचार्य द्रोण और भीष्म को बुरा-भला कहा।
भीष्म ने दुर्योधन को समझाया कि श्रीकृष्ण और अर्जुन, नर-नारायण के अवतार हैं। उनसे जीतना असंभव है। तुम उनसे संधि करके अभी भी अपने आपको बचा सकते हो। वर्ना कौरवों का विनाश निश्चित है।
इसी प्रकार द्रोणाचार्य ने भी क्रोध में कहा– “दुर्योधन! तुम पाण्डवों के पराक्रम से किंचित् भी परिचित नहीं हो, तभी बड़ी-बड़ी डींगे मारा करते हो। मैं अपनी ओर से युद्ध करने में कोई कसर नहीं रख रहा, फिर भी तुम जो जी में आये बकते रहते हो।”
दुर्योधन चुपचाप वहां से चला गया। मन-ही-मन वह बहुत चिंतित था। पांच दिन के युद्ध में उसके हजारों जांबाज सैनिक मारे गए थे। कुरुक्षेत्र की धरती खून से लाल हो रही थी, परंतु उसकी प्यास अभी बुझी नहीं थी।
छठे दिन पाण्डवों ने मकर-व्यूह में सेना की रचना की और दुर्योधन ने क्रौंच-व्यूह में अपनी सेना को सजाया । युद्ध छिड़ते ही दोनों ओर की सेना में बड़ी संख्या में जन-हानि होने लगी। पाण्डवों के सेनानायक ने मोहास्त्र का प्रयोग करके कौरव सेना को मूर्छित कर दिया। कौरव सेना की ओर से आचार्य द्रोण ने भारी तबाही मचाई। पाण्डव सेना के पांव उखड़ गए। उनके हृदय कांप उठे। आज का युद्ध अतिभयानक था। भीमसेन और धृष्टद्युम्न जीवित वापस शिविर में लौट आए, इससे युधिष्ठिर की चिंता कम हुई।
सातवें दिन घायल दुर्योधन को समझाते हुए भीष्म ने कहा—“पुत्र दुर्योधन! कौरव वंश की सुरक्षा के वचन से मैं बंधा हूं। द्रोणाचार्य, शल्य, कृतवर्मा, अश्वत्थामा, विकर्ण, भगदत्त, शकुनि, राजा सुशर्मा, मगध नरेश, कृपाचार्य और स्वयं मैं तुम्हारी रक्षा के लिए अपने प्राणों तक की बलि चढ़ाने के लिए तैयार हैं। धीरज रखो, सब ठीक हो जाएगा।"
उस दिन भी भयानक युद्ध हुआ। विराटराज को हार माननी पड़ी। उनके सारथि घोड़े और तीसरा पुत्र शंख भी उस दिन मारा गया। भारी जन-हानि हुई। दोनों ओर के बहुत से वीर सैनिक मारे गए।
आठवें दिन भीष्म ने कौरव सेना को कछुए की शक्ल में व्यूहबद्ध किया। इस कूर्म-व्यूह को तोड़ने के लिए पाण्डवों ने तीन शिखरों वाले व्यूह की रचना की। इस व्यूह के सिरों पर भीम, सात्यकि और युधिष्ठिर सबसे आगे थे। आठवें दिन के पहले ही आक्रमण में भीम ने आठ कौरव पुत्रों को मार डाला। यह देखकर दुर्योधन का हृदय विदीर्ण हो गया। दूसरी ओर अर्जुन का नागकन्या से उत्पन्न पुत्र इरावान मारा गया। भीमसेन के पुत्र घटोत्कच ने इरावान की मृत्यु पर भारी उत्पात मचाया। उसकी गर्जना सुनकर कौरव सेना थर्रा उठी। वह भागने लगी।
नौवें दिन अभिमन्यु और अलम्बुष में घोर संग्राम छिड़ गया। अलम्बुष को युद्ध क्षेत्र से भागना पड़ा। दूसरी ओर भीष्म के भयानक प्रहारों से पाण्डव सेना में भयानक त्राहि-त्राहि मची हुई थी। पाण्डवों की सेना के भयानक विनाश से अर्जुन और श्रीकृष्ण चिंतित हो उठे। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि भीष्म का अंत किए बिना पाण्डवों की विजय होना संभव नहीं है, इसलिए उसे पितामह का मोह छोड़ना होगा।