निरीक्षण का अर्थ एवं परिभाषाएँ | Meaning and Definitions of Inspection in hindi
निरीक्षण का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Inspection)
वेस्टर शब्दकोश के अनुसार, निरीक्षण का अर्थ किसी व्यक्ति की जाँच करना है। शाब्दिक अर्थ के अनुसार, "विद्यालय के कार्यों का निरीक्षण विद्यालय निरीक्षण कहा जा सकता है।"
1. बार एवं बर्टन के अनुसार, "निरीक्षण वह प्रक्रिया है, जो एक आधार प्रस्तुत करती है, जिस पर शिक्षण की उन्नति हेतु सभी कार्यक्रम आधारित किए जाने चाहिए।"
2. डॉ० मुखर्जी के अनुसार, "वरिष्ठ अध्यापक अथवा प्रधानाध्यापक द्वारा किए गए मूल्यांकन को निरीक्षण कहा जाता है।"
3. यूनेस्को रिपोर्ट के अनुसार, “निरीक्षणकर्त्ता जब कार्य करता है तो वह दौरान शिक्षाविदों या अन्य अधिकारियों से जो शिक्षा में रुचि लेते हैं, सम्बन्ध स्थापित करता है, साथ ही शैक्षिक सभाओं में भाग लेता है और उस जिले की शैक्षिक समस्याओं के प्रति स्वयं को जागरूक करता है।"
निरीक्षण के दोष (Inspection Defects)
निरीक्षण के दृष्टिकोण सुधारात्मक, सकारात्मक, रचनात्मक न होकर नकारात्मक आलोचनात्मक व विध्वंसात्मक है। अतः निरीक्षण विधि के दोषों की चर्चा अग्रलिखित विन्दुओं के आधार पर की जाती है-
1. निरीक्षण का केन्द्रीकृत प्रारूप:- निरीक्षण नीतियों का निर्धारण अधिकारी वर्ग द्वारा किया जाता है, जो विद्यालय की वास्तविक स्थिति से अनभिज्ञ होते हैं। यदि इन नीतियों के निर्धारण में अध्यापकों का सहयोग लिया जाए तो निरीक्षण अधिक सार्थक व सफल हो सकता है परन्तु दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि निरीक्षण प्रक्रिया केन्द्रीकृत योजना है जिसमें उन तत्त्वों की उपेक्षा की जाती है, जिन्हें वास्तव में महत्त्वपूर्ण स्थान मिलना चाहिए।
2. अयोग्य निरीक्षक:- आज निरीक्षक पद पर जिन व्यक्तियों का चयन किया जाता है, आवश्यक नहीं कि उन्हें शिक्षण का अनुभव हो ही और इसके अभाव में वह शिक्षा की प्रक्रिया को समझे बिना ही निरीक्षण कार्य करते हैं, जो बहुत अधिक विश्वसनीय नहीं होता। साथ ही निरीक्षक के अन्दर जो नेतृत्व को भावना होनी चाहिए, वह भी उनमें निहित नहीं होती। वास्तव में यदि देखा जाए तो निरीक्षण एक विशिष्ट प्रकृति का कार्य है और इसके लिए ऐसे ही व्यक्तियों की नियुक्ति की जानी चाहिए जो इसमें विशेष दक्ष हो।
3. निरीक्षण का एक दिखावा मात्र होना:- निरीक्षण को आज एक दिखावा मात्र ही समझा जाने लगा है। शिक्षक वर्ग यह मानता है कि वह उन दिनों की पढ़ाई पर ध्यान दे, जब विद्यालय का निरीक्षण होना है और निरीक्षक यह मानते हैं कि वह जिन दिनों विद्यालय का निरीक्षण कर रहे हैं, विद्यालय अधिकारियों के द्वारा उनका पूर्ण सत्कार किया जाना चाहिए। यदि उनके अतिथि सत्कार में कुछ उपेक्षा की गई तो वह अपना आलेख उस विद्यालय के विपरीत दे देते हैं।
4. निरीक्षण का विद्यालय प्रक्रिया से असम्बन्धित होना:- निरीक्षण को एक विशिष्ट प्रक्रिया के रूप में समझा जाता है जिसका उद्देश्य, साधन व संगठन विशिष्ट होता है। वास्तव में निरीक्षण को हमें विद्यालय में संगठित होने वाली अन्य क्रियाओं की भाँति ही समझना चाहिए जिसे शैक्षिक व प्रशासनिक दोनों हो गतिविधियों से सम्बद्ध किया जाना चाहिए।
5. निजी प्रबन्धकों का नकारात्मक दृष्टिकोण:- जैसा कि हम सभी को विदित है कि सामान्यतया निजी प्रबन्ध-तन्त्र वाले विद्यालय अपने मनमाने ढंग से विद्यालय का संचालन करते हैं और वह शिक्षकों का भी शोषण करते हैं। बढ़ती हुई बेरोजगारी के कारण मजबूरी में लोग इन संस्थाओं में कार्य करते हैं व जैमा प्रबन्ध-तन्त्र चाहते हैं, वह उसी रूप में कार्य करते हैं वे उन्हें डराते-धमकाते रहते हैं। इन लोगों का दृष्टिकोण अधिनायकपूर्ण होता है। वे निरीक्षण को नापसन्द करते हैं। यदि कभी इन विद्यालयों में निरीक्षण होता भी है तो वे पूरे विद्यालय को ऐसा चोला पहना देते हैं कि निरीक्षक वस्तुस्थिति को जानते हुए भी उसके सम्बन्ध में कोई भी प्रमाण एकत्रित करने में असमर्थ रहता है।
6. निरीक्षण का विषय केन्द्रित न होना:- निरीक्षण को यदि हम वास्तव में सोद्देश्य व सार्थक बनाना चाहते हैं, तो हमारे यह आवश्यक है कि हम इसे एक सामान्य प्रक्रिया के रूप में न मानकर विषय-केन्द्रित प्रक्रिया के रूप में माने और इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर हमें विशेष विषय का निरीक्षण करने के लिए उस विषय विशेष से सम्बन्धित अध्यापक को ही आमन्त्रित करना चाहिए।
7. वर्तमान निरीक्षण स्वयं में अपूर्ण:- स्कूल निरीक्षण का तात्पर्य है स्कूल की शैक्षणिक क्रियाओं, पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं, विद्यालय भवन, विद्यालय की अन्य सुविधाओं व विद्यार्थियों के शारीरिक स्वास्थ्य का निरीक्षण करना। परन्तु आज निरीक्षण में इन सब बातों पर ध्यान नहीं दिया जाता। प्रायः निरीक्षक या तो अध्यापकों के शिक्षण कौशल का निरीक्षण करते हैं या फिर विद्यालय की प्रशासनिक या वित्तीय स्थिति का।
माध्यमिक शिक्षा आयोग ने वर्तमान निरीक्षण पद्धति के निम्नलिखित दोष बताए हैं- 1. निरीक्षक का अधिनायकवादी दृष्टिकोण, 2. निरीक्षण का दिखावटी प्रारूप, 3. निरीक्षणों का विध्वंसात्मक दृष्टिकोण, 4. निरीक्षकों का विद्यालय के अनुपात में कम होना तथा 5. विषयगत निरीक्षक का अभाव।
दोषों को दूर करने के उपाय (Remedies for Defects)
- निरीक्षण के स्थान पर पर्यवेक्षण शब्द का प्रयोग किया जाना चाहिए चूंकि यह शब्द अधिक व्यापक व सार्थक है।
- निरीक्षक का दृष्टिकोण आलोचनात्मक न होकर सकारात्मक होना चाहिए। उसे मित्र व मार्गदर्शक के रूप में कार्य करना चाहिए।
- निरीक्षकों की नियुक्ति करते समय उनकी योग्यता व अनुभव को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
- निरीक्षकों की नियुक्ति व विद्यालयों की संख्या में उचित अनुपात होना चाहिए, जिससे किसी भी निरीक्षक पर कार्य भार अधिक न हो।
- निरीक्षण प्रक्रिया केन्द्रित नहीं होनी चाहिए। इसमें शक्तियों का विकेन्द्रीकरण किया जाना चाहिए।
- निरीक्षण को एक सहज व स्वाभाविक प्रक्रिया के रूप में सम्पादित किया जाना चाहिए। उसमे कृत्रिमता नहीं होनी चाहिए।
- निरीक्षण द्वारा दिए गए सुझावों को सिर्फ कागज तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए, वरन् उसे व्यावहारिक रूप में अनुपालित भी किया जाना चाहिए।
- निरीक्षण नीतियों का निर्माण करते समय अध्यापकों का पूर्ण सहयोग लिया जाना चाहिए।
- निरीक्षकों को निरीक्षण प्रक्रिया में प्रयोग करने हेतु प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना की जानी चाहिए।
- निरीक्षण प्रक्रिया में निरीक्षक को विद्यालय के कर्मचारियों का भी पूर्ण सहयोग लेना चाहिए।