पर्यवेक्षण का अर्थ एवं परिभाषाएँ | Meaning and Definitions of Supervision in hindi
पर्यवेक्षण का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definitions of Supervision)
पर्यवेक्षण दो शब्दों— परि + अवेक्षण का समन्वय है। इसका अर्थ है- दूसरों के कार्यों का अधिदर्शन या अवलोकन करना। अतः पर्यवेक्षण एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा दूसरों के कार्यों का अवलोकन करके उन्हें उचित निर्देशन भी प्रदान करना है। विभिन्न शिक्षाविदों ने पर्यवेक्षण को इस प्रकार परिभाषित किया है-
1. विल्स के अनुसार, "आधुनिक पर्यवेक्षण अध्यापन व अधिराम के श्रेष्ठ विकास में सहायक है।"
2. एडम्स और डिकी के अनुसार, "पर्यवेक्षण संस्थाओं के सुधार के लिए एक नियोजित कार्यक्रम है।"
3. जॉन ए० बर्तकों के अनुसार, "पर्यवेक्षण, शिक्षक के विकास, बालक की अभिवृद्धि तथा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में सुधार से सम्बन्धित है।"
4. एस०एन० मुखर्जी के अनुसार, “प्रजातन्त्र युग में पर्यवेक्षण का उद्देश्य शिक्षण में सुधार लाना होता है।"
शैक्षिक पर्यवेक्षण के कार्य (Work of Educational Supervision)
आज के समय में शैक्षिक पर्यवेक्षण का क्षेत्र विस्तृत होता जा रहा है। आज शिक्षा का आधार हो सक्रिय पर्यवेक्षण हो गया है, जिसके परिणामस्वरूप शैक्षिक पर्यवेक्षण के अन्तर्गत विभिन्न कार्य किए जाते हैं, जो अप्रलिखित है-
1. उपयुक्त नेतृत्व प्रदान करना:- शैक्षिक पर्यवेक्षण द्वारा शैक्षिक नियोजन, नीति निर्धारण, उसके कार्यान्वयन एवं मूल्यांकन सम्बन्धी कार्यों में शिक्षक को सहयोग प्रदान किया जाता है। इन सबका नियोजित एवं व्यवस्थित रूप में उपयोग, पर्यवेक्षक के प्रभावशाली नेतृत्व प्रदान करने पर निर्भर होता है। अतः पर्यवेक्षक द्वारा शिक्षक तथा अन्य मशैक्षिक कार्यकर्ताओं के नेतृत्व के प्रादुर्भाव को प्रोत्साहित करने सम्बन्धी कार्यों पर बल दिया जाता है। पर्यवेक्षक नेतृत्व प्रदान करने हेतु निम्नलिखित कार्यों को करना आवश्यक है-
- (i) नेतृत्व करते समय सत्ता या शक्ति का समुचित रूप से प्रयोग करना चाहिए।
- (ii) नेतृत्व सम्बन्धी उद्देश्यों का निर्धारण स्पष्ट रूप में होना चाहिए।
- (iii) नेतृत्व प्रदान करने में सामूहिक गतिविधियों के साथ-साथ व्यक्तिगत क्रियाओं को करने के लिए प्रोत्साहन देना चाहिए।
- (iv) कार्यों के परिवर्तन एवं संशोधन में सभी शिक्षकों, कार्यकर्त्ताओं का समर्थन होना चाहिए।
2. शैक्षिक क्रियाओं में समन्वय स्थापित करना:- पर्यवेक्षण का मुख्य कार्य शिक्षा के विभिन्न रूपों में समुचित समन्वय स्थापित करना है। पर्यवेक्षक द्वारा शैक्षिक क्रियाओं में समन्वय करने हेतु विभिन्न कार्यों को सम्पन्न करना होता है।
- (i) पर्यवेक्षक द्वारा शिक्षकों, छात्रों तथा विद्यालय एवं समाज को समुचित सहयोग प्रदान करना।
- (ii) समन्वित शैक्षिक कार्यक्रमों का आयोजन करना ।
- (iii) पर्यवेक्षण में सभी का सहयोग प्राप्त करना।
3. मानवीय सम्बन्धों में सुधार करना:- सामान्यतः पर्यवेक्षण द्वारा मानवीय सम्बन्धों में सुधार लान होता है। अतः पर्यवेक्षण का मुख्य कार्य सोखने की प्रक्रिया को उन्नत करना है, जिसमें शिक्षक, छात्र त मानवीय चौतिक तत्त्व सम्बन्धित होते हैं। इसलिए पर्यवेक्षण कार्यों द्वारा इन सब तत्त्वों में सुधार तथा इनके प्रभावशाली उपयोग पर बल दिया जाता है। इस प्रकार शैक्षिक पर्यवेक्षण में अच्छे मानवीय सम्बन्धी को स्थापित करते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है-
- (i) पर्यवेक्षण से सम्बन्धित सभी व्यक्तियों का सहयोग प्राप्त करना चाहिए।
- (ii) सभी की योग्यता एवं क्षमताओं का उपयोग एवं यथासम्भव आदर करना चाहिए।
- (iii) पर्यवेक्षक द्वारा अन्य सम्बन्धित व्यक्तियों की ईमानदारी एवं योग्यता में विश्वास रखना चाहिए।
4. शैक्षिक उत्पादन में वृद्धि करना:- आज शिक्षण का सम्बन्ध उत्पादकता से जोड़ा जा रहा है। शिक्षा के उत्पादन का अर्थ छात्राओं की योग्यताओं के रूप में आंका जाता है कि अध्ययन के बाद वह तकनीको विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, इन्जीनियर, डॉक्टर, कुशल नेता आदि के रूप में तैयार हो सके; यही शिक्षा को उपलब्धि या उत्पादन माना जाता है।
5. नीतियों का निर्धारण करना:- शिक्षा एक उद्देश्यपूर्ण क्रिया है, जिसका मुख्य लक्ष्य व्यक्तियों का विकाम करता है ताकि शिक्षा द्वारा समाज की वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सके। अतः पर्यवेक्षण द्वारा शैक्षिक योजना तथा उससे सम्बन्धित नीतियों के निर्धारण सम्बन्धी रूपरेखा तैयार करने सम्बन्धी निम्नलिखित कार्य किए जाते हैं-
- (i) पाठ्यक्रम सम्बन्धी नीतियों का निर्धारण करना,
- (ii) भौतिक साधनों एवं सहायक सामग्री की व्यवस्था करना तथा
- (iii) विभिन्न शैक्षिक कार्यक्रमों सम्बन्धी नीतियाँ तैयार करना।
6. शिक्षण अधिगम परिस्थितियों में सुधार करना:- शैक्षिक पर्यवेक्षण का मुख्य उद्देश्य शिक्षण व सीखने की प्रक्रिया सम्बन्धी विभिन्न परिस्थितियों में सुधार लाना है। अतः पर्यवेक्षण में कार्य का केन्द्र मानव है, न कि भौतिक पदार्थ। इस प्रकार शैक्षिक पर्यवेक्षण द्वारा शिक्षकों में इस प्रकार के कौशलों का विकास करना आवश्यक है ताकि उनके द्वारा शिक्षण व सीखने सम्बन्धी परिस्थितियों को उन्नत किया जा सके. क्योंकि पर्यवेक्षण का प्रमुख कार्य शिक्षकों को उनके कार्य के लिए प्रोत्साहित करना है, जिससे वह छात्रों में उपयुक्त व्यवहार परिवर्तन लाने में समर्थ हो सके। इसका परिणाम उन्नत शिक्षण व अधिगम होता है।
7. शैक्षिक समूह की अन्तक्रिया में सुधार करना:- पर्यवेक्षक द्वारा अपने वर्ग अथवा कार्यकर्त्ताओं के मध्य उपयुक्त एवं उत्तम मानवीय सम्बन्ध स्थापित करने होते हैं, क्योंकि पर्यवेक्षक के कार्यों का सम्बन्ध व्यक्तिगत शिक्षक समूह के साथ कार्य करने से हैं। अत: पर्यवेक्षक को सभी अन्तक्रिया पर बल देना आवश्यक होता है ताकि अपेक्षित लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके।
8. सीखने की क्रियाओं में सुधार करना:- छात्रों की उपलब्धि शिक्षण उद्देश्यों की दृष्टि से प्रभावशाली क्रियाओं का उन्नत करना है। पर्यवेक्षण द्वारा छात्रों को यह ज्ञात कराया जाता है कि उसको उपलब्धि किस रूप में हो रही है। शैक्षिक अनुसन्धान के अध्ययनों से पता चलता है कि जब छात्रों को अपनी प्रगति की जानकारी रहती है तो उनका कार्य-स्तर तथा कार्य क्षमता अधिक उन्नत स्तरीय पाई जाती है।
9. पर्यवेक्षक द्वारा स्व- मूल्यांकन करना:- पर्यवेक्षण सबसे महत्वपूर्ण कार्य स्वयं के कार्यों का भी सतत मूल्यांकन करना अति आवश्यक है जिससे वह शैक्षिक पर्यवेक्षण सम्बन्धी व्यक्तियों कार्यकर्ताओं आदि को उपयुक्त मार्गदर्शन प्रदान कर सके और कार्यों को उन्नत करने में सक्षम बना सके।
10. उत्तम शैक्षिक पर्यवेक्षण के नियम:- ये नियम हमारे कार्य व व्यवहार को दिशा प्रदान करते हैं। ये दीर्घकालीन व्यावहारिक अनुभवों तथा उनके सामान्यीकरण के फलस्वरूप विकसित होते हैं। लौकतान्त्रिक विचारधारा तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास ने मानवीय जीवन के विभिन्न पहलुओं को ध्यापक रूप से प्रभावित किया है। भारत में न केवल लोकतन्त्र (प्रजातन्त्र) को शासन प्रणाली के रूप में अपनाया गया है, वरन् हमने उसे एक जीवन शैली के रूप में स्वीकार किया है।
स्वाभाविक है कि हमारे समस्त व्यवहार, आचरण व गतिविधियाँ लोकतान्त्रिक आदर्शों से निर्देशित होती है। विज्ञान एवं वैज्ञानिक अभिवृत्ति ने भी वर्तमान जीवन पर गहन प्रभाव डाला है। जीवन को बेहतर तथा सुविधापूर्ण बनाने में विज्ञान की भूमिका अत्यधिक महत्त्वपूर्ण रही है। वैज्ञानिक प्रक्रिया को अपनाकर जीवन की विभिन्न समस्याओं का हल खोजता तथा वैज्ञानिक उपागम, विधियों, प्रविधियों तथा तकनीक के प्रयोग से अनेकानेक क्रियाओं को अधिक प्रभावी बनाना इसी वैज्ञानिक चिन्तन का परिणाम है। शैक्षिक पर्यवेक्षण के नियमों का आधार दर्शन एवं विज्ञान है। इनके द्वारा ही पर्यवेक्षण के एक प्रगतिशील प्रजातान्त्रिक, वैज्ञानिक एवं एकीकृत स्वरूप का विकास हुआ है। पर्यवेक्षण का गत्यात्मक तथा एकीकृत सिद्धान्त इसी की देन है। संक्षेप में यह सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-
- (i) पर्यवेक्षक को सामाजिक विद्यालय परिस्थितियों एवं शैक्षिक गतिविधियों की सम्पूर्ण तथा सही जानकारी होनी चाहिए।
- (ii) पर्यवेक्षक को उपलब्ध वैज्ञानिक ज्ञान का उपयोग शिक्षण अधिगम परिस्थिति को उत्तम बनाने के लिए करना चाहिए।
- (iii) पर्यवेक्षक की अनुसन्धानों के परिणामों की जानकारी होनी चाहिए तथा आलोचनात्मक विश्लेषणात्मक तथा वस्तुनिष्ठ ढंग से चिन्तन करना चाहिए।
- (iv) पर्यवेक्षक को शिक्षकों, प्रशासकों समुदाय व अन्य व्यक्तियों का सहयोग प्राप्त करना चाहिए। उनके व्यक्तित्व में विश्वास रखते हुए उनकी क्षमताओं व योग्यताओं का उपयोग शिक्षण अधिगम दशाओं में सुधार हेतु करना चाहिए।
- (v) पर्यवेक्षक को शिक्षण अधिगम के मूल्यांकन का मापदण्ड छात्रों के व्यवहार के सभी पक्षों के विकास के रूप में करना चाहिए।
पर्यवेक्षण के दोष (Fault of Supervision)
- प्रत्येक विद्यालय की कार्य सोगा निश्चित होती है। अतः नवीन प्रयोगों के अवसर उन्हें प्राप्त नहीं हो पाते है।
- शिक्षकों द्वारा छात्रों के रचनात्मक व सृजनात्मक कार्यों पर बल न देना।
- नवीन अविष्कार से शिक्षकों का अवगत न होना।
- नवीन प्रयोग वन विधियों का समुचित प्रयोग न करने को प्रेरित करते हैं।
- जसोल नेतृत्व के अभाव में यह पर्यवेक्षण सफलतापूर्वक सम्पादित नहीं किया जा सकता है।
- विद्यालय भौतिक, मानवीय व आर्थिक संसाधनों से इतने परिपूर्ण नहीं होते कि वह नवीन प्रयोगों को क्रियान्वित कर पाएँ।
दोषों को दूर करने के उपाय (Remedies for Defects)
पर्यवेक्षण स्वयं में एक कला है और यदि इस कला को हम सुचारू रूप से सम्पादित करना चाहते हैं तो हमें इसे मुव्यवस्थित नियोजित एवं सार्थक रूप देना होगा। यह इस प्रकार है-
- प्रधानाचार्य द्वारा कक्षाओं का अनौपचारिक पर्यवेक्षण करना।
- शिक्षकों को प्रीष्मकालीन संस्थाओं में भाग लेने हेतु प्रोत्साहित करना।
- विचारगोष्ठियों का आयोजन करना जिसमें अभिभावक, छात्र, शिक्षक व प्रबन्धक भाग लें।
- विशेष प्रकरणों के अध्ययन के लिए शिक्षक वर्ग की मीटिंग आमन्त्रित करना।
- पर्यवेक्षण की नवीन विधियों का विद्यालय में प्रयोग करना।
- पर्यवेक्षण को नवीन विधियों को सीखने के अवसर प्रदान करना।
- वर्कशॉप व समितियों का आयोजन करना।
- निर्देशन सम्बन्धी सम्मेलनों को आयोजित करना तथा उसमें शिक्षकों की भागीदारी को सुनिश्चित करना।
- वैयक्तिक सम्मेलनों के द्वारा अध्यापकों को व्यवस्था सम्बन्धी परामर्श देना।