सृजनात्मकता का अर्थ, परिभाषा एवं प्रकृति | Meaning, Definitions and Nature of Creativity in hindi

सृजनात्मकता का अर्थ (Meaning of Creativity)

सृजनात्मकता शब्द अंग्रेजी के Creativity का हिन्दी रूपान्तरण है। सृजनात्मकता का अर्थ होता है— 'उत्पन्न या रचना सम्बन्धी योग्यता'। नवीन क्रियाओं एवं नवीन विचारों को उत्पन्न करने की शक्ति या नवीन खोज करने की शक्ति अर्थात् किसी के पीछे-पीछे न चलकर अपनी एक नई राह बनाने की सोच को ही हम सृजनात्मकता कहते है।

Meaning, Definitions and Nature of Creativity in hindi

जैसा कि आपको बताया जा चुका है कि सृजनात्मकता का अर्थ होता है- नवीन ज्ञान की खोज करना या किसी भी क्षेत्र में जब कोई व्यक्ति नवीन खोज करता है या नये विचारों का निर्माण करता है तो हम उस व्यक्ति के व्यक्तित्व को Creative मानते हैं एवं ऐसे लोगों की हर जगह अपने स्तर में प्रसंशा होती है ऐसे व्यक्ति सदैव सैद्धान्तिक विचारों वाले न होकर व्यवहारवादी विचारों वाले होते हैं। (Creativity) शब्द में कई बुद्धिजीवियों ने अपने विचारों को प्रकट किया है जैसे-

"सृजनात्मकता वह योग्यता है जो व्यक्ति को किसी समस्या का समाधान खोजने के लिए नवीन ढंग से सोचने व विचार करने के लिए समर्थ बनाती है।" अर्थात् प्रचलित ढंग से चिन्तन करने, विचार करने तथा कार्य करने की अमूर्त योग्यता को ही सृजनात्मकता कहते हैं।

सृजनात्मकता की परिभाषा (Definition of Creativity)

1. प्रो० रूश के अनुसार, "सृजनात्मकता मौलिकता है जो वास्तव में किसी भी प्रकार की क्रिया में घटित हो सकती है।"

2. क्रो एण्ड क्रो के अनुसार, "सृजनात्मकता मौलिक परिणामों को अभिव्यक्त करने की मानसिक प्रक्रिया है।"

3. जेम्स ड्रेवर के अनुसार, “सृजनात्मकता मुख्यतः नवीन रचना या उत्पादन में है।”

सृजनशील बालकों की विशेषताएँ (Characteristics of Creative Children)

सृजनशील बालकों की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-

  1. सृजनात्मक बालकों में मौलिकता पाई जाती है अर्थात् इन बालकों में कल्पना और चिन्तन करने की क्षमता होती है।
  2. सृजनशील बालकों में बुद्धि-लब्धि उच्च पाई जाती है।
  3. ये बालक किसी विषय को सरलता से समझ लेते हैं।
  4. सृजनशील बालक कोई भी कार्य सूझ-बूझ के साथ करते हैं।
  5. सृजनशील बालकों में क्रियाशीलता अधिक होती है ये बालक हमेशा किसी न किसी कार्य में लगे रहते हैं।

सृजनात्मकता के गुण (Qualities of Creativity)

  1. इसमें नवीन तत्वों का समावेश होता है।
  2. यह एक योग्यता है।
  3. इसके द्वारा व्यक्तियों में प्रतिभा का विकास होता है।
  4. जिस कार्य में यह पायी जाती है वह समाज के लिए हितकारी होता है।
  5. यह पॉजिटिव एवं नेगेटिव दोनों प्रकार की होती हैं।
  6. यह किसी भी कार्य को एक नई दिशा प्रदान करती है। कैसे पता करें कि यह व्यक्ति Creative है कि नहीं...?
  7. जो व्यक्ति किसी के मन एवं किसी के व्यक्तित्व को समझ पाने में सक्षम होता है वह व्यक्ति Creative होता है।
  8. जिसके व्यक्तित्व में लचीलापन होता है अर्थात् जो देश काल परिस्थितियों के अनुसार अपने व्यक्तित्व को ढाल सके ऐसे व्यक्ति Creative होते हैं।
  9. ऐसे व्यक्तियों का बौद्धिक स्तर उच्च होता है।
  10. ऐसे व्यक्तियों की काल्पनिक शक्ति भी उच्च होती है।
  11. ऐसे छात्रों में जिज्ञासा का अभाव अत्यधिक होता है।
  12. वह वास्तविक एवं व्यावहारिक होते हैं।
  13. यह बालक दूरदर्शी होते हैं अर्थात् वह आगे की सोचते हैं।
  14. उनमें सौन्दर्यात्मक कौशल का स्तर उच्च होता है।

सृजनात्मकता के तत्व (Elements of Creativity)

मनोवैज्ञानिक टॉरेन्स (Torence) ने भी सृजनात्मकता के चार तत्व माने हैं- प्रवाह (Fluency), नमनीयता (Flexibility), मौलिकता (Orginality) और विस्तारता ( Elaboration)। इस बीच मनोवैज्ञानिकों ने सृजनात्मकता के कुछ अन्य तत्वों की खोज भी की है। वर्तमान में इन्हीं तत्वों की माप द्वारा व्यक्ति की सृजनात्मक शक्ति का पता लगाया जाता है। अतः यहाँ उनका वर्णन संक्षेप में प्रस्तुत है।

1 संवेदनशीलता (Sensitivity):– जिन व्यक्तियों में सृजनात्मकता होती है, वे संवेदनशील होते हैं, विशेषकर परिवर्तन के प्रति।

2 नवीनता (Novelty):- नवीनता सृजनात्मकता का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। जब तक व्यक्ति में नवीनता के प्रति आकर्षण नहीं होगा, वह नवीन सृजन नहीं कर सकता।

3. मौलिकता (Originality):– मौलिकता का सम्बन्ध नवीनता से होता है। किसी वस्तु को नया रूप देने, किसी नए विचार को प्रस्तुत करने अथवा किसी समस्या को नए ढंग से सुलझाने की शक्ति को मौलिकता कहते हैं। टॉरेन्स की दृष्टि से मौलिकता सृजनात्मकता का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण तत्त्व होता है।

4. प्रवाह (Fluency):– किसी समस्या के हल अथवा किसी वस्तु के निर्माण के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रने को प्रवाह कहते हैं। सृजनात्मक व्यक्तियों के चिन्तन में प्रवाह होता है।

5. उत्सुकता:– जिन व्यक्तियों में किसी भी कार्य को करने की उत्सुकता होती है वह व्यक्ति काफी जिज्ञासु होते हैं उन्हें नवीन विचारों एवं खोजों को जानने समझने की जिज्ञासा होती है और ऐसे व्यक्ति नवीन विचारों का निर्माण करने में सक्षम होते हैं।

6. नमनीयता (Flexibility):- किसी वस्तु को अनेक रूप में प्रस्तुत करने अथवा किसी समस्या के अनेक हल प्रस्तुत करने की क्षमता को नमनीयता कहते हैं। टॉरेन्स के अनुसार जिन व्यक्तियों में यह क्षमता होती है, उनमें सृजनात्मकता होती है।

7. विस्तारता (Elaboration):- किसी विचार की अपने अनुभवों के आधार पर विस्तृत व्याख्या करने को विस्तारता कहते हैं। टॉरेन्स के अनुसार सृजनात्मक व्यक्ति के द्वारा प्रस्तुत व्याख्या में नवीनता होती है और मौलिकता होती है।

8. स्वतन्त्र निर्णय (Self Decision):- सृजनशील व्यक्तियों में आत्मविश्वास होता है, वे आत्मनिर्भर होते हैं और वे स्वतन्त्र रूप से निर्णय लेते हैं।

9. पुनर्परिभाषीकरण (Redefinalization):- पुनर्परिभाषीकरण का अर्थ है किसी वस्तु किया अदा विचार को पूर्व प्रचलित रूप में प्रस्तुत न कर उसे नए रूप में प्रस्तुत करना। सृजनात्मकता में यह तत्व भी होता है।

10. सृजनात्मक उत्पादन (Creative Production):- सृजनात्मकता का मूलतत्व सृजनात्मक चिन्तन होता है, इसी से व्यक्ति नए विचार, नई रचना और भए उत्पादन करने में सफल होते हैं।

सृजनात्मकता की प्रकृति एवं विशेषताएँ (Nature and Characteristics of Creativity)

सृजनात्मकता के स्वरूप एवं उसके सर्वमान्य गुण अथवा तत्वों को ही उसकी प्रकृति अथवा विशेषताएँ कहते हैं। उन्हें हम निम्नलिखित रूप में क्रमबद्ध कर सकते हैं-

  1. सृजनात्मकता मनुष्य की वह योग्यता अथवा शक्ति है जिसके द्वारा वह नए-नए विचार प्रस्तुत करता है, नई-नई वस्तुओं का निर्माण करता है और नए-नए तथ्यों की खोज करता है।
  2. सृजनात्मकता मनुष्य की वह योग्यता अथवा क्षमता है जिसके द्वारा वह किसी समस्या के मौलिक हल खोजता है।
  3. सृजनात्मकता की एक विशेषता यह भी है कि इसके द्वारा जो भी नए विचार प्रस्तुत होते हैं अथवा जो भी नई वस्तुएँ निर्मित होती है अथवा जिन नए तथ्यों की खोज होती है, वे मानव जीवन के लिए उपयोगी होते हैं।
  4. सृजनात्मकता जन्मजात होती है और इसकी अभिव्यक्ति एवं विकास अनुकूल पर्यावरण में होता है।
  5. भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में सृजनात्मकता की योग्यता भिन्न-भिन्न होती है।
  6. भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न प्रकार की सृजनशीलता होती है, किसी में साहित्यिक, किसी में कलात्मक, किसी में कौशलात्मक, किसी में वैज्ञानिक, किसी में तकनीकी और किसी में किसी अन्य प्रकार की।
  7. सृजनात्मकता को इसके तत्वों के सन्दर्भ में ही देखा-समझा जा सकता है।
  8. सृजनात्मकता के मुख्य तत्त्व है- संवेदनशीलता, नवीनता, मौलिकता, प्रवाह, नमनीयता, विस्तारता, निर्णय, पुनर्परिभाषीकरण और सृजनात्मक उत्पादन।
  9. वर्तमान में किसी व्यक्ति की सृजनात्मकता का मापन उपर्युक्त तत्त्वों के मापन द्वारा ही किया जाता है।

बालकों की सृजनात्मकता बढ़ाने के उपाय (Means of Fostering Creativity of Children)

बालकों में सृजनात्मकता तो जन्मजात होती है परन्तु इसका विकास उचित मात्रा में तभी होती है जब उन्हें इसके विकास के लिए उचित पर्यावरण मिलता है। सृजनात्मकता के सन्दर्भ में दूसरा तथ्य यह है कि भिन्न-भिन्न बालकों में भिन्न-भिन्न प्रकार की सृजनात्मकता होती है। बालकों की सृजनशीलता को बढ़ाने के लिए परिवार (Family) और विद्यालयों (Schools) को निम्नलिखित कार्य करने चाहिए–

  1. सृजनात्मकता का सम्बन्ध अहं से होता है अतः परिवार और विद्यालय दोनों को बालकों को अहं की तुष्टि की अवसर देने चाहिए।
  2. बालकों के चारों ओर का वातावरण उन्हें कुछ नया करने के लिए प्रेरित करने वाला होना चाहिए।
  3. बालकों को ऐसे केन्द्रों का निरीक्षण कराया जाना चाहिए जहाँ सृजनात्मक कार्य हो रहे हो।
  4. बालकों में आत्मविश्वास एवं आत्मनिर्भरता जैसे गुणों का विकास करना चाहिए।
  5. बालकों को सृजनात्मकता सम्बन्धी किसी भी प्रकार की अनुक्रिया करने के स्वतन्त्र अवसर देने चाहिए।
  6. बालकों के मौलिक विचारों एवं कार्यों के लिए उन्हें प्रोत्साहन देना चाहिए।
  7. बालकों के मन में किसी प्रकार का संकोच एवं भय न हो, इसके लिए प्रयास करना चाहिए।
  8. बालकों को तनाव, दुश्चिन्ता एवं भग्नाशा आदि मानिकस विकारों से बचाना चाहिए, उसी स्थिति में वे आत्मविश्वास के साथ सृजनशील कार्य कर सकते हैं।
  9. विद्यालयों में पाठ्यचारी क्रियाओं के साथ-साथ साहित्यिक एवं सांस्कृतिक सहपाठ्यचारी क्रियाओं का आयोजन करना चाहिए और छात्रों को अपनी सृजनात्मकता की अभिव्यक्ति के स्वतन्त्र अवसर देने चाहिए।

सृजनात्मकता के सिद्धान्त (Principles of Creativity)

1. वंशानुक्रम का सिद्धान्त:- इस सिद्धान्त के अनुसार Creativity जन्मजात होती है यह बालक आपके पूर्वजों या अपने माता-पिता से लेकर आता है।

2. पर्यावरणीय सिद्धान्त:- यह वंशानुक्रम के विपरीत बोलता है कि यह जन्मजात नहीं होती अपितु इसका विकास पर्यावरणीय अनुभवों द्वारा होता है अर्थात् किसी के जीवन में किस व्यक्ति ने समाज में रहते हुए कितना अनुभव प्राप्त किया है।

3. सृजनात्मक स्तर का सिद्धान्त:- टेलर के अनुसार, कोई व्यक्ति उसी स्तर तक Creativity का विकास कर सकता है जिस स्तर तक पहुँचने की उसकी क्षमता होती है।

4. गेस्टाल्ट का सिद्धान्त:- इनके अनुसार इसमें अन्तर्दृष्टि है जो कि नये विचारों से उत्पन्न होती है।

5. मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त:- फ्रायड के अनुसार, व्यक्ति में Creativity का विकास उसके अचेतन मन में संचित अतृप्त इच्छाओं के कारण होता है।

सृजनात्मकता का विकास (Development of Creativity)

Creativity का विकास मुख्यतः चार अवस्थाओं में होता है जिसे हम इस माध्यम से समझ सकते हैं-

1. प्रथम अवस्था:— यह 5 या 6 वर्ष की आयु में आती इस अवस्था में बालक स्कूल जाता है स्कूल से बालक का बौद्धिक विकास होता है वह नयी-नयी बातों को जानता है उसे समझता है एवं नवीन अनुभव प्राप्त करता है जैसे प्रायः बच्चे स्कूल से घर आकर नवीन प्रकार के चित्रों का निर्माण करते हैं अर्थात् उनमें Creativity का विकास हो रहा है।

2. द्वितीय अवस्था:— 8 से 10 वर्ष की आयु तक चलती है। इस अवस्था में बालक समूहों में जाता है जैसे वह स्कूल में समूह के साथ पड़ता है, खेलता है जिससे उसके दृष्टिकोण में परिवर्तन आता है उसके विचारों में उस समूह के गुण अथवा अवगुण आते हैं ऐसे में वह कार्य में के नवीनता लाने का प्रयास करता है।

3. तृतीय अवस्था:- यह अवस्था 13 से 15 वर्ष तक चलती है। यह अवस्था बालक में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाती है। इस अवस्था में बालक ये प्रयास करता है कि सभी उसको महत्व दें एवं सभी उसके विचारों को प्रवलता के साथ ले, जिस कारण वह महत्त्व पाने के लिए सदैव नवीन विचारों को मान्यता देता है।

4. चतुर्थ अवस्था:- 17 से 19 वर्ष तक चलने वाली अवस्था में व्यक्ति महत्त्व पाने की लालसा में नहीं बल्कि प्रशिक्षण पर अधिक बल देता है वह कुछ ऐसा करने की सोचता है तो उसने आज तक न किया हो वह नवीन खोज करने की ओर अधिक सजग रहता है।

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