Flipped Classroom Teaching Method in hindi
फ्लिप्ड क्लासरूम शिक्षण (Flipped Classroom Teaching)
फ्लिप्ड क्लासरूम अनुदेशनात्मक रणनीति और ब्लेंडेड लर्निंग का एक प्रकार है। यह अनुदेशनात्मक सामग्री को कक्षा के बाहर उपलब्ध कराकर परंपरागत शिक्षात्मक व्यवस्था को बदलता है। फ्लिप्ड क्लासरूम में छात्र प्रशिक्षक के नेतृत्व में ऑनलाइन लेक्चर देखते हैं, ऑनलाइन चर्चा करते हैं और रिसर्च करते हैं।
फ्लिप्ड क्लासरूम शिक्षण विधि के सिद्धान्त (Principals of the Flipped Classroom Teaching Method)
(1) मनोवैज्ञानिक आधार का सिद्धान्त:- फ्लिप्ड क्लासरूम शिक्षण की पाठ्यवस्तु के चयन में इस सिद्धान्त को विशेष महत्व दिया जाता है, जिससे शिक्षा की प्रक्रिया बाल केन्द्रित होनी चाहिए। बालक की क्षमताओं, अभिरुचियों तथा अभिवृत्तियों को ध्यान में रखकर पाठ्यवस्तु का चयन किया जाता है। इसमें विषय रूप से दो बालकों को ध्यान में रखा जाता है।
- (अ) मानसिक विकास क्रम:- बालक के मानसिक विकास का विशेष क्रम होता है। सर्वप्रथम बालक में पहिचानने की शक्ति (Recognition) इसके प्रत्यास्मरण (Recall) की शक्ति, ज्ञान प्रयोग तथा सौन्दयांनुभूति क्षमताओं का विकास स्वाभाविक ढंग से होता है। अतः पाठ्यवस्तु के चयन में मानसिक क्रम को ध्यान में रखना आवश्यक होता है।
- (ब) मानसिक शक्तियों का विकास:- इतिहास शिक्षण द्वारा बालकों की विशेष मानसिक शक्तियों का विकास किया जाता है। एक हो आयु वर्ग के सभी बालकों की मानसिक क्षमताएँ समान नहीं होती है। प्रतिभाशाली छात्रों में कल्पना शक्ति, अमूर्त चिन्तन, सर्जनात्मक विचार शक्ति तथा सामान्यीकरण की क्षमतायें अधिक शीघ्रता से विकसित होती हैं। अत: इन छात्रों के लिए सामान्य शिक्षार्थियों की अपेक्षा विशेष प्रकार होना वांछनीय है। परन्तु आधुनिक इतिहास को पाठ्य पुस्तक के चयन में बालकों को ध्यान में नहीं रखा जाता है। शिक्षक को भी अध्यापन के समय कक्षा की इस विषमता को ध्यान में रखना चाहिए। इतिहास शिक्षण द्वारा कल्पना-शक्ति, निर्णय शक्ति, स्मरण शक्ति तथा सर्जनात्मक विचार शक्ति का विकास सुगमता से हो सकता है। अतः पाठ्यवस्तु के चयन में इन मानसिक क्षमताओं को विशेष महत्व दिया जाये।
(2) शैक्षिक सिद्धान्त:- फ्लिप्ड क्लासरूम शिक्षण की पाठ्यवस्तु का चयन शैक्षिक सिद्धान्तों पर आधारित हो। आज की शिक्षा का लक्ष्य एक नहीं है अपितु अनेक लक्ष्य हैं। वे सभी लक्ष्य वैयक्तिक तथा सामाजिक विकास से सम्बन्धित है। अतः सभी शैक्षिक सिद्धान्तों का पाठ्यवस्तु के चयन में ध्यान रखा जाए। आधुनिक सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पाठ्यवस्तु का चयन, शिक्षा के उद्देश्य केन्द्रित सिद्धान्त पर आधारित होना चाहिए। पलटी के पाठ्यवस्तु में सामाजिक तथा शैक्षिक मूल्यों को भी रखना चाहिए। क्योंकि इतिहास शिक्षण का उद्देश्य केवल जान अथवा सूचना तक ही सीमित नहीं है अपितु शैक्षिक मूल्यों का शिक्षार्थी आचरण भी कर सकें।
(3) अभिरुचि का सिद्धान्त:- फ्लिप्ड क्लासरूम शिक्षण में इतिहास की पाठ्यवस्तु में घटनाओं, युद्धो तथा तथ्यों का ही समावेश न किया जाये अपितु उनमें कल्पना तथा लालित्य का भी समावेश किया जाए, जिससे विषय-वस्तु के अध्ययन के लिए छात्र आकर्षित हो प्राथमिक तथा पूर्व माध्यमिक स्तर पर विषय-वस्तु को कहानियों में प्रस्तुत किया जाए क्योंकि इस आयु के बालक कहानियों के सुनने तथा स्मरण करने में अधिक रुचि लेते हैं। किशोरावस्था में बालकों को महान पुरुषों की जीवनियों से उन्हें उच्च आदर्शों, स्वार्थ-त्याग लक्ष्यप्रियता का पाठ पढ़ाया जाए, जिससे अनेक मानसिक अनुशासन के लिए प्रशिक्षण मिल सकेगा। अतः पाठ्यवस्तु के गठन मे विभिन्न आयु स्तरों की रुचियों को भी ध्यान में रखा जाए।
(4) शिक्षण विधियों की अनुरूपता का सिद्धान्त:- फ्लिप्ड क्लासरूम शिक्षण की पाठ्यवस्तु के चुनाव में शिक्षण विधियों को भी ध्यान में रखना चाहिए क्योंकि विभिन्न पाठ्यवस्तु के लिए विभिन्न आयु स्तरों के लिए शिक्षण विधियाँ भी भिन्न-भिन्न प्रयुक्त की जाती हैं। प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिक स्तरों की कहानी-पद्धति अधिक उपयुक्त समझी जाती है। इसलिए प्राचीन राजाओं के युद्धों एवं साहसिक कार्यों का वर्णन कहानी के रूप में ही किया जाए। माध्यमिक स्तरों पर शिक्षार्थी को 'समयानुभूति' का बोध कराया जा सकता है। अतः पाठ्यवस्तु का गठन समय की अनुभूति के आधार पर किया जाए। क्योंकि साधारणत: जीवन-गाथा पद्धति का प्रयोग किया जाता है। उच्चतर माध्यमिक स्तर के लिए विषय-वस्तु में वर्तमान काल के इतिहास अथवा स्वतन्त्रता के बाद इतिहास को विशेष महत्व दिया जाए, क्योंकि बालकों में तर्क शक्ति एवं निर्णय शक्ति का विकास हो जाता है जिससे वह प्रदत्तों के आधार पर निष्कर्ष निकाल सकता है। स्त्रोत शिक्षण पद्धति का प्रयोग सुगमता से किया जा सकता है। इस प्रकार विषय-वस्तु के प्रतिपादन में शिक्षण विधियों को भी महत्व दिया जाये।
(5) सामयिक एवं सांस्कृतिक अनुरूपता का सिद्धान्त:- पलटी कक्षा शिक्षण की पाठ्यवस्तु में राजाओं, महान पुरुषों, शहीदों की गाथाओं एवं साहसिक कार्यों को ही महत्व नहीं में दिया जाये अपितु सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास क्रम का भी उल्लेख किया जाए। पाठ्यवस्तु में राजनैतिक पक्ष के बजाय सामाजिक आर्थिक, सांस्कृतिक क्रम को विशेष महत्व दिया जाए। क्योंकि राजनैतिक पक्षों के अध्ययन से साम्प्रदायिकता को बढ़ावा मिलता है जो राष्ट्रीय एकता में बाघक है और प्रजातन्त्र की जड़ों को कमजोर करता है। अतः पलटी कक्षा शिक्षण की विषय-वस्तु में सामाजिक एवं सांस्कृतिक पक्षों को विशेष महत्व दिया जाए जिससे सुयोग्य नागरिक तैयार हो सकें।
फ्लिप्ड क्लासरूम की विशेषताएँ (Features of Flipped Classroom)
- प्रौद्योगिकी संचालित कक्षाएं
- सतत् व्यापक मूल्यांकन
- पार पाठ्यक्रम सम्बन्ध
- पूछताछ आधारित शिक्षा
- अवधारणाओं की समक्ष पर जोर
- पाठ्यक्रम को जीवन से जोड़ना
- कौशल निर्माण, जीवन कौशल और मूल्यों पर जोर
- स्मार्ट इंटरएक्टिव बोर्ड
- BYOD- अपने स्वयं के उपकरण लाना
- सहयोगात्मक अधिगम
- विभेदक अधिगम
- गतिविधि-आधारित अधिगम और अधिगम प्रयोगशाला
- अंतः विषयक अधिगम
- एकीकृत और सामाजिक जिम्मेदारी और नागरिक जुड़ाव
- शिक्षण, अधिगम मूल्यांकन और प्रतिक्रिया में डिजिटलीकरण
- विभेदित निर्देश
- पलटी कक्षा
- समस्या-आधारित अधिगम
फ्लिप्ड क्लासरूम शिक्षण के लाभ (Advantages of Flipped Classroom Teaching)
- छात्रों का अधिक नियंत्रण होता है।
- यह छात्र-केंद्रित सीखने और सहयोग को बढ़ावा देता है।
- पाठ और सामग्री अधिक सुलभ हैं। (बशर्ते तकनीकी पहुंच हो)
- माता-पिता के लिए यह देखना आसान है कि क्या हो रहा है।
- यह अधिक कुशल हो सकता है।
फ्लिप्ड क्लासरूम शिक्षण के दोष (Disadvantages of Flipped Classroom Teaching)
- यह एक डिजिटल डिवाइड बना या बढ़ा सकता है।
- यह तैयारी और विश्वास पर निर्भर करता है।
- फ्रंट-एंड पर महत्वपूर्ण कार्य है।
- स्वाभाविक रूप से सीखने का परीक्षण-तैयारी का रूप नहीं है।
- लोगों और जगहों के बजाय स्क्रीन के सामने समय बढ़ा दिया जाता है।
फ्लिप्ड क्लासरूम शिक्षण विधि के उद्देश्य (Objectives of the Flipped Classroom Teaching Method)
- पलटी कक्षा शिक्षण विधि बालक के सम्पूर्ण विकास हेतु साधन प्रदान करता है, जिसकी सहायता से शिक्षक की क्रिया को सम्पादित किया जाता है।
- पलटी कक्षा शिक्षण विधि में मानव जाति के अनुभवों को सम्मिलित रूप से स्पष्ट करके संस्कृति तथा सभ्यता का हस्तांतरण एवं विकास करना।
- पलटी कक्षा शिक्षण विधि बालक में मित्रता, ईमानदारी, निष्पक्ष, सहयोग, सहनशीलता, सहानुभूति एवं अनुशासन आदि गुणों को विकसित करके नैतिक चरित्र का निर्माण करना।
- पलटी कक्षा शिक्षण विधि से चालक की चिन्तन, मनन, तर्क तथा विवेक एवं निर्णय आदि सभी मानसिक शक्तियों का विकास करना चाहिए।
- पलटी कक्षा शिक्षण विधि से बालक के विकास की विभिन्न अवस्थाओं से सम्बन्धित सभी आवश्यकताओं, मनोवृत्तियों तथा क्षमताओं एवं योग्यताओं के अनुसार अनेक प्रकार की सर्जनात्मक तथा रचनात्मक शक्तियों का विकास करना।
- पलटी कक्षा शिक्षण विधि से सामाजिक तथा प्राकृतिक विज्ञानों एवं कलाओं तथा धर्मों के आवश्यक ज्ञान द्वारा ऐसे गतिशील तथा लचीले मस्तिष्क का निर्माण करना चाहिये जो प्रत्येक परिस्थिति में साधनपूर्ण तथा साहसपूर्ण बनकर नवीन मूल्यों का निर्माण करना।
- पलटी कक्षा शिक्षण विधि द्वारा ज्ञान तथा खोज की सीमाओं को बढ़ाने के लिये अन्वेषकों का सृजन करना।
- पलटी कक्षा शिक्षण विधि से विषयों तथा क्रियाओं के बीच की खाई को पाटकर बालक के सामने ऐसी क्रियाओं को प्रस्तुत करना जो उसके वर्तमान तथा भावी जीवन के लिये उपयोगी हो।
- पलटी कक्षा शिक्षण विधि से बालक में जनतंत्रीय भावना का विकास करना।
- पलटी कक्षा शिक्षण विधि से शिक्षण क्रियाओं, शिक्षक तथा छात्र के मध्य अन्तः प्रक्रिया के स्वरूप निर्धारित करना।
फ्लिप्ड क्लासरूम शिक्षण विधि की आवश्यकता (Need for Flipped Classroom Teaching Method)
फ्लिप्ड क्लासरूम में शिक्षा एवं पाठ्यक्रम की आवश्यकता समान है, परन्तु शिक्षा की ऐतिहासिक समीक्षा से विदित होता है कि ये आवश्यकताएं बदलती रही हैं। इसलिये इन सभी आवश्यकताओं का उल्लेख यहाँ पर किया गया है-
- ज्ञान प्राप्त करने के लिये अन्य जीवों से प्रमुख भिन्नता मानवीय ज्ञान की दृष्टि मानी जाती है।
- मानसिक पक्षों का प्रशिक्षण तथा विकास करने के लिये विभिन्न विषयों के शिक्षण से मानसिक पक्षों का प्रशिक्षण किया जाता है।
- व्यवसाय तथा नौकरियों के लिये तैयार करना। शिक्षा से नौकरियों के लिये प्रशिक्षण भी प्राप्त होता है।
- छात्रों में अभिरुचियों को उत्पन्न करने के लिये। छात्रों की क्षमताओं के अनुरूप उनका विकास करना।
- प्रजातन्त्र में सामाजिक क्षमताओं का विकास करना ऐसे नागरिकों को तैयार करना जो प्रजातन्त्र का नेतृत्व प्रदान कर सकें।
- छात्रों को व्यवसायों के लिये प्रशिक्षण देकर तैयार करना। यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति की प्राथमिकता है।
- मानवीय गुणों के विकास के लिये शिक्षा में महत्व दिया जाता है ताकि आत्मानुभूति का विकास किया जाये।
- सामाजिक आवश्यकताओं के लिये नागरिकों को तैयार करना तथा सौंदर्यानुभूति मूल्यों का विकास करना।
- प्रमुख आवश्यकता आज जीवन जीने की है कि आज की परिस्थितियों में जीवित रह सकें। इसके लिये प्रशिक्षण दिया जाये।
- छात्रों को भावी जीवन के लिये तैयार कर सकें। शिक्षा भावी जीवन यापन के लिये दी जाती है।
फ्लिप्ड क्लासरूम शिक्षण विधि के क्षेत्र (Scope of Flipped Classroom Teaching Method)
1. शिक्षा के उद्देश्य की प्राप्ति:- शिक्षा की व्यवस्था पलटी कक्षा के पलटी कक्षा पाठ्यक्रम पर आधारित होती है। जब तक पाठ्यक्रम का सही नियोजन नहीं किया जाता तब तक शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं हो सकती क्योंकि पाठ्यक्रम का स्वरूप शिक्षा के उद्देश्यों के अनुसार निर्मित होता है।
2. शिक्षा प्रक्रिया का व्यवस्थीकरण:- पलटी कक्षा का पाठ्यक्रम एक ऐसा लेखा-जोखा है, जिससे यह स्पष्ट रूप से अंकित किया जाता है कि शिक्षा के किस जीवन स्तर पर विद्यालयों में कौन-सी क्रियाओं की तथा कौन से विषयों की शिक्षा दी जाएगी। इस प्रकार पाठ्यक्रम विद्यालयी कार्यक्रम की रूप-रेखा बनाता है अथवा शिक्षा की प्रक्रिया को व्यवस्थित करता है।
3. क्या और कैसा ज्ञान:- पलटी कक्षा पाठ्यक्रम अध्यापकों के लिए अत्यन्त उपयोगी है। बिना इसके वे यह नहीं जान सकते हैं कि उन्हें क्या और कितना ज्ञान बालकों को देना है? पाठ्यक्रम के आधार पर ही वे ठीक प्रकार से काम करते हैं और उन्हें यह मालूम रहता है कि एक निश्चित अवधि के अन्दर उन्हें यह मालूम रहता है कि एक निश्चित अवधि के अर उन्हें अमुक कक्षा में कितना कार्य समाप्त करना है।
4. समय एवं शक्ति का प्रयोग:- पलटी कक्षा के पाठ्यक्रम से अध्यापकों को यह ज्ञात रहता है कि उन्हें क्या सिखाना है और कितने समय में सिखाना है? इसी प्रकार छात्रों को भी यह ज्ञान रहता है कि उन्हें क्या सीखना है और कितने समय में सीखना है। इस प्रकार शिक्षा और छात्र दोनों ही एक निश्चित समय के अन्दर कार्य पूरा करते हैं। अतः इसके द्वारा समय एवं शक्ति का सदुपयोग होता है।
5. ज्ञानोपार्जन:- ज्ञानोपार्जन करने में पलटी कक्षा का पाठ्यक्रम बालकों की सहायता करता है। यह सही है कि ज्ञान एक है, परन्तु मनुष्य ने अपनी सुविधा के लिए उसके बाद भाग कर लिए हैं, जैसे—साहित्य, गणित, विज्ञान सामाजिक विषय इत्यादि। ज्ञान के इन विभिन्न भागों के ज्ञानार्थ पाठ्यक्रम की रचना की जाती है।
6. चारित्रिक विकास:- चारित्रिक विकास की दृष्टि से शिक्षा इस बात पर बल देती है कि बालकों के अन्दर मानवीय गुण; जैसे— सत्य, सेवा, त्याग, परोपकार, सद्भावना इत्यादि उत्पन्न किये जाएं। यह कार्य पाठ्यक्रम के द्वारा ही पूर्ण होता है। इन गुणों को विकसित करके इन्हों के अनुसार बालकों से आचरण करवाना पाठ्यक्रम का उद्देश्य है।
7. चरित्र का विकास:- बालकों के व्यक्तित्व के विकास की दृष्टि से भी पाठ्यक्रम एक उपयोगी वस्तु है। बालक के नैसर्गिक गुणों तथा शक्तियों को समुचित तथा उपयुक्त दिशा मे विकसित करना पाठ्यक्रम का हो कार्य है। बिना नैसर्गिक गुणों एवं शक्तियों के विकास के व्यक्ति का समुचित विकास सम्भव नहीं है।
8. पाठ्य पुस्तकों का निर्माण:- पलटी कक्षा के पाठ्यक्रम के आधार पर हो पाठ्यपुस्तकों की रचना की जाती है। पाठ्य पुस्तकों में वही सामग्री रखी जाती है जो किसी स्तर के पाठ्यक्रम के अनुकूल हो। पाठ्यक्रम न होने पर पुस्तकों में अनावश्यक बातें भी सम्मिलित हो सकती है। पाठ्यक्रम इस स्थिति से हमारी रक्षा करता है।
9. मूल्यांकन में सरलता:- किसी कक्षा स्तर के पाठ्यक्रम के आधार पर ही उस कक्षा के छात्रों की योग्यता का मूल्यांकन सम्भव होता है। पाठ्यक्रम के अभाव में मूल्यांकन कठिन होगा।