धैर्य कौशल अर्थ एवं बढ़ाने के उपाय | Patience Skill in hindi
धैर्य (Patience)
सहनशीलता को धृति या धैर्य कहा जाता है। विषम परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाने पर भी मन में चिन्ता, शोक और उदासी उत्पन्न न होने देने का गुण धैर्य है। धैर्य मनुष्य के व्यक्तित्व को ऊँचा उठाने का एक उत्तम गुण है। धैर्यवान व्यक्ति विपत्ति आने पर भी अपना मानसिक सन्तुलन बनाये रखता है और शान्तचित्त होकर इस पर नियन्त्रण करते हुए दुख से बचने का सरल मार्ग खोज लेता है।
धैर्य के गुण को प्राप्त करके मनुष्य में असाधारण सामर्थ्य आ जाती है। वह न केवल अपने लक्ष्य को अविचल रूप से प्राप्त करता जाता है, बल्कि दूसरों को उचित सलाह देने के लिए भी सदा तत्पर रहता है। गीता में मनुष्य के इस गुण को दैवीय सम्पदा बताया गया है। इस गुण के अभाव में मनुष्य अधार्मिक कामों या कुकर्मों में संलग्न हो सकता है। ऐसे में समाज में आसुरी वृत्ति बढ़ती जायेगी। समाज में मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए हमें धैर्यशाली बनना चाहिए।
मनुष्य को जीवन मार्ग पर चलते हुए अनेक कष्टों का सामना करना पड़ता है, अनेक संघर्ष करने पड़ते हैं, परन्तु इनका सामना धीरज रखकर ही किया जा सकता है। सामान्य परिस्थितियों में तो जीवन यथावत चलता रहता है, परन्तु धैर्य की परीक्षा विपत्ति आने पर ही होती है, इसलिए सन्त तुलसीदास ने उचित ही कहा है, धीरज, धर्म, मित्र और नारी यानी इन चारों को आपातकाल में परखना चाहिए। इसी तरह भर्तृहरि का कहना है कि चाहे नीति निपुण व्यक्ति हमारी निन्दा करें और चाहे स्तुति करें, लक्ष्मी यानी धन संपत्ति चाहे रहे या न रहे, आज ही मरना हो या चाहे एक युग के बाद मरना हो, लेकिन धीर पुरूष न्याय के रास्ते से विचलित नहीं होते हैं। धैर्य के गुण का महत्त्व जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में स्पष्ट रूप से महसूस किया जा सकता है।
धैर्य का महत्त्व (Importance of Patience)
लोग धैर्य के महत्त्व को, इसके जादुई करिश्मे को अच्छे से जानते हैं। वे प्रकृति के इस सिद्धान्त से अपने जीवन के सिद्धान्त निकालते हैं कि जो कुछ भी होता है, वह समय के अनुकूल हो होता है। गीदड़ की जल्दबाजी में कभी बेर नहीं पकते और यदि गीदड़ जल्दबाजी करेगा, तो निश्चित रूप से किसी न किसी के हाथों मारा जायेगा।
आपने महसूस किया होगा कि जैसे ही हमारा मन धैर्य की नीव पर टिक जाता है, वैसे हो उसका भटकाव खत्म हो जाता है कि हम जो अपना आन्तरिक सन्तुलन खोते हैं, वह इसलिए खोते है, क्योंकि हमारा मन भटक जाता है।
हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हमारे धैर्य का सीधा सम्बन्ध न केवल हृदय और मन से हो होता है, बल्कि हमारी चेतना से भी होता है। आपने महसूस किया होगा कि यदि आप हड़बड़ी में पढ़ाई करते हैं, तो चीजें अच्छी तरह समझ में नहीं आतीं। आपका अनुभव रहा होगा कि हड़बड़ी में किये गये काम अक्सर गड़बड़ा जाते हैं। धैर्य को खोने का अप्रत्यक्ष अर्थ तेज रफ्तार से देखना ही लगाया जाना चाहिए। यह वह तेज रफ्तार होती है, जिसके लायक हम नहीं होते। हमारी गति, हमारा शरीर हमारे मन, हमारा हृदय, हमारी चेतना और हमारी आत्मा, इन सभी का आपसी सन्तुलन गड़बड़ा जाता है और हम दौड़ते-दौड़ते गिर पड़ते हैं।
हो सकता है कि क्वांटिटी की दृष्टि से, आप थोड़े पिछड़ जाएं। हालाँकि ऐसा नहीं होगा। फिर भी चलिये एक बार मान लेते हैं कि आप संख्या की दृष्टि से थोड़े पिछड़ जायेंगे। लेकिन इस बात पर तनिक भी शक न करें कि गुणवत्ता की दृष्टि से आप हमेशा आगे रहेंगे। थोड़े समय के लिए तो संख्या की जय-जयकार हो जाती है, लेकिन यदि आपको यह जयजयकार लम्बे समय तक के लिए चाहिए, जीवन भर के लिए और यहाँ तक कि जीवन के बाद के लिए भी चाहिए तो आपको गुणवत्ता के लिए काम करना चाहिए और यह गुणवत्ता धैर्य के बिना नहीं आती।
धैर्य की शक्ति (Power of Patience)
धैर्य सफलता की कुंजी है धैर्य की शक्ति से हम जीवन में आये अवसर का लाभ उठा सकते हैं। अंडे को सेने से चूजा निकलता है, न कि अंडे को तोड़ने से।
धैर्य और परिश्रम से हम वह सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं, जो शक्ति और उतावलापन की स्थिति में कभी नहीं प्राप्त कर सकते। धैर्य धारण करने से हारी हुई बाजी भी जीती जा सकती है। विश्व में जितने भी महान आविष्कार हुए हैं वह बरसों से धैर्य का ही नतीजा है। जिस भी व्यक्ति में जितनी प्रतीक्षा करने की क्षमता है, उसकी कामनाओं की पूर्ति की सम्भावना भी उतनी हो प्रबल है।
यदि लगातार असफलता प्राप्त हो रही है तब भी धैर्य बनाये रखना चाहिए। कभी-कभी सफलता देर से मिलती है। पौधे की अपेक्षा पेड़ देर से तैयार होता है। जिस तरह एक विशाल पेड़ को तैयार होने में अधिक समय लगता है, ठीक उसी तरह हमारे लक्ष्य को भी पूरा होने में अधिक समय लगता है जीवन में धैर्य का परिचय न देने वाले लोगों को अन्त में पछतावे के अलावा और कुछ नहीं मिलता।
धैर्य की शक्ति बढ़ाने के उपाय (Mathods to increase Patience)
1. हमें पहले से यह सोचना चाहिए कि विपत्ति कितनी भी बड़ी क्यों न आ लाए लेकिन हमें घबराना नहीं चाहिए। विपत्ति कितनी भी बड़ी क्यों न हो वह स्थाई नहीं है। इस संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है। जो आज है कल नहीं रहेगा। रात अँधेरी है कितनी भी बड़ी रात क्यों न हो जाए सुबह अवश्य होगी। उजाला अवश्य होगा। हमेशा मन में विश्वास रखें धैर्य बनाये रखें। सब पार हो जाएगा, सब ठीक हो जाएगा, जैसे-किसी को कई-कई घंटे के लिए सफर करना है और गाड़ी में रिजवेंशन नहीं है। तब भी वह चला जाएगा, क्योंकि वह जानता है कि एक-दो घंटे का सफर है थोड़ी देर बाद पहुंच जाएँगे।
फिर आराम से रहेंगे। लेकिन यदि लंबी यात्रा हो एक-दो दिन का सफर हो और रिजर्वेशन नहीं हो और कोई कहे कि चलो, तब जाने में मन में भय लगेगा कितना लंबा सफर है। कब तक खड़े-खड़े जाएंगे। भय लगेगा। इसी तरह जीवन भी एक लंबा सफर है। इस जीवन के लंबे सफर में तमाम तरह की विपरीत परिस्थितियाँ आती हैं और चली जाती हैं। वह स्थायी नहीं रहती है हमें यह सोचकर धैर्य बनाये रखना चाहिए कि अब यदि मुश्किल है तो यह मुश्किलें दूर हो जाएँगी। यह अपने दिमाग में बिठा लेना है।
2. जीवन में जब भी कोई विपत्ति आये, धैर्य रखने के लिए पॉजिटिव सोचो जब विपत्ति आए तब यह सोचो कि विपत्ति नहीं आई है, यह मुझे एक सीख देने आई है। नुकसान में भी नसीहत बनी है, हमें यह मजबूती देगी। लोहे को आग में तपाने के बाद जब उस पर घन का प्रहार होता है। तभी उसको एक आकार मिलता है और उस लोहे की उपयोगिता बढ़ जाती है, उसकी कीमत बढ़ जाती है।
देखने में लगता है कि यह घन का प्रहार है। लेकिन वह प्रहार ही उसको एक आकार देता है और उसी में उस लोहे की उपयोगिता है। तुम पर समय के घन का जब भी प्रहार पड़े तब यह मत सोचो कि प्रहार पड़ा है। तब यह सोचो कि मुझे नया आकार मिल रहा है। मैं मजबूत हो रहा हूँ। विपत्ति के प्रहार को भी सहजता से सहने की क्षमता आप में आ सकती है।
ध्यान रखो कि हथौड़ी का प्रहार जब काँच पर पड़ता है तो यह बिखर जाता है, टूट जाता है। लेकिन वही प्रहार जब सोने पर पड़ता है तो सोना दमक उठता है। उसमें चमक आ जाती है। ज्ञानी जन कहते हैं कि विपत्ति का प्रहार जब तुम पर पड़े तो तुम काँच मत बनो, तुम सोना बनो सोने की तरह चमकने की कला सीखो।
अपने को मजबूत बनाओ, अपने इरादों को मजबूत बनाओ। भीतर से सकारात्मक होकर चलो जीवन में नया आनंद मिलेगा, विपत्ति में धैर्य और सकारात्मक सोच के बल पर व्यक्ति बहुत अच्छे से कर सकता है। नुकसान को भी नसीहत समझो, आपके अंदर यह कला है जरूरत है उसे विकसित करने की सकारात्मक सोच की।
3. आशावादी बनिए, अपने मन में हताशा को हावी न होने दो। यह कार्य आज नहीं हुआ है तो कल हो जाएगा, सब ठीक हो जाएगा ऐसा मन में विश्वास रखो।