Problem Solving Method of Teaching in hindi
समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method)
समस्या समाधान विधि के प्रबल समर्थकों में किलपैट्रिक और जान ड्यूवी का नाम उल्लेखनीय है। इन्होंने पाठशाला कार्य को इस तरह से व्यवस्थित करने का प्रयास किया जिससे छात्र वास्तविक समस्या का अनुभव करें और मानसिक स्तर पर उसका हल ढूंढने के लिए प्रेरित हों। हमारे जीवन में पग-पग पर समस्याओं का आना स्वाभाविक है और हम इनका तर्क युक्त समाधान भी ढूंढने का प्रयास करते हैं। यदि हम तर्क के साथ किसी समस्या के समाधान की दिशा में प्रयास करते हैं तो निश्चित ही हम किसी न किसी लक्ष्य पर पहुँचते हैं और समस्या का समाधान कर लेते हैं। तर्क पूर्ण ढंग से समस्या की रुकावटों को हल करते हुए किसी लक्ष्य को प्राप्त कर लेना ही समस्या समाधान विधि के अन्तर्गत आता है।
(i) लेविन ने समस्या समाधान को परिभाषित करते हुए लिखा है कि, "एक समस्यात्मक स्थिति, एक रचनाहीन या असंरचित जीवन स्थल क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती है।"
(ii) स्किनर के अनुसार, "समस्या समाधान किसी लक्ष्य की प्राप्ति में बाधा उपस्थित करने वाली कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की प्रक्रिया है। यह बाधाओं की स्थिति में सामंजस्य स्थापित करने की एक प्रक्रिया है।”
(iii) जॉन ड्यूवी के मतानुसार, "समस्या हल करना तर्कपूर्ण चिन्तन के ताने बाने से बुना हुआ है। समस्या लक्ष्य का निर्धारण कर देती है और लक्ष्य ही चिन्तन प्रक्रिया को नियन्त्रित करता है।"
(iv) रिस्क के अनुसार, "समस्या समाधान किसी कठिनाई या जटिलता का एक सन्तोषजनक हल प्राप्त करने के उद्देश्य से किया गया योजनाबद्ध कार्य है। इसमें मात्र तथ्यों का संग्रह करना या किसी विद्वान के विचारों की तर्क रहित स्वीकृति नहीं है बल्कि यह विचारशील चिन्तन प्रक्रिया है।"
उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि जब कोई व्यक्ति ज्ञान तथ्यों के आधार पर उद्देश्यों अथवा लक्ष्यों से भटक जाता है तो उसमें तनाव की स्थिति उत्पन्न होती है और यह तनाव तभी कम होता है जब इसका अन्त उस समस्या के समाधान के रूप में सामने आता है। लेविन की परिभाषा में जीवन स्थल शब्द का प्रयोग किया गया है। लेविन का जीवन स्थल से अभिप्राय व्यक्ति के चहुं ओर के वातावरण से है। इसी क्षेत्र में जब कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो व्यक्ति के सम्मुख समस्या उत्पन्न होती है और समस्या की कठिनाइयां उसे समस्या समाधान करने के लिए प्रेरित करती है। इस समाधान की स्थिति तक प्रयास करते हुए पहुँचना ही समस्या समाधान कहलाता है। शिक्षा के क्षेत्र में भी समस्या समाधान विधि के माध्यम से छात्रों को शिक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। छात्रों को शिक्षण सम्बन्धी विभिन्न समस्याओं का तर्कपूर्ण चिन्तन कर स्वयं ही इन समस्याओं का हल ढूंढने के लिए प्रेरित किया जाता है और उनकी शिक्षण प्रक्रिया आगे बढ़ती है।
समस्या समाधान विधि के सोपान (Steps in Problem Solving)
समस्या समाधान विधि के निम्न सोपान हैं-
1. चिन्ता:- समस्या समाधान विधि का प्रथम सोपान चिन्ता है। इस सोपान में किसी परिस्थिति को छात्रों के सम्मुख इस तरह से प्रस्तुत किया जाता है कि वे इसके प्रति कठिनाई महसूस करे और चिन्तित हो तथा उन्हें यह भी अहसास हो कि वह इस कठिनाई का हल किसी पूर्व निश्चित विधि के माध्यम से नहीं कर पायेगे। ऐसी स्थिति में वे इस समस्या या परिस्थिति को कठिनाइयों को हल करने के लिए प्रयास करेंगे। तर्कपूर्ण चिन्तन के लिए बाध्य होंगे।
2. परिभाषा:- समस्या समाधान विधि के इस दूसरे सोपान में समस्या से सम्बन्धित कठिनाई को परिभाषित किया जाता है और उसकी स्पष्ट रूप से व्याख्या की जाती है। प्रत्येक समस्या से जुड़ी हुई कई छोटी-छोटी समस्यायें भी होती हैं। इन समस्याओं को भी छात्रों को विस्तारपूर्वक समझाया जाता है और फिर उनके निराकरण को विधि भी निर्धारित कर दी जाती है। यही समस्या समाधान विधि का दूसरा सोपान समाप्त होता है।
3. निराकरण प्रयास:- समस्या समाधान का तीसरा सोपान समस्या के निराकरण के लिये किये गये प्रयासों का सोपान है। इसमें समस्या से सम्बन्धित तथ्यों का अध्ययन प्रयोग व विचार विमर्श किया जाता है। उनका वर्गीकरण एवं विश्लेषण कर समस्या को सुलझाने का प्रयास किया जाता है। पूर्व निश्चित सिद्धान्तों का भी पुनः निरीक्षण किया जाता है। इस दौरान विभिन्न प्रकार के उपकरणों और यन्त्रों आदि का भी सहारा लेना होता है। यदि समस्या का आकार बहुत बड़ा होता है तो उसे छोटे-छोटे भागों में विभक्त कर समस्या का समाधान करने का प्रयास किया जाता है।
4. अनुमान या उपकल्पना:- तीसरे सोपान में समस्या के समाधान से सम्बन्धित जिन तथ्यों को एकत्र किया जाता है इस सोपान में उनका विश्लेषण किया जाता है। इस क्रिया में कक्षा के सभी छात्र अपना-अपना सहयोग देते हैं। समस्या समाधान के बारे में एक उपकल्पना तैयार को जाती है और इस उपकल्पना को एकत्रित सभी प्रश्नों में से अधिकांश प्रश्नों की पुष्टि करती है। उसे ही अन्तिम स्वीकृति प्रदान कर दी जाती है और यह समझ लिया जाता है कि इसके माध्यम से ही समस्या का समाधान किया जाना सम्भव है। यही परिकल्पना कहलाती है। इसके पश्चात् इस उपकल्पना के माध्यम से समस्या का समाधान करने का प्रयास किया जाता है।
5. मूल्यांकन:- समस्या समाधान विधि के इस अन्तिम सोपान में निर्मित की गई उपकल्पना का पुनः प्रयोग करते हुए इसकी सत्यता को पुनः परखा जाता है। ऐसा करने के लिए इस उपकल्पना को अन्य सीखी हुई बातों के साथ सम्बन्धित किया जाता है और पूर्व अनुभवों के आधार पर इसकी सत्यता को आंका और जाँचा जाता है। इसके पश्चात् निर्णय की स्थिति आती है और समस्या का समाधान कर लिया जाता है।
ध्यान रहे कि इन पाँचों सोपानों में पहले चार सोपान आगमन विधि के है और पाँचवा और अन्तिम सौपान निगमन विधि का है। यह पाँचों पद एक दूसरे से पूरी तरह से गुथे हुए तथा सम्बन्धित होते हैं। इन्हें एक दूसरे से पृथक नहीं किया जा सकता।
समस्या समाधान विधि के प्रयोग में ध्यान देने योग्य बातें (Things to Note in Using Problem Solving Method)
समस्या समाधान विधि कक्षा शिक्षण में प्रयुक्त होने वाली सरल और स्वाभाविक विधि है। कक्षा में इस विधि का प्रयोग करते समय अध्यापक को निम्नलिखित बातो पर ध्यान देना चाहिये-
- तार्किक चिन्तन के लिये एक प्रेरक का होना आवश्यक है। क्योंकि बिना किसी प्रेरणा के छात्र समाधान के लिये प्रयास नहीं करेगा।
- स्वस्थ संकल्पना (Sound concepts) के आधार के रूप में बालक बाह्य संचार की वस्तुओं का ताजा ज्ञान अवश्य रखे। इनके अभाव में इनका प्रतिनिधित्व करने वाले उदाहरणों को सामने रखना चाहिये।
- इनके साथ-साथ बालक के शब्द-ज्ञान (भाषा-ज्ञान) का भी उत्तरोत्तर क्रमिक विकास होना चाहिये। चिन्तन के लिये भाषा एक आवश्यक तत्त्व है।
- तार्किक चिन्तन का बीज तत्त्व समझ या बुद्धि तत्त्व है जो कि बहुत कुछ जन्मजात सामान्य योग्यताओं पर निर्भर करती है।
- तार्किकता बहुत कुछ सम्बन्धित विषय-सामग्री के परिचय या जानकारी पर निर्भर करती है चाहे वह सूक्ष्म हो या स्थूल। इसलिये विशिष्ट विषय के लिये विशिष्ट प्रशिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिये। हम गणित या लैटिन में प्रशिक्षण देकर अर्थशास्त्र या सामाजिक समस्याओं के विषय में तर्क शक्ति का प्रशिक्षण नहीं दे सकते।
- कुछ तर्कशास्त्र या वैज्ञानिक विधियों के सामान्य सिद्धान्तों की जानकारी अवश्य करा देना चाहिये और विभिन्न की समस्याओं के लिये उसका उपयोग कराना चाहिए।
- मानवीय विचार का प्रत्येक विभाग अपना विशिष्ट चरित्र, भ्रांतियाँ एवं खतरा रखता है। गणित उच्चस्तरीय ज्ञान एवं प्रशिक्षण मनोविज्ञान और शिक्षा में तर्क की सफलता के लिये दावा नहीं कर सकता।
- विभिन्न प्रकार के तथ्यों (facts) को ढूंढ निकालने के लिये विशेष या ज्ञान होना आवश्यक है।
समस्या समाधान विधि के गुण (Properties of Problem Solving Method)
समस्या समाधान विधि के प्रमुख गुण निम्न प्रकार हैं-
- मनोवैज्ञानिक होने के साथ-साथ यह विधि पूर्ण रूप से वैज्ञानिक भी है। इस विधि में बालक वैज्ञानिक ढंग से ही ज्ञान को अर्जित करते हैं और शिक्षण सम्बन्धी सभी प्रक्रियायें वैज्ञानिक ढंग से सम्पन्न होती है।
- समस्या समाधान विधि द्वारा छात्रों की अनेक क्षमताओं एवं योग्यताओं का विकास सम्भव होता है।
- समस्या समाधान विधि छात्रों को क्रियायें करने के लिए प्रेरित करती है। समस्या स्वयं ही अपने आप में एक प्रेरक है। समस्या समाधान विधि छात्रों की समस्या का समाधान करने के लिए प्रेरित करती है।
- इस विधि में छात्रों एवं शिक्षक के बीच अधिक सम्पर्क होने के कारण छात्र और शिक्षक के व्यवहार सौहार्दपूर्ण तथा सामंजस्यपूर्ण बनते हैं और शिक्षकों के निर्देशन को वह सहर्ष स्वीकार करते हैं।
- समस्या समाधान विधि एक लचीली विधि है और इसका प्रयोग किसी भी शिक्षण परिस्थिति में सरलतापूर्वक किया जा सकता है।
- समस्या समाधान विधि पूर्ण रूप से मनोवैज्ञानिक है।
- समस्या समाधान विधि पूर्ण रूप से प्रजातान्त्रिक है। इसमें छात्र स्वयं अपनी समस्याओं का हल ढूँढने का प्रयास करते हैं। जिस प्रकार प्रजातन्त्र में मानव व्यक्तित्व के विकास पर विशेष बल दिया जाता है ठीक उसी प्रकार इस विधि में भी छात्रों के व्यक्तित्व को समस्या समाधान की दिशा में विशेष महत्व दिया गया है।
- समस्याओं को हल करने के लिए छात्रों को समस्या से सम्बन्धित सामग्री को एकत्र करने के लिए प्रयास करने पड़ते हैं, तर्क वितर्क करना पड़ता है, चिन्तन करना पड़ता है जिससे छात्रों का मानसिक विकास सम्भव होता है।
- समस्या समाधान विधि तर्क एवं आलोचना के द्वार खोलती है जिससे चालकों की मानसिक शक्तियों का विकास सम्भव होता है।
- इस विधि द्वारा चूंकि बालकों को समस्या का समाधान अपने प्रयासों से स्वयं हो खोजना होता है अतः छात्र अधिक से अधिक प्रयास कर अध्ययन कर वार्तालाप के माध्यम से समस्या का समाधान करने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं जिससे उनमें परिश्रम की आदत का विकास होता है और रचनात्मक प्रवृत्ति विकसित होती है।
समस्या समाधान विधि के दोष (Defects of Problem Solving Method)
- इस विधि से शिक्षण प्रक्रिया को चलाने के लिए अधिक समय की आवश्यकता होती है। धीमी गति के कारण निर्धारित पाठ्यक्रम वर्ष भर में पूरे नहीं हो पाते। जो ज्ञान शिक्षक परम्परागत शिक्षण विधियों से 1 वर्ष में दे पाते हैं वह इस विधि द्वारा दिया जाना सम्भव नहीं है।
- इस विधि द्वारा छात्रों की सभी मानसिक एवं शारीरिक शक्तियों का विकास किया जाना सम्भव नहीं है। इसी कारण इस विधि को एकागी विधि स्वीकार किया गया है।
- यह विधि छोटे बच्चों के शिक्षण के लिए बिल्कुल भी उपयोगी नहीं है। इस विधि में चूंकि तर्क पर विशेष बल दिया गया है और छोटे बच्चों द्वारा तर्क के माध्यम से अधिगम प्रक्रिया सम्भव नहीं है।
- समस्या समाधान विधि अरुचिपूर्ण विधि है। इस विधि से शिक्षण की प्रक्रिया नीरस हो जाती है।
- इस विधि से शिक्षण का संचालन करने के लिए योग्य शिक्षकों को बहुत आवश्यकता है। योग्य शिक्षकों के अभाव में यह विधि सफलतापूर्वक अपनायी नहीं जा सकती।
समस्या समाधान विधि में शिक्षक का स्थान (Teacher's Place in Problem Solving Method)
इस विधि के छात्र केन्द्रित होने के कारण और छात्रों के व्यक्तिगत कार्यों पर अधिक बल दिया गया है। इस कारण अक्सर यह भ्रान्ति हो जाती है कि इस विधि में शिक्षकों की कोई विशेष भूमिका नहीं है। किन्तु यह सोच बिल्कुल निरर्थक और सही नहीं है। वास्तव में शिक्षक शिक्षण प्रक्रिया की वह महत्वपूर्ण कड़ी है जिसके अभाव में शिक्षण प्रक्रिया का समपन्न होना सम्भव नहीं है। इस विधि में भी शिक्षक का महत्वपूर्ण स्थान है। यह शिक्षक ही है जो समस्याओं को प्रभावपूर्ण ढंग से छात्रों के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं और ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न करते हैं जिनमें छात्र इस समस्या के समाधान के लिए प्रेरित हो तथा बाध्य हो। शिक्षक को हर कदम पर यह भी ध्यान रखना होता है कि छात्रों की रुचि इसमें बनी रहे। समस्या से सम्बन्धित सामग्री को एकत्रित करते समय भी छात्रों को शिक्षक के निर्देशन की आवश्यकता होती है।
शिक्षक के निर्देशन के अभाव में छात्र अनुपयुक्त सामग्री का संग्रह कर बैठते हैं जो किसी भी प्रकार से समस्या के समाधान में सहायक नहीं होती। छात्रों को अनुमानों के आधार पर शीघ्र ही निष्कर्षो पर पहुंचने से बचाना भी शिक्षक का ही दायित्व होता है। शिक्षक को इस बात का पूर्ण रूप से निरीक्षण करना होता है कि छात्र सही दिशा में कार्यरत हैं और यदि उनकी दिशा गलत है तो शिक्षक को छात्रों का मार्गदर्शन करना होता है। संक्षेप में कदम-कदम पर शिक्षक का निर्देशन छात्रों के लिए बहुत आवश्यक है। अतः कहा जा सकता है कि यह सोचना कि समस्या समाधान विधि में शिक्षक का कोई महत्व एवं भूमिका नहीं है एक गलत धारणा ही है।