व्यावसायिकता कौशल का अर्थ | Professionalism skill in hindi
व्यावसायिकता (Professionalism)
हर कोई दिनों-दिन 'व्यावसायिक' बनना चाहता है या व्यावसायिक रूप से प्रबन्धित संगठन में काम करना चाहता है जबकि व्यावसायिक होना एक गुण है, जो वास्तव में एक पेशेवर होने से निहित है, अक्सर व्यक्तियों और कम्पनियों में कमी पायी जाती है। वास्तव में, कुछ परिवार के स्वामित्व वाली कम्पनियों में हमारे तथाकथित पेशेवर प्रबन्धित कम्पनियों की तुलना में उच्च पेशेवर मानक हैं। बहुत से लोग अभी भी सोचते हैं कि एक डिग्री प्राप्त करके एक पेशेवर बन सकता है और कई कम्पनियों को गलत धारणा है कि वे एक निश्चित संख्या में एमबीए और सीए की भर्ती करके पेशेवर होने का दावा कर सकते हैं।
'व्यावसायिक' शब्द दो अर्थों में प्रयुक्त होता है, जो हमारे काम करने के तरीके से जुड़े हुए है। एक ऐसी चीज जो नौकरी या पेशे से सम्बन्धित है। दूसरे का मतलब अच्छी तरह से प्रशिक्षित या एक व्यक्ति जो किसी के काम में अच्छा है। एक व्यावसायिक होने के लिए इसका मतलब है कि एक व्यक्ति अपनी नौकरी में अच्छा है और उस पर निर्भर किया जा सकता है।
व्यावसायिकता के सन्दर्भ में व्यावसायिक शिक्षा (Vocational Education in the Context of Professionalism)
सामान्यतः शिक्षा को व्यावसायिक के साथ जोड़ना ही व्यावसायिक शिक्षा कहलाती है परन्तु वास्तव में इसका अर्थ इससे अधिक व्यापक है। व्यावसायिक शिक्षा छात्रों को व्यवसाय चुनने एवं व्यवसाय सम्बन्धित योग्यता प्राप्त कराने का अवसर प्रदान करती हैं। व्यावसायिक शिक्षा की शुरुआत राष्ट्रीय शिक्षा आयोग 1964-66 के सुझावों द्वारा हुई। जिस आधार पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 ने अपनी मंजूरी प्रदान की और यह शिक्षा का एक माध्यम बन गयी। इसके आधार पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 ने 1995 तक +2 कक्षा के 25% छात्रों को व्यावसायिक शिक्षा से जोड़ने का लक्ष्य निर्धारित किया। व्यावसायिक शिक्षा का विस्तार करने हेतु इसे दूरस्थ शिक्षा में भी सम्मिलित किया गया।
व्यावसायिक शिक्षा क्या है? (What is Vocational Education)
भारत देश में छात्रों को व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने के लिए एक परिषद् के निर्माण की बात कही गयी जो व्यावसायिक शिक्षा के क्रियान्वयन एवं नीति निर्माण की योजना बनाएँ। इसी बात को ध्यान में रखते हुए केन्द्र सरकार द्वारा संयुक्त व्यावसायिक शिक्षा परिषद् (JCVE) की स्थापना की गयी। यह परिषद् व्यावसायिक पाठ्यक्रम के निर्माण हेतु नीति का निर्माण करती हैं और उसके क्रियान्वयन हेतु विद्यालयों को मंजूरी प्रदान करती है।
व्यावसायिक शिक्षा की विशेषताएँ (Features of Vocational Education)
- यह छात्रों को समाज से जोड़ने और सामाजिक कार्यों में योगदान देने हेतु तैयार करती हैं।
- यह छात्रों को जीविकोपार्जन बनाने हेतु उनमें व्यावसायिक कौशल की प्रवृत्ति का विकास करती है।
- इसके द्वारा छात्रों को विद्यालयों में क्रियाशील रखा जाता है और इससे उनका शारीरिक विकास तीव्र गति से होता है।
- इससे वह अपने सामाजिक एवं पारिवारिक उत्तरदायित्वों से परिचित हो जाते हैं।
- व्यावसायिक शिक्षा द्वारा शिक्षा के वास्तविक उद्देश्यों को मूर्त रूप प्रदान किया जाता है।
व्यावसायिक शिक्षा के उद्देश्य और लक्ष्य (Objectives and Aims of Vocational Education)
- छात्रों को व्यवसायपरख बनाना जिससे वह समाज में सम्मानपूर्वक रहने योग्य बन सकें।
- छात्रों में जीविकोपार्जन करने की दक्षता का विकास करना जिससे वह अपने पारिवारिक उत्तरदायित्वों का भली-भाँति निर्वहन कर सकें।
- राष्ट्र का विकास करना और सामाजिक परिवर्तनों को सही दिशा प्रदान करना।
- राष्ट्रीय आर्थिक संरचना को मजबूती प्रदान करना और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करना।
- शिक्षा के विस्तार को बढ़ावा देना।
व्यावसायिक शिक्षा की आवश्यकता और महत्त्व (Need and Importance of Vocational Education)
किसी देश के विकास में उस देश की शैक्षिक व्यवस्था का बहुत अत्यधिक महत्त्व होता है और अगर उस शिक्षा का मुख्य उद्देश्य छात्रों को व्यवसाय दिलाना और उनको जीविकोपार्जन योग्य बनाना हो तो उस देश का विकास निश्चित होता है। शिक्षा अपने वास्तविक उद्देश्यों और लक्ष्यों की प्राप्ति तभी कर सकती है जब वह शिक्षा व्यावसायिक शिक्षा हो। वर्तमान में शिक्षा की घटती गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए जरूरी है कि शिक्षा को पूर्णतः व्यावसायिक शिक्षा में परिवर्तित किया जाए।
व्यावसायिक शिक्षा छात्रों को व्यवसाय चुनने में ही सहायक नहीं है अपितु इसके द्वारा छात्रों का सर्वांगीण विकास भी किया जाता है। आधुनिक युग में बढ़ती जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक है कि शिक्षा को छात्रों के अनुरूप बनाया जाए जिससे वह अपने वास्तविक उद्देश्यों की प्राप्ति कर सकें।
व्यावसायिक अर्थशास्त्री के कार्य (Functions of Business Economist)
व्यावसायिक अर्थशास्त्री किसी व्यावसायिक संस्था का एक महत्त्वपूर्ण अधिकारी होता है। उसके प्रमुख कार्य निम्न प्रकार हैं—
(1) निर्णयन से सहायता करना:- व्यावसायिक इकाइयों के अधिकतर निर्णय अनिश्चितता के वातावरण में लिये जाते हैं। ये निर्णय सही एवं समय पर हों, इसके लिये आवश्यक व्यवस्था करना व्यावसायिक अर्थशास्त्री का कार्य है। उसके इस कार्य को दो भागों में बाँटा जा सकता है-
(अ) बौद्धिक कार्य:- इस कार्य के अन्तर्गत निर्णय के क्षेत्रों की पहचान, उसके सम्बन्ध में आवश्यक तत्वों का निर्धारण व वैकल्पिक निर्णयों की खोज आते हैं। इस प्रकार उसके इस कार्य की निम्न तीन अवस्थायें हैं—
- (i) प्रत्यक्ष ज्ञान:- इसका आशय समस्या के सम्बन्ध में निर्णय की आवश्यकता और अवसर के सम्बन्ध में प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करने से है। इसमें समस्या ज्ञान, समस्या का विश्लेषण, समस्या का सरल रूप में प्रस्तुतीकरण और समस्या के हल के लिये उपयुक्त समय के निर्धारण आते हैं।
- (ii) संकल्पन:- इसके अन्तर्गत समस्या पर निर्णय के लिये विभिन्न विकल्पों के विकसित करने और उनका मूल्यांकन करने के कार्य आते हैं।
- (iii) खोज:- इस कार्य के अन्तर्गत समस्या के हल के लिये साधनों की खोज करना और इस सम्बन्ध में आने वाली रूकावटों का पता लगाना सम्मिलित है।
(ब) चयन कार्य:– समस्या के विश्लेषण, विकल्पों के विकास और उनके सम्बन्ध में आवश्यक तथ्यों को एकत्रित करने के पश्चात् एक व्यावसायिक अर्थशास्त्री को अपनी फर्म को परिस्थितियों के अनुरूप सर्वोत्तम विकल्प का चयन करना चाहिये। सर्वोत्तम विकल्प के चयन के लिये विभिन्न विकल्पों की तुलनात्मक लाभप्रदता, फर्म के वित्तीय साधन, सरकार, श्रम संघ तथा स्वयं फर्म की मनोवृत्तियों का मूल्यांकन करना चाहिये।
(2) भावी नियोजन में सहायता करना:- व्यावसायिक अर्थशास्त्री का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य फर्म की क्रियाओं के भावी नियोजन में प्रबन्ध की सहायता करना है। एक व्यावसायिक अर्थशास्त्री को अपनी फर्म के उद्देश्यों की पूर्ति और साधनों के सदुपयोग के लिये दीर्घकालीन योजनायें बनानी चाहिये तथा उपलब्ध अवसरों और बाहरी वातावरण के कारण उत्पन्न रूकावटों के अनुरूप अपने साधनों को समायोजित करने का प्रयास करना चाहिये। यदि बाद में उसे भावी नियोजन के सम्बन्ध में किसी त्रुटि का पता लगे तो उसे बिना समय गँवाये आवश्यक संशोधन करने चाहिये।
(3) प्रशासन सम्बन्धी कार्य:- एक व्यावसायिक अर्थशास्त्री संस्था का एक महत्त्वपूर्ण अधिकारी होता है। अत: उसे संगठन की संरचना में सुधार करने, अधिकार एवं दायित्वों से समन्वय लाने, प्रभावपूर्ण संवहन व्यवस्था विकसित करने तथा फर्म के संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग के लिये प्रबन्ध को सुझाव देना चाहिये।
(4) आर्थिक ज्ञान:- एक व्यावसायिक अर्थशास्त्री अपनी संस्था के प्रबन्ध को सामान्य हिन की आर्थिक सूचनायें (जैसे प्रतियोगियों के उत्पाद की किस्म व मूल्य, कर दरें, तटकर आदि) भी प्रदान करता है। यद्यपि अधिकतर आर्थिक सूचनाये पत्र-पत्रिकाओं व सरकारी अधिसूचनाओं में प्रकाशित होती हैं किन्तु इनका विश्लेषण करके प्रबन्ध को सूचित करने का कार्य व्यावसायिक अर्थशास्त्री का ही होता है।
(5) आर्थिक मामलों पर सार्वजनिक बहस में भाग लेना:- बहुत से योग्य और प्रख्यात व्यावसायिक अर्थशास्त्री आर्थिक मामलों पर सार्वजनिक बहस में भाग लेते हैं। सरकार व समाज दोनों ही ऐसे अर्थशास्त्रियों के विचारों व सुझावों से लाभान्वित होते हैं। वस्तुतः ऐसी बहसों में भाग लेने से एक व्यावसायिक अर्थशास्त्री को स्वयं अपने संगठन में मान्यता मिलती है और देश-विदेश के अपने विषय के विश्लेषण से उसका परिचय बढ़ता है। बहुत से व्यावसायिक अर्थशास्त्री अपनी संस्था के सर्वोच्च स्तर पर प्रबन्धकों के भाषण तैयार करने का भी कार्य करते हैं।
विशिष्ट कार्य (Specific Functions):– व्यावसायिक अर्थशास्त्री की महत्त्वपूर्ण भूमिका ज्ञान सर्वश्री के० जे० डब्लू० एलैक्जेण्डर और एलैक्जेण्डर जी० कैम्प द्वारा ब्रिटेन में किये गए सर्वेक्षण से होता है। उन्होंने उसके निम्न कार्यों पर बल दिया है-
- विक्रय पूर्वानुमान (Sales Forecasting),
- औद्योगिक बाजार शोध (Industrial Market Research),
- प्रतियोगी फर्मों का आर्थिक विश्लेषण (Economic Analysis of Competing Firms),
- उद्योग की मूल्य समस्यायें (Pricing Problems of Industry),
- पूँजीगत परियोजनायें (Capital Projects),
- उत्पादन कार्यक्रम बनाना (Production Programming),
- प्रतिभूति विनियोग विश्लेषण और पूर्वानुमान (Security/Investment Analysis and Forecasting),
- व्यापार और जन सम्पर्क सम्बन्धी सलाह देना (Advising on Trade and Public Relations),
- कच्चे माल के सम्बन्ध में सलाह देना (Advising on Primary Commodities).
- विदेशी विनिमय के सम्बन्ध में सलाह देता (Advising on Foreign Exchange),
- कृषि का आर्थिक विश्लेषण (Economic Analysis of Agriculture).
- अल्प-विकसित अर्थव्यवस्थाओं का विश्लेषण करना (Analysing Under developed Economics),
- वातावरण सम्बन्धी पूर्वानुमान लगाना (Environmental Forecasting)।
श्री एच० आई० एन्सोफ (H. I. Ansoff) ने व्यावसायिक अर्थशास्त्री के विशिष्ट कार्यों को निम्न तीन वर्गों में विभाजित किया है-
(1) व्यूह रचना सम्बन्धी कार्य:- यह व्यावसायिक अर्थशास्त्री का एक अति महत्त्वपूर्ण कार्य है इसके अन्तर्गत संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति, साधनों के उपयोग हेतु दीर्घकालीन योजनाओं का निर्माण तथा उपलब्ध अवसरों और बाह्य वातावरण के कारण उत्पन्न रूकावटों के अनुरूप अपने साधनों को समायोजित करने आदि कार्य सम्मिलित है।
(2) प्रशासनिक कार्य:— इन कार्यों के अन्तर्गत संगठन के ढाँचे में सुधार करने, अधिकार एवं उत्तरदायित्व में समन्वय, प्रभावपूर्ण संवहन व्यवस्था तथा साधनों को जुटाने से सम्बन्धित निर्णय लेने पड़ते है।
(3) कार्य संचालन सम्बन्धी कार्य:- इन कार्यों में कार्य करने वाले व्यक्तियों से सम्बन्धित दैनिक निर्णय सम्मिलित हैं। ये निर्णय दो प्रकार के होते हैं। पहले, दैनिक निर्णय होते हैं जो कि व्यवसाय की सामान्य प्रकृति में लिये जाते हैं तथा इसके लिये अधिक सोच-विचार की आवश्यकता नहीं होती है। दूसरे, आधारभूत निर्णय होते हैं जिनके लिये पर्याप्त सोच-विचार की आवश्यकता पड़ती है। इनके लिये बौद्धिक चातुर्य के प्रयोग द्वारा नये-नये सिद्धान्तों का प्रतिपादन करना पड़ता है।
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि एक व्यावसायिक अर्थशास्त्री का कार्य क्षेत्र पर्याप्त व्यापक है। फिर भी इनमें विक्रय पूर्वानुमान और औद्योगिक बाजार का अनुसन्धान अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। इसके लिये वह अपने पास समुचित सांख्यिकी अभिलेख तैयार करता है।
व्यावसायिक अर्थशास्त्री का उत्तरदायित्व (Responsibilities of Professional Economist)
एक व्यावसायिक अर्थशास्त्री की प्रबन्धकीय निर्णय व भावी नियोजन के सम्बन्ध में भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। किन्तु आज भी बहुत से लोग उसे व्यवसाय व उद्योगों में एक विलासिता समझते हैं। ऐसी परिस्थिति में सफलतापूर्वक अपनी भूमिका अंदा करने के लिये उसका यह कर्त्तव्य हो जाता है कि वह अपने उत्तरदायित्वों के प्रति सजग रहे। उसे अपना उत्तरदायित्व निभाने के लिये निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिये-
(1) निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति के लिये साधन जुटाना:- एक व्यावसायिक अर्थशास्त्री का पहला उत्तरदायित्व यह है कि वह संस्था के निर्धारित उद्देश्यों को पूरा करने के लिये समुचित साधनों की व्यवस्था करे ताकि निर्धारित समय के अन्तर्गत ही संस्था अपने लक्ष्य प्राप्त कर सके।
(2) विनियोजित पूँजी पर समुचित लाभ दर बनाये रखना:– व्यवसाय का प्रमुख उद्देश्य लाभ कमाना होता है। अतः एक व्यावसायिक अर्थशास्त्री का यह दायित्व हो जाता है कि वह अपनी संस्था के सर्वोच्च प्रबन्ध को ऐसे उपाय सुझाता रहे जिससे फर्म के लाभों में लगातार वृद्धि होती रहे। ऐसा करके ही वह संस्था में विनियोजित पूँजी पर समुचित लाभ-दर बनाये रख सकता है और उसमें वृद्धि ला सकता है। यदि वह इस दायित्व को निभाने में अक्षम है तो प्रबन्ध की दृष्टि में उसके शैक्षणिक ज्ञान, अनुभव व व्यवसाय कुशलता का महत्त्व घट जाता है।
(3) आर्थिक सूचना के स्त्रोतों का ज्ञान तथा विशेषज्ञों से सम्पर्क:- एक व्यावसायिक अर्थशास्त्री को ऐसे व्यक्तियों तथा संस्थाओं से अपने व्यक्तिगत सम्पर्क स्थापित करने चाहिये जहाँ से उसे अपने फर्म के क्रियाकलापों को प्रभावित करने वाली आर्थिक सूचनायें तुरन्त मिलती रहें। इस सम्पर्क के माध्यम से ही वह प्रबन्ध को समय पर आर्थिक सूचनायें दे सकता है। ध्यान रहे कि प्रबन्ध की दृष्टि में उसकी सफलता अपने व्यक्तिगत सम्बन्धों के आधार पर अति शीघ्र आवश्यक कठिन एवं गोपनीय सूचनायें ज्ञात करने में मानी जाती है, न कि दीर्घकालीन शोध और गहन आर्थिक विश्लेषण से प्राप्त सूचनाओं से।
एक व्यावसायिक अर्थशास्त्री का अपने विषय के विशेषज्ञों से अच्छा परिचय और उनकी विशिष्टताओं के सम्बन्ध में पूर्ण ज्ञान होना चाहिये जिससे कि आवश्यकता पड़ने पर वह अपनी संस्था को उनकी सेवाएं उपलब्ध करा सके। इसके लिये उसे विभिन्न व्यवसाय संघों तथा पेशेवर संस्थाओं का सक्रिय सदस्य होना चाहिये।
(4) सफल पूर्वानुमान:- एक व्यावसायिक अर्थशास्त्री की कुशलता उसके पूर्वानुमानों को शुद्धता में निहित है। भविष्य अनिश्चित होता है तथा इसके कारण व्यवसाय में जोखिम बढ़ जाता है। अतः एक व्यावसायिक अर्थशास्त्री का यह दायित्व हो जाता है कि वह व्यवसाय की भा क्रियाओं और उनके प्रभाव के सम्बन्ध में प्रबन्ध को अवगत कराये। उसे सर्वोत्तम सम्भव •पूर्वानुमानों द्वारा उनमें सुधार के प्रयत्नों द्वारा अनिश्चितताओं में निहित जोखिम को दूर करने अथवा न्यूनतम करने का प्रयत्न करना चाहिये। वस्तुतः इससे ही वह प्रबन्ध का विश्वास और लोकप्रियता प्राप्त कर सकता है। उसे व्यवसाय प्रवृत्तियों और व्यापार-चक्रों का विश्लेषण करके व्यवसाय की विभिन्न क्रियाओं के सम्बन्ध में सम्भावित परावर्तन बिन्दुओं (Turning Points) से प्रबन्ध को सजग कर देना चाहिये।
(5) पूर्वानुमान में त्रुटियों के लिये प्रबन्ध को सूचित करना:– व्यावसायिक क्रियाएँ अति चंचल होती है। अतः यदि पूर्वानुमान लगाने के पश्चात् आगे चलकर उसे अपने अनुमानों में किसी त्रुटि का पता लगे तो उसे इसकी सूचना तुरन्त ही प्रबन्ध को दे देनी चाहिये जिससे भावी नीतियो और कार्यक्रमों के आवश्यक समायोजन किये जा सकें। ऐसा करके वह संस्था को जोखिमों से बचाता हुआ कार्यदल (team) के सदस्य के रूप में स्वयं अपनी भी स्थिति सृदृढ़ बना सकता है।
(6) निर्णय प्रक्रिया सरल बनाना- प्रबन्ध को दिन:- प्रतिदिन अनेक निर्णय लेने होते हैं। अतः एक व्यावसायिक अर्थशास्त्री का यह कर्त्तव्य हो जाता है कि वह निर्णय प्रक्रिया को सरल बनाये जिससे प्रबन्ध शीघ्र एवं सही निर्णय ले सके।
(7) व्यवसाय टीम में अपनी पूर्ण प्रास्थिति अर्जित करना:- सफलतापूर्वक दायित्व निभाने के लिये व्यावसायिक अर्थशास्त्री को एक प्रबन्ध टीम में अपना उपयुक्त स्थान स्थापित करना चाहिये। उसकी सफलता इस बात से जानी जाती है कि वह अपने व्यावसायिक विचारों पर कहाँ तक सर्वोच्च प्रबन्ध का समर्थन प्राप्त कर पाता है। संस्था में विशिष्ट अध्ययन दलों, समितियों अथवा विशेष परियोजनाओं के सम्बन्ध में सौंपे गये विशेष कार्यभारों को लेने के लिये तैयार रहना चाहिये क्योंकि एक व्यावसायिक अर्थशास्त्री की प्रभावशीलता इस बात पर निर्भर करती है कि संस्था में उसके साधनों की कितनी आवश्यकता पड़ती है और उनका कहाँ तक उपयोग किया जाता है। प्रबन्धकीय संवहन में उसे तकनीकी भाषा का प्रयोग न करके सरल एवं बोधगम्य भाषा का प्रयोग करना चाहिये क्योंकि यह स्वाभाविक है कि जिन बातों को प्रबन्ध समझ नहीं सकता, उन्हें वह अस्वीकार कर देता है और इससे संस्था में उसका महत्त्व घट जाता है।
(8) प्रभावपूर्ण समन्वय:- एक व्यावसायिक अर्थशास्त्री का यह भी उत्तरदायित्व हो जाता है कि वह नीतियों के निर्धारण तक उनके क्रियान्वयन में समुचित ताल-मेल बिठाये। इसके लिये उसे प्रभावपूर्ण समन्वय प्रणालियों को अपनाना चाहिये।
(9) निर्णयों का क्रियान्वयन:– किसी समस्या के हल के लिये किये गये प्रबन्धकीय निर्णयों को क्रियान्वित करने का उत्तरदायित्व भी व्यावसायिक अर्थशास्त्री का होता है।
(10) प्रतिपुष्टि तथा नियंत्रण:- प्रबन्धकीय निर्णयों के क्रियान्वयन में एक व्यावसायिक अर्थशास्त्री का यह उत्तरदायित्व हो जाता है कि वह उन निर्णयों के प्रभावों का मूल्यांकन करे तथा सूचनाओं तथा समंकों के माध्यम से उन पर पूर्ण नियन्त्रण करके निर्णयन प्रक्रिया को प्रभावी बनाये रखे।
व्यावसायिक अर्थशास्त्री के कर्त्तव्य (Duties of Professional Economist)
एक व्यावसायिक अर्थशास्त्री का प्रमुख कर्त्तव्य उपर्युक्त वर्णित दायित्वों को निभाना है। कर्तव्य आदर्श है और उत्तरदायित्व इसका व्यावहारिक पक्ष है। अत: उत्तरदायित्वों में विवेचित सभी बातें कर्त्तव्यों में भी दी जा सकती हैं। विभिन्न पक्षों के प्रति उसके कर्त्तव्यों का विवेचन निम्न प्रकार किया जा सकता है–
(अ) प्रबन्ध के प्रति कर्त्तव्य:- एक व्यावसायिक अर्थशास्त्री का प्रमुख कर्त्तव्य यह है कि वह अपने प्रबन्धको को निर्णय लेने व भावी नियोजन में सहायता करे। इस सम्बन्ध में उसके कर्तव्य निम्नलिखित हैं—
- व्यूह रचना सम्बन्धी निर्णयों में सहायता
- प्रशासनिक मामलों पर निर्णयों में सहायता
- कार्य संचालन सम्बन्धी निर्णयों में सहायता
- मूल्य नीति के निर्धारण में सहायता
- भावी नियोजन में सहायता
- विकास एवं सुधार में सहायता
- अनिश्चितताओं को दूर करने अथवा कम करने में सहायता
- परिवर्तन का सामना करने की क्षमता विकसित करने में सहायता
- प्रबन्ध में भविष्य के प्रति विचार करने की मनोवृत्ति को जागृत करना
- कार्य संचालन की कुशल पद्धतियों के विकास में सहायता
- लक्ष्यों को पूरा करने के लिये साधन जुटाने में सहायता
- आर्थिक मामलों पर प्रवन्धकों के भाषण तैयार करने में सहायता
(ब) समाज व राष्ट्र के प्रति कर्त्तव्य:- एक व्यावसायिक अर्थशास्त्री का यह भी कर्त्तव्य है। कि वह समाज व देश के प्रति अपने दायित्व के सम्बन्ध सजग रखे। इस सम्बन्ध में उसके प्रमुख कर्तव्य निम्नलिखित हैं-
- कर्मचारियों के लाभ एवं कल्याण की योजनायें बनाना और प्रबन्ध से उनकी स्वीकृति प्राप्त करना।
- प्रेरणात्मक मजदूरी पद्धतियों को लागू करने में सहायता ।
- मालिकों व कर्मचारियों के बीच अच्छे सम्बन्ध विकसित करना।
- बाजार में माल को सतत् पूर्ति बनाये रखना।
- काला बाजारी रोकने में सरकार की सहायता करना।
- रोजगार के अवसर बढ़ाने वाली योजनाओं को प्रोत्साहन देना।
- आर्थिक विकास में सरकार की सहायता करना।
- आर्थिक समस्याओं पर अपने विचार रखना व सुझाव देना।
- करों की चोरी रोकने में सरकार की सहायता करना।
- आर्थिक साधनों के कुशलतम विदोहन में सहायता करना।