Ryan's Theory of Teacher Behaviour in hindi
शिक्षक व्यवहार (Teacher Behavior)
शिक्षक विभिन्न परिस्थितियों में तथा विभिन्न सन्दर्भों में अनेक प्रकार के कार्य करता है। वह स्कूल की विभिन्न क्रियाओं में भाग लेता है। शिक्षक की इन सभी क्रियाओं को एक सामान्य वर्ग शिक्षक व्यवहार में रखा जा सकता है, परन्तु विभिन्न शोध-प्रबन्धों में शिक्षक व्यवहार से जो तात्पर्य लिया गया है वह इससे भिन्न है।
रेयन्स (1970) के अनुसार, शिक्षक व्यवहार से तात्पर्य व्यक्ति की उन सभी क्रियाओं तथा व्यवहार से है, जो किसी शिक्षक के करने योग्य मानी जाती है। विशेष रूप से वे क्रियाएँ हैं जो दूसरों के सीखने में निर्देशन एवं मार्गदर्शन से सम्बन्धित है।
कक्षा में शिक्षण के अन्तर्गत शिक्षक छात्रों का अवलोकन करता है, उनकी भावनाओं की अनुभूति करता है तथा अधिकाधिक समझने का प्रयास करता है, विषय-वस्तु को छात्रों के सम्मुख प्रस्तुत करता है, उसका विश्लेषण करता है तथा व्याख्या करता है। इन सभी शिक्षण क्रियाओं में भाषा का प्रयोग करना पड़ता है। अतः शिक्षण मुख्यतः एक शाब्दिक व्यवहार होता है। यद्यपि शिक्षक के चेहरे के हाव-भाव, शारीरिक क्रियाये आदि जैसे अशाब्दिक व्यवहार भी कक्षा में होते हैं, परन्तु निरीक्षणों से यह पता चलता है कि कक्षा शिक्षण में शाब्दिक व्यवहार को ही प्रधानता दी जाती है।
अध्यापक:- शिक्षा के कार्यक्रमों का लक्ष्य प्रभावशाली अध्यापक तैयार करना है। प्रभावशाली अध्यापक जन्मजात होते हैं तथा प्रशिक्षण द्वारा तैयार भी किये जाते हैं। अध्यापक शिक्षा एवं विकास प्रणाली है जिससे प्रभावशाली अध्यापक तैयार किये जाते हैं। अध्यापक तैयार करने की प्रयोगशाला विद्यालय को माना जाता है और विद्यालय की कक्षा कार्यशाला है। इस कार्यशाला (कक्षा) में विकास की क्रियाओं का संचालन किया जाता है। इन कक्षाओं की प्रमुख क्रिया शिक्षण होती है। जब छात्र अध्यापको को मुख्य शिक्षण अभ्यास का अवसर दिया जाता है। तब उसे 'छात्र शिक्षण' कहते हैं। छात्र शिक्षण का मुख्य उद्देश्य शिक्षण कौशल एवं सक्षमताओं का विकास करना है। छात्र-अध्यापक में तीन प्रकार के कौशलों का विकास किया जाता है, यह कौशल इस प्रकार हैं-
- भाषीय कौशल
- शिक्षण कौशल
- सामाजिक कौशल
छात्र:- शिक्षण में उपरोक्त कौशलों के विकास हेतु आयामों, पृष्ठपोषण प्रविधियों का उपयोग किया जाता है। छात्र शिक्षण के विकास का क्षेत्र अधिक है। यहाँ पर अध्यापक के प्रमुख गुणों, कौशलो एवं सक्षमताओं की सूची दी गई है।
- अध्यापक को अपने शिक्षण कार्य की प्रतिबद्धता होनी चाहिए तथा शिक्षण में रूचि लेनी चाहिए और तल्लीन होकर पढ़ना चाहिए।
- अध्यापक को विद्यालय के प्रबन्धन तथा प्रशासनिक कार्यों में रूचि लेनी चाहिए तथा सहयोग करना चाहिए।
शिक्षक व्यवहार का सिद्धान्त (Theory of Teacher Behavior)
रेयॉन (1970) ने शिक्षक-व्यवहार की जो परिभाषा दी है, उसके दो प्रमुख अभ्युगम हैं-
1. शिक्षक व्यवहार सामाजिक व्यवहार है:- रेयान्स के अनुसार, शिक्षक व्यवहार एक सामाजिक व्यवहार है अर्थात् शिक्षण प्रक्रिया में सिखाने वाले (शिक्षक) के अतिरिक्त सीखने वाले (छात्र) का उपस्थित होना आवश्यक है जिसके साथ शिक्षक संप्रेरेष संप्रेषण क्रिया करता है और छात्रों को प्रभावित करता है। शिक्षक–छात्र के मध्य व्यवहार पारस्परिक होता है। अतः न केवल शिक्षक ही छात्रों के व्यवहार को प्रभावित करता है, बल्कि छात्र भी शिक्षक व्यवहार को प्रभावित करते है।
2. शिक्षक व्यवहार सापेक्षित है:- शिक्षक कक्षा में जो कुछ भी करता है, सामाजिक परिस्थिति का परिणाम है जिसमें शिक्षक पढ़ाता है। शिक्षक का व्यवहार अच्छा या बुरा, सही या गलत, प्रभावशाली या प्रभावहीन, इस बात पर निर्भर करता है कि शिक्षक का व्यवहार, छात्र उपलब्धि का प्रकार, अपेक्षित शिक्षण विधियां किस सीमा तक उस संस्कृति के मूल्यों के साथ अनुरूपता रखती हैं, जिसमें वह रहता है तथा जिसके लिए वह भावी पीढ़ो को तैयार कर रहा है।
शिक्षक व्यवहार सिद्धान्त की मूलभूत अवधारणाएँ (Basic Concepts of Teacher Behavior Theory)
1. शिक्षक व्यवहार परिस्थिति:- जन्य तत्त्वों तथा शिक्षक की वैयक्तिगत विशेषताओं का कार्यकारी रूप है। शिक्षक का व्यवहार जो कुछ भी होता है। उस पर परिस्थितियों तथा शिक्षण की वैयक्तिक विशेषताओं का प्रभाव पड़ता है तथा इन दोनों के पारस्परिक क्रिया-प्रतिक्रिया का परिणाम ही शिक्षक व्यवहार कहलाता है।
2. शिक्षण व्यवहार का निरीक्षण किया जा सकता है:- जब शिक्षक व्यवहार के अध्ययन की बात सोचते हैं और फिर अध्ययन करने का प्रयास करते हैं तो यह मानकर चलते हैं कि शिक्षक व्यवहार का वस्तुनिष्ठ अध्ययन या तो प्रत्यक्ष निरीक्षण के द्वारा अथवा अप्रत्यक्ष साधनों द्वारा (जो शिक्षक व्यवहार से सम्बन्धित है) किया जा सकता है। अप्रत्यक्ष साधन है छात्र-व्यवहार का मूल्यांकन, शिक्षक की क्षमता व ज्ञान परीक्षणों का प्रयोग, साक्षात्कार, रूचि, अभिरूचि आदि।
कक्षागत व्यवहार के प्रकार (Types of Classroom Behavior)
कक्षा में सामान्य दो प्रकार के व्यवहार देखने को मिलते हैं- 1. शाब्दिक व्यवहार तथा 2. अशाब्दिक व्यवहार
1. शाब्दिक व्यवहार (Verbal Behavior)
कक्षा में जब शिक्षक तथा छात्र बोलकर अपने आदान-प्रदान करते हैं तो इस व्यवहार को शाब्दिक व्यवहार कहते हैं। इसमें अभिरूचि का माध्यम मौखिक, लिखित तथा प्रतीकात्मक होता है।
शिक्षक का शाब्दिक व्यवहार एक विशेष कक्षा-वातावरण का निर्माण करता है। यह छात्रों द्वारा स्वतंत्रतापूर्वक होने वाली प्रतिक्रियाओं को प्रोत्साहित करने वाला या हतोत्साहित करने वाला होता है। शिक्षक छात्रों को कक्षा में किस मात्रा में स्वतंत्रता प्रदान करता है। इस आधार पर भी शिक्षक के शाब्दिक व्यवहार को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-
(i) प्रत्यक्ष शाब्दिक व्यवहार:- प्रत्यक्ष शाब्दिक व्यवहार वह व्यवहार है जिसमें शिक्षक कक्षा में अपना प्रभाव व प्रभुत्व स्थापित करने की चेष्टा करता है, छात्रों के विचारों व व्यवहारों की आलोचना करता है, कक्षा में छात्रों की स्वतंत्रतापूर्वक बोलने का अवसर प्रदान नहीं करता है। इसी सम्बन्ध में कुछ शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षक को प्रभुत्ववादी कहा है।
कोगन (1956) के अनुसार प्रत्यक्ष व्यवहार वाले शिक्षक असामाजिक, अधीर, स्वकेन्द्रित, अग्र, दम्भी, विद्वेषी मनोवृत्ति के होते हैं। वे छात्रों के प्रति सहानुभूति व्यवहार नहीं अपनाते। कुरैशी तथा हुसैन (1972) ने इस प्रकार के शिक्षकों में अनेक विशेषताओं को बताया है- सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में वह छात्रों को भाग लेने से रोकता है।
इस प्रकार के व्यवहार में छात्रों की वैयक्तिक भिन्नता के मनोवैज्ञानिक तथ्य को स्वीकार नहीं किया जाता है। इस प्रकार छात्रों की इच्छा, स्तर, मूल्य, उद्देश्य, निर्णय, कल्याण के लिए कोई स्थान नहीं होता है। परिणामस्वरूप छात्रों के विकास एवं शैक्षिक उपलब्धि में बाधा उपस्थित होती है। एन्डरसन (1930) के अनुसार अधिक प्रभुत्ववादी शिक्षक के छात्रों में शिक्षक प्रभुत्व के प्रति विरोधी व्यवहार की आवृत्ति अधिक होती है।
(ii) अप्रत्यक्ष शाब्दिक व्यवहार:- जब शिक्षक छात्रों को कार्य करने की, उन्हें विचारों को अभिव्यक्त करने की स्वतन्त्रता प्रदान करता है तो इस प्रकार के व्यवहार का अप्रत्यक्ष व्यवहार की संज्ञा दी जाती है। शिक्षक छात्रों के विचारों को स्वीकार करता है तथा उनका स्पष्टीकरण करता है। वह अपने विचारों को मानने के लिए छात्रों को बाध्य नहीं करता। फ्लैण्डर्स इस प्रकार के व्यवहार को अप्रत्यक्ष व्यवहार तथा एन्डरसन समन्वय व्यवहार कहते हैं। इसी प्रकार लिपिट व व्हाइट इस प्रकार के व्यवहार को प्रजातान्त्रिक व्यवहार (छात्र केन्द्रित) कहते हैं।
कक्षा में शिक्षक कम बोलता है और छात्रों को बोलने का अधिक अवसर प्रदान करता है। छात्रों की समस्याओं को समझ कर उनका समाधान करने का प्रयास करता है। ऐसा शिक्षक प्रश्न अधिक पूछता है, जिससे छात्र अध्ययन अध्यापन प्रक्रिया में क्रियाशील रहने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं। कोगन (1958) ने अपने अध्ययन के आधार पर अप्रत्यक्ष व्यवहार वाले शिक्षक का सहायक, अच्छे स्वभाव वाला, मैत्री भाव वाला, विश्वस्त, धैर्यशाली, प्रसन्नचित तथा सलाहकारी बताया है।
2. अशाब्दिक व्यवहार (Nonverbal Behavior)
शिक्षण सम्बन्धी अधिकांश क्रियाएँ शाब्दिक आदान-प्रदान द्वारा ही सम्पन्न की जाती हैं, तथापि कक्षा में अशाब्दिक व्यवहार भी होता है, जो कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। अशाब्दिक व्यवहार वह व्यवहार है, जिसमें छात्र तथा शिक्षक के मध्य बोलकर भावों व विचारों का सम्प्रेषण नहीं होता है अपितु हाव-भाव तथा संकेत के द्वारा होता है। छात्रों को प्रोत्साहित करने के लिए शिक्षक का सिर हिलाना, छात्रों को बोलने से रोकने के लिए अंगुली का प्रयोग, मुस्कुराना, भूभ्रंग करना आदि सभी क्रिया छात्रों को शिक्षक के विचारों व भावों से अवगत कराती है।
किसी छात्र के गलत काम पर शिक्षक यदि क्रोध से लाल पीला होकर उसकी ओर देखता है, तो निश्चित ही छात्र समझ जाता है कि उसे यह काम नहीं करना चाहिए। किसी छात्र द्वारा कार्य किये जाने पर शिक्षक यदि चेहरे पर प्रसन्नता लाता है, तनाव को कम करता है और सिर हिलाता है तो छात्र उस प्रकार से कार्य करने को अधिक प्रोत्साहित होता है। उस प्रकार के हाव-भाव व संकेतों द्वारा विचारों का आदान-प्रदान अशाब्दिक व्यवहार कहलाता है।
कक्षा में शाब्दिक व्यवहार की प्रधानता होने के कारण तथा उसका अध्ययन विश्वसनीय ढंग से करने में समर्थ होने के कारण ही कक्षा-व्यवहार सम्बन्धी अधिकांश अध्ययन शाब्दिक व्यवहारो पर ही हुए हैं, अशाब्दिक व्यवहारों पर नहीं। शुद्ध रूप में कक्षा अशाब्दिक भाव प्रदर्शन शाब्दिक व्यवहार की अपेक्षा बहुत कम होता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
यह कह सकते हैं कि यह आयाम शिक्षकों के पक्ष में परन्तु छात्र अध्यापकों के लिए व्यवहारिक तथा उपयोगी नहीं है। परम्परागत रूप में प्रवीण शिक्षक की चर्चा करना उत्तम है, परन्तु उसका क्रियान्वयन कठिन है। प्रवीण शिक्षक के व्यवहार का अनुकरण तो किया जा सकता है, परन्तु विश्लेषण करना कठिन है। शिक्षण की प्रक्रिया विश्लेषण में अनेक तत्त्व सम्मिलित हैं— शाब्दिक व्यवहार, शिक्षण कौशल, सामाजिक कौशल, अनुदेशनात्मक प्रक्रिया, शिक्षक विधि-प्रविधियाँ, सहायक सामग्री अभिप्रेरणा की गतिविधियाँ, निदानात्मक एवं सुधार शिक्षण, शिक्षण की सहायक प्रविधियाँ आदि।