Teaching Outside the Classroom in hindi
कक्षा के बाहर की शिक्षण विधियाँ (Outside classroom teaching methods)
कक्षा के बाहर की शिक्षण विधियों से अभिप्राय ऐसी शिक्षण विधियों से है जिनका सीधा सम्बन्ध कक्षा से नहीं होता है, प्राय: देखा जाता है कि बच्चे कक्षा में अधिगम करते समय अरुचि लेना प्रारम्भ कर देते हैं जिससे वे अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाते इसी दोष को दूर करने के लिए शिक्षण इस प्रकार से करना चाहिए जिससे बच्चे रुचि के साथ अधिगम कर सके इसके लिए उन विधियों का प्रयोग किया जाता है जिनमें बच्चे आनंद के साथ ज्ञान प्राप्त कर लें इसके लिए सबसे अच्छी विधि शैक्षिक भ्रमण है आइये इस विधि का अध्ययन करें।
छात्रों को कक्षा से बाहर नियमित शैक्षिक भ्रमण पर ले जाया जाता है जहाँ पर छात्र खुले वातावरण में शिक्षा को अपने व्यक्तिगत अनुभवों से परिभाषित करते हैं शैक्षिक भ्रमण के माध्यम से छात्रों में एक अनुभूति जागृत होती है, जिससे वे भारत की विभिन्नताओं जैसे- इतिहास, विज्ञान शिष्टाचार और प्रकृति को व्यक्तिगत रूप से जान सकते हैं इसके अतिरिक्त छात्रों में समूह में रहने की प्रवृत्ति, नायक बनने की क्षमता तथा आत्मविश्वास एवं भाई चारे की भावना प्रबल होती है।
कक्षा से बाहर भ्रमण द्वारा इतने अधिक शैक्षिक लाभ होते हैं कि सभी का आसानी से वर्णन नहीं किया जा सकता। अंग्रेजों के प्रसिद्ध लेखक बेकन का कहना है कि युवा वर्ग के लिए प्रमण शिक्षा का अंग है, जबकि बड़े लोगों को इससे अनुभव मिलता है। कक्षा से बाहर भ्रमण से जो हम सीखते हैं, उसे पुस्तकों से सीखना कठिन होता है। क्योंकि सीखने में आँख की भूमिका अन्य ज्ञानेन्द्रियों की तुलना में सबसे अधिक होती है। उदाहरण के लिए, हम पुस्तकों में पढ़ते हैं कि प्राचीन काल में नालन्दा नाम का एक विश्वविद्यालय था।
कक्षा के बाहर शिक्षण विधि का शैक्षिक महत्व (Educational Importance of Teaching Method Outside the Classroom)
1. ज्ञान में वृद्धि (Increase Knowledge)
भ्रमण हमारे किताबी जान में वृद्धि करता है। भ्रमण के सहारे इतिहास हमें वास्तविक दिखता है तथा समूचा भूगोल साकार हो उठता है। इससे अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों की परीक्षा हो जाता है और नई चुनोतियों उभर आती है। समाजशास्त्र की नींव मजबूत हो जाती है। ऐतिहासिक महत्व के स्थानों के भ्रमण से पुस्तकों में पढ़ी धुंधली छवि प्रकाशित होकर साकार हो जाती है।
2. संसार के व्यावहारिक ज्ञान की प्राप्ति (Gaining Practical Knowledge of the World)
भ्रमण संसार के व्यवावहारिक ज्ञान को प्राप्त करने का सुनहरा अवसर प्रदान करता है। प्रसिद्ध कवि पोप ने ठीक ही कहा है कि मानवता का सही अध्ययन मनुष्यों के अध्ययन से ही हो सकता है। भ्रमण के दौरान तरह-तरह के व्यक्तियों से हमारा संपर्क होता है। यदि हम चौकन्नी निगाह रखकर भ्रमण करें और अपने दिल और दिमाग के खिड़की और दरवाजे सभी खुले रखें तो हमें भ्रमण से संसार के व्यक्तियों और घटनाओं का इतना व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त हो जायेगा जो किसी भी पुस्तक से नहीं मिल सकता।
3. स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य (Essential to Health)
मस्तिष्क के स्वस्थ विकास के लिए भी भ्रमण अति आवश्यक है। रवीन्द्र टैगोर का कहना है कि मन का स्वास्थ्य चुनी हुई पुस्तकों की जेल की दीवारों से घिरे निश्चल स्कूल की गतिहोन कक्षाओं में पढ़ाई से नहीं सुधर सकता।
4. दृष्टिकोण विस्तृत होता है (The Outlook Expands)
भ्रमण से हमारा दृष्टिकोण विस्तृत होता है। इससे हमारे विचारों और दृष्टिकोण में उदारता आती है। इसके द्वारा हमारे मन में मानवता के प्रति सहानुभूति जागृत होती है। विविध प्रकार का अनुभव पाकर हम घटनाओं और वस्तुओं को एक नई दिशा से देखना सीख जाते हैं। इससे मूल्यों के प्रति हमारा सही दृष्टिकोण विकसित होता है।
5. व्यापार और वाणिज्य की उन्नति (Advancement of Trade and Commerce)
भ्रमण द्वारा हमें व्यापार और वाणिज्य की भी व्यावहारिक जानकारी मिलती है। विश्व के व्यापारिक केन्द्रों के भ्रमण से हमें इतना ज्ञान प्राप्त होता है, जो वाणिज्यिक पुस्तकालय की सभी पुस्तकों तक से प्राप्त नहीं हो सकता। निजी संपर्क से नए व्यापारों का सूत्रपात होता है, इस तरह भ्रमण द्वारा व्यापार को बड़ा बढ़ावा मिलता है।
6. प्रकृति की गोद में (In the Lap of Nature)
भ्रमण से हम प्रकृति की गोद में पहुंचते हैं। विभिन्न भाषाओं की पुस्तकों में अनेक विद्वानों के प्रकृति वर्णन को पढ़कर हम बड़े प्रभावित होते हैं, लेकिन भ्रमण द्वारा वही सब हमारे सामने साकार होकर मंत्रमुग्ध कर देता है। विशाल पर्वतों के सामने खड़े होने पर अथवा समुद्र तट को उछलती लहरे देख कर हमें अपनी लघुता का ज्ञान होता है।
कक्षा के बाहर की शिक्षण विधि की विद्यार्थियों के लिए अनिवार्यता (Requirement for Students of Teaching Method Outside the Classroom)
यह बड़ा महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक विद्यार्थी को भ्रमण के समुचित अवसर उपलब्ध कराने चाहिए। लेकिन हमारी निर्धनता के कारण विद्यार्थियों की बहुत बड़ी संख्या को इस हेतु पर्याप्त धन नहीं मिल पाता। फिर भी भ्रमण के महत्व को ध्यान में रखते हुए, हमारी शिक्षण संस्थाओं को रेल अधिकारियों तथा संस्थाओं से सहायता लेकर सस्ती दरों पर कुछ शैक्षिक पर्यटनों की व्यवस्था अवश्य ही करनी चाहिए।
भ्रमण द्वारा इतने अधिक शैक्षिक लाभ होते हैं कि सभी का आसानी से वर्णन नहीं किया जा सकता। अंग्रेजी के प्रसिद्ध लेखक बैंकन का कहना है कि युवा वर्ग के लिए भ्रमण शिक्षा का अंग है, जबकि बड़े लोगों को इससे अनुभव मिलता है। कल भ्रमण से जो हम सीखते हैं, उसे पुस्तकों से सीखना कठिन होता है। क्योंकि सौखने में आँख की भूमिका अन्य ज्ञानेन्द्रियों की तुलना में सबसे अधिक होती है।
कक्षा से बाहर शिक्षण विधि के उपयोग (Use of Teaching Method Outside the Classroom)
शैक्षिक पर्यटनों का नियोजन तथा क्रियान्वयन इस प्रकार करना चाहिये, जिससे पर्यटनों के उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सके और छात्र सम्भव ज्ञान प्राप्त कर सकें। पर्यटनों की व्यवस्था विशिष्ट अधिगम परिस्थितियों के लिये की जानी चाहिये। शैक्षिक पर्यटनों को प्रभावशाली ढंग से प्रयोग करने के लिये निम्नलिखित पाँच सोपानों का अनुकरण करना चाहिये-
1. छात्रों को तैयार करना:- अनुदेशक का यह कर्त्तव्य होता है कि वह छात्रों में पर्यटन के प्रति उत्सुकता जागृत करे कि दृश्य सामग्री श्रव्य सामग्री से अधिगम के लिये सुविधा प्रदान करती है। अनुदेशक को अवलोकन के विशिष्ट बिन्दुओं के सम्बन्ध में पहले ही बता देना चाहिये, जिन स्थलों तथा संस्थाओं का अवलोकन करना है, उनके चित्र, फिल्म, चार्ट, मानचित्र आदि को शिक्षण के समय प्रदर्शित करना चाहिए। छात्रों को पर्यटन के आयोजन से पूर्ण रूप से अवगत करा देना चाहिए।
2. शैक्षिक पर्यटन की व्यवस्था करना:- छात्रों को निर्देशन-पत्रों के उपयोग तथा प्रयोग विधि के सम्बन्ध में पूरी जानकारी देनी चाहिए। पर्यटन की व्यवस्था के समय अवलोकन स्थलों के महत्वपूर्ण बिन्दुओं का विवरण चित्र आदि निर्देशन-पत्र पर अंकित करना चाहिए। पर्यटन सम्बन्धी अवलोकन सम्पूर्ण विवरण छात्र को तैयार करना चाहिए, क्योंकि विवरण छात्र शिक्षण की पाठ्यवस्तु को तैयार करने में सहायक होगी। परीक्षण में छात्रों को सहायता मिलेगी, क्योंकि सभी स्थलों के विशिष्ट बिन्दुओं को याद नहीं रखा जा सकता है।
3. शैक्षिक पर्यटन का अनुगमन करना:- शैक्षिक पर्यटन के बाद जितना शीघ्र सम्भव हो सके, छात्रों से उसकी उपयोगिता तथा शिक्षण बिन्दुओं के सम्बन्ध में वाद-विवाद तथा वार्तालाप का आयोजन करना चाहिए। प्रत्येक छात्र को निर्देशन-पत्र के आधार पर एक पर्यटन आयोजन करना चाहिए। शैक्षिक पर्यटन आयोजन तथ्यों को जानकारी करना अधिक उपयोगी होता है। कक्षा-शिक्षण के समय छात्रों को आलेख पढ़ने का अवसर देना चाहिए। पर्यटन को इस अवस्था के विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता मिलती है। शिक्षक उन बिन्दुओं का स्पष्टीकरण करता है जिनको छात्र नहीं समझ सकें और उन्हें अंकित भी नहीं कर सके। निर्देशन पत्र छात्र को अभ्यास का अवसर प्रदान करती है। कक्षा-शिक्षण के सम्बन्ध में वाद-विवाद का भी आयोजन किया जाता है।
4. छात्रों का परीक्षण:- यह सोपान अधिक महत्त्वपूर्ण होता है, जिससे पर्यटन के विशिष्ट उद्देश्य को प्राप्ति का मूल्यांकन किया जाता है और छात्रों को योग्यता तथा कौशल के विकास की जाँच होती है। छात्रों की कमजोरियों का निदान होता है तथा तत्काल उनका सुधार कर दिया जाता है। छात्रों के कौशल की जाँच हेतु छात्रों को कार्य करने का अवसर दिया जाता है। तथ्यात्मक ज्ञान तथा अभिवृत्ति के विकास के लिये परिस्थितियाँ तथा परीक्षा दी जाती है, जिसके लिये वस्तुनिष्ठ परीक्षा का प्रयोग किया जाता है। तकनीकी शब्दों की परिभाषा तथा अर्थ के लिये प्रश्न भी दिये जाते हैं।
5. शिक्षण समीक्षा:– परीक्षण द्वारा छात्रों की त्रुटियों का सुधार किया जाता है। शिक्षक एक रचनात्मक प्रविधि का प्रयोग करता है। छात्रों से सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करता है। शिक्षक पर्यटन की समीक्षा भी देता है, जिससे छात्रों को समस्या का बोध होता है। सबसे महत्वपूर्ण बाट यह है कि छात्र अपने कार्य को सन्तोषपूर्ण ढंग से कर सकें, यह अनुदेशक उन्हें सिखाता है।