बोध स्तर का शिक्षण अर्थ एवं परिभाषाएँ | Understanding Level of Teaching in hindi
बोध स्तर का शिक्षण (Understanding Level of Teaching)
बोध स्तर के शिक्षण के लिये यह आवश्यक है कि शिक्षण पहले स्मृति स्तर पर हो चुका हो। इसके अभाव में वांछित फल प्राप्त करने की आशा करना कोरी कल्पना है। स्मरण रहे कि बोध स्तर के शिक्षण में शिक्षक अपने अनुदेश को बोध स्तर पर रखने का प्रयास करते हुये विद्यार्थियों को सामान्यीकरण तथा सिद्धांतों एवं तथ्यों के सम्बन्ध में बोध कराने पर बल देता है। यदि शिक्षक को अपने इस प्रयास में सफलता मिल जाती है तो विद्यार्थियों में नियमों को पहचानने समझने तथा उन्हें प्रयोग करने की क्षमता विकसित हो जाती है। परिणामस्वरूप शिक्षण अर्थपूर्ण (Thoughtful) हो जाता है। बोध स्तर का शिक्षण करते समय शिक्षक तथा विद्यार्थी दोनो ही पाठ के विकास में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।
बोध स्तर के शिक्षण का प्रतिमान (Model of Understanding Level of Teaching)
बोध स्तर के शिक्षण प्रतिमान का प्रतिपादन मौरीसन (Morrison) महोदय ने किया। अत: इसे मौरीसन के शिक्षण प्रतिमान की संज्ञा दी जाती है। इस प्रतिमान के प्रारूप का वर्णन मौरीसन महोदय ने अप्रलिखित चार पक्षों में किया है–
(i) उद्देश्य (Focus):– मौरोसन के अनुसार बोध स्तर के शिक्षण का उद्देश्य यह है कि विद्यार्थी प्रत्यय का स्वामित्व (Mastery of Concept) प्राप्त कर ले। दूसरे शब्दों में बोध स्तर के शिक्षण में शिक्षक पाठ्यवस्तु के स्वामित्व पर बल देता है जिनसे विद्यार्थियों के व्यक्तित्व में वांछित परिवर्तन हो जाये।
(ii) संरचना (Syntax):- मौरीसन महोदय ने बोध स्तर के शिक्षण की व्यवस्था को पाँच सोपानों में विभाजित किया जिनका अनुसरण करते हुए शिक्षक बोध स्तर के लिये शिक्षण तथा अधिगम की परिस्थितियाँ उत्पन्न कर सकता है। इस प्रतिमान के पाँच सोपानों का क्रम निम्नलिखित हैं–
(a) अन्वेषण (Exploration):— मौरीसन महोदय ने इस सोपान के अन्तर्गत निम्नलिखित तीन क्रियाओं को सम्मिलित किया–
- पूर्व ज्ञान का पता लगाना। इसके लिये प्रश्न पूछकर परीक्षण किया जाता है।
- पाठ्यवस्तु का विश्लेषण करते हुए उसके अवयवों को मनोवैज्ञानिक दृष्टि से क्रमबद्ध रूप में तर्कपूर्ण ढंग से व्यवस्थित करना।
- यह निश्चित करना कि नवीन ज्ञान अथवा पाठ्यवस्तु की इकाइयों को किस प्रकार से प्रस्तुत किया जाये।
(b) प्रस्तुतीकरण (Presentation):– इस सोपान में शिक्षक अधिक क्रियाशील रहता है। वह पाठ्यवस्तु को प्रस्तुत करने के लिये निम्नलिखित तीन क्रियायें करता है–
- शिक्षक पाठ्यवस्तु को छोटी-छोटी इकाइयों में प्रस्तुत करता है।
- पाठ्यवस्तु प्रस्तुत करते समय शिक्षक को इस बात का भी निदान करना है कि कक्षा के विद्यार्थियों को पाठ्यवस्तु का बोध हुआ अथवा नहीं।
- शिक्षक पाठ्यवस्तु की उस समय तक पुनरावृत्ति करता है जब तक वह अधिकांश विद्यार्थियों की समझ में पूरी तरह न आ जाये।
(c) परिपाक (Assimilation):— जब शिक्षक पाठ्यवस्तु को प्रस्तुत करने के पश्चात् इस निष्कर्ष पर आता है कि अधिकांश विद्यार्थी नवीन ज्ञान को समझ गये तो वह विद्यार्थियों को परिपाक के लिये अवसर प्रदान करता है।
(d) व्यवस्था (Organization):- परिपाक का कालांश स्वामित्व परीक्षा (Mastery Test) का होता है। स्वामित्व परीक्षण में सफल होने के पश्चात् विद्यार्थी पाठ्यवस्तु को प्रकृति के अनुसार व्यवस्था (Organization) अथवा वर्णन (Recitation) कालाश में प्रवेश करते हैं।
(e) वर्णन (Recitation):- वर्णन बोध स्तर के शिक्षण का अन्तिम सोपान है। इस कालांश में विद्यार्थी पाठ्यवस्तु को शिक्षक तथा अपने साथियों के सामने मौखिक रूप से प्रस्तुत करते हैं।
(vi) सामाजिक व्यवस्था (Social System):- बोध स्तर के शिक्षण में सामाजिक प्रणाली विभिन्न सोपानों (प्रस्तुतीकरण तथा परिपाक) में बदलती रहती है। प्रस्तुतीकरण सोपान में शिक्षक अधिक क्रियाशील (Active) रहते हुए विद्यार्थियों के व्यवहार की स्मृति स्तर की भांति नियन्त्रित करता है तथा आवश्यक प्रेरणा (Motivation) भी देता है। परिपाक कालाश में शिक्षक और विद्यार्थी दोनों क्रियाशील रहते हैं। शिक्षक विद्यार्थियों को आवश्यक निर्देशन देता है तथा विद्यार्थी स्वतः प्रेरित होते हुये लग्न के साथ कार्य करते हैं।
(vii) मूल्यांकन प्रणाली (Support System):- बोध स्तर के शिक्षण में सामाजिक प्रणाली एक सी नहीं रहती वरन् बदलती रहती है। विद्यार्थियों को परिपाक में प्रयोग करने के लिये प्रस्तुतीकरण की परीक्षा पास करनी पड़ती है। ऐसे ही उन्हें व्यवस्था तथा वर्णन में प्रवेश करने के लिये परिपाक परीक्षा (Assimilation, Test) पास करनी आवश्यक होती है। व्यवस्था कालांश के अन्त में लिखित परीक्षा होती है। ऐसे ही वर्णन कालांश में मौखिक परीक्षा होती है। इस प्रकार बोध स्तर के शिक्षण के विभिन्न सोपानों में मौखिक तथा लिखित (निबन्धात्मक तथा वस्तुनिष्ठ) दोनों प्रकार की परीक्षायें होती है।
बोध स्तर के शिक्षण के लिए सुझाव (Tips for Teaching at Understanding Level)
- शिक्षकों को छात्रों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करना चाहिए और उन्हें आवश्यक स्वतन्त्रता दी जानी चाहिए।
- स्मृति-स्तर के बाद ही बोध स्तर के शिक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए।
- प्रत्येक सोपान को क्रमबद्ध तरीके से पार किया जाना चाहिए।
- छात्रों को अभिप्रेरणा दी जाये।
- कक्षा के आकांक्षा-स्तर को बढ़ाया जाये।
- शिक्षण व्यवस्था के अनुसार समस्या समाधान किया जाये।
बोध स्तर के शिक्षण की आलोचना (Criticism of Teaching at Understanding Level)
मौरीसन महोदय द्वारा दिये गये बोध स्तर के प्रतिमान की निम्नलिखित सीमायें तथा विशेषतायें हैं-
- इस शिक्षण प्रणाली को समस्या यह है कि इसमें पाठ्यवस्तु के स्वामित्व पर ही बल दिया जाता है, मानवीय व्यवहार को ध्यान में नहीं रखा जाता।
- मौरीसन महोदय ने शिक्षक को विषयवस्तु में तल्लीनता को ही विद्यालयों के लिये प्रेरणा माना है जबकि मनोवैज्ञानिक प्रेरणा इससे कहीं अधिक प्रभावशाली सिद्ध हो सकती है।
- ाठ्यवस्तु के स्वामित्व से विद्यार्थियों के भावात्मक तथा क्रियात्मक पक्षों का विकास न होकर ज्ञानात्मक पक्ष का ही विकास हो सकता है।
- मौरीसन महोदय द्वारा दिया हुआ शिक्षण का यह प्रतिमान मनोवैज्ञानिक तथा व्यावहारिक दृष्टि से प्रभावात्मक प्रतिमान माना जाता है।
- िक्षण के इस प्रतिमान द्वारा विद्यार्थियों को पाठ्यवस्तु का गहनता के साथ बोध कराया जा सकता है। अतः इस प्रतिमान द्वारा शुद्ध अधिगम (Learning) होता है।
बोध स्तर के शिक्षण के गुण (Characteristics of Understanding Level Teaching)
- प्रभावशाली अधिगम,
- रुचिकर अधिगम,
- ज्ञानात्मक योग्यताओं का विकास,
- चिन्तन स्तर के शिक्षण अधिगम में सहायक,
- अधिकतम प्रतिफल
बोध स्तर के शिक्षण के दोष (Disadvantages of Understanding Level Teaching)
- शिक्षार्थी केन्द्रित नहीं,
- उपक्रम नहीं,
- स्व-अधिगम नहीं,
- उच्चतर बौद्धिक अथवा ज्ञानात्मक योग्यताओं का विकास नहीं।