कंप्यूटर सहायक अनुदेशन | Computer Assisted Instruction (CAI) in hindi

कंप्यूटर सहायक अनुदेशन (CAI)

CAI एक प्रकार से अभिक्रमित अनुदेशन तकनीक के सिद्धान्तों के प्रयोग की स्वाभाविक वृद्धि है। अभिक्रमित अनुदेशन का मुख्य उद्देश्य छात्र की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये व्यक्तिगत अनुदेशन देना है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये एक प्रभावी तकनीक की आवश्यकता है। इस तकनीक में लचीलापन होना चाहिये तथा इसमें संगठित सूचनाओं के संग्रहण की शक्ति होनी चाहिये ताकि व्यक्ति आवश्यकता पड़ने पर इस संगृहीत सूचना सामग्री में से अपने उपयोग की सामग्री ले सके। एक कम्प्यूटर इन सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। यह संगठित सूचना का संग्रह कर सकता है तथा आवश्यकता पड़ने पर इसे प्रयोग में ला सकता है।

Computer Assisted Instruction (CAI)

पहला व्यावसायिक कम्प्यूटर 1951 में गणना ब्यूरो (Census Bureau) द्वारा प्रयोग में लाया गया तथा पहला CAI प्रयास 1961 में हुआ जब इलोनिसिस विश्वविद्यालय ने (University of Illinosis) स्वचालित शिक्षण प्रक्रिया के लिये अभिक्रमित तर्क को विकसित किया। इस प्रकार, सामान्य शिक्षा में कम्प्यूटर का प्रयोग सन् 1960 के आसपास प्रारम्भ हुआ।

संक्षेप में, कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन एक ऐसे अनुदेशन की ओर संकेत करता है जिसे कम्प्यूटर तकनीकी की सहायता से संचालित किया जाता है। इसे शिक्षण मशीन तथा अभिक्रमित अनुदेशन से एक कदम आगे के नवाचार के रूप में माना जा सकता है। यह एक ऐसे आधुनिकतम नवाचार को हमारे सामने प्रस्तुत करता है जिसे शिक्षण मशीन या अभिक्रमित अनुदेशन के समकक्ष नहीं ठहराया जा सकता। इसका क्षेत्र, तकनीक या आयाम इन दोनों की तुलना में अधिक व्यापक हैं।

कंप्यूटर सहायक अनुदेशन (CAI) की परिभाषा

कुछ निश्चित शब्दों में CAI को अग्र प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है-

(1) हिलगार्ड एवं बाउर (Hilgard and Bower, 1977) के अनुसार, "कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन का क्षेत्र अब इतना व्यापक हो गया है कि अब इसे मात्र शिक्षण मशीन अथवा अभिक्रमित अनुदेशन के अनुप्रयोगों के रूप में नहीं समझा जा सकता।"

(2) भट्ट के अनुसार (Bhatt, 1992), "CAI को शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति की दिशा में विद्यार्थी, कम्प्यूटर नियन्त्रित प्रस्तुतीकरण (CCP) तथा अनुक्रिया रिकार्डिंग उपकरण (RRA) के मध्य चलने वाली अन्तःक्रिया के रूप में समझा जा सकता है।"

कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन (CAI) की मान्यताएं

कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन की मूलभूत मान्यताएं निम्नलिखित हैं-

  1. इसके द्वारा एक ही समय पर अनेक विद्यार्थियों (लगभग 4000) को एक साथ अनुदेशन प्रदान किया जा सकता है।
  2. इसके द्वारा विद्यार्थियों की निष्पत्ति की स्वतः ही प्रतिपुष्टि (feedback) तथा रिकोर्डिंग होती रहती है।
  3. यह एक पूर्णतः व्यक्तिगत अनुदेशन तकनीक है जिसमें छात्र स्वगति से आगे बढ़ता है।
  4. यह शिक्षा में अंकात्मक एवं गुणात्मक विस्तार सम्बन्धी समस्याओं का आसानी से समाधान करने में सक्षम है।
  5. यह विधियों तथा तकनीकों के प्रयोग में विविधता पर बल देती है।
  6. इसके क्रियान्वयन में तीन प्रकार की तकनीकें प्रयुक्त होती हैं-हार्डवेयर (Hardware), सॉफ्टवेयर (Software) तथा कोर्स वेयर (Courseware)।
  7. यह तकनीक सभी प्रकार के शिक्षण-अधिगम कार्यों में प्रयुक्त की जा सकती है बशर्ते कि वह पाठ, चित्रों, प्रयोगों आदि के माध्यम से पढ़ाया जा सके।

कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन के विभिन्न रूप (Various Modes of CAI)

विभिन्न तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में जिस प्रकार की परिस्थितियाँ होती हैं, जिस प्रकार का प्रयोजन होता है तथा विद्यार्थी को जिस प्रकार के अनुदेशन की आवश्यकता होती है, उन सब बातों को देखते हुए हमें कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन के विविध रूप देखने को मिलते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख रूपों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-

(1) पूछताछ रूप (Enquiry Mode):— इस प्रकार का अनुदेशन छात्र की वांछित सूचनायें प्रदान करने में सहायक होता है। यहाँ कम्प्यूटर एक अच्छे पूछताछ अधिकारी (Enquiry officer) की भूमिका बड़े ही प्रभावशाली ढंग से निभाता है। उससे जो कुछ भी पूछा जाता है वह अपनी संग्रहीत सामग्री की मदद से पूछने वाले को वांछित सूचना तुरन्त प्रदान करने का प्रयास करता है। यद्यपि मूलतः इस प्रकार के अनुदेशन की एकमात्र उद्देश्य संप्रत्यय निर्माण (Concept Formation) तथा कौशन (Skill) सम्बन्धी सूचनायें प्रदान करना होता है, फिर भी, यह छात्र को आत्मनिर्भर बनाने एवं स्वः अध्ययन के नये-नये रास्ते खोजने में पर्याप्त मदद करता है।

(2) अभ्यास रूप (Drill or Practice Model):— इस प्रकार के अनुदेशन में छात्र को पहले से ही अर्जित करने सम्बन्धी अवसर प्रदान किये जाते हैं। विभिन्न प्रकार के कौशलों में दक्षता प्राप्त करने की दृष्टि से इस प्रकार के ड्रिल कार्यों का काफी महत्व होता है। उदाहरणार्थ-यदि कोई गणित का विद्यार्थी गणना कौशल के अन्तर्गत निम्न समस्या लेकर- 10x102 + 100x1002 + 1000×10002 = ..... अपने उत्तर की जाँच करना चाहता है तो उसे की-बोर्ड (Key-Board) दबाकर अपने उत्तर की पुष्टि करनी होगी। कम्प्यूटर गलत-सही का निर्णय देकर छात्र को तत्काल प्रतिपुष्टि (feedback) प्रदान करता है।

(3) ट्यूटोरियल रूप (Tutorial Mode):– इस प्रकार के अनुदेशन में कम्प्यूटर स्वयं ट्यूटर्स की भूमिका निभाते हैं। ट्यूटर्स की भाँति ही ये छात्रों से व्यक्तिगत रूप से संवाद तथा अन्तःक्रिया करते हुए शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति में सहयोग प्रदान करते हैं। आज विभिन्न विषयों से सम्बन्धित इकाइयों तथा प्रकरणों पर इस प्रणाली पर आधारित पर्याप्त सॉफ्टवेयर प्रोग्राम उपलब्ध हैं। इन प्रोग्रामों के माध्यम से विषय सम्बन्धी विषय-वस्तु संवाद प्रणाली तथा अन्य तकनीकों के माध्यम से प्रस्तुत की जाती है, फिर पढ़ाये गये पाठ की पुनरावृत्ति तथा अभ्यास कार्य कराये जाते हैं। अब यह जाँच की जाती है कि छात्र ने कितना ज्ञान अर्जित किया है तथा उसे इस ज्ञान को अर्जित करने में किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है।

(4) गेम्स रूप (Gaming Mode):— इस प्रकार के अनुदेशन में विद्यार्थियों को विविध प्रकार के सुनियोजित कम्प्यूटर गेम्स खेलने का अवसर दिया जाता है। इन गेम्स की प्रकृति पर किसी प्रकार का कोई बंधन नहीं होता अर्थात्, यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक गेम का शैक्षिक महत्व हो ही अथवा यह शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक हो ही। इस प्रकार के गेम्स सामान्य जानकारी से भी सम्बन्धित हो सकते हैं जिनका उद्देश्य पर्यावरण, बौद्धिक चुनौतियाँ आदि के प्रति जिज्ञासा एवं कौतुहल भाव उत्पन्न करना हो सकता है। कई बार इस प्रकार के गेम्स का आयोजन विद्यार्थियों में शिक्षण के प्रति रुचि, प्रेरणा, प्रोत्साहन, पुनबलन प्रदान करने हेतु भी किया जाता है।

(5) अनुरूपित रूप (Simulation Mode ):- इस प्रकार के अनुदेशन में छात्रों को वांछित प्रशिक्षण प्रदान करने की दृष्टि से अनुरूपण प्रविधि (Simulation Device) की सहायता ली जाती है। इसमें उचित रूप से तैयार किये गये सॉफ्टवेयर प्रोग्रामों की मदद से छात्रों की समस्याओं से जूझने के लिये वास्तविक एवं नीतीपूर्ण परिस्थितियों प्रदान की जाती है। इस प्रकार की अनुरूपित परिस्थितियों (Simulatod Situations) में कहीं वे स्वयं को अपने दुश्मनों से घिरा पाते हैं, कभी किसी बियाबान जंगल में जंगली जानवरों से घिरा पाते हैं, कभी किसी गोताखोर की भूमिका निभानी पड़ती है, कभी पॉयलट बनकर अपने विमान को सुरक्षित उड़ाना होता है आदि। कहने का तात्पर्य यह है कि अनुदेशन के इस रूप में विद्यार्थी को वास्तविक परिस्थितियों से गुजारने से पहले काल्पनिक रास्तों से गुजारकर उसकी राह को सहज बनाया जाता है।

(6) समस्या समाधान रूप (Problem Solving Mode):— इस प्रकार के अनुदेशन के कम्प्यूटर स्वयं किसी समस्या का समाधान नहीं बताते बल्कि विद्यार्थी को समस्या समाधान प्रवासों में रत रहने के अवसर प्रदान कर उन्हीं से समस्याओं का समाधान निकलवाने का प्रयास किया जाता है। इस कार्य हेतु सॉफ्टवेयर प्रोग्रामों का उपयोग किया जाता है जिसमें समस्या समाधान हेतु आवश्यक सोपानों का ठीक प्रकार से अनुसरण किया जाता है। इस प्रकार के एक सॉफ्टवेयर के उदाहरण के रूप में हम लोगो (LOGO) का नाम ले सकते हैं जो समस्या समाधान प्रक्रिया के उचित अनुदेशन हेतु ठीक से काम में लाया जा सकता है। यह जीन प्याजे के बौद्धिक विकास सिद्धान्तों से अनुप्रेरित अधिगम सिद्धान्तों पर आधारित है।

(7) खोज रूप (Discovery Mode):- इस प्रकार के अनुदेशन में ऐसे सॉफ्टवेयर प्रोग्रामों का उपयोग किया जाता है जिनसे विद्यार्थियों को विभिन्न प्रकार के प्रयोगशाला सम्बन्धी प्रयोगों के परीक्षण सम्बन्धी नवीन अनुभव कम्प्यूटर स्क्रीन पर देखने को आसानी से मिल जाते हैं। इस प्रकार विद्यार्थी को जो अनुभव अपनी प्रयोगशाला या कार्यशाला में प्राप्त होते हैं उनकी पूर्व जानकारी इस प्रकार के अनुदेशन से सुगमता से प्राप्त हो जाती है। परिणामस्वरूप इस प्रकार के अधिगम अनुभवों को अर्जित करने में कोई विशेष कठिनाई नहीं आती। इसमें आगमन विधि (Inductive Approach) का प्रयोग किया जाता है जिसके अन्तर्गत छात्रों को समस्याएँ प्रस्तुत की जाती हैं जिनका समाधान के प्रयास एवं त्रुटि के माध्यम से करने का प्रयास करते हैं।

(8) प्रबन्धन रूप (Management Mode):— इस प्रकार के अनुदेशन में सॉफ्टवेयर प्रोग्राम छात्रों द्वारा की जाने वाली विविध अधिगम क्रियाओं के समुचित प्रबन्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रबन्धन के अन्तर्गत अनेक बातें आती हैं, जैसे- छात्रों की उपलब्धियाँ, कठिनाइयों, प्रगति रिपोर्ट आदि। इन प्रोग्रामों से अध्यापक व अभिभावक वर्ग भी लाभान्वित होता है। अध्यापक जहाँ अपने शिक्षण हेतु मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं वहीं अभिभावक छात्रों के कल्याण हेतु उचित सहयोग प्राप्त करते हैं। साथ ही ये प्रोग्राम पुस्तकालय तथा सूचना केन्द्र आदि को भी व्यवस्थित एवं आधुनिक बनाने में सहायक होते हैं। ये प्रोग्राम पाठ्य सामग्री क्रियाओं की व्यवस्था में भी पर्याप्त सहयोग देते हैं।

गणित, भौतिकी, सांख्यिकी जैसे विषयों के क्षेत्र में तो कम्प्यूटर ने बहुत ही अहम् भूमिका निभाई है। एक छोटा-सा कम्प्यूटर बड़ी-बड़ी गणक मशीनों के काम को चुटकी में कर देता है। इतना ही नहीं कम्प्यूटर ने अपंग बालकों की शिक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जहाँ सभी साधन हार मान लेते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि CAI ने न केवल शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को ही सहज एवं प्रभावी बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है, बल्कि इसने सम्पूर्ण शिक्षा जगत के सभी क्षेत्रों व आयामों के प्रबन्धन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं।

CAI में शिक्षक की भूमिका (Role of Teacher in CAI)

कभी-कभी यह आशंका व्यक्त की जाती है शिक्षण अधिगम में CAI का प्रयोग शिक्षक को इस प्रक्रिया से दूर कर देगा। किसी सीमा तक यह बात सच हो सकती है, लेकिन वास्तविकता यह है कि इस प्रकार की आशंका बिल्कुल व्यर्थ एवं निर्मूल है। CAI में शिक्षक की भूमिका को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. अनुदेशनात्मक प्रक्रिया में CAI ने शिक्षक के लिये शक्तिशाली उपकरण का काम किया है। इसके परिणामस्वरूप, अध्यापक की भूमिका में निश्चित तौर पर कुछ परिवर्तन आया है।
  2. CAI प्रत्यक्ष रूप में छात्र तथा अध्यापक से व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क स्थापित करती है। अच्छे शिक्षक को किसी भी रूप में शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया से अलग नहीं किया जा सकता।
  3. CAL अध्यापक को नये उपकरणों या यत्त्रों के प्रयोग के अवसर उपलब्ध कराती है।
  4. CAI अनुदेशन की एक लचीली प्रक्रिया है। इसे परम्परागत शिक्षण के साथ-साथ भी प्रयोग में लाया जाता है।
  5. CAI एक कम्प्यूटर इंजीनियर की आवश्यकता पर बल देती है।
  6. CAI एक अच्छे पाठ लेखक (Lession Writer) की आवश्यकता पर बल देती है। एक अच्छा अनुभवी शिक्षक एक अच्छा पाठ-लेखक भी हो सकता है।
  7. CAI एक सिस्टम आपरेटर (System Operator) की आवश्यकता पर भी बल देती है जो हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर तकनीक से भलीभांति परिचित हो।

CAI के उपयोग (Advantages of CAI)

CAI के मुख्य उपयोग निम्नलिखित हैं-

  1. इसमें अनुदेशन के साधन एवं साध्य (Means and Ends) दोनों को व्यक्तिगत तौर पर प्रयोग करने की क्षमता है।
  2. इसके आधार पर अनुसन्धान कार्य किया जा सकता है।
  3. इसके आधार पर नियन्त्रित दशाओं में शिक्षण कार्य किया जाता है।
  4. यह व्यक्तिगत अनुदेशन के लिये आवश्यक विशिष्ट दशाओं की रूपरेखा तैयार करती है।
  5. इसमें अनुदेशन विभिन्न रूपों (Modes) के आधार पर दिया जाता है।
  6. इसके द्वारा छात्र की उपलब्धि से सम्बन्धित विभिन्न रिकार्ड्स एकत्रित किये जा सकते हैं।
  7. इसके माध्यम से शिक्षण विधियों एवं शिक्षण सामग्री की प्रभावशीलता की जाँच की जा सकती है।
  8. इसका उपयोग अध्यापक की सहायता करने के तरीकों को विकसित करने में किया जा सकता है।
  9. इसका उपयोग अनुदेशन सामग्री के विकास में किया जाता है।
  10. इसका प्रयोग अनुदेशन प्रक्रिया में अपनाये गये अन्य तरीकों एवं साधनों की जाँच के लिये भी किया जाता है।
  11. CAJ का प्रयोग वर्तमान शैक्षिक प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन लाने में किया जा सकता है।
  12. CAI का उपयोग शिक्षा की भविष्य सम्बन्धी योजनाओं को आधार प्रदान करने में किया जा सकता है।
  13. इसके द्वारा छात्रों को व्यक्तिगत रूप से अनुदेशन सामग्री प्रस्तुत करना पूरी तरह सम्भव है।

CAI की सीमाएँ (Limitations of CAI)

उपरोक्त विशेषताओं के अतिरिक्त CAI की अपनी कुछ सीमायें भी हैं, जो निम्नलिखित हैं-

  1. CAI छात्रों के भावनात्मक पहलुओं की अनदेखी करती है।
  2. CAI मनोवैज्ञानिक या शैक्षिक समस्याओं के समाधान में कोई विशेष भूमिका नहीं निभाती।
  3. CAI भाषा सम्बन्धी दक्षता विकसित करने में असफल रहती है।
  4. यह भी देखने में आया है कि कुछ विद्यार्थी परम्परागत शिक्षण की तुलना में इस विधि के द्वारा सीखन में अधिक थक या ऊब जाते हैं।
  5. CAI विद्यार्थी के कलात्मक एवं सौन्दयात्मक पहलुओं पर अधिक ध्यान नहीं देती बल्कि एक प्रकार से उपेक्षा ही करती है।
  6. CAI के प्रयोग में विद्यार्थी कुछ कठिनाइयों का भी अनुभव करता है।
  7. CAI यह अपेक्षा करती है कि अध्यापक को विषय विशेष पर स्वामित्व (Mastery) तथा अनुदेशनात्मक सामग्री के निर्माण एवं प्रयोग में दक्ष होना चाहिये, जो कभी-कभी सम्भव नहीं होता।

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