सुदूर शिक्षा क्या है? Distance Education in hindi

सुदूर शिक्षा (Distance Education)

आज के प्रजातांत्रिक युग में शिक्षा का लाभ प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचाना अनिवार्य-सा हो गया है। यदि बहुत-से व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करने के लिये स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों तक नहीं आ सकते तो हमें शिक्षा को उनके दरवाजे तक ले जाना होगा। पैगम्बर मुहम्मद साहब ने ठीक ही कहा है कि “यदि पहाड़ मेरे पास नहीं आ सकता तो (उसे सिखाने के लिये) में उसके पास जाऊँगा।"

Distance Education

अतः शिक्षा को सभी व्यक्तियों की देहरी तक ले जाने के लिये हमें किसी दूसरी पद्धति की व्यवस्था करनी होगी और यह पद्धति है दूर शिक्षा। इस शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य देश के सुदूर भागों में रहने वाले सभी व्यक्तियों के लिये शिक्षा संबंधी सुविधाओं की व्यवस्था करना।

सुदूर शिक्षा की परिभाषा

विद्वानों ने कुछ दूर शिक्षा को स्पष्ट शब्दों में परिभाषित करने का प्रयास किया है-

(1) पीटर्स (Peters):— "दूरस्थ शिक्षा एक ऐसी शिक्षा प्रणाली है जिसकी सहायता से व्यक्ति के ज्ञान, कौशल एवं व्यवहार में परिवर्तन लाने का प्रयास किया जाता है। इस शिक्षण प्रणाली में उच्चकोटि की शिक्षण सामग्री संचार साधनों द्वारा पहुंचायी जाती है।"

(2) मूरे (Moore):— "दूरस्थ शिक्षा, शिक्षण विधियों का वह परिवार है जिसमें सीखने की कला के साथ-साथ शिक्षण कला को भी महत्व दिया जाता है। इसमें अध्यापक तथा छात्र के बीच विचारों का आदान-प्रदान पत्राचार, रेडियो, दूरसंचार तथा अन्य कई यंत्रों के माध्यम से किया जाता है।"

सुदूर शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व (Its Need and Importance)

आज की शिक्षा प्रणाली का विकास तब किया गया था जब शिक्षा प्राप्त करने वाले लोगों की संख्या बहुत कम थी। इन थोड़े से व्यक्तियों के लिये मौखिक प्रणाली ही पर्याप्त समझी जाती थी। अब शैक्षिक तकनीकी के विकास के कारण अनेक लोगों की शिक्षा की व्यवस्था करना सरल हो गया है। इस प्रगति के कारण अब किसी भी सामाजिक आर्थिक स्थिति में व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करने में विशेष कठिनाई अनुभव नहीं करेगा। किसी भी व्यवसाय में लगा व्यक्ति जिसने अपनी विगत विषम परिस्थितियों के कारण अपनी शिक्षा को बीच में ही छोड़ दिया है। अथवा वह व्यक्ति जो जीवन पर्यन्त शिक्षा प्राप्त करने का आकांक्षी है, दूर शिक्षा प्रणाली के माध्यम से अपनी शिक्षा को आगे बढ़ा सकता है अथवा अपनी अधूरी शिक्षा को पूरी कर सकता है।

यदि व्यक्ति को इस प्रकार शिक्षा मिल जाती है तो इससे केवल उसी का लाभ न होगा वरन् पूरे राष्ट्र को लाभ मिलेगा। इसीलिये संसार के सभी विकसित एवं विकासशील देशों में दूर शिक्षा पद्धति को लागू किया जा रहा है। इस पद्धति ने सभी शिक्षा-मर्मज्ञ तथा प्रेमियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। आज दूर शिक्षा की उपयोगिता इतनी बढ़ गई है कि लगभग साठ देशों ने मिलकर एक अन्तर्राष्ट्रीय दूर शिक्षा परिषद (International Council of Distance Education) की स्थापना की है। इससे स्पष्ट है कि दूर-शिक्षा प्रणाली दूर की उपयोगिता को संसार के अनेक देश भली प्रकार समझने लगे हैं।

सुदूर शिक्षा के उद्देश्य (Objectives of D.E.)

सुदूर शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं-

  1. उन विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करना जो सामाजिक एवं आर्थिक कारणों से उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके हैं।
  2. लोगों को शिक्षा के समान अवसर प्रदान करना तथा शिक्षा संबंधी असमानताओं को दूर करना।
  3. शिक्षा पद्धति के प्रत्येक क्षेत्र में लचीलापन लाना।
  4. शिक्षा के स्तर में सुधार लाने के लिये प्रयास करना।
  5. शैक्षिक कार्यक्रमों के माध्यम से राष्ट्रीय एकता स्थापित करने के प्रयास करना।
  6. कार्यरत व्यक्तियों के लिये शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराना।
  7. शिक्षा के विस्तार के लिये कार्य करना।
  8. शोध कार्य के लिये व्यापक अवसर प्रदान करना।

दूरस्थ शिक्षा के लाभ प्राप्त करने के लिए राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश प्रशासन के लिए दिशा निर्देश

राज्यों को अपने तन्त्र व संसाधनों की क्षमता के आधार पर एक लघु व दीर्घकालिक शिक्षण योजना विकसित करनी होगी जो कि एक बहुआयामी दूरस्थ शिक्षा मॉडल का आधार बनेगी। छात्रों को डिजिटल प्रौद्योगिकियों तक पहुंचाने के लिए भी एक संसाधन और संख्या के आधार पर दीर्घकालीन शिक्षा की योजना विकसित करनी होगी।

सभी नियोजन प्रयासों में निष्पक्षता के आधार पर एक शीर्ष विचार होना चाहिए, क्योकि कई आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों में सबसे अधिक डिजिटल संसाधनों तक पहुंचने की क्षमता की कमी पाई जाती है। अल्पकालिक योजना को सभी छात्रों के लिए सीखने को जारी रखने के लिए तत्काल प्रतिक्रिया पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। मध्यम अवधि की योजना, स्कूलों को सामान्य रूप से फिर से खोलने और कार्य करने के लिए तैयार करेगी। राज्य संस्थान और बोर्ड स्तर पर डिजिटल शिक्षा की योजना बनाते समय निम्नलिखित बातो को ध्यान में रखा जा सकता है-

  1. आवश्यकता का आकलन तथा योजना मानव संसाधन की उपलब्धता और डिजिटल बुनियादी ढाँचा, छात्रों, शिक्षकों, अभिभावकों और समुदाय की आवश्यकताओं के आधार पर तैयार एवं विकसित किया जाय, ताकि उचित शिक्षण वातावरण सृजित हो सके।
  2. डिजिटल शिक्षा को अपनाने के लिए विभिन्न हितधारकों की क्षमता निर्माण को प्राथमिकता दें।
  3. राज्यों द्वारा चिन्हित किये गए मॉडल के आधार पर विभिन्न संचार प्लेटफार्मों (जैसे व्हाट्सएप, टेलीग्राम, नियमित फोन कॉल आदि) या लर्निंग मैनेजमेंट सिस्टम (एमओओडीएलई, गूगल क्लासरूम आदि) को चुना जा सकता है।
  4. प्रत्येक सप्ताह के सोखने के लक्ष्यो, डिजिटल प्लेटफार्मों और सार्वजनिक प्लेटफार्मों से सम्बन्धित सामग्री, मूल्यांकन रणनीतियों (मौखिक मूल्यांकन, रचनात्मक परियोजनाओं आदि) के विवरण के साथ सीखने की योजना तैयार की जानी चाहिए।
  5. Covid-19 अवधि के दौरान बहुत से बच्चों को लम्बे समय तक घर के अन्दर रहना पड़ा है जिसका बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है। आईवीआरएस के माध्यम से अपनी सुरक्षा और स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए बच्चों एवं शिक्षकों के साथ नियमित बातचीत पर विचार किया जा सकता है।
  6. गैप क्षेत्रों के साथ-साथ कठिन अवधारणाओं/ हार्ड स्पॉट की पहचान की जा सकती हैं और इन अवधारणाओं पर विकास को प्राथमिकता दी जा सकती है।
  7. NCERT द्वारा विकसित स्कूली शिक्षा के लिए ई-सामग्री के विकास के लिए दिशानिर्देश को भी संदर्भित किया जा सकता है।
  8. डिजिटल शिक्षा के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करेगा।
  9. डिजिटल शिक्षा को सार्थक और प्रभावी बनाने के लिए सभी छात्रों को निर्धारित मुद्रित एनर्जेटिक पाठ्यपुस्तकों (क्यूआर कोड के साथ) उपलब्ध कराई जा सकती है।
  10. राज्य के विशिष्ट वेब पोर्टल, टीवी चैनल, रेडियो चैनल आदि की योजना अपने हितधारकों तक पहुँचने के लिए (यूपी, असम, पंजाब, हरियाणा के अनुरूप) बनाई जा सकती है।
  11. शिक्षा के प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, माध्यमिक और वरिष्ठ माध्यमिक स्तरों के लिए NCERT द्वारा विकसित वैकल्पिक शैक्षणिक कैलेंडर (AAC) को राज्य स्थानीय पाठ्यक्रम के अनुसार अनुकूलित कर अपनाया जा सकता है और इसे निर्दिष्ट सीखने के परिणामों से जोड़ा जा सकता है।
  12. टेलीविजन / रेडियो कार्यक्रमों के लिए समय सारणी तैयार करते समय, बच्चों के लिए सुविधाजनक समय पर ध्यान दिया जा सकता है। विभिन्न वर्गों व कक्षाओं के लिए अलग-अलग समय स्लॉट दिए जा सकते हैं।
  13. शिक्षार्थी के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के सम्बन्ध में लाइव ब्रॉडकास्टिंग और स्क्रीन का समय विशिष्ट होना चाहिए। हालांकि प्रत्येक सत्र की समय सीमा 45 मिनट से अधिक नहीं होनी चाहिए।
  14. लाइव कक्षाएँ केवल सप्ताह के दिनों में निर्धारित की जा सकती है, सप्ताहांत का उपयोग छात्रों और अभिभावकों की ओर से सीखने और शिक्षकों की ओर से योजना बनाने और आने वाले सप्ताह के लिए स्वयं को तैयार करने के लिए किया जा सकता है।
  15. लॉकडाउन अवधि के दौरान छात्रों और शिक्षकों के लिए सामान्य अवकाश आवंटित किया जा सकता है।
  16. प्रत्येक स्तर पर सीखने के परिणामों की उपलब्धि सुनिश्चित करने के लिए मूल्यांकन को ऑनलाइन शिक्षण कार्यक्रमों का एक अभिन्न अंग बनाया जा सकता है। स्कूल छात्रों को सिखाने और सफल बनाने के उद्देश्य से एक सक्षम सतत फॉर्मेटिव ऑनलाइन
  17. सभी विषयों के लिए संकल्पना सूची (डायग्नोस्टिक प्रश्न बैंक) व्यापक रूप से बनाई और प्रकाशित की जा सकती है ताकि शिक्षण प्रारम्भिक आकलन करते समय उनका सर्वोत्तम उपयोग कर सके।
  18. माध्यमिक और वरिष्ठ माध्यमिक छात्रों द्वारा पूरे किए गए ऐसे पाठ्यक्रमों को पहचानने और क्रेडिट प्रदान करने के लिए पाठ्यक्रम आधारित ऑनलाइन पाठ्यक्रम विकसित करना और तन्त्र को विकसित बनाना होगा।

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