इलेक्ट्रॉनिक प्रसारण | Electronic Broadcastng and Media in hindi

इलेक्ट्रॉनिक प्रसारण (Electronic Broadcast)

प्रसारण (ब्रॉडकास्टिंग) गूढ़ तकनीकी प्रक्रिया का नाम है इसके लिए इलेक्ट्रॉनिक उपकरण तथा प्रणाली का प्रयोग होता है। इनमें से मुख्य हैं-

  1. माइक्रोफोन
  2. मिक्सचर
  3. ऐलीफायर
  4. ट्रान्समीटर
Electronic Broadcastng Media

उपर्युक्त उपकरण के माध्यम से प्रसारण की कड़ियो का सूत्रपात होता है। इसी को ब्रॉडकास्ट चेन कहते हैं। 'ब्रॉडकास्ट चेन' एक तारतम्यता होती है। यह तारतम्यता एक उपकरण से दूसरे उपकरण तक, एक तरह की यात्रा करती है। इस यात्रा अथवा इस धारावाहिक यात्रा का अंत उसी समय हो पाता है जब श्रोता, अपने रेडियो सेट पर ध्वनि सुन नहीं लेता। प्रत्येक उपकरण इसी धारावाहिक तकनीकी यात्रा का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यह धारावाहिक कड़ियों की संरचना करता है। तथा किसी भी उपकरण में खराबी पैदा हो जाने से, खराब हो जाने से या टूट-फूट जाने से, सबकुछ बिखर जाता है। इसीलिए, यह अत्यावश्यक है कि सभी उपकरण सुचारू रूप से काम करें।

बहुत कुछ स्टूडियो के डिजाइन के ऊपर आधारित होता है। ब्राडकास्ट कड़ियों की परम्परा, बहुत कुछ स्टूडियो की डिजाइन पर निर्भर होता है। स्टूडियो की डिजाइन का आधार, आवश्यकता पर होता है। जितनी दुरूह डिजाइन होती है, उतने ही दुरूह, उपकरण की व्यवस्था करनी पड़ती है। स्टूडियो कई प्रकार के होते हैं-

  1. एक व्यक्ति द्वारा संचालित स्टूडियो
  2. अनेक चैनल, कई प्रकार के स्टूडियो तरह-तरह के कार्यक्रम नेटवर्किंग के साथ
  3. कैडर या कार्यक्रम या मात्र प्रसारण से हस्तान्तरित (ट्रान्सफर) कार्यक्रम वाले स्टूडियो

ब्रॉडकास्ट चेन (Broadcast Chain)

किसी भी रेडियो केन्द्र में, मुख्य रूप से निम्नलिखित उप प्रणाली या उपकरण का समूह होता है।

  1. स्टूडियो केन्द्र जिसे कार्यक्रम निर्माण केन्द्र भी कहा जा सकता है।
  2. स्टूडियो के ट्रान्समीटर लिंक जिसे कड़ी संधि, जुड़ना भी कहा जाता है।
  3. ट्रान्समीटर केन्द्रा
  4. रेडियो प्रपोगेसन (Propogation) माध्यम यानी रेडियो के कार्यक्रम का उत्पन्न होना, उसका प्रचार करना।
  5. सिंगनल ग्रहण करने का उपकरण-रेडियो

परिभाषा (definition)

स्टूडियो का कार्यक्रम निर्माण केन्द्र उस स्थान को कहते है, जहाँ कार्यक्रम को अंकित किया जाता है, संपादित किया जाता है और उत्पादित (प्रोड्यूस) किया जाता है तथा नियत समय पर ट्रान्समिशन अथव प्रसारण के लिए चलाया जाता है या प्ले किया जाता है।

एस.टी.एल.

स्टूडियो केन्द्र से कार्यक्रम ट्रान्समीटर तक एस. टी. एल. के जरिये पहुँचाए जाते हैं। यह लिंक पा कड़ी, कई किलोमीटर दूर भी हो सकती है। सामान्य रूप से ट्रान्समीटर शहर से बाहर भी होते हैं, तब उनको निम्नलिखित माध्यम से पहुंचाया जाता है-

  1. टेलीफोन
  2. को एकशियल केवल
  3. माइक्रोवेव लिंक
  4. एफ.एम. रेडियो लिक
  5. सेटेलाइट

इस प्रकार से जो कार्यक्रम स्टूडियो से निर्गम किए जाते हैं एस.टी.एल. लिंग द्वारा प्रेषण किया जाता है। एस. सी. एल. का अर्थ है स्टूडियो से प्रेषण यंत्र की कड़ी।

प्रेषण (Remittance)

प्रेषण केन्द्र उस स्थान को कहते हैं, जहाँ प्रेषण यंत्र और ऐनटेना प्रणाली स्थापित की जाती है, जिसकी मदद से कार्यक्रम को रेडियो तरंगो (फ्रिक्वेन्सी) में परिवर्धित किया जाता है और उसमे अन्तर्निहित किरणों को इलेक्ट्रोमैग्नेट तरंगों या देव के रूप में रेडिएट (किरणों को हस्तान्तरित) किया जाता है। जहाँ से कई चैनल प्रसारित किये जाते हैं, जैसे दिल्ली 'ए' और दिल्ली 'वी' वहाँ प्रसारण केन्द्र पर ही सभी प्रेषणयन्त्र और एन्टीना स्थापित कर दिए जाते हैं। दिल्ली 'ए' को इन्द्रप्रस्थ चैनल और दिल्ली 'बी' को राजधानी चैनल कहा जाता है। एक चैनल के प्रसारण के लिए मात्र एक ट्रान्समीटर या प्रेषण यंत्र होता है।

मॉडुलेशन (Modulation)

बात एक चैनल की हो या एक ही स्थान से अनेक चैनल की हो, प्रत्येक चैनल के लिए एक विशिष्ट कॅरियर फ्रिक्वेन्सी वाले ट्रान्समीटर की आवश्यकता होती है तभी उस चैनल का प्रसारण या ब्रॉडकास्ट हो सकता है। कैरियर फ्रिक्वेन्सी उस परिवाहक देव या तरंग को कहते है, जो ध्वनि को निश्चित सीमा से आगे बढ़ाते हैं।

उदाहरण- दिल्ली ए चैनल का प्रसारण, उस ट्रान्समीटर से होता है, जो 809 किलोहर्ट्ज (1809 KHz) कॅरियर फ्रिक्वेन्सी पर चलता है। इसे मीडियम वेव कहते है जबकि दिल्ली 'बो' का प्रसारण दूसरे ट्रान्समीटर से होता है जो 1020 के. एच. जेड (KHz) कॅरियर फ्रिक्वेन्सी पर चलता है। यह भी मीडियम बैचैनल है।

ध्वनि सिगनल यानी कार्यक्रम, स्टूडियो से एस. टी. एल यानी स्टूडियो टू ट्रान्समीटर लिंक मायुलेटेड होता है। यह मादुलेशन उसी परिवाहक (कैरियर) फ्रिक्वेन्सी पर होता है जो ट्रान्समीटर उत्पन्न करता है और तब माडुलेटेड और रेडियो फ्रिक्वेन्सी जिसका संक्षिप्त शब्द आर.एफ. है, की पावर या शक्ति, ट्रान्समीटर से ऐन्टेना (antenna) को फीड की जाती है।

इस प्रकार से ऐनटेना, रेडियो फ्रिक्वेन्सी की पावर (शक्ति) बाहर की ओर विकीर्ण होकर, इलेक्ट्रो मैगनेट वेव में परिवर्तित हो जाती है। इन्हें रेडियो देव या तरंग रूप कहते हैं। रेडियो वेब की प्रवृति, कुछ इस प्रकार की होती है कि उसका प्रचार या उसकी उत्पत्ति विभिन्न पथ पर जाती है। यह मुख्यरूप से प्रसारण की कैरियर फ्रिक्वेन्सी पर आधारित होता है। मीडियम देव की रेन्ज, 3OOKH-3MHz (मेगाहर्ट्ज़) तक होती है।

इलेक्ट्रॉनिक : सामान्य परिचय (Electronics : General Introduction)

संचार के आधुनिक रूप को जन्मदात्री इलेक्ट्रॉनिकी है जो विश्व को नियामिका बन चुकी है। जीवन को सुख-सुविधा और गत्वरता देने वाली विस्मयकारी विधा का नाम ही इलेक्ट्रॉनिकी है जिसका अर्थ होता है। इलेक्ट्रॉन का व्यवहार एवं विद्युत परिपथ में इलेक्ट्रॉन प्रवाह के कारण उत्पन्न विद्युत धारा । इलेक्ट्रॉनिक्स इलेक्ट्रॉन से बना है। इलेक्ट्रॉन द्रव्य के ऋण आवेशित कण का नाम है।

आजकल इलेक्ट्रॉनिक युक्तियाँ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। इनके प्रचलन के निम्नलिखित कारण हैं-

  1. इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों द्वारा प्रकाशीय प्रतिविम्व को विद्युत धारा में और विद्युत धारा को प्रतिबिम्ब कम्पनदर्शी में रूपान्तरित किया जा सकता है।
  2. इलेक्ट्रॉनिक युक्तियाँ अपेक्षाकृत बहुत कम ऊर्जा का क्षय करके विद्युतीय, प्रकाशीय एवं अन्य राशियों का नियंत्रण कर सकती हैं।
  3. इनकी क्रिया एक ही दिशा में होती है।
  4. इनकी अनुक्रिया बहुत शीघ्रता से होती है।
  5. इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों की आयु अधिक है। इनकी टूट-फूट कम है।

इलेक्ट्रॉनिक युक्ति के गुणों का उपयोग रेक्टीफायर एप्लीफायर ओलेटर्स टेलीविजन, कैमरा और रिसीवर आदि अनेक यंत्रों में किया जाता है। रहार, ट्रॉन्समीटर, रेडियो, टीवी, टेलीफोन, टेपरिकार्डर, रेडियोग्राम, टेलीग्राफ, टेलीप्रिंटर्स कम्प्यूटर जैसे उपयोगी वस्तुओं के मूल में इलेक्ट्रोनिक ही है।

इलेक्ट्रॉनिक की उपयोगिता (Utility of Electronics)

जीवन का प्रत्येक क्षेत्र इलेक्ट्रॉनिकी के चलते प्रभावित है जिनमें महत्वपूर्ण क्षेत्र का परिचय अग्रलिखित हैं-

1. संचार (Communication ):- 'टेलीग्राफ' द्वारा संदेश प्रेषित करने, टेलीफोन द्वारा दूर-दूर तक वार्ता करने तथा तस्वीर देखने, टेलीप्रिन्टर द्वारा संदेश के रिकार्ड होने का चमत्कार इलेक्ट्रॉनिक से ही सम्भव है। संचार साधनों ने विश्व की भौगोलिक दूरी कम कर दी है जिसके मूल में यही है। कम्प्यूटर, इन्टरनेट, ई-मेल, मल्टीमीडिया कनवर्जेस, साइबर स्पेस सन्दर्भित संचार के क्षेत्र में इलेक्ट्रॉनिक की अत्यन्त भूमिका है।

2. मनोरंजन (Entertainment):- रेडियो, टीवी, टेपरिकार्डर, रेडियोग्राम, वीडियो, फिल्म इलेक्ट्रॉनिकी की देन है। विश्व के एक कोने में सम्पादित मनोरंजन का कार्यक्रम उपग्रह संचार द्वारा दूसरे कोने में देखा जाता है जो इसकी सहायता बिना असम्भव है। सम्प्रति सांस्कृतिक सामंजस्य के क्षेत्र में इसका अविस्मरणीय योगदान है।

3. प्रतिरक्षा (Defence):- युद्ध के समय समूची संचार व्यवस्था का नियन्त्रण, दुश्मनों के महत्त्वपूर्ण ठिकानों की खोज, उन्हें ध्वस्त करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है। इलेक्ट्रॉनिक राडार द्वारा शत्रु के हवाई जहाजों की स्थिति का पता चलता है। विकसित राष्ट्रों ने प्रक्षेपास्त्रों का आविष्कार कर लिया है और वे दूरस्थ सामरिक ठिकानों पर घातक हमले करते है। जहाँ अन्य संचार-साधन कट जाते हैं वहाँ उपग्रह संचार ही काम आते हैं। आपातकाल में इलेक्ट्रॉनिक युक्तियाँ ही उपयोग में आती है। प्रतिरक्षा, आक्रमण और सुरक्षा में इसकी प्रभावी भूमिका अपरिहार्य हैं।

4. चिकित्सा:- हृदय और मास्तिष्क की जाँच के लिए इलेक्ट्रॉनिक यन्त्रों द्वारा ही ग्राफ प्राप्त हो रहे हैं। ई.सी.जी., ई.ई.जी की सफलता इसी पर निर्भर है। अब तो रोगों के होने की पूर्व सूचना कम्प्यूटर द्वारा प्राप्त हो रही है।

5. उद्योग (Industries):- आधुनिक फैक्ट्री में स्वचालित प्रणाली पर अधिकाधिक कार्य पूरे हो रहे हैं जो इलेक्ट्रॉनिकी पर ही आधारित है। कम लागत पर उत्तम कोटि के उत्पादन में इलेक्ट्रॉनिकी का सहयोग उद्योग जगत में वरदान सिद्ध हुआ है।

6. अन्तरिक्ष (Space):- अन्तरिक्ष में नित न हो रहे हैं। ग्रह, उपग्रहों तक पहुंचने में इलेक्ट्रॉनिकी की विशिष्ट भूमिका है।

उपर्युक्त क्षेत्रों के अतिरिक्त, कृषि, शिक्षा, अपराध-जगत में इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों का प्रभाव सुस्पष्ट दिख पड़ता है।

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