सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का अर्थ, परिभाषा एवं उपयोग | Information and Communication Technology in hindi
सूचना की अवधारणा (Concept of Information)
सूचना शब्द अंग्रेजी के 'इनफॉर्मेशन' शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। इसका अर्थ है जानकारी देना, बताना आदि है। सूचना का अर्थ उस आवश्यक ज्ञान से हैं, जो मनुष्य समाज के लिए विकास का मार्ग खोलता है।
सूचनाएँ देने तथा पाने वाले के मध्य कार्य व्यवहार को शक्ति प्रदान करती हैं। सूचनाएँ किसी विशेष क्रम में व्यवस्थित किये गये डाटाओं का प्रस्तुतीकरण है। अतः यह भी कहा जा सकता है कि सूचनाएँ डाटाओं का संक्षेपण स्वरूप हैं। तकनीकी दृष्टि से देखा जाए तो डाटा किसी तथ्य, संख्या, नाम, चिह्न आदि को कहते हैं, जिनके माध्यम से सूचनाओं का निर्माण होता है। मुख्यतः कम्प्यूटर में सभी डाटा बाइनरी संख्या (0, 1) में ही प्रोसेस होते हैं जबकि किसी ऑडियो कैसेट में ये डाटा डिजिटल साउण्ड वेवज में प्रोसेस होते हैं।
सूचनाओं का किसी संस्थान में उपयोग व्यवस्थित तरीके से किया जाता है। कम्प्यूटर द्वारा डाटाओं को सम्भालने के लिए इलेक्ट्रॉनिक स्प्रेडशीट या डाटाबेस मैनेजमेन्ट जैसे सॉफ्टवेयर काम में लिए जाते हैं। आने वाले समय में तरह-तरह के डाटाओं को विभिन्न प्रकार के प्रोग्रामों में काम में लाये जाने की तैयारियां चल रही हैं, डाटाओं के क्रमबद्ध समूह से ही सूचनाएं बनती हैं।
सूचना की परिभाषा (Definition of Information)
'सूचना' से सम्बन्धित कई परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं-
1. कार्टर (1987) के अनुसार, "सूचना का तात्पर्य उस बहु-उपयोगी जानकारी से है जो प्रत्येक व्यक्ति, विषय व स्थान विशेष के लिए सदैव प्रस्तुत रहती हैं।"
2. हाफमैन के अनुसार, "सूचना वक्तव्यों तथ्यों अथवा आकृतियों का संकलन होती है।"
3. एन० बैल्किन के अनुसार, "सूचना उसे कहते हैं जिसमें आकार को परिवर्तन करने की क्षमता होती है।"
संचार एवं सम्प्रेषण की अवधारणा (Concept of Communication)
संचार या सम्प्रेषण अंग्रेजी के शब्द 'कम्यूनिकेशन' का हिन्दी रूपान्तरण है। इस शब्द की उत्पान लैटिन भाषा के शब्द 'कम्यूनीस' से मानी जाती है जिसका अर्थ होता है— 'कॉमन' या 'सामान्य'। अतः सम्प्रेषण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक सामान्य आवबोध के माध्यम से आदान-प्रदान किया जाता है। साधारण शब्दों में, जब दो या दो से अधिक व्यक्ति आपस में कुछ सार्थक चिन्हों, संकेतों या प्रतीको के माध्यम से विचारों या भावनाओं का आदान-प्रदान करते हैं तो उसे सम्प्रेषण या संचार कहा जाता है।
वर्तमान समय में तार, टेलीफोन, टेलीविजन तथा रेडियो आदि ने विचारों के सम्प्रेषण को अधिक सुलभ बना दिया है। परन्तु ये सभी साधन स्वयं संचार (सम्प्रेषण) नहीं है।
संचार की परिभाषा (Definition of Communication)
1. चार्ल्स ई० रेडफील्ड के अनुसार, "संचार से आशय, मानवीय तथ्यों एवं विचारों के पारस्परिक विनिमय से है, न कि टेलीफोन, तार, टेलीविजन, रेडियो आदि तकनीकी साधनों से।"
2. एन्डरसन के शब्दों में, “सम्प्रेषण एक गत्यात्मक प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति चेतनतया अथवा अचेतनतया, दूसरों के संज्ञानात्मक ढांचे को सांकेतिक (हाव-भाव आदि) रूप में, उपकरणों या साधनों द्वारा प्रभावित करता है।"
3. एडगर डेले के अनुसार, “सम्प्रेषण विचार-विनिमय के मूड में विचारों तथा भावनाओं को परस्पर जानने तथा समझने की प्रक्रिया है।"
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि सफल संचार (सम्प्रेषण) हेतु यह आवश्यक है कि सूचना देने वाला और सूचना पाने वाला विषय-वस्तु का एक समान अर्थबोध करने में सक्षम हो सके। किसी व्यक्ति द्वारा कोई बात कह देना ही पर्याप्त नहीं होता बल्कि आवश्यकता इस बात की भी होती है कि सूचना पाने वाला भी सूचना को उसी प्रकार प्राप्त करे एवं उसका वही अर्थ लगाए जो सूचना देने वाले का हो। यद्यपि किसी तथ्य पर कहने-सुनने वाले में मतैक्य होना आवश्यक नहीं है।
सूचना की विशेषताएँ
- सूचना अपने आप में परिपूर्ण होनी चाहिए।
- सूचना यथासम्भव परिशुद्ध होनी चाहिए।
- सूचना उचित समय पर उपलब्ध होनी चाहिए।
- सूचना समस्या परिस्थिति के सन्दर्भ में होनी चाहिए।
- सूचना क्रिया आधारित होनी चाहिए।
- सूचना उचित रूप से संग्रहित होनी चाहिए।
- सूचना यथासम्भव संक्षिप्त प्रारूप में होनी चाहिए।
- सूचना अर्थपूर्ण होनी चाहिए।
- सूचना प्रासंगिक होनी चाहिए।
सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी (Information and Communication Technology)
मनुष्य प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों तरीकों से ज्ञान प्राप्त कर सकता है। जब कभी किसी कारणवश कोई विद्यार्थी प्रत्यक्ष रूप से ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता था तब ऐसी स्थिति में वह अप्रत्यक्ष रूप से ज्ञान प्राप्त करता है। अप्रत्यक्ष ढंग से ज्ञात प्राप्त करने के कई ढंग हो सकते हैं, जैसे- किसी व्यक्ति से पूछकर, किताबो से, पत्र-पत्रिका के माध्यम से, चित्र, फोटोग्राफ, फिल्म देखकर, वीडियो, रेडियो, टेप, कम्प्यूटर इत्यादि से।
उपर्युक्त माध्यमों से सूचना के आधार पर विद्यार्थी किसी व्यक्ति, स्थान या वस्तु विशेष के बारे में 'जानने का प्रयास करता है। यह सभी जितने भी सूचना के माध्यम हो उन सभी से ठीक प्रकार से सूचना प्राप्त करना और सूचना का ठीक समय पर प्रयोग करना अर्थात् व्यक्ति को सूचनाएं प्राप्त करने, संग्रह करने और आवश्यकता होने पर इसके प्रयोग का ज्ञान आवश्यक है। इस प्रकार की गतिविधियां हो सूचना तकनीकी कहलाती है परन्तु सूचना की प्राप्ति और उसका उपयोग तभी सम्भव है जब इसमें सम्प्रेषण कला का समावेश हो।
सम्प्रेषण एक द्विमार्गी प्रक्रिया है। सम्प्रेषण की ही सहायता से हम अपने विचारों को, सूचना को, मान्यताओं को और जानकारी को दूसरों के साथ बाँटते हैं सम्प्रेषण में सूचना के स्रोत एवं सूचना प्राप्त करने वाले के मध्य आदान-प्रदान होता है जिससे ज्ञान की वृद्धि होती है। इसके उपयोग में सहायता मिलती है। इस प्रकार सूचना एवं सम्प्रेषण दोनों को ही ज्ञान प्राप्त करने और ज्ञान प्राप्ति के ढंग को जानने एवं समझाने के लिए आवश्यकता होती है। सूचना एवं सम्प्रेषण सम्बन्धी कार्य को अधिक कुशल बनाने के लिए नवोन तकनीकी अथवा विज्ञान की सहायता ली जाती है। इसे ही सूचना सम्प्रेषण तकनीकी (ICT) कहा जाता है।
सूचना और संचार प्रौद्योगिकी की परिभाषा (Definition of Information and Communication Technology)
1. प्रो० एस० के० दुबे के अनुसार, "सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकों का आशय संचार साधनों की व्यवस्था के कुशलतम संचालन से है जो सूचनाओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्रेषित करने में सहायता करती है।"
2. आर०के० शर्मा के अनुसार, "सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का आशय उन समस्त संचार साधनों के व्यावहारिक प्रयोग की ओर संकेत करता है, जो मानव के कल्याण तथा आवश्यकता पूर्ति हेतु सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं।"
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी एक-दूसरे से सम्बन्धित है क्योंकि सूचना के अभाव में सम्प्रेषण का कोई महत्त्व नहीं रह जाता और सम्प्रेषण के बिना सूचनाओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक शीघ्र गति से नहीं पहुंचाया जा सकता है। अतः यह स्पष्ट है कि सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीक का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है।
सूचना एवं संचार तकनीको एक विस्तृत अवधारणा है जिसमें सूचना एवं संचार प्रकिया और उसके प्रबन्ध सम्बन्धी सभी क्षेत्र सम्मिलित होते हैं। कम्प्यूटर हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और इण्टरनेट सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के आधारभूत साधन हैं, जिनका डिजाइन तैयार करने, उन्हें विकसित करने और उनके संचालन अथवा प्रबन्ध का कार्य, सूचना तकनीकी से सम्बन्धित व्यवसायियों द्वारा किया जाता है। दैनिक कार्य पद्धति, रेलवे और विमान आरक्षण, बैंकिंग, बीमा, टेलीफोन, जलवायु-मौसम सम्बन्धी पूर्वानुमान, रेडियो, खगोलविद्या, आण्विक परीक्षण, जीव विज्ञान, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य तथा कृषि शिक्षा आदि में सूचना एवं संचार तकनीकी ने क्रान्तिकारी परिवर्तन करके यह विश्वास दिया है कि इस नयी यदी अर्थात् 21वीं सदी में सूचना एवं संचार तकनीक का वर्चस्व होगा। सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी ने आज सम्पूर्ण विश्व को एक वैश्विक गाँव में परिवर्तित कर दिया है।
सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के उद्गम तथा विकास (Origin and Development of Information and Communication Technology)
प्राचीन समय में जब सूचनाओं को भेजने के तकनीकी साधन नहीं थे तब भी सूचनाओं का आदान-प्रदान होता था। उस समय सूचनाएँ मौखिक रूप से इकट्ठी की जाती थीं। मस्तिष्क में स्मृति के रूप में इन्हें इकट्ठा किया जाता था और मौखिक रूप से सूचना का हस्तान्तरण व उपयोग किया जाता था।
इसके पश्चात् लिखने की कला का आविष्कार हुआ। इस लिखने की कला से सूचना सम्प्रेषण का कार्य कुछ हद तक आसान हो गया। इसके पश्चात् 1438 में जर्मनी में गुटेनबर्ग द्वारा छापने की मशीन का आविष्कार किया गया। प्रिन्टिंग साधनों ने सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी में विशेष योगदान दिया है। सूचना एवं सम्प्रेषण की दिशा में निम्नलिखित प्रयास किए गए जो कि सूचनाओं को एक- दूसरे तक शीघ्रता से पहुँचाने में सहायक हुए-
- 1849 में फ्रांस के निवासी एल०जी०एम० डेगूरे तथा इंग्लैण्ड निवासी डब्ल्यू० एच०एफ० तालबोट द्वारा फोटोग्राफी का आविष्कार।
- सन् 1900 में फ्रांस के प्रोफेसर ऐबी रेने ग्राफीन द्वारा फोटोस्टेट तकनीक का आविष्कार।
- 1938 में अमेरिकन प्रोफेसर एफ० कार्लसन द्वारा जीरोग्राफी का आविष्कार।
- 1940 में इंग्लैण्ड निवासी जे०बी० डेंसर तथा फ्रांस निवासी रेने डेग्रेन द्वारा माइक्रोग्राफी का आविष्कार।
- 1960 में अमेरिको निवासी थियोडोर मेमन ने प्रिन्ट के लिए लेजर तकनीकी का आविष्कार किया।
- 20वीं सदी में चुम्बकीय वीडियो कैमरा, वीडियो डिस्क एवं कम्प्यूटरों का विकास।
- 1837 में अमेरिकी निवासी एस०पी०बी० मोर्स द्वारा टेलीग्राफ का आविष्कार।
- 1876 में स्कॉटलैण्ड निवासी अलेकजेन्डर ग्राहम बेल द्वारा टेलीफोन का आविष्कार।
- 1895 में इटली निवासी जी० मारकोनी द्वारा रेडियो का आविष्कार।
- 1925 में स्कॉटलैण्ड निवासी जे०एल० बेयर्ड द्वारा टेलीविजन का आविष्कार।
- संचार उपग्रहों का विकास।
- 20वीं शताब्दी में ही केबल व फैक्स तकनीक का आविष्कार।
इन आविष्कारों के माध्यम से मनुष्य को अपनी सूचना शीघ्रतापूर्वक पहुंचाने में काफी सहायता हुई परन्तु सेटेलाइट संचार ने सूचना पहुंचाने के स्तर को और अधिक बढ़ा दिया। सन् 1950 में U.S.A में सूचना विज्ञान का प्रचलन हुआ। इसका मुख्य उद्देश्य सूचनाओं के संचार को अधिक प्रभावशाली बनाकर सूचना की प्राप्ति के लिए नई विधियों व नई विकसित तकनीक के लिए प्रोग्राम को बनाना था। धीरे-धीरे सूचना सम्प्रेषण विज्ञान के दायरे में वृद्धि होती गयी और 1960 में औद्योगिक क्षेत्र में भी इसका प्रयोग किया जाने लगा। इसी समय कम्प्यूटर एवं संचार उपग्रह सेवाओं का विकास होने पर सूचना एवं सम्प्रेषण का दायरा बढ़कर सभी क्षेत्रों बैंकिंग, मैनेजमेण्ट, शिक्षण, शोध, चिकित्सा, स्वास्थ्य सेवाएँ, पुलिस एवं सेना, कानूनी सेवाएँ, इत्यादि में प्रसारित हो चुका था।
आज के समय में शायद ही कोई ऐसा इन्सान बच्चा हो जो किसी न किसी रूप में सूचना एवं संचार तकनीकी के प्रभाव से न जुड़ा हो। आज हम इसका प्रयोग औपचारिक व अनौपचारिक शिक्षा अधिगम में, कक्ष- शिक्षण, दूरवर्ती शिक्षण में सभी प्रकार से कर रहे हैं।
परम्परागत एवं आधुनिक सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकियाँ (Traditional and Modern Information and Communication Technologies)
सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकियों का अस्तित्व प्राचीन काल से निरन्तर विकसित होता आया है। अतः सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकियों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। इन दोनों भागों (परम्परागत एवं आधुनिक) में तकनीकियों का अध्ययन निम्न स्वरूप में किया जा सकता है-
1. परम्परागत सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकियाँ:- परम्परागत सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकियों में निम्न प्रकार के सामग्री, उपकरण एवं साधनों का प्रयोग किया जाता है-- इसके अन्तर्गत मुद्रित साधन, जैसे- पाठ्य-पुस्तकें, सन्दर्भ ग्रन्थ पुस्तकें, पत्र-पत्रिकाएँ, विद्यालयी एवं सार्वजनिक पुस्तकालयों में उपलब्ध पठन सामग्री आते हैं।
- औपचारिक एवं अनौपचारिक रूप में प्राप्त मौखिक सूचनाएं एवं ज्ञान भी परम्परागत सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी में आता है।
- चित्रात्मक शिक्षण सहायक साधन, जैसे- चार्ट, मानचित्र, चित्र, आरेख आदि भी परम्परागत सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के अन्तर्गत आते हैं।
- त्रिआयामी शिक्षण सहायक साधन, जैसे-मॉडल, कठपुतलियाँ आदि परम्परागत सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी में आते हैं।
- दृश्य-श्रव्य शिक्षण सामग्री जैसे रेडियो, टेलीवियर, स्लाइड प्रोजेक्टर, ओवरहेड प्रोजेक्टर, चलचित्र आदि भी परम्परागत सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी है।
- डिजिटल वीडियो कैमरा।
- मल्टीमीडिया पर्सनल कम्प्यूटर।
- वीडियो कार्ड तथा वेब कैमरे के साथ लैपटोप।
- CD ROM एवं DVD
- एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर वर्ड प्रोसेसर स्प्रेडशीट।
- LCD प्राजेक्टर अथवा D.L.P.
- कम्प्यूटर डेटाबेस।
- पॉवर प्वाइन्ट सिम्युलेशन।
- डिजिटल लाइब्रेरी ।
- ई-मेल, इंटरनेट एवं (WWW) वर्ल्ड वाइड वेब।
- हाइपरमोडिया तथा हाइपरटेक्स्ट स्त्रोत।
- वीडियो टेक्स्ट, टेली टेक्स्ट, इण्टरएक्टिव वीडियो टेक्स्ट, इण्टरएक्टिव रिमोट इन्स्ट्रक्शन।
- दृश्य व श्रव्य कान्फ्रेन्सिंग।
- अंतःक्रियात्मक रिमोट अनुदेशन।
- आभासी कक्षा।
शिक्षा में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के क्षेत्र (Scope of Information and Communication Technology in Education)
आधुनिक जीवन का प्रत्येक क्षेत्र सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी से प्रभावित है। शिक्षा का क्षेत्र भी पूर्णतया इसके प्रभाव में है। आज कम्प्यूटर, इंटरनेट का बढ़ता हुआ उपयोग शिक्षा को सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के पास लाता है। शिक्षा का प्रत्येक अंग, विधियां, प्रविधियों, शिक्षण उद्देश्य, शिक्षण प्रक्रिया, शोध इत्यादि सभी सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के बिना अधूरा है। अतः सूचना एवं सम्प्रेषण का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। इसके अन्तर्गत शिक्षण प्रक्रिया में सम्मिलित की जाने वाली सामग्री का निर्धारण और उसके कार्य क्षेत्र की सीमाओं का निर्धारण करना भी शामिल है। शिक्षा के क्षेत्र में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के कार्यक्षेत्र निम्नलिखित हैं-
1. शैक्षिक लक्ष्यों या उद्देश्यों का निर्धारण:- सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी की सहायता से शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती है। इन उद्देश्यों को निर्धारित कर विद्यार्थियों के अपेक्षित व्यवहार में परिवर्तन कर उनकी शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है।
2. शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के लिए युक्तियों का चयन:- सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी द्वारा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के लिए प्रयोग की जाने वाली नवीन युक्तियों का चुनाव एवं विकास बड़ी आसानी से किया जा सकता है। सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी शिक्षण प्रतिमानों का ज्ञान, विभिन्न विधियों एवं प्रविधियों का ज्ञान और उनके चुनाव करने में सहायता कर सकते हैं।
3. दृश्य-श्रव्य सामग्री का चुनाव, उत्पादन और उपयोग:- सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी द्वारा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के लिए विभिन्न प्रकार की दृश्य-श्रव्य सामग्रियों का चयन, उत्पादन और उपयोग किया जा सकता है। दृश्य-श्रव्य सामग्री के माध्यम से विद्यार्थियों को विशेष लाभ होता है।
4. पृष्ठ पोषण में सहायक:- सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली तभी सफल मानी जाती है जब उसका सही समय पर मूल्यांकन हो। पृष्ठ-पोषण द्वारा विद्या यों और शिक्षकों को उनकी अधिगम और शिक्षण विधियों की सफलता के बारे में जाँच की जाती है और कुछ कमियाँ होने पर उसे दूर करने का प्रयास किया जाता है। सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी द्वारा मूल्यांकन या पृष्ठ पोषण विधियों का चयन, विकास तथा उनकी उपयोगिता सम्भव हो सकती है।
5. शिक्षक प्रशिक्षण:- सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके लिए शिक्षण अभ्यास प्रतिमानों की रचना, सूक्ष्म शिक्षण, अनुकरणीय शिक्षण एवं प्रणाली उपागम का उपयोग किया जाता है।
6. प्रणाली उपागम का उपयोग:- शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न उप-प्रणालियों के मूल्यांकन के लिए प्रणाली उपागम के प्रयोग में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी महत्त्वपूर्ण है। शिक्षा के क्षेत्र में ये उप-प्रणालियां विद्यालय के वातावरण में, कक्षा में, कक्षा के बाहर प्रयुक्त होती है। इन प्रणालियों के तत्त्वों तथा उनको कार्य-पद्धति के अध्ययन में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी की प्रमुख भूमिका होती है।
7. मशीनों और जन सम्पर्क माध्यमों का उपयोग:- सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का कार्य-क्षेत्र मशीनों एवं अन्य जन सम्पर्क माध्यमों तक फैला है। इन मशीनों में रेडियो, टेलीविजन, टेपरिकॉर्डर, फिल्म प्रोजेक्टर, ओवरहेड प्रोजेक्टर, सेटेलाइट, कम्प्यूटर, इन्टरनेट आदि सम्मिलित है। सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी इन सभी के लिए आधार तैयार करती है।
8. सामान्य व्यवस्था, परीक्षण और अनुदेशन में उपयोग:- सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का प्रयोग हम सामान्य व्यवस्था, परीक्षण और अनुदेशन के कार्य-क्षेत्रों में भी करते हैं।
इस प्रकार सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का क्षेत्र काफी विस्तृत है। शैक्षिक तकनीकी ने शिक्षा के क्षेत्र में पुरानी अवधारणाओं में आधुनिक सन्दर्भ के साथ अभूतपूर्व क्रान्तिकारी परिवर्तन कर उन्हें एक नवीन स्वरूप प्रदान किया है।
सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी की सीमाएँ (Limitations of Information and Communication Technology)
ICT के उपयोग में कुछ कठिनाइयाँ भी आती हैं जिनसे इसका उपयोग सीमित हो जाता है। ICT की मुख्य सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
- ICT सम्बन्धी सूचनाएँ अभी इस देश के स्कूलों में पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं है क्योंकि कई स्कूलों के लिए इन्हें खरीद पाना सम्भव ही नहीं और न ही उनकी देखभाल करना। इन परिस्थितियों में ICT का प्रयोग ऐसे स्कूलों में सम्भव ही नहीं।
- ICT का प्रयोग सन्देह एवं डर पैदा करता है कि इन तकनीकी के प्रयोग से उनके हाथ में कुछ नहीं रहेगा।
- कुछ सीमा तक स्कूल के विद्यार्थी भी ICT का प्रयोग करने में रुचि नहीं रखते। ऐसा शायद ICT के ज्ञान के अभाव के कारण तथा उचित मार्गदर्शन के अभाव के कारण है।
- शिक्षक भी अपनी पुरानी पद्धति से परिवर्तन नहीं करना चाहते। वे रूढ़िवादिता में जकड़े रहना पसन्द करते हैं।
- ICT में शिक्षकों के प्रशिक्षण के अभाव के कारण भी इसका प्रयोग स्कूलों में सीमित ही है। इसके लिए अध्यापकों को प्रशिक्षण स्तर पर हो तैयार करके ICT के प्रयोग को सुनिश्चित किया जा सकता है।
- स्कूलों में उपलब्ध सीमित सूचनाओं की पृष्ठभूमि हमें इसी बात की ओर संकेत करती है कि अभी हमारे अधिकतर स्कूल ICT के प्रयोग के लिए पूर्ण रूप से तैयार नहीं हुए।
- स्कूल प्रशासन अधिकारी, मैनेजमेंट आदि भी स्कूलों में ICT के प्रयोग के बारे में संवेदनशील नहीं है। इस बारे में उनकी उदासीनता के परिणाम ICT का प्रयोग सीमित-सा दिखाई देता है। इसका प्रचार तो बहुत है लेकिन इसका प्रयोग अभी हर स्कूल की दहलीज पार नहीं कर पाया।
सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के उपयोग (Use of Information and Communication Technology)
- इसके द्वारा तथ्यों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाया जाता है।
- प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण करने में उपयोगी है।
- जहाँ उन आँकड़ों तथ्यों एवं सूचना की आवश्यकता होती है वहाँ उनका प्रयोग किया जाता है।
- विद्यालयों एवं कालेजों में बच्चों को अध्यापन में सहायता प्रदान करना।
- नवीन जानकारियों को जस की तस विद्यार्थियों तक पहुँचाना।
- विद्यार्थियों को शिक्षा जगत में हो रहे परिवर्तनों से अवगत करना।
- किसी भी विषय की प्रमुख एवं नवीनतम् जानकारी उपलब्ध कराना।
- किसी दूरस्य स्थान पर बैठे विशेषज्ञ, अध्यापक या वैज्ञानिक टेली-कॉन्फ्रेन्सिंग द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँचाना।
- छात्र शिक्षकों के मध्य अन्तःक्रिया को बढ़ावा देना।
- इण्टरनेट द्वारा जिज्ञासाओं की शान्ति।
- विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं को पूर्ण करना।
- विश्व के प्रमुख सन्दर्भ ग्रन्थों या पुस्तकों से विद्यार्थियों को परिचित कराना।
- ई-मेल द्वारा विद्यार्थियों की समस्याओं का समाधान करना।
- जीवन कौशल जीवन में सृजनात्मकता, सकारात्मकता, जागरूकता व नूतन ज्ञान प्राप्ति कैरियर निर्माण में इन साधनों द्वारा प्रसारित कार्यक्रम उपयोगी है।
- विद्यालय में परीक्षार्थियों से सम्बन्धित अंक तालिका, मूल्यांकन, परिणाम तैयार करने में इनका प्रयोग किया जाता है।
- शिक्षण दक्षता के विकास में उपयोगी है।
सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के कार्य (Functions of Information and Communication Technology)
1. सूचनाओं का संग्रहण:- विश्वभर में समस्त सूचनाएं किताबों, सिनेमा, कम्प्यूटर आदि में संग्रहीत है। इसे हम सरलतापूर्वक एक पीढ़ी से दूसरी पौड़ी को हस्तान्तरित करते हैं। इस कार्य के बिना सूचनाओ का सम्प्रेषण सम्भव नहीं है क्योंकि मौखिक रूप से सूचना हस्तान्तरण में अधिकांश सूचनाएँ विस्मृत हो जाती हैं और उनका भाग नष्ट हो जाता है। नवीन सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के कारण किताबों के साथ-साथ कम्प्यूटर, सिनेमा आदि अनेक ऐसे उदाहरण है जो हमारे पास है तथा हमें सूचना को संग्रहीत करने में मदद करते हैं।
2. सूचनाओं का हस्तान्तरण:- इसके लिए नवीनतम तकनीको माइक, लाउडस्पीकर, सिनेमा, LCD. LED Video Display आदि का प्रयोग किया जाता है। ये नवीनतम तकनीके हैं जो एक साथ हजारों लोगों तक सूचना पहुंचा सकती हैं। उपग्रह की सहायता से एक देश की सूचना दूसरे देश तक पहुँच सकती है।
3. सूचना की प्रोसेसिंग:- सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी ज्ञान, कौशल तथा अभिवृत्ति प्रदान करने की एक नवीन तथा उभरती हुई विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली एक शैक्षिक प्रक्रिया है जिसमे समय और स्थान के आयामों का शिक्षण एवं अधिगम में कोई हस्तक्षेप नहीं होता है। इस तकनीकी के माध्यम से दूरस्थ छात्रों को भी उत्तम गति से शिक्षा प्रदान की जा सकती हैं।