Print Media in Education | शिक्षा में प्रिन्ट मीडिया
प्रिंट मीडिया का अर्थ
यदि किसी सूचना या संदेश को लिखित माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाते हैं तो संचार के इस मध्यम को प्रिंट मीडिया कहते हैं। प्रिंट मीडिया, मीडिया का एक महत्वपूर्ण भाग है जिसने इतिहास के सभी पहलुओं को दर्शाने में मदद की है। जर्मनी के गुटेनबर्ग में खुले पहले छापाखाना ने संचार के क्षेत्र में क्रांति ला दी। जब तक लोगों का परिचय इंटरनेट से नहीं हुआ था, तब तक प्रिंट मीडिया ही संचार का सर्वोत्तम माध्यम था। मैग्जीन, जर्नल, दैनिक अखबार को प्रिंट मीडिया के अंतर्गत रखा जाता है।
प्रिंट मीडिया
दूरस्थ शैक्षिक संस्थाएँ शैक्षिक अनुदेशन के लिए अधिकतर मुद्रित सामग्री पर ही निर्भर रहते हैं। परन्तु आजकल अमुद्रित सामग्री का भी प्रचलन हो गया है। प्रभावशाली सम्प्रेषण के लिए दूरस्थ शैक्षिक संस्थाएँ अपने प्रत्येक कोर्स के लिए मुद्रित सामग्री तैयार कर उसका उपयोग करती हैं। यह मुद्रित सामग्री कोर्स के छात्रों के आयुवर्ग की विशेषताओं एवं आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर विशेषज्ञों से तैयार कराई जाती है। दूरस्थ शिक्षा में शिक्षक एवं छात्रों का प्रत्यक्ष सम्पर्क सम्भव नहीं होता। अतः यह सामग्री इस प्रकार से तैयार की जाती है कि छात्र इसे पढ़कर स्वयं अध्ययन कर, सीख सके और सफलता प्राप्त कर सकें।
प्रिंट मीडिया के अंतरगत समग्री
A). स्व-अनुदेशित सामग्री
आजकल दूरस्य शैक्षिक संस्थाओं में स्व-अनुदेशित सामग्री का प्रयोग मुद्रित सामग्री के रूप में प्रमुखता के साथ किया जाने लगा है। प्रत्येक कोर्स के लिए विभिन्न विशेषज्ञों द्वारा ये सामग्री छात्रों की आवश्यकताओं, उनकी आयु तथा उनके स्तरों के अनुरूप तैयार की जाती है। इस प्रकार की सामग्री का प्रमुख उद्देश्य होता है कि छात्र अपने आप अपने प्रयासों से अपने घर पर ही पाठ्यवस्तु को सरलता एवं स्पष्टता से समझ सके।
इस प्रकार की मुद्रित सामग्री सदैव एक निश्चित उद्देश्य की पूर्ति में सहायक होती है। छात्र अपनी-अपनी व्यक्तिगत गति, रुचि, मानसिक स्तर तथा क्षमता एवं योग्यता के अनुकूल स्व-अनुदेशित सामग्री के माध्यम से अध्ययन करते हैं और सरलता से विषय वस्तु समझ लेते है। स्व-अनुदेशित सामग्री के विभिन्न तीन प्रकार के मॉडल नीचे प्रस्तुत किये जा रहे हैं-
1. महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक (हरियाणा) मॉडल:- महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक के बी० एड० पत्राचार फोर्स में निम्नांकित शीर्षकों में स्व-अनुदेशित सामग्री व्यवस्थित की गई है-
- प्रस्तावना,
- यूनिट के विशेष उद्देश्य,
- विषय-वस्तु,
- मूल्यांकन उपकरण (अभ्यास प्रश्न),
- सन्दर्भ ग्रंथ।
2. ए०आई०यू० मॉडल:- एसोशिएशन ऑफ इन्डियन यूनीवर्सिटीज नई दिल्ली ने अपने दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम के अन्तर्गत Evaluation Methodology and Examination Reform के सॉफिकेट कोर्स के लिए जो स्व-अनुदेशित सामग्री तैयार कराई है उसमें प्रत्येक प्रकरण की विवेचना निम्नांकित शीर्षकों में की है-
- प्रकरण के व्यवहारात्मक उद्देश्य,
- प्रस्तावना,
- व्यवहारात्मक उद्देश्यों के अनुसार प्रकरण की विषय-वस्तु की प्रस्तुति (विन्दुवार),
- प्रकरण के विभिन्न बिन्दुओं के क्रमशः निष्कर्ष एवं सारांश.
- चैक लिस्ट,
- दत्त कार्य अभ्यास प्रश्न,
- सन्दर्भ ग्रन्थ।
3. इन्दिरा गाँधी नेशनल यूनीवर्सिटी मॉडल:- इन्दिरा गांधी नेशनल ओपन यूनीवर्सिटी (IGNOU) नई दिल्ली ने अपने विभिन्न कोसों के लिए स्व-अनुदेशित सामग्री तैयार करते समय निम्नांकित शीर्षकों के विषय-वस्तु स्पष्ट करने के लिए विवरण प्रस्तुत किया है—
- रूपरेखा या संरचना,
- प्रस्तावना,
- उद्देश्य,
- पाठ्य वस्तु विवरण-1,
- अभ्यास प्रश्न,
- अभ्यास में दिये गये प्रश्नों का उत्तर लिखने के लिए खाली स्थान,
- पाठ्य वस्तु विवरण-II,
- विवरण-II से सम्बन्धित अभ्यास प्रश्न,
- अभ्यास प्रश्न के उत्तर लिखने के लिए खाली स्थान.
- आवश्यकतानुसार पाठ्य वस्तु विवरण-III, IV, V आदि सम्बन्धित अभ्यास प्रश्न तथा अभ्यास प्रश्न के उत्तर लिखने का स्थाना
- आहए सार बताए (पाठ का सारांश),
- पाठ / यूनिट से सम्बन्धित क्रियाएँ,
- चर्चा परिचर्चा हेतु बिन्दु,
- सन्दर्भ ग्रन्था।
B). अन्य मुद्रित सामग्री
स्व-अनुदेशित सामग्री के अतिरिक्त अनेक प्रकार की अन्य मुद्रित सामग्री का प्रयोग भी ज्ञान के सम्प्रेषण के क्षेत्र में किया जाता है, जिनका विवेचन एक-एक कर नीचे दिया जा रहा है-
1. समाचार पत्र:- समाचार पत्र, जन सम्प्रेषण का एक शक्तिशाली साधन है। अधिकतर शिक्षित व्यक्ति समाचार पत्र पढ़ते हैं। ये रेडियो अथवा टेलीविजन पर समाचार सुनने के पश्चात् भी समाचार-पत्र पढ़ते हैं क्योंकि समाचार-पत्रों में प्रत्येक समाचार का विस्तृत विवरण दिया गया होता है। एक अच्छा समाचार-पत्र देश में घटित होने वाली खबरों का सही, सटीक तथा सन्तुलित विवरण प्रस्तुत करता है। समाचार-पत्रों में विभिन्न पक्षों, जैसे- शिक्षा, दर्शन, राजनीति, समाज-शास्त्र, विज्ञान, इतिहास, भूगोल आदि विभिन्न विषयों पर भी सामग्री मिलती है।
समाचार-पत्रों में समाचारों के अतिरिक्त विभिन्न Topics पर लेख तथा कथाएँ आदि भी प्रकाशित होती हैं। इस प्रकार के समाचार पत्रों के माध्यम से व्यक्तियों को नवीन ज्ञान प्राप्त होता है, उसे अपने क्षेत्र में नवीनतम सूचनाएं प्राप्त होती है, स्थानीय, प्रानतीय राष्ट्रीय तथा विश्व स्तर की विभिन्न घटनाओं तथा व्यक्तियों आदि के विषय में जानकारी प्राप्त होती हैं तथा समाचार-पत्र के माध्यम मे शिक्षा भी दी जाती है।
2. जर्नल या शोध-पत्रिकाएँ:— जर्नल, विभिन्न संस्थानों तथा एसोसिएशनों द्वारा प्रकाशित शोध-पत्रिकाएं होती हैं, जिनमें विषय विशेष पर नवीनतम शैक्षिक प्रपत्र तथा शोध-प्रपत्र प्रकाशित किये जाते हैं। इनका अध्ययन करके व्यक्ति अपने विषय में नवीनतम घटनाओं, आविष्कारों, सिद्धान्ता, खोजी तथा प्रयोगों के बारे में विस्तृत विवरण प्राप्त करता है। इस प्रकार व्यक्ति स्वयं को Up-to-date रखता है। शिक्षा के क्षेत्र में अनेक जर्नल निकलते हैं।
3. कार्य पुस्तकें:— कार्य पुस्तके या Work Book एक निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए तैयार की जाती है। वर्क बुक में छात्रों के करने के लिए विभिन्न कार्य दिये गये होते हैं जिन्हें छात्र करने के पश्चात् उन कार्यों में दक्षता प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। ये कार्य विभिन्न विषयों के विभिन्न प्रकरणों से सम्बन्धित होते हैं।
वर्क बुक में विभिन्न प्रकृति तथा कठिनाई स्तरों के अभ्यास दिये गये होते हैं, जिन्हें छात्रों को हल करना पड़ता है। वर्क बुक में पहले सरल और फिर कठिन प्रश्न कठिनाई स्तर में दिये गये होते हैं। प्रत्येक वर्क बुक में प्रारम्भ में पूर्व ज्ञान के मापन हेतु एक परीक्षण रखा जाता है जो यह बताता है कि छात्र को उस विषय से सम्बन्धित मूलभूत तत्त्वों का ज्ञान है अथवा नहीं। उसके पश्चात् विषय से सम्बन्धित विभिन्न इकाइयों या प्रकरणों पर समस्याएँ प्रश्न, अभ्यास दिये गये होते हैं।
वर्क बुक में प्रत्येक प्रकार के अभ्यास हेतु आवश्यक निर्देश, संकेत तथा उत्तर ( समस्या समाधान) दिए होते हैं। छात्रों को चाहिए कि वे पहले निर्दिष्ट विषय-वस्तु को पढ़ें और समझे, फिर वर्क बुक के निर्देश पढ़े और निर्देशों के अनुसार अभ्यास कार्य करने का प्रयास करें। कठिनाई होने पर वे दिये गये संकेतों को समझ कर, उसके अनुसार पुनः अभ्यास करे और समस्या समाधान तक पहुँचने का प्रयास करें। वर्क बुक: छात्रों में अध्यवसाय, ईमानदारी, परिश्रम तथा आत्मविश्वास के गुण विकसित करती है। तथा विषय वस्तु को स्पष्ट करने में मदद करती है। वर्क बुक छात्रों के ज्ञान में वृद्धि करती है तथा उन्हें दक्षता एवं कौशल प्रदान करती है।
4. शब्दकोश:- शब्दकोश में हजारों लाखों शब्दों के अर्थ दिये गये होते हैं। कुछ शब्दकोशों में शब्दों के अर्थ स्पष्ट करने के लिए चित्रों की भी सहायता ली जाती है। जैसे 'Elephant' शब्द का अर्थ हिन्दी में 'हाथी' गज आदि दिये हैं और हाथी को सही संकल्पना विकसित करने के लिए हाथी का चित्र भी साथ मे दिया होता है। कुछ शब्दकोशों में प्रत्येक शब्द के अर्थ के साथ-साथ यथासम्भव चित्र मिलेंगे और कुछ में केवल शब्दों के अर्थ ही दिये होते हैं।
कुछ शब्दकोश किसी विषय विशेष से सम्बन्धित होते हैं जैसे 'मनोविज्ञान शब्दकोश अथवा 'शिक्षा शब्दकोश' आदि। आजकल विभिन्न व्यवसायों से सम्बन्धित शब्दकोश भी उपलब्ध होते हैं जैसे "शिक्षक-शब्दकोश' 'डाक्टर शब्दकोश' आदि। कुछ शब्दकोश सामान्य जनहित के लिए उनकी भाषा सम्बन्धी कठिनाइयों के निवारणार्थं भी तैयार किये जाते हैं जैसे 'Merrian Webster's Collegiate Dictionary' अथवा 'भार्गव- शब्दकोश' आदि।
शब्दकोश में शब्द उनके क्रमानुसार दिये गये होते हैं ताकि वांछित शब्द खोजने में कोई दिक्कत न हो। अच्छे शब्दकोशों से पर्यायवाची तथा विलोम शब्दों का भी पता चलता है। शब्दों के संक्षिप्त रूप भी ज्ञात होते हैं। अधिकतर प्रयोग में आने वाले शब्दों के संकेत तथा सूत्र भी दिये जाते हैं। जहां आवश्यकता होती है वहाँ शब्द से सम्बन्धित Biographical तथा Geographical नाम भी दिये होते हैं।
शब्दों को लिखने की शैली तथा उनके उच्चारण को भी स्पष्ट किया गया होता है। शब्दकोश के शुरू में एक व्याख्यात्मक विवरण भी दिया जाता है जो यह बताता है कि शब्दकोश का प्रभावशाली उपयोग कैसे किया जाये। बहुत-से अच्छे शब्दकोशों में शब्दों के Cross References भी समावेशित किये जाते हैं।
शब्दकोशों में व्याकरण के आधार पर उनके वर्ग (यथा-संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण आदि) भी चिन्हित किये जाते हैं। बहुत-से शब्दकोश, शब्दों के अर्थ के साथ-साथ उन शब्दों की परिभाषा भी देते हैं तथा कुछ शब्दकोशों में शब्दों के उद्भव एवं विकास तथा उसके इतिहास पर भी प्रकाश डाला गया होता है एवं किम शब्द को कब और कहाँ तथा किस प्रकार से उपयोग करना चाहिए इसकी भी जानकारी दी हुई होती है।
इस प्रकार से कहा जा सकता है कि शब्दकोश वास्तव में 'गागर में सागर' का प्रयोग करते हैं। छात्रों को शब्द सम्बन्धी कठिनाई आने पर तुरन्त शब्दकोश की सहायता लेनी चाहिए। शब्दकोश छात्रों के शब्द भण्डार बढ़ाने में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
5. एनसाइक्लोपीडिया:- सामान्य शिक्षा के क्षेत्र में एनसाइक्लोपीडिया एक विशेष सन्दर्भ ग्रन्थ है, जिसमें किसी भी चीज के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। ग्रीक शब्द Enclykliopaideia से Encyclopaedia शब्द की उत्पत्ति हुई है। इस प्रकार के सन्दर्भ ग्रन्थ, सामान्य शिक्षा के साथ-साथ विशिष्ट शिक्षा के क्षेत्रों में भी होते हैं। ये शब्दकोशों की तुलना में काफी व्यापक होते हैं। शब्दों या वस्तुओं, प्रणाली अथवा सिद्धान्तों आदि के उद्भव विकास तथा सम्बन्धित शोधकार्य पर ये ग्रन्थ पूर्ण ज्ञान प्रदान करने में समर्थ होते हैं। शिक्षा के क्षेत्र मे मुनरो का एनसाइक्लोपीडिया काफी लोकप्रिय एवं उपयोगी सिद्ध हुआ है।
इनमें भी शब्द विषयवार Alphabetically व्यवस्थित होते हैं। ये सन्दर्भ ग्रन्थ नवीनतम सूचनाएँ प्रदान करते हैं और विद्वानों को और अधिक विद्वता, योग्यता एवं दक्षता प्रदान करने में समर्थ होते हैं।
6. एटलस:- एटलस एक ऐसी पुस्तक है जिसमें बहुत-से नक्शे होते हैं। लेकिन एटलस नक्शों की पुस्तक से बहुत ज्यादा कुछ होती है। ये तो वास्तव में नक्शों के सहित भूगोल का एनसाइक्लोपीडिया होता है। अथवा भूगोल का यह एक प्रकार से शब्दकोश होता है, जिसमें विभिन्न स्थानों के नाम, पहाड़, नदियों, समुद्र आदि के विषय में ज्ञान प्राप्त होता है।
एटलस जो एक बार प्रकाशित होती है उसमें प्रत्येक वर्ष प्रत्येक संस्करण में नवीनतम सूचनाएं, परिवर्तन आदि सम्मिलित कर इसे अधिकतम समीचीन, सटीक तथा Up-to-date बनाया जाता है। वैबस्टर के शब्दकोश में एटलस के विषय में लिखा है- "Atlas is a bound collection of maps often including illustrations. informative tables or textual matter."
विभिन्न स्थानों, वहाँ की भौगोलिक परिस्थितियों, भौगोलिक थातियों (जैसे- सागर, पर्वत, नदियां, झीले पठार आदि) एवं भौगोलिक सीमाओं का आदि ज्ञान एटलस के माध्यम से छात्रों को सरलता के साथ होता है। एटलस शिक्षक के हाथ में छात्रों के लिए एक शक्तिशाली उपकरण है, जिसका प्रयोग वह भूगोल शिक्षण को उन्नत तथा प्रभावशाली बनाने के लिए करता है।
7. पुस्तकें:- पुस्तक भी मुद्रित सामग्री है, जिसका प्रयोग शिक्षक विभिन्न प्रकार से कक्षा शिक्षण में करता है। पुस्तकें कई प्रकार की होती हैं; जैसे-
- पाठ्य-पुस्तकें
- पूरक पुस्तकें
- सन्दर्भ पुस्तकें
- सामान्य पुस्तकें।
पाठ्य पुस्तकों में पाठ्यक्रम के अनुसार पाठ्य वस्तु तार्किक एवं मनोवैज्ञानिक क्रम में मुव्यवस्थित होती है। इन्हें पढ़कर शिक्षक और छात्र दोनों पाठ्य-वस्तु का ज्ञान प्राप्त करते हैं तथा पाठ्य विवरण दुहराते हैं।
पूरक पुस्तकें, पाठ्य-पुस्तकों की व्याख्या करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इन्हें सहायक पुस्तकें भी कहा जाता है। ये पाठ्यक्रम के अनुसार पाठ्य पुस्तकों के ज्ञान को सरल, सुबोध व स्पष्ट करने में सहायक होती हैं। छात्र इनका प्रयोग कर पाठ्य-वस्तु को विधिवत् समझने में समर्थ होते हैं। सन्दर्भ पुस्तकें वे पुस्तकें कहलाती है जो गहन अध्ययन के लिए आवश्यक होती है। इनमें जर्नल्स, शब्दकोश तथा एनसाइक्लोपीडिया आदि भी आते हैं। पाठ्य-पुस्तक में पाठ्य-वस्तु के विवरण में इन पुस्तकों के विषय में संकेत दिये होते हैं कि अधिक विस्तृत तथा गहन जानकारी के लिए इन पुस्तकों को पढ़ा जाना चाहिए। छात्र सन्दर्भित पुस्तकों को पढ़कर अपने ज्ञान एवं योग्यता में वृद्धि करते हैं।
सामान्य पुस्तकों में अन्य सभी प्रकार की पुस्तकें आ जाती हैं जिनसे छात्रों के ज्ञान में वृद्धि होती है। ये कथा, लेख, निबन्ध, कविता, संस्मरण, रिपोर्ट्स तथा उपन्यास आदि विभिन्न विधाओं का प्रयोग करती हैं। विभिन्न वर्गों की पुस्तकों के उपर्युक्त विवरण के आधार पर कहा जा सकता है कि पुस्तके बहुत काम की चीजें हैं जिनके बिना आधुनिक युग में भी कार्य चलना बहुत मुश्किल है।
अच्छी पुस्तकों की मुख्य विशेषताएँ
- वह मुद्रित कागजों का एक सेट होता है।
- यह सेट एक जिल्द में सजा होता है।
- अनुकूल ज्ञान का भण्डार होता है।
- नवीनतम सूचनाओं, आविष्कारों तथा खोजों को स्वयं में समावेशित करता है।
- यह निश्चित उद्देश्य से लिखी जाती है।
- इसमें सामग्री विभिन्न अध्यायो, मुख्य शीर्षकों, उपशीर्षकों एवं बिन्दुओं या तत्त्वों में बंटी होती है, जिससे विषय-वस्तु को स्पष्टता तथा सरलता से समझा जा सके।
- पुस्तकों में मौलिकता, व्यापकता तथा विस्तृत दृष्टिकोण व्याप्त रहता है।
- पुस्तकों की भाषा में सरलता, सुबोधता, रोचकता तथा स्पष्टता होती है।
- पुस्तकों की छपाई तथा बंधाई सुन्दर एवं मजबूत होनी चाहिए।
- छात्रों के लिए अभ्यास, क्रियाकलाप, गृहकार्य तथा विस्तृत एवं गहन अध्ययन हेतु सन्दर्भ ग्रन्थों की सूची आदि इसमें निहित होती है।
- पुस्तकों विभिन्न विद्वानों की शैली एवं विचारों से छात्रों को परिचित कराती हैं और लाभान्वित करती हैं। पुस्तकें छात्रों एवं शिक्षक दोनों के लिए पथ प्रदर्शन का कार्य करती है और स्वाध्याय में सहायक होती है।
8. अभिक्रमित अधिगम:- अभिक्रमित अधिगम को अभिक्रमित अनुदेशन भी कहा जाता है। यह स्वयं अनुदेशन या स्वयं अधिगम की एक महत्त्वपूर्ण प्रविधि है। इसका मुख्य आधार स्किनर के 'अधिगम के क्रियात्मक अनुबन्धन के सिद्धान्त' तथा थॉर्नडाइक के 'प्रभाव के नियम' को माना जाता है।
पी०एस० आनन्द के शब्दों में, "अभिक्रमित अधिगम एक ऐसी शिक्षण प्रविधि अथवा तकनीक है। जिसमें सीखने योग्य विषय वस्तु की छोटे-छोटे पदों के रूप में इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है कि विद्यार्थी स्वयं प्रयत्न और स्वयं गति में सक्रिय रह कर एक पद से दूसरे पद तक आगे बढ़ता है। प्रत्येक पद पर उसे अनुक्रिया करनी होती है जिसकी सफलता का ज्ञान उसे तुरन्त कराया जाता है।"
शिक्षण सामग्री को छोटे छोटे पदों में तार्किक क्रम में व्यवस्थित करने की क्रिया को 'अभिक्रम' तथा इसको सम्पूर्ण प्रक्रिया को अभिक्रमित अनुदेशन या अभिक्रमित अध्ययन अथवा अभिक्रमित अधिगम कर जाता है। अभिक्रमित अधिगम में पाठ्य-वस्तु को छोटे-छोटे अशो अथवा पदों में विभाजित किया जाता है। रात्र एक पद का एक बिन्दु सीखता है, फिर अनुक्रिया करता है। अनुक्रिया के पश्चात् की गयी अनुक्रिया को काँच करता है। जाँच करने पर यदि ज्ञात होता है कि उसकी अनुक्रिया सही थी तो वह अगले बिन्दु या पद को मोखने के लिए अग्रसर हो जाता है। सीखने के पश्चात् वह पुनः अनुक्रिया करता है, अनुक्रिया की जाँच करता और सही अनुक्रिया ज्ञात होने पर अगला पद सीखने के लिए आगे बढ़ जाता है। इस प्रकार अभिक्रमित अधिगम में छात्र एक के बाद एक नये ज्ञान के बिन्दु अथवा नवीन पद का ज्ञान प्राप्त करते हुए पूर्ण विषय-वस्तु से परिचित ही नहीं उस पर अधिकार भी प्राप्त कर लेते हैं।
यदि पद का ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् जाँच करने पर यह पता चलता है कि छात्र की अनुक्रिया माँ नहीं है तो वह अभिक्रमित सामग्री के निर्देशित पृष्ठों पर जाता है और वहाँ विषय-वस्तु का स्पष्टीकरण प्राप्त करता है। स्पष्टीकरण के पश्चात् वह पुनः उसी पद की अनुक्रिया करता है, जाँच करता है और सही होने पर अगले ज्ञान के बिन्दु अथवा अगले पद की ओर बढ़ जाता है।
9. हैन्डआउट:- विभिन्न प्रशिक्षण संस्थानों द्वारा शिक्षण/प्रशिक्षण के विभिन्न विषयों प्रकरणों/पक्षी पर हैन्डआउट का निर्माण किया जाता है। इनमें सम्बन्धित प्रकरण या विषय पर गहराई के साथ गहन स्तर पर विषय सामग्री दी जाती है। पाठ्य पुस्तकों में तो विषय प्रकरण पर व्यापक दृष्टि से विषय सामग्री प्रस्तुत की जाती है। जबकि हैन्डआउट में विषय से सम्बन्धित विशिष्ट सामग्री दी गयी होती है।
हैन्डआउट प्रशिक्षणार्थियों तथा शिक्षकों के लिए एक प्रभावशाली उपकरण है, जिसके माध्यम से वे का अध्ययन उसकी गहराई में जाकर करते हैं। विषय हैन्डआउट में समय-समय पर उपयुक्त परिवर्तन करके उसे अधिक उपयोगी तथा Uptodate बनाया जाता है।
10. चार्ट, पोस्टर, डायग्राम एवं ग्राफ (चित्र):— "किसी वस्तु या क्रिया को स्पष्ट करने के लिए चार्ट पेपर पर बनाये गये चित्रों तथा इसके लिखित विवरण को चार्ट कहते हैं।" चार्ट या तो हाथ से बनाये जाते हैं अथवा मुद्रित होते हैं।
चार्ट का प्रयोग लगभग हर विषय में किया जा सकता है। चार्ट के प्रभावशाली उपयोग के लिए उचित विधि से ही चार्ट का प्रयोग करना चाहिए। चार्ट की विषय-वस्तु सुव्यवस्थित, स्पष्ट, सुन्दर, सुडौल तथा बड़े आकार की होनी चाहिए जिसे कक्षा में प्रत्येक छात्र आसानी से देख सके।
पोस्टर एक विशेष सन्देश को जन-जन तक पहुँचाने का शक्तिशाली उपकरण हैं। पोस्टर में आकर्षक ढंग से किसी भी विचार को प्रदर्शित करने को क्षमता होती हैं। पोस्टर की सामग्री अनायास ही व्यक्ति को बड़ी सरलता के साथ अपनी ओर खींच लेती है। निर्देशन, प्रौढ़ शिक्षा, जनसंख्या शिक्षा आदि के क्षेत्र में पोस्टर बहुत उपयोगी सिद्ध हुए हैं।
डायग्राम तथा स्क्रैच शिक्षक को ऐसे समय सहायता देते हैं, जब अन्य सम्प्रेषण की सामग्री उपलब्ध नहीं हो पाती। ऐसे समय या तो शिक्षक स्वयं श्यामपट पर डायग्राम तथा स्कैच खींच लेता है या वह मुद्रि डायग्राम एवं स्कैचों का प्रयोग करता है तथा स्क्रैच प्रत्येक विषय के लिए उपयोगी प्रविधि है।
ग्राफ:- ग्राफ का प्रयोग तथ्यों या विचारों को मात्रात्मक रूप से प्रस्तुत करने के उद्देश्य से किया जात है। आधुनिक युग में समाचार पत्र तथा पत्रिकाओं में विभिन्न ग्राफों का प्रयोग विभिन्न आँकड़ों क प्रतिनिधित्व करने के लिए बहुत लोकप्रिय हो गया है। ग्राफ हर विषय के लिए उपयुक्त प्रविधि है। शिक्षक कक्षा में मुद्रित तथा अपने स्वयं के बनाये ग्राफ का प्रयोग करता है।
मुद्रित सामग्री के लाभ
यदि मुद्रित सामग्री का सही ढंग से उपयोग किया जाये तो यह एक उत्तम साधन है। इसके पेशेष लाभ नीचे दिये जा रहे हैं-
- इनका उपयोग करना सरल होता है।
- पाठ्य-वस्तु को स्पष्ट करती है।
- औपचारिक तथा अनौपचारिक एवं दूरस्थ शिक्षा में उसकी भूमिका अति महत्त्वपूर्ण है।
- यह शिक्षा का एक मितव्ययी साधन है।
- यह सरलता से उपलब्ध हो जाती है।
- इसके प्रस्तुतीकरण में आसानी होती है।
- मुद्रित सामग्री द्वारा अधिकतर सही आंकड़े, सटीक वर्णन तथा उपयुक्त चित्र आदि का दिग्दर्शन सम्भव है।
- कक्षा में रोचकता लाती है।
- देखने में आकर्षक होती है।
- यह अपेक्षाकृत सस्तो एवं अच्छी सामग्री होती है।
- यह स्व-अध्ययन के लिए भी बड़ी उपयोगी है।
मुद्रित सामग्री की सीमाएँ
- इस विधा में अधिकतर प्रतिपुष्टि मिलने की व्यवस्था नहीं है। (अभिक्रमित अध्ययन या स्व-अध्ययन सामग्री को छोड़कर)।
- मुद्रित सामग्री को समझने हेतु विशिष्ट मानसिक परिपक्वता की आवश्यकता होती है।
- सामान्यतः यह सामग्री एक निश्चित स्तर के छात्रों के लिए तैयार की गयी होती है। अतः यह सभी स्तर के छात्रों के लिए उपयोगी नहीं होती है।
- इसके माध्यम से कौशल एवं दक्षताओं का विकास सम्भव नहीं है।
- मुद्रित सामग्री व्यक्तिगत आवश्यकताओं तथा कठिनाइयों को दूर करने में समर्थ नहीं है।
- मुद्रित सामग्री का सही और उपयुक्त उपयोग कर सकना हर स्तर के शिक्षक के वश की बात नहीं। इसके प्रभावशाली प्रयोग के लिए विशिष्ट कौशल की जरूरत पड़ती है।