शिक्षा के क्षेत्र में जन-संचार की उपयोगिता एवं महत्त्व | Utility and Importance of Mass Communication in the field of Education in hindi
शिक्षा के क्षेत्र में जन-संचार की उपयोगिता (Use of Mass Communication in the field of Education)
ऐसे साधन जिसके माध्यम से विभिन्न प्रकार की सूचनाएं, खबरों आदि को दूर-दराज के इलाकों में लगभग हर व्यक्ति तक पहुंचाने की कोशिश की जाए इन माध्यमों को जनसंचार या जन-सम्पर्क (Mass-Media) कहते हैं। इसके अंतर्गत रेडियो, दूरदर्शन, समाचार, पत्र-पत्रिकाएं, इंटरनेट, सोशल मीडिया आदि आते हैं तथा जब इन माध्यमों का उपयोग शिक्षा के क्षेत्र में किया जाता है तो इनको शिक्षा के साधन कहा जाता है। इस रूप में ये शिक्षा के औपचारिक या अनौपचारिक साधन कहलाते हैं।
शिक्षा के इन साधनों के उपयोग शिक्षा से जुड़े अनेक प्रकार के उद्देश्यों अथवा शैक्षिक कार्यों को पूरा करने की कोशिश की जाती है। जैसे राष्ट्र के परिप्रेक्ष्य में सबके लिए शिक्षा पहुँचाने का कार्य, शिक्षा का अधिकार कानून को सही तरह लागू करवाने का कार्य या रेडियो, दूरदर्शन आदि के माध्यम से सामाजिक नाटकों के प्रसारण से सामाजिक चेतना विकास या सांस्कृतिक गतिविधियों के प्रदर्शन से संस्कृति से परिचय व संस्कृति का संरक्षण आदि।
यह शिक्षा का बहुत ही शक्तिशाली साधन है। इन्हें तेजी से पहुंचाने वाले या द्रुतगामी साधनों के रूप में देखा जा सकता है।
शिक्षा के क्षेत्र में जन-संचार का महत्व व आवश्यकता (Importance and Need of Mass Communication in the field of Education)
हमारे पूरे समाज में जनसंचार का महत्व और आवश्यकता बहुत अधिक है-
- जनसंचार के माध्यमों से सभी को शिक्षा पहुंचा कर संविधान में शिक्षा के मूलभूत अधिकार के राष्ट्रीय महत्त्व को पूरा करना ।
- दिन-प्रतिदिन देश-विदेश की घटनाओं से जनसामान्य को परिचित कराना।
- देश के विभिन्न भागों की संस्कृति से जुड़े कार्यक्रमों के प्रदर्शन द्वारा जन सामान्य को अपने देश की संस्कृति से परिचित कराना।
- समाचार आदि के प्रसारण से जन सामान्य को एक सजग व सचेत नागरिक बनाना।
- जन सामान्य की सूचनाओं को शीघ्रता से दूर-दूर तक पहुँचाना।
- शिक्षा के स्तर में सुधार की दृष्टि से औपचारिक शिक्षा से संबद्ध कठिन संकल्पना वाले या अधिक साधनों के प्रयोग वाले पाठों के प्रदर्शन से पाठों को सभी के लिए उपलब्ध करवाना।
जनसंचार माध्यमों का उद्देश्य (Objectives of Mass Media)
जनसंचार माध्यमों का मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं-
- विभिन्न प्रकार की सूचनाएं देना।
- जन सामान्य को जागरुक बनाना।
- कठिन संकल्पनाओं को सरल व व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करना।
- मनोरंजन करना।
- समस्याओं व उसके निदान को प्रस्तुत करना।
- सूझ-बूझ उत्पन्न करना।
- विभिन्न घटनाओं पर अपना मत बनाने की उत्सुकता पैदा करना।
- जिज्ञासा, कल्पनाशक्ति एवं सृजनात्मकता को पैदा करना।
- व्यावहारिकता से सिद्धांतों को जोड़ना तथा व्यवहार में परिवर्तन लाना।
- समाज तथा व्यक्ति से एक दूसरे को पास-पास लाना।
- अंतर्राष्ट्रीय मंच से व्यक्ति को जोड़ना।
- किसी सामाजिक अथवा अन्य विषय पर विशेषज्ञों की चर्चा करना।
- विभिन्न समस्याओं पर विशेषज्ञों की सलाह दिलाना।
- मानव को विभिन्न प्रकार के विषयों की जानकारी देकर उसे निरंतर शिक्षा से जोड़े रखना यानी शिक्षा को वास्तविक रूप में आजीवन शिक्षा का रूप देना।
- जन सामान्य को सामान्य कानूनी शिक्षा, पर्यावरण शिक्षा, विकलांगों की समस्याओं व शिक्षा की जानकारी देना।
- ऐसे स्थानों, कार्यों, वस्तुओं से जनता को परिचित कराना जो उनकी पहुंच से दूर हैं।
सूचना और विचारों का प्रसार व संचार के आधुनिक साधनों द्वारा मनोरंजन प्रदान करना जनसंचार है। इसके तहत इलैक्ट्रानिक और प्रिंट दोनों ही माध्यम आते हैं। संचार के परंपरागत साधन आधुनिक समाज को परिवर्तित परिस्थितियों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने में इतने समर्थ नहीं रहे हैं। इसीलिए तीव्र गति से सूचना संप्रेषण के कार्य को संपन्न करने हेतु संचार के नये-नये माध्यमों की खोज होती रही है और हो रही है। जनसंचार में सूचना का अभूतपूर्व प्रभाव है, अगर सूचना न हो तो संचार का कोई अस्तित्व एवं महत्व नहीं होगा।
समाचार-पत्र, पत्रिकाएं, टेलीविजन, रेडियो, विज्ञापन फिल्म आदि जनसंचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समाचार पत्र उद्योग जिसके तहत दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, संपादन, उत्पादन और वितरण हेतु सूचना प्रौद्योगिकी की परिष्कृत आधुनिकतम विधियों को प्रयोग में लाते हैं। इलेक्ट्रानिक माध्यमों के तहत रेडियो एवं टेलीविजन।
सूचना प्रसारण माध्यम आदि आज राजनैतिक और आर्थिक शक्ति के महत्वपूर्ण और शक्तिशाली साधन माने जाते हैं। जनसंचार के माध्यमों का प्रमुख कार्य मनोरंजन, विभिन्न घटनाओं एवं क्रिया-कलापों को सूचना समाज के सार्वजनिक हितों को विभिन्न संदर्भों में प्रस्तुत करना है। विश्वस्तर पर यह एक प्रभावी उपकरण है।
जनसंचार माध्यम का कक्षा में इस्तेमाल (Use of Mass Media in the Classroom)
आज रेडियो, दूरदर्शन, इंटरनेट आदि के द्वारा कक्षा के भीतर भी बच्चों को अनौपचारिक रूप से उनके पाठों से जोड़ा जाता है। इंदिरा गांधी खुला विश्वविद्यालय के बहुत सारे शिक्षा से जुड़े हुए कार्यक्रम इस दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। ये कार्यक्रम विद्यार्थियों के साथ-साथ जनसामान्य के लिए भी उतने ही जरूरी व लाभप्रद हैं। आकाशवाणी के द्वारा विभिन्न कार्यक्रम अध्यापकों के लिए उच्च माध्यमिक बच्चों के लिए. प्राथमिक कक्षाओं के बच्चों के लिए तथा छोटे बच्चों के लिए तथा विभिन्न स्तर के बच्चों की परीक्षाओं को दृष्टि से बहुत ही उपयोगी हैं। ये कार्यक्रम प्रातः व सायं दोनों समय पर प्रसारित किए जाते हैं।
इसी प्रकार दूरदर्शन पर भी विद्यालयों से जुड़े कार्यक्रमों का प्रदर्शन होता है। इन कार्यक्रमों में विज्ञान के प्रयोगों का प्रदर्शन तो विज्ञान शिक्षण को एक सार्थकता देता है। ये विभिन्न प्रकार के प्रसारित किए जाने वाले कार्यक्रम सभी के विषयों तथा समाज विज्ञान, विज्ञान गणित, अर्थशास्त्र आदि से जुड़े होते है। ये बच्चों को सूझ-बूझ तो देते ही हैं साथ ही ज्ञान को बच्चों तक पहुंचाते है। कक्षा के अंदर इसका शिक्षा की तकनीक के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। कक्षा में समाचार पत्र, पत्र-पत्रिकाओं आदि की सहायता से शिक्षण जहां विषय को जीवंत बनाता है वहीं बच्चों का समाज से भी जुड़ाव होता है।
अलग-अलग तरह के शोध ने कक्षा के भीतर व कक्षा के बाहर इन साधनों के प्रयोग का मूल्यांकन किया व पाया कि शिक्षा के साधन के रूप में इनके परिणाम उत्साहवर्धक है। वास्तव में जिस प्रकार और जिस तेजी से ज्ञान का विस्तार हो रहा है उस संपूर्ण ज्ञान को कक्षा के भीतर दे पाना अध्यापक के लिए मुश्किल काम है। अध्यापक की भी अपनी सीमाएँ है। इसलिए जन संचार के माध्यम औपचारिक कक्षाओं के पूरक के रूप में काम करते हैं। ये वास्तविक रूप में व्यक्ति और समाज को आपस में जोड़ते हैं परन्तु फिर भी इनकी अपनी सीमाए हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में जन-संचार की सीमाएँ (Limitations of Mass Communication in Education)
जन-संचार की कुछ सीमाएँ इस प्रकार हैं-
- ये माध्यम एकतरफा साधन की भूमिका निभाते हैं।
- यद्यपि ये औपचारिक साधन हैं। जन सामान्य इन्हें अपनी इच्छानुसार देख सकते हैं, परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से ये भी निश्चित समय से बंधे हुए हैं सभी कार्यक्रम नियत दिन निश्चित समय पर प्रसारित होते हैं।
- अनेक वार ये कार्यक्रम विशिष्ट वर्ग के लिए प्रसारित होते हैं परन्तु जब दूसरे भी इसे देखते हैं तो उसका विपरीत प्रभाव भी पड़ता हैं।
- एक बार कार्यक्रम निकल जाने पर उसे पुनः सुनना या देखना बहुत मुश्किल होता है। कई बार कार्यक्रम जन सामान्य की समझ से बाहर होते हैं।
- इनमें संवाद की स्थिति का अभाव होने पर कई बार इन्हें देखने सुनने या पढ़ने के बाद व्यक्ति तनावग्रस्त भी हो जाते है पर इसका इन माध्यमों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
- अनेक बार ये किसी वर्ग विशेष के अनुभवों से बाहर हो जाते है।
- अनेक बार से इतने अव्यवस्थित होते हैं कि इन्हें एक उद्देश्य के रूप में समझ पाना कठिन होता हैं।
- अधिकतर जन सामान्य की रुचियों, आवश्यकताओं आदि की अपेक्षा होती रहती है।
हमारे जैसे देश में विकास कार्यक्रमों और नीतियों के बारे में जनता में जागरुकता पैदा करने में जनसंचार के विभिन्न माध्यमों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इससे जनता को प्रेरणा मिलती है कि वे राष्ट्र निर्माण कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लें इसलिए इस बात की चेष्टा की जा रही है कि एक ओर देश के परंपरागत तथा लोक माध्यमों और दूसरी ओर उपग्रह संचार जैसे आधुनिक दृश्य श्रव्य माध्यमों में कुशल समन्वय स्थापित किया जाए।
वर्ष 2002-03 को भारतीय उद्योग परिसंघ ने मल्टीमीडिया वर्ष के रूप में घोषित किया मीडिया क्षेत्र में अनेक नीति सम्बन्धी फैसले 2000 के वर्ष में किए गए जिनका उद्देश्य तेजी से बदलते मडिया परिदृश्य की चुनौतियों का सामना करना था। जिसमें प्रस्ताव पास हुआ कि डीटीएच सेवाओं का खोला जाना, अपलिकिंग नीति का उदारीकरण, रेडियो का एफ एम सेवाओं का निजी प्रसारकों के लिए खोलना, पत्र सूचना कार्यालय आदि का प्रारूप तैयार करना प्रमुख है।
डी. टी. एच. वह सेवा है जिसके माध्यम से उपग्रह प्रणाली का प्रयोग करते हुए के.यू. बैंड पर विविध चैनलों पर चलने वाले टीवी कार्यक्रमों का इस सेवा के उपभोक्ताओं को सीधा प्रसारण किया जाता है। अपलिंकिंग नीति को उदार बनाया गया। जिसका अर्थ है कि टीवी चैनलो को भी भारत से अपने कार्यक्रम अपलिकिंग करने की अनुमति प्रदान की गई। इसी प्रकार रेडियो सेवाओं में विविधता लाने और मनोरंजन मे विकल्प उपलब्ध कराने के लिए 40 शहरों में 100 एफएम रेडियो स्टेशन 2001 से आरम्भ किए गए।