नेटवर्क क्या है? What is Networking in hindi

नेटवर्क क्या है? (What is Network?)

जब अनेक पृथक-पृथक इकाइयाँ किसी एक उद्देश्य के लिये एक साथ मिलकर कार्य करती हैं, तो यह एक नेटवर्क बनाती हैं। नेटवर्क में स्थित इकाइयाँ किसी-न-किसी रूप में आपस में एक-दूसरे से सम्बद्ध होती हैं। इसे इस प्रकार समझते हैं, एक टूथपेस्ट बनाने वाली कम्पनी को अपने टूथपेस्ट को अपने ग्राहकों तक पहुँचाना है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उत्पादक से प्रयोगकर्ता के मध्य जुड़े अनेक व्यक्ति एक नेटवर्क (Network) स्थापित करते हैं। ऐसा नहीं है, कि नेटवर्क (Network) से जुड़े व्यक्ति का इस नेटवर्क से जुड़ने में उसका अपना कोई स्वार्थ नहीं होता, परन्तु उसकी स्वार्थ सिद्धि के साथ-साथ उद्देश्य भी पूर्ण होता है।

नेटवर्क क्या है? (What is Network?)

कम्प्यूटर नेटवर्क क्या है? (What is Computer Network?)

जब एक से अधिक कम्प्यूटर्स आपस में किसी माध्यम से जुड़े हों और आपस में विभिन्न डेटा और सूचनाओं का आदान-प्रदान करने की स्थिति में हों, ये एक कम्प्यूटर नेटवर्क स्थापित करते हैं।

एक बड़ा कम्प्यूटर जिससे कि बहुत सारे अन्य ऐसे कम्प्यूटर्स जुड़े हों, जिन पर कार्य करने वाले अपने कम्प्यूटर पर तो कार्य कर ही सकते हैं, अपितु उस बड़े कम्प्यूटर की मदद भी ले सकते हो, कम्प्यूटर नेटवर्क कहा जाता है। कम्प्यूटर में प्रयोग होने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य डेटा होता है। डेटा पर गणना करके इसे सूचना के रूप में परिवर्तित किया जाता है। कम्प्यूटर नेटवर्क के अन्तर्गत एक बड़े कम्प्यूटर के अन्दर सारा डेटा व सूचनायें भर दी जाती हैं और उसके साथ अन्य कम्प्यूटरों को भी जोड़ दिया जाता है।

इसका लाभ यह है कि सब अपना-अपना कार्य तीव्र गति से कर सकते हैं और सारा डेटा व सूचनायें भी एक ही जगह पर सुरक्षित रहती हैं। किसी एक व्यक्ति के अनुपस्थित रहने पर भी कार्य प्रभावित नहीं होता है और कम्प्यूटर की डिलीव स्मृति पर भी अधिक दबाव नहीं पड़ता।

नेटवर्क टोपोलॉजी (Network Topology)

कम्प्यूटर नेटवर्क स्थापित करने के लिये एक से अधिक कम्प्यूटर्स को आपस में जोड़ा जाता है। इन कम्प्यूटर्स को आपस में जोड़ने की पद्यति को ही नेटवर्क टोपोलॉजी (Network Topology) कहा जाता है।

टोपोलॉजी (Topology) अथवा नेटवर्क टोपोलॉजी का तात्पर्य नेटवर्क में कम्प्यूटर्स, केबल्स और अन्य कम्पोनेन्ट्स अर्थात् नेटवर्क डिवाइसेज़ के व्यवस्थापन अथवा फिजिकल लेआउट से होता है। वास्तव में टोपोलॉजी (Topology) वह शब्द है, जिसका प्रयोग नेटवर्किंग में नेटवर्क के डिज़ाइन के लिए किया जाता है। किसी नेटवर्क की टोपोलॉजी उसकी क्षमताओं को प्रभावित करती है। किसी नेटवर्क के टोपोलॉजी का चयन निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है-

  1. नेटवर्क की आवश्यकताओं के अनुसार उपकरण (Equipment) का प्रकार।
  2. उपकरण (Equipment) की क्षमता (Capability)।
  3. नेटवर्क की वृद्धि (Growth)।
  4. नेटवर्क को प्रबन्धित (Manage) करने का तरीका।

नेटवर्क में मुख्य रूप से निम्न तीन टोपोलॉजीज़ का प्रयोग किया जाता है-

  1. लीनियर बस टोपोलॉजी (Linear Bus Topology)
  2. स्टार टोपोलॉजी (Star Topology)
  3. रिंग टोपोलॉजी (Ring Topology)

1. लीनियर बस टोपोलॉजी (Linear Bus Topology):- लीनियर बस टोपोलॉजी (Linear Bus Topology) में डेटा का आवागमन शीघ्रता एवं सरलता से हो जाता है तथा यह टोपोलॉजी सबसे सरल मानी जाती है। इस टोपोलॉजी में नेटवर्क के सभी नोड्स (Node) एक ही केवल, जो ओपन एन्डेड (Open Ended) होता है, से इन्टरकनेक्टेड (Interconnected) होते हैं।

Linear Bus Topology

इस केबल (Cable) को बस (Bus) कहा जाता है। समस्त डेटा इस केबल के माध्यम से नोड्स से सर्वर तक और सर्वर से नोड तक जाता है। चूंकि पूरा नेटवर्क इस अकेली केबल पर निर्भर करता है अतः किसी कारणवश इस केबल में कोई खराबी आ जाती है, तो नेटवर्क भी कार्य करना बन्द कर देता है।

2. स्टार टोपोलॉजी (Star Topology):- स्टार टोपोलॉजी (Star Topology) में नेटवर्क की सभी नोड्स को एक सर्वर से जोड़ा जाता है। इस टोपोलॉजी में सर्वर को नेटवर्क के मध्य में रखा जाता है तथा सभी नोड्स को पृथक्-पृथक् सर्वर से जोड़ा जाता है। इस टोपोलॉजी में किसी एक नोड के खराब होने से नेटवर्क पर तब तक कोई प्रभाव नहीं पड़ता जब तक कि सर्वर सही कार्य करता रहे, क्योंकि प्रत्येक नोड, सर्वर से व्यक्तिगत रूप से जुड़ा होता है।

Star Topology

3. रिंग टोपोलॉजी (Ring Topology):- रिंग टोपोलॉजी (Ring Topology) भी लीनियर बस टोपोलॉजी के समान ही होती है। दोनों में अन्तर केवल इतना है कि रिंग टोपोलॉजी में डेटा एक बन्द परिपथ में गमन करता है, जबकि लीनियर बस टोपोलॉजी में यह एक खुले परिपथ में गमन करता है। इस टोपोलॉजी में डेटा का आवागमन Communication Channel पर ही निर्भर करता है। यदि दुर्घटनावश यह चैनल किसी स्थान से टूट जाता है, तो पूरा नेटवर्क कार्य करना बन्द कर देता है।

Ring Topology

नेटवर्क के प्रकार (Types of Network)

विस्तार के आधार पर नेटवर्क तीन प्रकार के होते हैं— LAN, MAN तथा WAN ।

1. लैन (LAN)

इसका पूरा नाम लोकल एरिया नेटवर्क (Local Area Network) है। यह वह निजी नेटवर्क है जो कि एक ही इमारत के अन्दर या किसी स्कूल व कालेज के कैम्पस (Campus) के अन्दर के लिये प्रयोग किया जाता है। यह निजी कम्प्यूटर्स और कुछ बड़े कम्प्यूटरों को जो कि किसी दफ्तर या किसी औद्योगिक संयंत्र के अन्दर लगे हों और जिसके साथ कई आउटपुट उपकरण लगे हों, प्रयोग किया जाता है। इसमें जोड़े गये अनेक कम्प्यूटर्स में से केवल एक ही एक समय पर मास्टर कम्प्यूटर का कार्य करता है। इस नेटवर्क के अन्दर मुख्यतः प्रयोग करने वाली तकनीक जिसमें कि एक लम्बी केबल के साथ सभी कम्प्यूटर्स को जोड़ दिया जाता है। इसमें डेटा के प्रवाह की गति 10 से 100 MBPS (Mega Byte Per Second) से अधिक होती है साथ ही डेटा के प्रवाह में देरी की सम्भावना नगण्य होती है।

2. मैन (MAN)

इसका पूरा नाम मेट्रोपोलिटन एरिया नेटवर्क (Metropolitan Area Network) है। इस प्रकार का नेटवर्क लेन (LAN) के समान ही होता है, परन्तु इसका विस्तार लेन की अपेक्षा कहीं अधिक होता है। यदि कोई नेटवर्क शहर भर में फैला होता है, तो यह MAN कहलाता है। इस नेटवर्क में भी कम्प्यूटर्स एक शहर के अन्दर ही तारों द्वारा आपस में जुड़े होते हैं, परन्तु बीच-बीच में एम्प्लीफायर्स का प्रयोग किया जाता है, ताकि डेटा नष्ट न हो। यह भी एक निजी नेटवर्क हो सकता है। आजकल महानगरों में प्रचलित केबिल इन्टरनेट इसी नेटवर्क का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

3. वैन (WAN)

इसका पूरा नाम वाइड एरिया नेटवर्क (Wide Area Network) है। इस तरह के नेटवर्क के लिये बहुत बड़ा क्षेत्र: जैसे—एक पूरा देश अथवा एक पूरा महाद्वीप; लिया जाता है। इसके अन्दर बहुत-सी कम्प्यूटर मशीनें लगी होती हैं। इन कम्प्यूटर मशीनों को मेजबान (Host) कहा जाता है। इन मेजबानों को एक छोटे नैटवर्क से जोड़ा जाता है। इस नेटवर्क का कार्य एक मशीन से दूसरी मशीन तक डेटा पहुंचाना होता है।

वाइड एरिया नेटवर्क के अन्दर दो मुख्य कारक होते हैं— डेटा प्रवाहित के लिये तारें तथा स्विच। स्विच एक तरह के ट्रैन्ड कम्प्यूटर होते हैं, जो कि दो अथवा दो से अधिक तारों के मध्य में लगे होते हैं। जब एक अन्दर आने वाली तार से डेटा आता है, तो स्विच, उसे डेटा के प्रवाह के लिये उस तार को चुन लेता है, जहां पर वह डेटा जाना होता है। सामान्यतः इन स्विचिंग कम्प्यूटर्स को Router कहा जाता है। वाइड एरिया नेटवर्किंग में सैटेलाइट का प्रयोग भी किया जाता है। प्रत्येक Router का एक एन्टीना होता है जिससे कि यह डेटा का प्रेषण तथा उनको प्राप्त भी कर सकता है।

नेटवर्क कॉन्फिगरेशन (Network Configuration)

कम्प्यूटर नेटवक्र्स के कुछ निश्चित घटक, फक्शन्स और विशेषताएँ होते हैं, जोकि निम्नलिखित हैं—

(1) सर्वर (Server):— नेटवर्क में लगा एक ऐसा कम्प्यूटर, जो मुख्य रूप से अन्य सभी कम्प्यूटर्स से जुड़ा हो और प्रत्येक कम्प्यूटर की रिक्वेस्ट (Request) को ग्रहण करके उसकी मनचाही सूचना को प्रदान कर सके, सर्वर (Server) कहलाता है। इसी कम्प्यूटर मशीन पर नेटवर्क का समस्त डेटा और इन्फॉर्मेशन्स संग्रहीत रहती हैं। जब किसी कम्प्यूटर को डेटा की आवश्यकता होती है, तो वह पहले सर्वर को डेटा प्राप्त करने के लिए रिक्वेस्ट (Request) भेजता है, तब सर्वर यह जांच करता है, कि रिक्वेस्ट करने वाला कम्प्यूटर इस डेटा को प्राप्त करने का अधिकारी है अथवा नहीं और इस डेटा के लिए अधिकारी पाने पर इसकी प्रार्थना के अनुरूप डेटा उस कम्प्यूटर को भेज देता है।

(2) क्लाइन्ट (Client):- नेटवर्क में सर्वर से जुड़े थे कम्प्यूटर्स जो किसी सर्वर द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले शेयर्ड नेटवर्क रिसोर्सेस (Shared Network Resources) को एक्सेस (Access) करते हैं, क्लाइन्ट (Client) कहलाते हैं।

(3) मीडिया (Media):- वे केबल्स (Cables), जिनके माध्यम से नेटवर्क के कम्प्यूटर्स के मध्य फिजिकल कनेक्शन्स (Physical Connections) किया जाता है, मीडिया (Media) कहलाते हैं। इन केवल्स को कम्यूनिकेशन चैनल (Communication Channel) भी कहा जाता है। नेटवर्क में डेटा इन्हीं केबल्स के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्रवाहित होता है।

(4) नेटवर्क इन्टरफेस कार्ड (Network Interface Card-NIC):— सर्वर तथा वर्कस्टेशन्स अथवा नोड्स में सम्पर्क स्थापित करने के लिए नेटवर्क इन्टरफेस कार्ड (Network Interface Card) अर्थात् NIC का प्रयोग किया जाता है। यह नेटवर्क स्थापित करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण हार्डवेयर होता है। यह नेटवर्क के सभी कम्प्यूटर्स अर्थात् वर्कस्टेशन्स अथवा नोड्स तथा सर्वर पर लगा होता है। यही कार्ड नोड अथवा वर्कस्टेशन की रिक्वेस्ट को ग्रहण करके आगे सर्वर तक पहुंचाने का कार्य करता है और सर्वर रिक्वेस्ट के अनुरूप सूचनाएँ प्रेषित करने के लिए उस नोट अथवा वर्कस्टेशन के नेटवर्क इन्टरफेस कार्ड से सम्पर्क स्थापित करता है।

(5) शेयर्ड डेटा (Shared Data):- नेटवर्क में शेयर्ड डेटा का आशय उन फाइल्स से है, जो सर्वर्स द्वारा नेटवर्क में क्लाइन्ट्स को उपलब्ध की जाती हैं।

(6) शेयर्ड पेरिफेरल डिवाइसेज़ (Shared Peripheral Devices):- नेटवर्क में शेयर्ड पेरीफेरल डिवाइसेज़ का आशय, सर्वर द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले प्रिन्टर्स (Printers), हार्ड डिस्क्स (Hard Disks) और अन्य पेरिफेरल डिवाइसेज़ (Peripheral Devices) से है।

कम्प्यूटर नेटवर्क का वर्गीकरण (Classification of Computer Network)

कम्प्यूटर नेटवर्क्स को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है— पीयर-टू-पीयर नेटवर्क (Peer-to-Peer (Network) और सर्वर-आधारित नेटवर्क्स (Server Based Networks)।

नेटवर्क्स का यह वर्गीकरण इस आधार पर किया जा सकता है कि नेटवर्क में कम्प्यूटर्स को किस प्रकार कन्फ़िगर (Configure) किया जाता है और वे सूचनाओं की शेयरिंग (Sharing) किस प्रकार करते हैं। चूंकि नेटवर्क्स के दोनों वर्गों की क्षमताएं भिन्न-भिन्न है, अतः पीयर-टू-पीयर नेटवर्क (Peer-to-Peer (Network) और सर्वर आधारित नेटवर्क (Server Based Network) के मध्य विभेद करना महत्वपूर्ण है। इनमें से किसी नेटवर्क के वर्ग का चयन (क्रियान्वयन के लिए) निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है—

  1. संस्था का आकार (Size of the Organization)
  2. वांछित सुरक्षा का स्तर (Level of Security Required)
  3. व्यापार का प्रकार (Type of Business)
  4. नेटवर्क ट्रैफिक की मात्रा (Amount of Network Traffic)
  5. नेटवर्क यूजर्स की आवश्यकताएं (Needs of the Network Users)
  6. नेटवर्क बजट (Network Budget)

1. पीयर-टु-पीयर नेटवर्क (Peer-to-Peer Network)

पीयर-दु-पीयर नेटवर्क में न तो कोई डेडिकेटेड सर्वर होता है और न ही कम्प्यूटर्स के मध्य हिरारिकी (Hierarchy) अर्थात् क्रम होता है। सभी कम्प्यूटर्स एक समान होते हैं, अतः उन्हें पीयर (Peers) कहा जाता है।

नेटवर्क का प्रत्येक कम्प्यूटर, क्लाइन्ट (Client) और सर्वर ( Server) दोनों के रूप में कार्य करता है। नेटवर्क का एडमिनिस्ट्रेटर (Administrator) सम्पूर्ण नेटवर्क को एडमिनिस्ट्रेट (Administrate) करने के लिए उत्तरदायी नहीं होता है, बल्कि यह उत्तरदायित्व प्रत्येक यूज़र का होता है कि किस कम्प्यूटर पर संग्रहीत कौन-कौन डेटा नेटवर्क में शेयर किए जाएंगे।

पीयर-टु-पीयर नेटवर्क में एक समान परफॉरमेंस के स्टैण्डर्ड्स और सुरक्षा के स्तर की आवश्यकता नहीं होती है। अनेक ऑपरेटिंग सिस्टम्स में पीयर-टू-पीयर ने अंतर्निमित होती है। अतः पीयर-टू-पीवर नेटवर्क को इन्स्टाल करने के लिए किसी अतिरिक्त सॉफ्टवेयर की आवश्यकता नहीं होती है। एक साधारण नेटवर्क इन्वायरनमेन्ट (Environment) में पीयर-टु-पीयर नेटवर्क के क्रियान्वयन के निम्नलिखित लाभ हैं—

  1. कम्प्यूटर यूजर्स की डेस्क पर स्थित होते हैं।
  2. यूज़र स्वयं एडमिनिस्ट्रेटर का कार्य करते हैं और अपनी सुरक्षा की योजना बनाते हैं।
  3. नेटवर्क में कम्प्यूटर एक साधारण केबलिंग सिस्टम से जुड़े होते हैं।

2. सर्वर-आधारित नेटवर्क्स (Server-Based Networks)

एक डेडिकेटेड सर्वर, किसी नेटवर्क में वह कम्प्यूटर होता है, जो केवल सर्वर के रूप में कार्य करता है और जिसका प्रयोग क्लाइन्ट अथवा वर्कस्टेशन के रूप में नहीं किया जा सकता है। सर्वर को डेडिकेटेड सर्वर के रूप में इसलिए वर्णित किया जाता है; क्योंकि इनसे क्लाइन्ट्स द्वारा की गई रिक्वेस्ट्स (Requests) के लिए तीव्र गति से सर्विस देने की आशा की जाती है, साथ ही फाइल्स और डायरेक्ट्रीज़ की सुरक्षा की सुनिश्चितता की आशा की जाती है। जैसे-जैसे नेटवर्क आकार में बढ़ता है अर्थात् जैसे-जैसे नेटवर्क में कम्प्यूटरों की संख्या, उनके बीच की दूरी और उनके मध्य ट्रैफिक बढ़ता है, तो नेटवर्क में एक से अधिक सर्वर्स की आवश्यकता होती है। नेटवर्किंग के कार्यों को एक से अधिक सर्वर्स के मध्य वितरित करने से यह सुनिश्चित होता है कि प्रत्येक कार्य कम समय में, प्रभावशाली ढंग और आसानी से निष्यादित होंगे। बड़े सर्वर-बेस्ड नेटवर्क (Server Based Network) में विभिन्न प्रकार के सर्वर्स का प्रयोग किया जाता है, जो निम्नलिखित हैं-

(1) फाइल और प्रिन्ट सर्वर्स (File and Print Servers):- फाइल और प्रिन्ट सर्वर्स, यूज़र एक्सेस, फाइल्स के प्रयोग (Use of Files) और प्रिन्टर को प्रबन्धित करते हैं। दूसरे शब्दों में, फाइल और प्रिन्ट सर्वर्स का प्रयोग फाइल और डेटा स्टोरेज के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए जब आप किसी वर्ड प्रोसेसिंग सॉफ्टवेयर, जैसे- MS Word को अपने कम्प्यूटर पर रन करते हैं, तो यह फाइल और प्रिन्ट सर्वर से आपके कम्प्यूटर की मेमोरी में लोड होता है, ताकि आप इसका प्रयोग लोकली कर सकें।

(2) एप्लीकेशन सर्वर्स (Application Servers):- एप्लीकेशन सर्वर, क्लाइन्ट को डेटा उपलब्ध कराते हैं। एप्लीकेशन सर्वर फाइल और प्रिन्ट सर्वर से इस अर्थ में भिन्न होते हैं, कि फाइल और प्रिन्ट सर्वर से रिक्वेस्ट किए गए डेटा अथवा फाइल क्लाइन्ट कम्प्यूटर पर डाउनलोड होते हैं, जबकि एप्लीकेशन सर्वर, क्लाइन्ट द्वारा की गई रिक्वेस्ट के परिणाम को क्लाइन्ट को भेजता है। अर्थात् क्लाइन्ट कम्प्यूटर पर उसके द्वारा की गई रिक्वेस्ट का रिजल्ट एप्लीकेशन सर्वर से डाउनलोड होता है।

(3) मेल सर्वर (Mail Server):— मेल सर्वर भी एप्लीकेशन सर्वर के समान कार्य करते हैं; क्योंकि सर्वर और क्लाइन्ट एप्लीकेशन्स पृथक-पृथक होते हैं और क्लाइन्ट कम्प्यूटर पर मेल डाउनलोड होते हैं।

(4) फैक्स सर्वर (Fax Server):— फैक्स सर्वर एक अथवा एक से अधिक फैक्स मॉडेम बोर्ड को शेयर कर फैक्स से सम्बन्धित आने और जाने वाले ट्रैफिक को प्रबन्धित करते हैं।

(5) कॅम्यूनिकेशन सर्वर (Communication Server):- कम्यूनिकेशन सर्वर, अपने नेटवर्क और अन्य नेटवर्क्स के मध्य डेटा फ्लो (Data Flow) और ई-मेल मैसेज को संचालित करते हैं।

(6) डायरेक्ट्री सर्विसेज़ सर्वर (Directory Services Server):- डायरेक्ट्री सर्विसेज सर्वर यूजर्स को नेटवर्क में डेटा और सूचनाओं को खोजने, संग्रहीत करने और सुरक्षित करने की सुविधा देते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ सर्वर सॉफ्टवेयर, जैसे- विन्डोज़ NT 4.0 सर्वर (Windows NT 4.0 Server), कम्प्यूटर्स को विभिन्न ग्रुप्स (Groups) में समूहित करने की सुविधा उपलब्ध कराते हैं। इन ग्रुप्स को डोमेन्स (Domains) कहा जाता है, जो नेटवर्क में किसी भी यूज़र को किसी भी रिसोर्स (Resource) पर एक्सेस किए जाने की अनुमति प्रदान करता है । यद्यपि सर्वर-आधारित नेटवर्क को इन्सटाल, कॉनफिगर और मैनेज करना कठिन तथा जटिल होता है, फिर भी पीयर-टु-पीयर नेटवर्क की तुलना में इसके निम्नलिखित लाभ हैं-

  1. संसाधनों की शेयरिंग (Sharing Resources):- एक सर्वर को अनेक फाइल्स और प्रिन्टर्स पर एक्सेस प्रदान करने के साथ-साथ यूज़र के लिए परफॉरमेंस और सिक्यूरिटी भी मेन्टेन करने के लिए डिजाइन किया गया होता है। सर्वर आधारित नेटवर्क में डेटा शेयरिंग को सेन्ट्रली एडमिनिस्ट्रेट और कन्ट्रोल किया जा सकता है।
  2. सिक्यूरिटी (Security):— सर्वर-आधारित नेटवर्क का चयन करने का प्रमुख कारण सिक्यूरिटी ही होता है। सर्वर-आधारित नेटवर्क में एक ही एडमिनिस्ट्रेटर, पॉलिसी निर्धारित करता है और उसे नेटवर्क में प्रत्येक यूज़र के लिए प्रभावी करता है। अतः सर्वर आधारित नेटवर्क में सिक्यूरिटी का प्रबन्धन सरल है।
  3. बैकअप (Backup):- सर्वर-आधारित नेटवर्क में डेटा के महत्व और मान के आधार पर, उसका बैकअप प्रतिदिन अथवा प्रति सप्ताह प्राप्त करने के लिए शेड्यूल (Schedule) किया जा सकता है।
  4. डेटा-रिडन्डान्सी (Data Redundancy):— सर्वर-आधारित नेटवर्क में किसी भी सर्वर पर संग्रहीत डेटा को किसी अन्य सर्वर पर कॉपी किया जा सकता है। अतः प्राइमरी डेटा स्टोरेज एरिया के क्षतिग्रस्त होने पर डेटा को रिस्टोर करने के लिए डेटा की बैकअप कॉपी का प्रयोग किया जा सकता है।
  5. यूजर्स की संख्या (Number of Users):- एक सर्वर-आधारित नेटवर्क हजारों-लाखों यूजर्स का समर्थन कर सकता है। वर्तमान में उपलब्ध मॉनिटरिंग और नेटवर्क मैनेजमेंट यूटिलिटीज के कारण एक सर्वर आधारित नेटवर्क को यूजर्स की बड़ी संख्या के साथ ऑपरेट किया जा सकता है।

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