मूल्यांकन के उपकरण | Evaluation Tools in hindi
मूल्यांकन के मुख्य उपकरण
शिक्षा के क्षेत्र में मापन एवं मूल्यांकन की जिन विधियों का प्रयोग किया जाता है। उन्हें उपकरण कहा जाता है। किन्तु इन्हें विधियाँ कहना अधिक उपयुक्त है। शैक्षिक मापन की मुख्य विधियां निम्नलिखित हैं-
1. अवलोकन:- अवलोकन से आशय किसी वस्तु, प्राणी या क्रिया की विशेषताओं को आँखों में देखकर तथा मन मस्तिष्क से समझकर मानक शब्दों में प्रकट करने से है। अवलोकन व्यक्ति के व्यवहार का मापन करने की अति प्राचीन विधि है। अवलोकन अवलोकनकर्ता की अपनी दृष्टि और अपनी सूझ-बूझ पर निर्भर करता है।
2. साक्षात्कार:— इस विधि में मापनकर्ता उस व्यक्ति या छात्र से सीधा सम्पर्क करता है। जिसकी किसी क्रिया के प्रभाव का पता लगाना होता है। इसके पश्चात् वह उससे तत्सम्बन्धी प्रश्न पूछता है और उसके उत्तरों एवं क्रियाओं को देखता समझता है।
3. प्रश्नावली:- प्रश्नावली साक्षात्कार विधि का लिखित रूप है। साक्षात्कार में मापनकर्ता या मूल्यांकनकर्ता व्यक्ति या छात्र से मौखिक रूप से तत्सम्बन्धी प्रश्न पूछता है, प्रश्नावली में वह लिखित रूप से तत्सम्बन्धी प्रश्न पूछता है और व्यक्ति अपने उत्तरों को उसी प्रश्नावली पर लिखते हैं। प्रश्नावली की सहायता से एक समय में कई व्यक्ति या छात्रों की विशेषता का मापन किया जा सकता है। यह विधि साक्षात्कार विधि से अधिक अच्छी मानी जाती है।
4. श्रेणी मापनी:- श्रेणी मापनी विधि को निर्धारण मापनी और क्रम निर्धारण विधि भी कहा जाता है। यह विधि प्रश्नावली की ही तरह होती है, अन्तर यह होता है कि इसमें समस्या विशेष से सम्बन्धित कई कथन होते हैं। निर्धारक को अपनी दृष्टि से उन्हें श्रेणीबद्ध करना होता है। अतः इसे श्रेणी मापनी कहा जाता है।
5. छात्रों द्वारा निर्मित वस्तुएँ:- छात्रों के द्वारा बनाई हुई वस्तुओं से भी उनके कौशल और रुचियों का पता चलता है।
6. अभिलेख:- छात्रों के व्यवहार में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी के लिए अभिलेखों का भी सहारा लिया जाता है। विद्यालयी बच्चों की प्रगति का यह अभिलेख कई रूपों में रखा जाता है।
7. परीक्षण:- परीक्षण से आशय किसी छात्र या छात्रों के समूहों की मानसिक क्षमताओ शैक्षिक उपलब्धियों एवं शैक्षिक कठिनाइयों का पता लगाने की मौखिक या लिखित प्रश्नावलियों एवं उपकरणों से है।
मूल्यांकन उपकरण की मुख्य विशेषताएँ
मूल्यांकन शिक्षा की प्रक्रिया का अत्यन्त आवश्यक अंग है। इसके द्वारा हमें शिक्षण-विधियों में सुधार, शिक्षा के लक्ष्यों का स्पष्टीकरण, शिक्षा कार्य की उन्नति, मार्गदर्शन तथा पाठ्यक्रम मे सुधार करने में सहायता मिलती है। परन्तु मूल्यांकन से ये लाभ तभी प्राप्त हो सकते हैं जब उसमें कुछ आवश्यक गुण हो। ये गुण निम्न प्रकार के हो सकते हैं—
1. वैद्यता अथवा विषयानुकूलता:– अच्छे मूल्यांकन की पहली विशेषता उसकी विषयानुकूलता है। विषयानुकूलता से अभिप्राय यह है कि उस मूल्यांकन द्वारा उस ज्ञान और केवल उस ज्ञान की ही जाँच की जाए जिसके लिये परीक्षा ली जा रही है। वस्तुनिष्ठ प्रश्नों में यह गुण विद्यमान होता है, क्योंकि उन प्रश्नों की भाषा सरल होती है और इसी कारण उनको समझना भी सरल होता है।
2. विश्वस्तता:— उत्तम मूल्यांकन की दूसरी विशेषता उसकी विश्वस्तता है। इसका अभिप्राय यह है कि मूल्यांकन चाहे कोई भी करे और किसी भी समय करे, परिणाम सदा ही हो और ऐसी आशंका न रहे कि यदि कोई और परीक्षक परीक्षा लेता है या यदि यही परीक्षक किसी और समय परीक्षा लेता है तो परिणाम इससे भिन्न हो। मूल्यांकन में इस गुण के होने पर विद्यार्थी को इस बात का विश्वास तथा निश्चय होता है कि उसको जितने अंक मिलने चाहिए थे उतने ही मिले हैं उससे कम अथवा अधिक नहीं।
3. वस्तुनिष्ठता:- उत्तम परीक्षा में वस्तुनिष्ठता होना भी आवश्यक है। इसका अभिप्राय यह है कि प्रश्नों के उत्तर निश्चित हो और एक प्रश्न का उत्तर केवल एक ही हो तथा उनके अक लगाते समय परीक्षक की पसन्द-नापसन्द का प्रभाव न पड़े। अंक चाहे कोई भी लगाए, परीक्षार्थी को अंक उतने ही मिले। मूल्यांकन के इस गुण के होने पर परीक्षार्थियों को इस बात की शिकायत नहीं रहती कि उसे कम अंक मिले है।
4. सरलता:- सरलता भी अच्छे मूल्यांकन की विशेषता है। मूल्यांकन की सरलता से अभिप्राय यह है कि उसकी व्यवस्था करने में किसी प्रकार की कठिनाई न हो। वह परीक्षक के लिए सिरदर्द तथा परीक्षार्थी के लिए हौआ न बन जाए। जो अनौपचारिक मूल्यांकन अध्यापक समय-समय पर करता है श्रेणी में यह गुण पर्याप्त मात्रा में होता है। पाठ पढ़ा चुकने के बाद वह उसके सम्बन्ध में एक-आध प्रश्न पूछकर इस बात की जाँच करता है कि विद्यार्थियों को पाठ अच्छी तरह से समझ में आ गया है कि नहीं।
5. विस्तृत रूप में:- विस्तृतता का गुण ऐसा गुण है, जिसका एक अच्छे मूल्यांकन में होना आवश्यक है परन्तु जिसका प्रचलित निबन्धात्मक परीक्षाओं में अभाव है। इन परीक्षाओं में वर्ष भर के काम की जाँच तीन घण्टे के थोड़े से समय में पांच या इससे भी कम निबन्धात्मक प्रश्नों द्वारा करने का यत्न किया जाता है जो कि एक प्रकार से असम्भव है। इसका परिणाम यह होता है कि पाठ्यक्रम के कुछ भाग बिल्कुल अछूते रह जाते हैं। कुछ प्रत्याशित (Expected) प्रश्नों को रटकर विद्यार्थी पास हो जाते हैं अथवा अच्छे अंक प्राप्त कर लेते हैं। जिन विद्यार्थियों को वे पाँच प्रश्न नहीं आते उनको चाहे बाकी सारे प्रश्न आते हों वे फेल हो जाते हैं।
6. निदानात्मकता:– अच्छे मूल्यांकन में निदानात्मकता का होना भी आवश्यक है। निदानात्मकता से अभिप्राय यह है कि मूल्यांकन द्वारा हमें विद्यार्थियों के दोषों और न्यूनताओं का पता लग सके और उनको दूर करने में सहायता मिले। इनका उद्देश्य विद्यार्थियों को केवल यहीं बता देना नहीं है कि उनमें कितनी योग्यता है। इसके द्वारा उनको यह भी पता लग जाना चाहिए कि उनमें कौन-कौन सी कमियाँ है तथा वे उनको किस प्रकार दूर कर सकते हैं।