साक्षात्कार का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, उपयोग, सीमाएँ एवं पदक्रम | Meaning, Definition, Types, Uses, Limitations and Hierarchy of Interview in hindi

साक्षात्कार का अर्थ

साक्षात्कार अनुसन्धान की कोई प्रणाली नहीं है बल्कि आँकड़े प्राप्त करने का एक प्रभावशाली उपकरण है। इसमें साक्षात्कार कर्ता तथा उत्तरदाता के बीच बातचीत एवं अन्तक्रिया होती है। साक्षात्कार एक शोध उपकरण के रूप में प्रयोज्य की समस्याओं के निदान हेतु प्रयोग में लाया जाता है। इसके द्वारा विषयी के मनोभावों का पता स्वाभाविक रूप में बातचीत के माध्यम से लगा लेते हैं। साक्षात्कार विधि से छात्रों की समस्याओं एवं उसकी स्थितियों की जानकारी प्राप्त करके उन्हें उचित शैक्षिक तथा व्यावसायिक निर्देशन दिया जा सकता है। नौकरियों में भर्ती के लिए भी साक्षात्कार प्रविधि का प्रयोग किया जाता है।

Meaning, Definition, Types, Uses, Limitations and Hierarchy of Interview

साक्षात्कार की परिभाषा

गुड तथा हैट के अनुसार, “साक्षात्कार सामाजिक अन्तर्क्रिया की एक प्रक्रिया है। साक्षात्कार में उत्तरदाता की वाचिक अभिव्यक्ति साक्षात्कार करने वाले के प्रति होती है। जो उसके प्रश्न के प्रति अनुक्रिया होती है।"

जॉन डब्ल्यू बेस्ट के अनुसार, "साक्षात्कार एक मौखिक प्रकार की प्रश्नावली है। इसके अन्तर्गत उत्तर लिखने के बजाय आमने-सामने की स्थिति में विषयी प्रश्नों का मौखिक उत्तर देता है।"

साक्षात्कार के उपयोग

साक्षात्कार प्रविधि आँकड़े संकलित करने की एक श्रेष्ठ प्रविधि है। इसके उपयोग निम्न हैं-

  1. साक्षात्कार का प्रयोग छात्रों को शैक्षिक तथा व्यावसायिक परामर्श देने के लिए, रोजगार एवं नौकरी के लिए अभ्यर्थियों का चयन करने के लिए, मनोचिकित्सा कार्य के लिए किया जाता है।
  2. लोग लिखने की अपेक्षा बात करना अधिक पसन्द करते हैं।
  3. साक्षात्कार की विभिन्न अवस्थाओं में एक ही सूचना को कई प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है।
  4. साक्षात्कारकर्ता वार्तालाप के द्वारा विषय के साथ मित्रतापूर्व सम्बन्ध स्थापित कर लेता है। जिससे वह विषयों की गोपनीय सूचनाएं प्राप्त कर लेता है। इस तरह की गोपनीय सूचनाएँ विषयी लिखकर व्यक्त नहीं करना चाहता है।
  5. साक्षात्कार तकनीक आँकड़े एकत्र करने वाली अन्य प्रविधियों; जैसे-प्रेक्षण, प्रश्नावली, श्रेणी मापनी अनुसूची से विश्वसनीय तथा व्यावहारिक है।
  6. साक्षात्कार तकनीक लचीली प्रविधि है। साक्षात्कारकर्त्ता समयानुसार अपने उत्तरों में परिवर्तन कर लेता है। इससे विषयी की वास्तविक सूचनाओं को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।
  7. यदि प्रयोज्य ने किसी प्रश्न का गलत अर्थ लगा लिया है तो साक्षात्कारकर्त्ता पूरक प्रश्नों के द्वारा प्रश्न को पुनः स्पष्ट कर सकता है।
  8. साक्षात्कार के द्वारा शोधकर्ता अपने शोध अध्ययन के विषय में विषयों को बता सकता है। वह इस बात को भी स्पष्ट कर देता है कि उसे किस प्रकार की सूचनाएँ चाहिए।
  9. अन्तः प्रश्नों के द्वारा साक्षात्कृत की अन्तर्दृष्टि एवं भागों को ठीक प्रकार से जांचा जा सकता है।
  10. बच्चों, अशिक्षितों, भाषा की कम जानकारी रखने वाले व्यक्तियों तथा कम बुद्धि या असामान्य मस्तिष्क वाले व्यक्तियों का अध्ययन करने हेतु यह प्रविधि उपयुक्त मानी जाती है।

साक्षात्कार के प्रकार

संरचना के आधार पर साक्षात्कार को दो रूपों बाँटा जा सकता है-

1. संरचित साक्षात्कार:- इस प्रकार के साक्षात्कार में उद्देश्य के आधार पर प्रश्नों का चुनाव साक्षात्कार लेने से पहले ही कर लिया जाता है। इसमें सभी प्रयोज्यों के लिए प्रश्न एकसमान होते हैं। किन्तु प्रश्नों को पूछने का क्रय प्रयोज्य के उत्तरों पर आधारित होता है। अतः संरचित साक्षात्कार में पूर्व निर्धारित प्रश्नों तथा उनके क्रम पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है।

2. असंरचित साक्षात्कार:- असंरचित साक्षात्कार में साक्षात्कार करते समय प्रश्नों का आवश्यकतानुसार निर्माण या चुनाव किया जाता है। इसमें साक्षात्कार लेने वाले को परिस्थितिजन्य प्रश्न पूछने की पूर्व स्वतन्त्रता होती है। शोध के क्षेत्र में समस्या के अध्ययन की प्रारम्भिक स्थिति में असंरक्षित साक्षात्कार विधि उपयोगी सिद्ध होती है। जबकि अध्ययन के अन्त में समस्या के समाधान की स्थिति में संरचित साक्षात्कार प्रविधि द्वारा सरलतापूर्वक निष्कर्ष तक पहुँचा जा सकता है।

साक्षात्कार के पदक्रम

साक्षात्कार प्रविधि के मुख्य पदक्रम इस प्रकार हैं-

1. साक्षात्कार के पूर्व की तैयारी:- साक्षात्कार करने से पूर्व उसकी तैयारी करना आवश्यक होता है। कलाका क्षेत्र शोध के उद्देश्य की पूर्ति के अनुकूल सुसंगठित होना आवश्यक है। अतः साक्षात्कार के प्रश्नों के विषय में सुनियोजित पूर्व-योजना बनाना आवश्यक है। इसके सम्बन्ध में निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए-

  1. उन प्रश्नों का चुनाव कर लेना चाहिए, जिनके आधार पर सूचनाएँ प्राप्त करनी हैं।
  2. साक्षात्कार का क्या उद्देश्य है और कौन-सी सूचनाएँ प्राप्त करनी हैं, इसका स्पष्ट निर्णय कर लेना चाहिए।
  3. अनुक्रियाओं या प्राप्त उत्तरों को आलेखित करने के लिए विधि भी निश्चित कर लेनी चाहिए।
  4. आवश्यक एवं वांछित सूचनाओं को एकत्रित करने के लिए क्रमबद्ध प्रश्नों की अनुसूची पहले ही तैयार कर लेनी चाहिए।

2. अनुकूल अवसर एवं उपयुक्त स्थान:– साक्षात्कार सफल रहे इसके लिए यह जरूरी है कि उत्तरदाता की सुविधा को ध्यान में रखकर ही अनुकूल अवसर तथा उपयुक्त स्थान का साक्षात्कार हेतु चुनाव किया जाये। इसके लिए सर्वप्रथम उत्तरदाता से वार्तालाप करके स्थान एवं समय का निर्धारण करना चाहिए। तभी व्यक्ति को वास्तविक सूचनाएँ प्राप्त हो सकती है।

3. साक्षात्कारकर्त्ता तथा प्रयोज्य के मध्य घनिष्ठता:— प्रयोज्य एवं साक्षात्कारकर्त्ता के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध होना आवश्यक है। इसके लिए साक्षात्कारकर्त्ता को चाहिए कि वह साक्षात्कार लेने से पूर्व विषयी से पूर्ण घनिष्ठता स्थापित कर ले। साक्षात्कार की प्रारम्भिक स्थिति में ही विषयी के साथ अच्छे सम्बन्ध स्थापित करना आवश्यक होता है। इससे उत्तरदाता दबाव में नहीं रहता है और साक्षात्कारकर्त्ता को पूर्ण सहयोग प्रदान करता है। साक्षात्कारकर्ता को विषयी को खुलकर वार्ता करने के लिए प्रोत्साहि करना चाहिए।

4. साक्षात्कार का संचालन:- साक्षात्कार करने हेतु समस्त व्यवस्थाएँ हो जाने पर ही इसे प्रारम्भ करना चाहिए। साक्षात्कार करते समय निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिए-

  1. प्रश्नों को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करना चाहिए।
  2. साक्षात्कार के पूर्व साक्षाकृत व्यक्ति से कह देना चाहिए कि उसके द्वारा दी गई सूचनाएँ गोपनीय रखी जायेगी।
  3. ऐसे प्रश्न प्रारम्भ न करें जिनसे उत्तरदाता उत्तेजित हो जाये या भावावेश में आ जाये। यदि उत्तरदाता उत्तेजित लगे तो तत्काल प्रश्न बदलकर उत्तर प्राप्त करने का प्रयास करें।
  4. प्रश्नों की भाषा सरल हो जिससे उत्तरदाता उन्हें शीघ्र समझ सके।
  5. कभी-कभी ऐसा भी होता है कि उत्तरदाता मूल प्रश्न का उत्तर न देकर उससे दूर हटने का प्रयास करता है। ऐसी स्थिति में साक्षात्कारकर्त्ता प्रश्नों में बदलाव लाकर पुनः मूल प्रश्नों की और उत्तरदाता को लाता है।

5. उत्तर का लेखन एवं व्याख्या:- उत्तरों को उत्तर प्राप्त होने के साथ ही लिखना चाहिए। उत्तर लेखन की सर्वोत्तम विधि टेप रिकार्डर है। साक्षात्कार को टेप रिकार्डर पर साथ-साथ टेप करते रहना चाहिए इससे सम्पूर्ण वार्तालाप रिकार्ड हो जाती है। यदि टेप रिकार्डर पर वार्ता को रिकार्ड करने की व्यवस्था न हो तो साक्षात्कारकर्त्ता को तत्काल उत्तरों को लिखना चाहिए या साक्षात्कार के तत्काल बाद उत्तरों का लेखन करना चाहिए। उत्तरदाता के उत्तरों को उसी के शब्दों में लिखना चाहिए। वास्तविक लेखन के बाद ही उत्तरों की व्याख्या करनी चाहिए। उत्तर लेखन में टेप रिकार्डर का विशेष महत्त्व है। टेप रिकार्डर द्वारा रिकार्ड की गई सूचनाओं का विश्लेषण करना या व्याख्या करना वस्तुनिष्ठ तथा विश्वसनीय होता है।

साक्षात्कार की सीमाएँ

साक्षात्कार प्रविधि की कुछ सीमाएँ हैं जो निम्नांकित हैं-

  1. यह विधि अधिक व्यावहारिक नहीं है क्योंकि इस विधि से आँकड़े एकत्र करने में अधिक समय व्यय होता है।
  2. कभी-कभी उत्तरदाता सूचना देने में कठिनाई या हिचकिचाहट अनुभव करता है।
  3. इस प्रविधि में कुशल साक्षात्कारकर्त्ता की आवश्यकता होती है। अच्छे साक्षात्कार के लिए साक्षात्कारकर्ता में वस्तुनिष्ठता, लगन, संवेदनशीलता जैसी विशेषताएँ होना आवश्यक है।
  4. साक्षात्कार के समय कभी-कभी प्रयोज्य अपने वास्तविक विचारों को छिपा लेता है। इससे सही सूचनाएं प्राप्त नहीं हो पाती है।
  5. साक्षात्कार प्रविधि में विषयी को अपनी तात्कालिक स्मृति पर निर्भर रहना पड़ता है।