प्रमापीकृत परीक्षण का अर्थ, परिभाषाएँ, गुण विशेषताएँ एवं सीमाएँ | Meaning, Definitions, Properties, Characteristics and Limitations of Standardized Test in hindi

प्रमापीकृत परीक्षण का अर्थ

प्रमापीकृत वह परीक्षण है जो किसी प्रमाप या तुलनात्मक मानक प्राप्त करने का प्रतिक्रिया है। इसके अन्तर्गत पाठ्य-वस्तु का समालोचनात्मक विश्लेषण किया जाता है। पदों का चयन अत्यन्त सावधानी से किया जाता है। पदों में गुणों के अनुसार समानता रहती हैं एवं उपचारात्मक परीक्षणों की अपेक्षा सांख्यकीय विश्लेषण भी अधिक कड़ाई के साथ होता है।

Meaning, Definitions, Properties, Characteristics and Limitations of Standardized Test

प्रमापीकृत परीक्षण की परिभाषाएँ

इसे निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है-

1. थॉमस के अनुसार, "प्रमापीकृत परीक्षण वह परीक्षण है, जिसमें परीक्षण-निर्माता, पर्याप्त परिशुद्धता के साथ यह निर्धारित कर सके कि किसी निश्चित आयु या कक्षा का व्यक्ति इसमें कितना सफल होगा।"

2. क्रानबैक के अनुसार, "वह परीक्षण जिसका प्रमापोकरण कर लिया गया हो और जिससे प्रक्रिया, फलांकन आदि इस प्रकार निश्चित किये गये हो कि उसी परीक्षण की विभिन्न समय और अवसर पर किया जा सके, प्रमापीकृत परीक्षण कहलाता है।"

3. थार्नडाइक और हेगन के अनुसार, "प्रमापीकृत परीक्षा का अर्थ केवल इतना है कि सब छात्र समान निर्देशों, समय की समान सीमाओं के अन्तर्गत, समान प्रश्नों और अनेक प्रश्नों का उत्तर देते हैं।"

मानकीकृत परीक्षाओं के गुण

मानकीकृत परीक्षाओं के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं-

  1. तुलनात्मक अध्ययन में इन परीक्षाओं का सफलतापूर्वक प्रयोग किया जा सकता है।
  2. ये परीक्षाएँ छात्र का शैक्षिक एवं व्यावसायिक मार्गदर्शन करने में सहायक होती है।
  3. इन परीक्षाओं के माध्यम से छात्र को अपनी कमजोरियों एवं क्षमताओं का आभास आसानी से हो जाता है।
  4. इन परीक्षाओं के आधार पर किसी छात्र की विभिन्न विषयों की उपलब्धियों में सहसम्बन्ध स्थापित किया जाता है।
  5. ये परीक्षाएँ विद्यार्थियों का वर्गीकरण करने में सहायक होती है।
  6. ये परीक्षाएँ कक्षा सम्बन्धी विभिन्न समस्याओं के हल करने में अथवा विद्यार्थियों के बारे में जानकारी प्राप्त करने में अध्यापक की सहायता करती है।
  7. ये परीक्षाएँ छात्र के व्यक्तिगत का पूर्ण रूप से परीक्षण करती है।
  8. ये परीक्षाएँ विभिन्न विद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों अथवा एक ही कक्षा में पढ़ने वाले लड़के एवं लड़कियों की बुद्धि अथवा योग्यता में विभेद करने में सहायक होती है।
  9. इन परीक्षाओं की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि इन्हें कहीं भी और किसी भी समय प्रशासित किया जा सकता है तथा प्राप्त परिणामों की विश्वसनीयता बनी रहती है।

मानकीकृत परीक्षाओं की सीमाएँ

मानकीकृत परीक्षाओं की सीमाएं निम्नलिखित हैं-

  1. इन परीक्षाओं में विषय का एक निश्चित क्षेत्र ही पूरा किया जाता है। अतः इनके दिये जाने पर छात्र का अध्ययन इस पाठ्यक्रम के कुछ ही अंशों तक सीमित हो जाता है।
  2. ये परीक्षाएँ उन प्राप्त उद्देश्यो का मापन नहीं करती जिनका मापन एक अध्यापक करना चाहता है।
  3. शैक्षिक मापन के अनेक क्षेत्रों में प्रमापीकृत परीक्षाएं तैयार करना इतना आसान नहीं है। उदाहरणार्थ, प्रमापीकृत बुद्धि परीक्षाएं तैयार करने के लिए प्रशिक्षण एवं अनुभव की आवश्यकता होती है जो न तो साधारण अध्यापक के ही पास होती है और न ही मनोमीतिज्ञ (Psychometric) के पास।
  4. ये परीक्षाएँ किसी स्थान विशेष, प्रदेश अथवा विद्यालय विशेष में निर्धारित और पढ़ाये गये पाठ्यक्रम पर आधारित नहीं होती। फलतः उस पाठ्यक्रम की योग्यता का मूल्यांकन भली प्रकार नहीं कर सकती।
  5. इन परीक्षाओं में प्रायः समान्तर परीक्षा प्रारूप का अभाव रहता है।
  6. ये परीक्षाएँ धन, समय एवं परिश्रम की दृष्टि से सुविधाजनक नहीं है। साथ ही इनकी वैधता एवं विश्वसनीयता के बारे में भी हम अधिक आश्वस्त नहीं रहते।
  7. इन परीक्षाओं द्वारा पाठ्यक्रम में योग्यता के आधार पर छात्र को कक्षोन्नति नहीं दी जा सकती।
  • ये परीक्षाएँ छपाई की दृष्टि से अधिक महंगी है।

    मानकीकृत परीक्षाओं की विशेषताएँ

    प्रमापीकृत मापन उपकरण की निम्नलिखित छ: विशेषताएं होती हैं-

    1. प्रतिनिधि पाठ्यक्रम का मापन
    2. परीक्षा देने के विषय में विशिष्ट सूचनाएँ
    3. जांचने के लिए विशिष्ट सूचनाएं
    4. परीक्षण को परिस्थितियां स्पष्ट होती हैं
    5. मानक दिये होते हैं।
    6. परीक्षण के महत्व को बताने वाले तथ्य परीक्षण का निर्माण किस प्रकार हुआ, उसके क्या उद्देश्य (purposes) हैं, किस प्रकार उसका प्रशासन हो, किस प्रकार जाँचा जाए, परिणामों की व्याख्या (Interpretation) कैसे हो, मानक को सारणियाँ आदि एक लघु पुस्तिका में दी होती है। इसे Manual of Test कहते हैं।

    प्रमापीकरण प्रक्रिया

    परीक्षाओं के प्रभापीकरण प्रक्रिया के प्रमुख सोपान निम्न प्रकार हैं-

    1. परीक्षा के अभिप्राय निर्धारित करना
    2. उपयुक्त पाठ्यक्रम तथा उद्देश्यों का विश्लेषण करना
    3. प्रश्नों की रचना
    4. परीक्षा का प्रारम्भिक प्रारूप तैयार करना
    5. प्रश्नों का चयन
    6. प्रश्नों की वैधता निश्चित करना
    7. समानान्तर परीक्षा प्रारूप तैयार करना
    8. मानक निर्धारण
    9. परीक्षा का अन्तिम प्रारूप
    10. परीक्षा सामग्री छपाई

    यद्यपि किसी भी परीक्षा के प्रमापीकरण की प्रक्रिया उसी प्रकार होती है, जिस प्रकार वस्तुनिष्ठ परीक्षा के निर्माण में प्रयुक्त सोपान, फिर भी प्रमाणीकरण परीक्षाओं के निर्माण के लिए परीक्षा की तैयारी, पाठ्य-वस्तु का चयन एवं विश्लेषण, प्रश्नों की रचना आदि अधिक सावधानीपूर्वक की जाती है। विषयवस्तु के आलोचनात्मक विश्लेषण एवं प्रश्नों के निर्माण में यह भली-भाँति देख लिया जाता है कि ये विश्वसनीय, वैध, वस्तुनिष्ठ, विभेदकारी तथा उपयोगी हैं अथवा नहीं।