अध्यापक निर्मित परीक्षण का अर्थ, उद्देश्य, विशेषताएँ एवं सीमाएँ | Meaning, Objectives, Properties and Limitations of Teacher made Test in hindi

अध्यापक निर्मित परीक्षण का अर्थ

अध्यापक निर्मित परीक्षाओं से हमारा तात्पर्य उन परीक्षाओं से है जिनका निर्माण कोई अध्यापक अपनी कक्षा के लिए अपने द्वारा पढ़ाये गये विषय के पाठ्यक्रम के उतने भाग के आधार पर करता है जो उसने एक निश्चित अवधि के अन्तर्गत पढ़ाया है। ये परीक्षाएँ विभिन्न विषयों के लिए तैयार की जाती है। इन परीक्षाओं की निर्माण विधि निबन्धात्मक परीक्षाओं एवं मानकीकृत उपलब्धि परीक्षणों भिन्न होती ये परीक्षाएँ वस्तुनिष्ठ होती है लेकिन प्रमाणीकृत नहीं होती।

Meaning, Objectives, Properties and Limitations of Teacher made Test

अध्यापक निर्मित परीक्षाओं का निर्माण

अध्यापक निर्मित परीक्षाओं का निर्माण करते समय सर्वप्रथम विषय अध्यापक जिस कक्षा के लिए परीक्षा का निर्माण करना चाहता है उसके विस्तृत पाठ्यक्रम में से उन उपविषयों (Topics)) का चयन करता है जिन पर उन्हें प्रश्नों को रचना करनी है अथवा जिन उपविषयों को वह एक निर्धारित समयावधि के अन्तर्गत उस कक्षा को पढ़ा चुका होता है। इसके बाद वह चिभिन्न प्रकार के वस्तुनिष्ठ प्रश्नों की रचना करता है। ये प्रश्न अत्यन्त ही संक्षिप्त बनाये जाते हैं तथा उन्हें इनके सरल से कठिनतम रूप से अनुरूप एक निश्चित क्रम में रखा जाता है।

अध्यापक इन परीक्षाओं में विभिन्न प्रकार के वस्तुनिष्ठ प्रश्नों का समावेश कर सकता है; जैसे- प्रत्यास्मरण प्रश्न तथा पहचान प्रश्न। प्रत्यास्मरण प्रश्नों में साधारण प्रत्यास्मरण रूप, तथा रिक्त स्थान पूर्ति परीक्षा (completion type) सम्मिलित किये जाते हैं जबकि पहचान प्रश्नों में एकान्तर प्रत्युत्तर रूप अथवा सत्यासत्य प्रश्न, बहुनिर्वाचन रूप, मिलान परीक्षा, तथा वर्गीकरण रूप अथवा तर्कयुक्त प्रश्न आदि विभिन्न रूप अथवा तर्कयुक्त प्रश्न आदि विभिन्न रूप सम्मिलित किये जाते हैं।

परीक्षा का निर्माण इस उद्देश्य से किया जाये जिससे कि वह विषय सम्बन्धी योग्यता को नापने के साथ-साथ उसके प्रयोगात्मक उपयोग में भी सहायक सिद्ध हो सके। साथ ही प्रश्न सम्पूर्ण पाठ्यक्रम का प्रतिनिधित्व रूप हो तथा सभी प्रकार के प्रश्नों को समुचित स्थान दिये जाने का प्रयास किया जाए। इसमें उपरोक्त बातों के अतिरिक्त परीक्षा की समय सीमा निश्चित करना तथा प्रश्नों को उनकी कठिनाई स्तर के क्रम में व्यवस्थित करना भी परीक्षा के प्रारूप को संवार देता है।

अध्यापक निर्मित परीक्षाओं का प्रशासन

अध्यापक निर्मित परीक्षाएं साधारणत: एक पुस्तिका के रूप में छपवाई जाती हैं जिनके मुख पृष्ठ (cover page) पर परीक्षार्थी का नाम, आयु कक्षा तथा आवश्यक निर्देश छपे होते हैं। छात्र को स्वयं इनकी पूर्ति करनी होती है। पुस्तिका के अन्दर प्रश्न एक निश्चित क्रम में छपे रहते हैं तथा छात्र बिना परीक्षणकर्ता की अनुमति से इन प्रश्नो का हल करना आरम्भ नहीं कर सकता। अध्यापक सभी परीक्षार्थियों को एक कक्ष में बैठाकर परीक्षण की एक-एक प्रति उनमें बाँट देता है तथा उन्हें पुस्तिका के मुख पृष्ठ पर छपे आवश्यक निर्देशों को ध्यानपूर्वक पढ़ने के लिए आदेश देता है। यदि इन निर्देशों को समझने में किन्हीं परीक्षार्थियों को असुविधा होती है, तो वे अध्यापक से अपनी शंका समाधान करने के लिए स्वतन्त्र होते हैं।

अध्यापक स्वयं भी परिस्थितियों को परीक्षण की समयावधि तथा मुख्य बातों से अवगत करा देता है। इसके बाद उन्हें परीक्षा का उत्तर लिखने को कहा जाता है तथा अध्यापक उनके कार्य का सावधानीपूर्वक पर्यवेक्षण करता है। परीक्षा की अवधि समाप्त हो जाने पर परीक्षार्थियों की उत्तर पुस्तिकाएँ एकत्रित कर ली जाती है। और प्रत्येक उत्तर पुस्तिका का वस्तुनिष्ठ तरीके से मूल्यांकन किया जाता है। मूल्यांकन से पूर्व यदि अध्यापक स्पष्ट अंकन कुंजी (scoring key) तैयार कर लें, तो यह उसके लिए पर्याप्त सुविधाजनक रहती है। साथ ही उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन में वह पक्षपात एवं अधिक परिश्रम करने से भी बच जाता है। तत्पश्चात् प्रत्येक विद्यार्थी द्वारा प्राप्त अंकों का योग कर लिया जाता है। जो परीक्षार्थी की विषयगत योग्यता का परिचायक होता है।

अध्यापक निर्मित परीक्षाओं के उद्देश्य

इन परीक्षाओं को निर्मित करने के प्रमुख उद्देश्य निम्न हैं-

  1. ये परीक्षाएँ निबन्धात्मक परीक्षाओं का एक सुधारात्मक स्वरूप है। इन परीक्षाओं का उद्देश्य निबन्धात्मक परीक्षाओं के दोषों को दूर करके छात्रों की वास्तविक योग्यता की जाँच करना है।
  2. इन परीक्षाओं के माध्यम से इन तथ्य की जानकारी हो जाती है कि अध्यापक को अपने उद्देश्यो की प्राप्ति में कहाँ तक सफलता प्राप्त हुई है।
  3. ये परीक्षाएँ जहाँ एक ओर अध्यापक को यह संकेत देती है कि उसे शिक्षण कार्य में कहाँ सफलता प्राप्त नहीं हुई है वहीं ये छात्र को यह आभास करा देती हैं कि उसे कौन-सी विषय-वस्तु ठीक से समझ नहीं आयी है।
  4. अध्यापक सीमित विषय-वस्तु का मूल्यांकन सफलतापूर्वक कर लेता है।
  5. ये परीक्षाएं अध्यापक को अपने शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के अवसर प्रदान करती है।
  6. ये परीक्षाएँ अनवरत मूल्यांकन की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
  7. इन परीक्षाओं को कम समय में आसानी से तैयार किया जा सकता है। साथ ही इन परीक्षाओं को तैयार करने में अध्यापक को किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती।

अध्यापक निर्मित परीक्षाओं की विशेषताएँ

अध्यापक निर्मित परीक्षाओं की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. ये परीक्षाएं मानकीकृत नहीं होतीं।
  2. इन परीक्षाओं के प्रश्न वस्तुनिष्ठ होते हैं।
  3. ये परीक्षाएँ किसी भी विषय अध्यापक द्वारा निर्मित की जा सकती है।
  4. ये परीक्षाएँ सीमित पाठ्यवस्तु के सन्दर्भ में कुछ विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति हेतु तैयार की जाती है।
  5. इन परीक्षाओं में प्रश्नों के विभिन्न रूपों का समावेश आसानी से किया जा सकता है।
  6. परीक्षा में प्रश्न संक्षिप्तं एवं अधिक संख्या में सम्मिलित किये जाते हैं।
  7. ये परीक्षाएँ परीक्षक की मनोवृत्ति के प्रभाव से पूर्णतया परे रहती हैं।
  8. ये परीक्षाएँ सम्पूर्ण पाठ्यक्रम का प्रतिनिधित्व करती हैं।

अध्यापक निर्मित परीक्षाओं की सीमाएँ

अध्यापक निर्मित परीक्षाओं की सीमाएं निम्नलिखित हैं-

  1. ये परीक्षाएँ विद्यार्थियों की उच्च मानसिक योग्यताओं का मापन करने में असमर्थ रहती हैं।
  2. ये परीक्षाएँ किसी विषय के पूर्ण ज्ञान की परीक्षा नहीं कर पाती।
  3. इन परीक्षाओं में परीक्षार्थी को अनुमान से उत्तर देने के पर्याप्त अवसर मिल जाते हैं।
  4. इन परीक्षाओं का निर्माण करना सरल कार्य नहीं है। अध्यापक को विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता पड़ती है।
  5. कभी-कभी परीक्षार्थी इन परीक्षाओं की प्रकृति से भली-भाँति परिचित न होने के कारण विषय सम्बन्धी योग्यता रखते हुए भी अच्छे अंक प्राप्त नहीं कर पाता।
  6. ये परीक्षाएँ वस्तुनिष्ठ होते हुए भी प्रमाणीकृत न होने के कारण परीक्षक की मनोवृत्ति से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाती।
  7. इन परीक्षाओं के द्वारा सम्पूर्ण व्यक्तित्व का अध्ययन नहीं हो पाता।
  8. इस प्रकार के परीक्षणों में नकल को अत्यधिक सम्भावना रहती है।