परीक्षा सुधार की आवश्यकता | Need for Exam Correction in hindi
परीक्षा सुधार की आवश्यकता
जैसे-जैसे समाज की विचारधाराओं में परिवर्तन होता चला गया शिक्षा व्यवस्था व उसका स्वरूप भी परिवर्तित होता गया। जैसे ही शिक्षा के उद्देश्य परिवर्तित होते हैं तो उसी के आधार पर पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियाँ अनुशासन, शिक्षक, बालक, परीक्षा व मूल्यांकन आदि सभी परिवर्तित हो जाते हैं जैसा कि शिक्षा के इतिहास से स्पष्ट होता है। शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बालक का सर्वागीण विकास करना होता है और यह सर्वांगीण विकास बालक के व्यवहार में प्रदर्शित होता है। इस विकास का मूल्यांकन करना आसान कार्य नहीं होता है।
केवल अंक प्राप्त करने तथा ग्रेड प्राप्त करने से ही वास्तविक मूल्यांकन नहीं हो सकता है तथा कुछ गिने चुने प्रश्नों के उत्तर देने से भी शिक्षा के वास्तविक उद्देश्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता है। चूंकि मूल्यांकन सतत् व निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। परीक्षा सुधार की आवश्यकता इस प्रकार है-
- समाज की बदलती आवश्यकताएँ।
- उचित सामंजस्य स्थापित करने के लिए।
- लचीलेपन के लिए।
- प्रतिभा के विकास के लिए।
- छात्रों के वास्तविक ज्ञान के मूल्यांकन के लिए।
शिक्षा व समाज में सम्बन्ध स्थापित करने के लिए। इन बिन्दुओं की संक्षिप्त व्याख्या इस प्रकार है-
1. समाज की बदलती आवश्यकताएँ:- समाज की बदलती आवश्यकताओं, विचारधाराओं तथा शिक्षा में सामजस्य स्थापित करने के लिए परीक्षा सुधार की आवश्यकता है। पिछले कई दशकों से छात्रों का मूल्यांकन अंक प्रणाली द्वारा ही किया जाता था। जिससे परिणाम यह निकला कि छात्र केवल पुस्तकीय ज्ञान को रट कर केवल अंक प्राप्त करने की होड़ में लगे रहते थे इस होड़ में कम अंक प्राप्त करने पर बच्चों को मानसिक तनाव की समस्याएं आने लगी। कई छात्र कम अंक आने पर आत्महत्या जैसे अनुचित कदम उठाने लगे हैं।
इस समस्या का स्वरूप धीरे-धीरे बढ़ने लगा है तथा परीक्षाएँ भी वर्ष के अन्त में ली जाती थी तथा कुछ प्रश्नों के उत्तर पूछ लिए जाते थे और उन्हीं के आधार पर मूल्यांकन कर लिया जाता था। लेकिन इन प्रश्नों व कुछ अंकों को प्राप्त करके ही छात्र का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता है, क्योंकि शिक्षा का उद्देश्य बालक का सर्वागीण विकास करना है। बालक के अन्दर निहित गुणों का विकास करना है। इसलिए इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए परीक्षा सुधार की आवश्यकता है।
2. उचित सामंजस्य स्थापित करने के लिए:- वर्तमान समय में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया एवं परीक्षा एवं मूल्यांकन प्रणाली में उचित सामंजस्य नहीं है। कक्षा में जो छात्रों को सिखाया जाता है तथा जिस प्रकार से सिखाया जाता है उसका परीक्षा से सम्बन्ध कम होता जा रहा है। इस तालमेल को ठीक से बनाये रखने के लिए परीक्षा सुधार आवश्यक है।
3. लचीलेपन के लिए:- समय परिवर्तन होने के साथ-साथ पाठ्यक्रम भी परिवर्तित होते रहे हैं। पाठ्यक्रम में धीरे-धीरे अन्य पाठ्यसामग्री शामिल की जाने लगी हैं। क्योंकि ये क्रियाएँ बालक के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक होती है। पाठ्यक्रम में अब विभिन्न क्रियाओं और गतिविधियों को भी स्थान दिया गया है। इन क्रियाओं का ठीक से मूल्यांकन करने के लिए तथा छात्रों के द्वारा अर्जित ज्ञान की जाँच करने के लिए परीक्षा प्रणाली एवं मूल्यांकन प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है।
4. प्रतिभा के विकास के लिए:- छात्रों के अन्दर सन्नहित गुणों तथा प्रतिभा के विकास के लिए परीक्षा में सुधार करना आवश्यक होता है। शिक्षा के द्वारा बालक के अन्दर निहित सभी गुणों को बाहर लाया जा सकता है और शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति हुई है या नहीं तथा उन उद्देश्यों को किस प्रकार प्राप्त किया जाय इसकी जाँच परीक्षा व मूल्यांकन द्वारा की जा सकती है। व्यक्तिगत विभिन्नता के अनुसार कोई भी दो बालक एक समान प्रवृति, रूचि के नहीं होते हैं और प्रत्येक बालक के अन्दर कोई न कोई विशिष्ट योग्यता व प्रतिभा होती है।
शिक्षा के द्वारा उस छिपी हुई प्रतिभा का विकास किया जाता है। इस प्रतिभा के विकास का मूल्यांकन परीक्षा द्वारा किया जाता है। प्रतिभा के विकास के लिए परीक्षा सुधार करना आवश्यक होता है।
5. छात्रों के वास्तविक ज्ञान के मूल्यांकन के लिए:- छात्रों द्वारा विभिन्न क्रियाकलापों एवं गतिविधियों में जो भी ज्ञान प्राप्त किया जाता है उसकी जाँच मूल्यांकन द्वारा की जाती है और मूल्यांकन की विधियों अलग-अलग होती है जैसे साक्षात्कार, प्रश्नावली, लिखित परीक्षा, मौखिक परीक्षा, प्रयोगात्मक कार्य आदि। लिखित परीक्षाओं में भी वस्तुनिष्ठ तथा निबंधात्मक प्रश्नों का समावेश किया जाता है। इस प्रकार की परीक्षाओं से छात्र के वास्तविक ज्ञान का मूल्यांकन किया जाता है।
6. शिक्षा व समाज में सम्बन्ध स्थापित करने के लिए:- बालक समाज से निकलकर ही विद्यालय में प्रवेश करता है। शिक्षा समाज का निर्माण करती है और समाज शिक्षा का। इसलिए इन दोनों में उचित संतुलन होने पर ही विद्यालय उचित रूप से कार्य कर पाते हैं। सदैव यही देखा गया है कि समाज की आवश्यकताओं एवं विचारधाराओं के परिवर्तित होते ही शिक्षा के स्वरूप में परिवर्तन हो जाता है। परीक्षा व मूल्यांकन भी इसी का एक भाग है। इसलिए शिक्षा व समाज में उचित सम्बन्ध स्थापित करने के लिए परीक्षा व मूल्यांकन प्रणाली में सुधार करना आवश्यक है।
वर्तमान परीक्षा पद्धति में सुधार हेतु कोठारी कमीशन के सुझाव
- मिडिल परीक्षा में लिखित परीक्षा के अलावा आंतरिक मूल्यांकन व मौखिक परीक्षा को महत्त्व देना चाहिए।
- परीक्षा में सुधार हेतु नई-नई तकनीकों का प्रयोग करना चाहिए।
- प्रश्न-पत्रों की बनावट, नवीनीकरण और प्रकृति में सुधार करना चाहिए।
- अंक देन की व्यवस्था में सुधार करना चाहिए।
- स्कूल शिक्षा बोर्ड परीक्षा में बाह्य परीक्षा के आधार पर दिये गये प्रमाण पत्र में विभिन्न विषयों के कार्य का अलग-अलग स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए।
- यदि कोई विद्यार्थी अपनी योग्यता बढ़ाना चाहता है, तो उसे क्रमशः एक विषय या सम्पूर्ण परीक्षा का पुनः देने की अनुमति अवश्य मिलनी चाहिए।
- विद्यार्थियों के आंतरिक मूल्यांकन में सभी पक्षों की पूर्ण व व्यापक जाँच होनी चाहिए।
- विद्यालय की लिखित परीक्षाओं में पूर्ण सुधार होना चाहिए तथा मासिक, त्रिमासिक व छमाही के आधार पर होनी चाहिए।
- अध्यापन करने वाले अध्यापकों का उचित व समय-समय पर उचित प्रशिक्षण भी होते रहना चाहिए।
- आंतरिक व बाह्य मूल्यांकन को पृथक् पृथक् दिखाना चाहिए, जिसमें ग्रेडिंग व प्रतिशत साथ में विषयानुसार दिखना चाहिए।