मूल्यांकन के प्रकार: आंतरिक और बाहरी मूल्यांकन | Types of Evaluation: Internal and External Evaluation in hindi
बाह्य मूल्यांकन
बाह्य मूल्याकन से अभिप्राय ऐसे मूल्यांकन से है, जिसमें परीक्षाओं का आयोजन छात्रों को पढ़ाने वाली संस्था या विद्यालय की बजाय किसी बाहरी संस्था द्वारा किया जाता है। हमारे देश के विभिन्न मान्यता प्राप्त विद्यालय शिक्षा बोर्डों द्वारा छात्रों के मूल्यांकन हेतु आयोजित की जाने वाली सार्वजनिक परीक्षाएं बाह्य मूल्यांकन का ही एक उदाहरण है। इस प्रकार की बाह्य सार्वजनिक परीक्षाओं में छात्रों से सम्बद्ध शिक्षकों का मूल्यांकन की प्रक्रिया से प्रत्यक्ष रूप से कोई सम्बन्ध नहीं होता है सामान्यता ऐसी परीक्षाओं का आयोजन किसी विशेष उद्देश्य को प्राप्ति हेतु नहीं किया जाता है वरन इनका आयोजन एवम संचालन अनेक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु किया जाता है अर्थात् इन परीक्षाओं के परिणामों का प्रयोग अनेक उद्देश्यों हेतु किया जाता है।
इस मूल्यांकन के तहत वास्तविक परीक्षण एक परीक्षार्थी द्वारा एक प्रश्न-पत्र अथवा अनेक प्रश्न-पत्रों को हल करने तक सीमित होता है। इस मूल्यांकन में समय भी निश्चित होता है। इसके अलावा ऐसी व्यवस्था जिसमें एक संस्था छात्रों को पढ़ाती भी है तथा परीक्षाओं का प्रायोजन भी करती है, लेकिन प्रश्न-पत्र का निर्माण तथा अंक प्रदान करने का अधिकार उस संस्था की बजाय किसी और को प्राप्त हो, जो भी बाह्य मूल्यांकन में शामिल किया जाता है। अतः कहा जा सकता है कि जब छात्रों को पढ़ाने वाला शिक्षक ही उनकी मूल्यांकन प्रक्रिया में शामिल न हो तो मूल्यांकन की ऐसी व्यवस्था को बाह्य मूल्यांकन कहा जा सकता है।
आन्तरिक मूल्यांकन
ऐसी परीक्षाओं, जिनका संचालन विद्यालय द्वारा किया जाता है जो आन्तरिक परीक्षाएँ माना जा रहा है। इसका आशय यह हुआ कि विद्यालय में संचालित की जाने वाली सभी-की-सभी परीक्षाएँ, आन्तरिक परीक्षाएँ हैं, फिर चाहे परीक्षा लेने वाला परीक्षक बाहर का हो या उस कक्षा को पढ़ाने वाला शिक्षक। प्रायः यह विचार अनुपयुक्त, जान पड़ता है क्योंकि ऐसी परिस्थितियों में परीक्षक, परीक्षण किए जा रहे छात्रों की शैक्षिक क्रिया से सम्बन्ध नहीं रख पाता, वस्तुतः कसौटी मूल्यांकनकर्ता का ज्ञान होता है, जो क्या पढ़ाया गया तथा कैसे पढ़ाया गया पर आधारित है तथा इस तथ्य को विषय को पढ़ाने वाला कक्षा-अध्यापक ही बेहतर ढंग से जानता है।
अगर एक परीक्षक इकाई से अनभिज्ञ है, तथा अध्यापन के निश्चित उद्देश्यों व छात्रों को प्रदान किये जाने वाले अधिगम अनुभवों से भी बेखबर है, तो ऐसी परिस्थितियों में वह उपयुक्त मूल्यांकन नहीं कर पाएगा। इसलिए सही अर्थों में आन्तरिक मूल्यांकन से तात्पर्य ऐसे मूल्यांकन से है, जिसमें परीक्षक वही हो, जो छात्रों को पढ़ाता है। इसके अलावा सभी मूल्यांकन बाह्य मूल्यांकन कहलाते हैं, फिर चाहे वे सार्वजनिक हो, विद्यालय में हो या विद्यालय के बाहर उसी विद्यालय के शिक्षक द्वारा लिए जाएँ अथवा बाहर के शिक्षक द्वारा। इस प्रकार आन्तरिक मूल्यांकन के तीन आधार माने जाते है-
- कक्षा की शिक्षण अधिगम क्रियाओं में प्रत्यक्ष भागीदारी होना।
- सम्बन्धित कक्षा को पढ़ाने वाले कक्षाध्यापक द्वारा स्वयम् प्रश्न-पत्रों की रचना करना।
- कक्षाध्यापक द्वारा ही उत्तर-पुस्तिकाओं की जाँच करना।
यदि किसी मूल्यांकन में उपर्युक्त शर्तों में से एक शर्त भी पूर्ण नहीं होती है, तो वह मूल्यांकन आन्तरिक मूल्यांकन नहीं कहलाएगा। अपितु उसे बाह्य मूल्यांकन की श्रेणी में रखा जाएगा।
बाह्य मूल्यांकन एवम् आन्तरिक मूल्यांकन का तुलनात्मक अध्ययन
मूल्यांकन के बाह्य एवम् आन्तरिक स्वरूपों का अध्ययन करने के पश्चात् अनायास ही हमारे सम्मुख यह प्रश्न उपस्थित हो जाता है कि इन दोनों में से अधिक उपयुक्त मूल्यांकन विधि कौन-सी है। एक छात्र का परीक्षण बाह्य परीक्षकों द्वारा होना चाहिए या आन्तरिक परीक्षको द्वारा।
सार्वजनिक परीक्षाओं को ही बाह्य मूल्यांकन के रूप में स्वीकारा जा सकता है। ऐसी परीक्षाओं प्रश्न पत्रों का निर्माण, उत्तर पुस्तिकाओं की जाँच अंक प्रदान करना आदि समस्त कार्य बाहरी व्यक्ति द्वारा किये जाते हैं, कभी-कभार इन परीक्षाओं में अध्यापकों को भी जाँचकर्ता के तौर पर शामिल किया जाता है। परीक्षाओं बोड़ों द्वारा उन्हें प्रश्न-पत्र की रचना एवम् उनको जाँच का कार्यभार सौंपा जाता है लेकिन यह जरूरी नहीं कि वे अपने छात्रों की उत्तर-पुस्तिकाओं की जाँच करें। परीक्षाओं को विभिन्न कोर्सों की वैधता के रूप में देखा जाता है।
यह आवश्यक नहीं कि आन्तरिक परीक्षण एवम् आन्तरिक पाठ्यक्रम मे सामन्जस्य हो । पाठ्यक्रम तो बाह्य भी हो सकता है लेकिन छात्रों के उपलब्धि स्तर का परीक्षण आन्तरिक रूप से होनी चाहिए। फिर भी यदि आन्तरिक रूप से निर्धारित किये गये पाठ्यक्रम का परीक्षण भी आन्तरिक रूप से किया जाएगा तो परियोजना, अनुरूपण एवम् प्रयोगात्मक कार्य की जाँच करना और भी आसान होगा। इस तरह शिक्षक अपने सभी छात्रों की गहन एवम् व्यक्तिगत जानकारी प्राप्त करने का लाभ उठा सकते हैं।
बाह्य मूल्यांकन तथा आन्तरिक मूल्यांकन में से कौन-सा मूल्याकन अधिक उपयोगी है। इसका निर्णय करना काफी हद तक उन उद्देश्यों की प्राप्ति पर निर्भर करता है, जिसके लिए मूल्यांकन किया जा रहा है। इस दृष्टि से आन्तरिक मूल्यांकन अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है क्योंकि आन्तरिक मूल्यांकन द्वारा ऐसे बहुत से उद्देश्यों को बड़ी आसानी से प्राप्त किया जा सकता है, जिन्हें बाह्य मूल्याकन द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता।
बाह्य मूल्यांकन का आयोजन विश्वविद्यालय स्तर, कर्मचारियों एवम् कुछ वैद्य कोर्सों के लिए किया जाता है। इस मूल्यांकन द्वारा सामान्यतः है, संज्ञानात्मक योग्यताओं की ही जाँच की जाती है, जबकि आन्तरिक मूल्यांकन का आयोजन अधिगम उपलब्धि के विभिन्न क्षेत्रों-संज्ञानात्मक, प्रभावकारी, मनोगत्यामक हेतु किया जाता है। इस प्रकार इसके माध्यम से एक छात्र के संज्ञानात्मक, भावात्मक एवम् क्रियात्मक सभी पक्षों का मूल्यांकन हो जाता है। अतः आन्तरिक मूल्यांकन को बाह्य मूल्यांकन की अपेक्षा अच्छा माना जा सकता है।
आन्तरिक मूल्यांकन में एक बात का भय जरूर बना रहता है; वह यह कि छात्रों के विषय में अध्यापक के विचार व्यक्तिपरक हो सकते हैं तथा उनमें मानवता का अभाव भी हो सकता है। उनमें मानवता का अभाव भी हो सकता है। इसके लिए अध्यापक को परीक्षण के नये-नये तरीकों का ज्ञान होना चाहिए तथा वह बिल्कुल निष्पक्ष व अनुशासनबद्ध तरीके से अपने छात्रों का मूल्यांकन करे।
आन्तरिक तथा बाह्य मूल्यांकन का सम्बन्ध
आन्तरिक मूल्यांकन का सम्बन्ध बाह्य मूल्यांकन के साथ कैसे जोड़ा जाए, इसके लिए निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किए जा सकते हैं-
- आन्तरिक परीक्षण सम्बन्ध छात्र के विभिन्न पहलुओं के विकास के साथ होना अपेक्षित हैं। इसके अन्तर्गत शिक्षा सम्बन्धी उपलब्धियों, उसकी प्रेरणाएँ, अभिरुचियों तथा व्यक्तित्त्व आदि लिया जा सकता है।
- शिक्षा-समबन्धी विषयों में उत्तीर्णता के लिए न्यूनतम उत्तीणांकों के स्थापित किए जाने की आवश्यकता है। छात्र के परिणाम को दोनों प्रकार की उपलब्धियों को दृष्टि में रखकर घोषित करना चाहिए।
- परिणाम को अधिक सुव्यवस्थित बनाने के लिए जरूरी है कि आन्तरिक एवं बाह्य मूल्यांकन दोनों को शिक्षा विषयक विषय के आधार समान स्तर पर लाया जाए।
- आन्तरिक मूल्यांकन के लिए यह जरूरी है कि प्रत्येक छात्र के लिए विशेष प्रकार के प्रतीकात्मक चिह्न एवं गुणीय विवरण को अपनाया जाए। इस रूप में आन्तरिक एवं बाह्य मूल्यांकन तुलनात्मक नहीं हो सकते।
- आन्तरिक तथा बाह्य मूल्यांकन से सम्बन्ध प्रमाण-पत्रों द्वारा नियुक्ति करने वाले अधिकारी के छात्र को प्रत्येक उपलब्धि का ज्ञान हो सकता है।
इस रूप में यह भी दर्शनीय हो सकता है कि किसी स्कूल के विषय में आन्तरिक मूल्यांकन अत्यन्त प्रमाणपूर्ण एवं विश्वसनीय है। अथवा बाह्य मूल्यांकन। इसके द्वारा शिक्षा सम्बन्धी स्तर के आधार पर स्कूलों के वर्गीकरण में भी सहायता मिली।